महावीर चालीसा (Mahavir Chalisa) | महावीर चालीसा लिरिक्स (Mahaveer Chalisa Lyrics)

Mahaveer Chalisa

जैन धर्म सनातन धर्म का एक प्रमुख अंग है जिसकी नींव भगवान ऋषभदेव जी ने रखी थी। महावीर स्वामी जी को जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से अंतिम तीर्थंकर माना जाता है। जैन धर्म में महावीर स्वामी जी का अहम योगदान है और पूरा जैन समाज आज भी उनकी दी हुई शिक्षा पर चलता है। यही कारण है कि आज हम इस लेख में आपके साथ महावीर चालीसा (Mahaveer Chalisa) का पाठ करने जा रहे हैं।

आज के इस लेख में ना केवल आपको महावीर चालीसा (Mahavir Chalisa) पढ़ने को मिलेगी बल्कि साथ ही उसका अर्थ, महत्व व लाभ भी जानने को मिलेगा। इससे आपको महावीर चालीसा लिरिक्स (Mahaveer Chalisa Lyrics) का संपूर्ण शाब्दिक अर्थ जानने को मिलेगा और उससे जो शिक्षा मिल रही है, वह आप संपूर्ण रूप से ग्रहण कर पाएंगे। तो आइये पढ़ते हैं महावीर भगवान चालीसा

महावीर चालीसा (Mahaveer Chalisa)

।। दोहा ।।

शीश नवा अरिहन्त को, सिद्धन करूँ प्रणाम।

उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम।।

सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार।

महावीर भगवान को, मन-मन्दिर में धार।।

।। चौपाई ।।

जय महावीर दयालु स्वामी, वीर प्रभु तुम जग में नामी।

वर्धमान है नाम तुम्हारा, लगे हृदय को प्यारा प्यारा।

शांति छवि और मोहनी मूरत, शान हँसीली सोहनी सूरत।

तुमने वेश दिगम्बर धारा, कर्म-शत्रु भी तुम से हारा।

क्रोध मान अरु लोभ भगाया, महा-मोह तुमसे डर खाया।

तू सर्वज्ञ सर्व का ज्ञाता, तुझको दुनिया से क्या नाता।

तुझमें नहीं राग और द्वेष, वीर रण राग तू हितोपदेश।

तेरा नाम जगत में सच्चा, जिसको जाने बच्चा बच्चा।

भूत प्रेत तुम से भय खावें, व्यन्तर राक्षस सब भग जावें।

महा व्याध मारी न सतावे, महा विकराल काल डर खावे।

काला नाग होय फन धारी, या हो शेर भयंकर भारी।

ना हो कोई बचाने वाला, स्वामी तुम्हीं करो प्रतिपाला।

अग्नि दावानल सुलग रही हो, तेज हवा से भड़क रही हो।

नाम तुम्हारा सब दुख खोवे, आग एकदम ठण्डी होवे।

हिंसामय था भारत सारा, तब तुमने कीना निस्तारा।

जनम लिया कुण्डलपुर नगरी, हुई सुखी तब प्रजा सगरी।

सिद्धारथ जी पिता तुम्हारे, त्रिशला के आँखों के तारे।

छोड़ सभी झंझट संसारी, स्वामी हुए बाल-ब्रह्मचारी।

पंचम काल महा-दुखदाई, चाँदनपुर महिमा दिखलाई।

टीले में अतिशय दिखलाया, एक गाय का दूध गिराया।

सोच हुआ मन में ग्वाले के, पहुँचा एक फावड़ा लेके।

सारा टीला खोद बगाया, तब तुमने दर्शन दिखलाया।

जोधराज को दुख ने घेरा, उसने नाम जपा जब तेरा।

ठंडा हुआ तोप का गोला, तब सब ने जयकारा बोला।

मंत्री ने मन्दिर बनवाया, राजा ने भी द्रव्य लगाया।

बड़ी धर्मशाला बनवाई, तुमको लाने को ठहराई।

तुमने तोड़ी बीसों गाड़ी, पहिया खसका नहीं अगाड़ी।

ग्वाले ने जो हाथ लगाया, फिर तो रथ चलता ही पाया।

पहिले दिन बैशाख बदी के, रथ जाता है तीर नदी के।

मीना गूजर सब ही आते, नाच-कूद सब चित उमगाते।

स्वामी तुमने प्रेम निभाया, ग्वाले का बहु मान बढ़ाया।

हाथ लगे ग्वाले का जब ही, स्वामी रथ चलता है तब ही।

मेरी है टूटी सी नैया, तुम बिन कोई नहीं खिवैया।

मुझ पर स्वामी जरा कृपा कर, मैं हूँ प्रभु तुम्हारा चाकर।

तुम से मैं अरु कछु नहीं चाहूँ, जन्म-जन्म तेरे दर्शन पाऊँ।

चालीसे को चन्द्र बनावे, बीर प्रभु को शीश नवावे।

।। सोरठा ।।

नित चालीसहि बार, पाठ करे चालीस दिन।

खेय सुगन्ध अपार, वर्धमान के सामने।।

होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो।

जिसके नहिं संतान, नाम वंश जग में चले।।

महावीर चालीसा – अर्थ सहित (Mahavir Chalisa – With Meaning)

।। दोहा ।।

शीश नवा अरिहन्त को, सिद्धन करूँ प्रणाम।

उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम।।

सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार।

महावीर भगवान को, मन-मन्दिर में धार।।

मैं अरिहंत जी के सामने अपना सिर झुका कर उन्हें प्रणाम करता हूँ जो कि सिद्धि प्राप्त हैं। इसके साथ ही मैं आचार्य अर्थात गुरु का नाम लेता हूँ जो मन को सुख देने वाले हैं। मैं सभी साधुओं व सरस्वती माता का भी ध्यान करता हूँ और भगवान महावीर से प्रार्थना करता हूँ कि वे मेरे मन में वास करें।

।। चौपाई ।।

जय महावीर दयालु स्वामी, वीर प्रभु तुम जग में नामी।

वर्धमान है नाम तुम्हारा, लगे हृदय को प्यारा प्यारा।

शांति छवि और मोहनी मूरत, शान हँसीली सोहनी सूरत।

तुमने वेश दिगम्बर धारा, कर्म-शत्रु भी तुम से हारा।

हे भगवान महावीर स्वामी जी!! आपकी जय हो। आप शक्तिशाली व इस जगत के स्वामी हो। आपके बचपन का नाम वर्धमान है जो हमें बहुत ही प्यारा लगता है। आपका रूप बहुत ही शांत व मन को मोह लेने वाला है। आपके मुख पर धीमी हंसी है जो बहुत ही सुन्दर लग रही है। आपने दिगम्बर का रूप धारण किया और कर्म नामक शत्रु भी आपके सामने हार मान बैठा।

क्रोध मान अरु लोभ भगाया, महा-मोह तुमसे डर खाया।

तू सर्वज्ञ सर्व का ज्ञाता, तुझको दुनिया से क्या नाता।

तुझमें नहीं राग और द्वेष, वीर रण राग तू हितोपदेश।

तेरा नाम जगत में सच्चा, जिसको जाने बच्चा बच्चा।

आपने अपनी शक्ति से क्रोध, लालसा व लालच को अपने मन से दूर कर दिया व इस विश्व की माया में आपका मन नहीं लगा। आप तो इस ब्रह्माण्ड को जानने वाले हो, ऐसे में आपको इस दुनिया से क्या ही लेना देना। आपमें किसी भी प्रकार की आसक्ति व ईर्ष्या की भावना नहीं है और आप सभी की भलाई के ही उपदेश देते हैं। आपका ही नाम इस जगत में सबसे सच्चा है जिसे हर कोई जानता है।

भूत प्रेत तुम से भय खावें, व्यन्तर राक्षस सब भग जावें।

महा व्याध मारी न सतावे, महा विकराल काल डर खावे।

काला नाग होय फन धारी, या हो शेर भयंकर भारी।

ना हो कोई बचाने वाला, स्वामी तुम्हीं करो प्रतिपाला।

आपसे तो भूत-प्रेत भी डरते हैं और आपका नाम सुन कर व्यंतर राक्षस भी भाग जाते हैं। आपके भक्तों को किसी तरह का संकट नहीं सताता है और काल भी आपके नाम से भय खाता है। चाहे फिर कोई काला फनधारी नाग हो या भयंकर शेर हो, आप ही हमारी उन सभी से रक्षा करते हैं।

अग्नि दावानल सुलग रही हो, तेज हवा से भड़क रही हो।

नाम तुम्हारा सब दुख खोवे, आग एकदम ठण्डी होवे।

हिंसामय था भारत सारा, तब तुमने कीना निस्तारा।

जनम लिया कुण्डलपुर नगरी, हुई सुखी तब प्रजा सगरी।

जो अग्नि तेज हवा के कारण और भड़क जाती है और सब कुछ जलाकर नष्ट कर देती है, वह केवल आपके नाम लेने मात्र से ही ठंडी हो जाती है। एक समय में पूरे भारतवर्ष में बहुत हिंसा फैल गयी थी और सब जगह मार-काट मची हुई थी। तब आपने कुण्डलपुर नगरी में जन्म लेकर भारतवासियों का उद्धार कर दिया था।

सिद्धारथ जी पिता तुम्हारे, त्रिशला के आँखों के तारे।

छोड़ सभी झंझट संसारी, स्वामी हुए बाल-ब्रह्मचारी।

पंचम काल महा-दुखदाई, चाँदनपुर महिमा दिखलाई।

टीले में अतिशय दिखलाया, एक गाय का दूध गिराया।

आपके माता-पिता का नाम त्रिशला व सिद्धार्थ है किन्तु आपने पारिवारिक व सांसारिक माया बंधनों का त्याग कर ब्रह्मचारी का वेश धारण कर लिया था। पंचम काल बहुत ही दुःख देने वाला था किन्तु चंदनपुर में आपने अपनी शक्ति दिखायी। आपने रेत के टीलों में भी अपनी शक्ति दिखा कर गाय का दूध गिरा दिया।

सोच हुआ मन में ग्वाले के, पहुँचा एक फावड़ा लेके।

सारा टीला खोद बगाया, तब तुमने दर्शन दिखलाया।

जोधराज को दुख ने घेरा, उसने नाम जपा जब तेरा।

ठंडा हुआ तोप का गोला, तब सब ने जयकारा बोला।

यह देख कर ग्वाला भागा-भागा अपना फावड़ा लेकर आया और उस जगह को खोद डाला। तब आपने उसे दर्शन दिए। जोधराज जी के जीवन में बहुत दुःख था और तब उसने आपका नाम जपा। उसकी नगरी पर जो आक्रमण हो रहा था, वह आपका नाम लेने से ही शांत हो गया और सब जगह आपकी ही जय-जयकार होने लगी।

मंत्री ने मन्दिर बनवाया, राजा ने भी द्रव्य लगाया।

बड़ी धर्मशाला बनवाई, तुमको लाने को ठहराई।

तुमने तोड़ी बीसों गाड़ी, पहिया खसका नहीं अगाड़ी।

ग्वाले ने जो हाथ लगाया, फिर तो रथ चलता ही पाया।

आपकी महिमा देख कर मंत्री ने आपका मंदिर बनवाया और राजा ने भी उसमे बहुत योगदान दिया। इसके साथ ही आपके लिए धर्मशाला का निर्माण करवाया गया जहाँ आकर आप रुक सकें। आपके प्रभाव से रथ का पहिया आगे ही नहीं बढ़ रहा था लेकिन जैसे ही ग्वाले ने उसको खींचा, वह आगे बढ़ चला।

पहिले दिन बैशाख बदी के, रथ जाता है तीर नदी के।

मीना गूजर सब ही आते, नाच-कूद सब चित उमगाते।

स्वामी तुमने प्रेम निभाया, ग्वाले का बहु मान बढ़ाया।

हाथ लगे ग्वाले का जब ही, स्वामी रथ चलता है तब ही।

बैसाख महीने के पहले दिन वह रथ तीर नदी पर जाता है। मीना, गुर्जर इत्यादि सभी लोग यह देख कर नाचने-कूदने लग जाते हैं। हे महावीर स्वामी!! आपने ही अपने प्रेम का प्रभाव दिखाकर उस ग्वाले के मान-सम्मान को बढ़ा दिया। जब भी उस ग्वाले का हाथ रथ पर लगता है, तभी वह आगे चलता है।

मेरी है टूटी सी नैया, तुम बिन कोई नहीं खिवैया।

मुझ पर स्वामी जरा कृपा कर, मैं हूँ प्रभु तुम्हारा चाकर।

तुम से मैं अरु कछु नहीं चाहूँ, जन्म-जन्म तेरे दर्शन पाऊँ।

चालीसे को चन्द्र बनावे, बीर प्रभु को शीश नवावे।

हे महावीर भगवान!! मेरे जीवन की नैय्या भी ठीक से नहीं चल रही है और इसको आपके आशीर्वाद की आवश्यकता है। मैं तो आपका सेवक हूँ और अब आप मुझ पर अपनी कृपा कीजिये। मैं तो हर जन्म में आपके दर्शन करने के सिवा और कुछ भी नहीं चाहता हूँ। मैं आपकी इस चालीसा का पाठ करता हूँ और आपके सामने अपना शीश झुकाता हूँ।

।। सोरठा ।।

नित चालीसहि बार, पाठ करे चालीस दिन।

खेय सुगन्ध अपार, वर्धमान के सामने।।

होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो।

जिसके नहिं संतान, नाम वंश जग में चले।।

जो भी व्यक्ति चालीस दिन तक इस महावीर चालीसा का चालीस बार पाठ करता है, उसका यश हर जगह फैल जाता है। यदि वह जन्म से गरीब पैदा हुआ है तो उसके पास कभी भी धन-संपत्ति की कमी नहीं रहती है व यदि उसे कोई संतान नहीं है तो उसकी संतान भी होती है और उसका नाम पूरे विश्व में फैलता है।

महावीर चालीसा लिरिक्स – महत्व (Mahaveer Chalisa Lyrics – Importance)

जैन धर्म में सभी के प्रति शांति बनाये रखने को कहा गया है फिर चाहे वह मनुष्य हो या जीव-जंतु या पेड़-पौधे। इसमें समय-समय पर हुए तीर्थंकरों ने भी यही शिक्षा दी है जिनमें से अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी जी थे। जैन धर्म में महावीर स्वामी जी का महत्व किसी से छुपा नहीं है और जैन धर्म के सभी अनुयायी उनकी दी हुई शिक्षा पर चलते हैं।

आपने ऊपर महावीर चालीसा पढ़ी व साथ ही उसका अर्थ भी जाना। तो इसे पढ़ कर अवश्य ही आपको महावीर स्वामी जी के जीवन से प्रेरणा मिली होगी और उनके गुणों, शक्तियों, उपदेशों इत्यादि के बारे में ज्ञान प्राप्त हुआ होगा। यही तो भगवान महावीर जी की चालीसा का महत्व होता है जो मनुष्य जाति को अद्भुत प्रेरणा देकर जाता है।

महावीर भगवान चालीसा के लाभ (Mahaveer Bhagwan Chalisa – Benefits)

अब यदि आप प्रतिदिन महावीर भगवान की चालीसा का पाठ करते हैं और भगवान महावीर जी का ध्यान करते हैं तो उससे आपका मन शुद्ध व निर्मल होता है। यदि आपके मन में कोई द्वंद्व चल रहा है या जीवन में कोई मार्ग नहीं दिखाई पड़ रहा है तो मन शांत हो जाता है और आगे का मार्ग दिखाई देता है। इसके साथ ही आपके तन-मन को एक नयी शक्ति व ऊर्जा मिलती है जिसकी सहायता से आप नवकार्य शुरू कर पाते हैं।

कुल मिलकर कहा जाए तो महावीर स्वामी जी की चालीसा को पढ़ने से आपको अद्भुत लाभ मिलते हैं और यह आप स्वयं अनुभव करेंगे। इसके लिए आपको नियमित रूप से सुबह स्नान करने के पश्चात शांत मन से महावीर चालीसा का पाठ करना चाहिए। यदि आप एक माह तक भी ऐसा करते हैं तो आपके तन में मन में जो परिवर्तन आएगा, वह बहुत ही सकारात्मक होगा।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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