पोंगल कैसे मनाया जाता है? जाने पोंगल त्योहार के बारे में संपूर्ण जानकारी

Pongal Festival In Hindi

आज हम आपको बताएँगे कि पोंगल क्यों मनाया जाता है (Pongal Festival In Hindi) और इसका क्या महत्व है। दक्षिण भारत का प्रसिद्ध पर्व पोंगल किसानो में मुख्य रूप से मनाया जाता है। यह दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में सबसे प्रसिद्ध हैं। चूँकि भारत एक कृषि प्रधान देश हैं, इसलिये पोंगल त्योहार भी पूर्णतया कृषि और फसल से ही जुड़ा हुआ हैं।

यह एक दिन का पर्व ना होकर चार दिनों तक चलने वाला महापर्व हैं। आज हम आपको पोंगल त्योहार (Pongal In Hindi) से जुड़े सभी प्रश्नों का उत्तर देंगे। जैसे कि पोंगल कब मनाया जाता है, पोंगल का अर्थ क्या है, पोंगल त्योहार कहाँ मनाया जाता है, पोंगल कैसे मनाया जाता है, इत्यादि। तो चलिए शुरू करते हैं।

Pongal Festival In Hindi | पोंगल क्यों मनाया जाता है?

पोंगल त्योहार को मनाने के पीछे मुख्य रूप से दो कथाएं प्रचलन में हैं जिनमे से एक का संबंध भगवान शिव से हैं तो दूसरा भगवान श्रीकृष्ण से। आइए जानते हैं।

  • भगवान शिव से जुड़ी पोंगल की कथा

एक बार भगवान शिव ने अपना एक बैल जिसका नाम मट्टू/ वसव था, उसे धरती पर जाकर मनुष्यों से यह कहने को कहा कि वे प्रतिदिन तेल लगाकर स्नान करे और महीने में एक बार भोजन ग्रहण करे। जब वसव धरती पर पहुंचा तब उसने मनुष्यों को इसका उल्टा कह दिया।

वसव ने कहा कि मनुष्यों को प्रतिदिन भोजन करना चाहिए और महीने में एक बार तेल लगाकर स्नान करना चाहिए। जब शिवजी को इस बात का पता चला तो वे अत्यधिक क्रोधित हो गए। उन्होंने वसव को धरती पर जाकर मनुष्यों की खेती में सहायता करने को कहा। तब से किसान के खेत में बैलों का प्रमुख स्थान होता हैं जो खेत जोतने में उनकी सहायता करते हैं।

  • भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी पोंगल की कहानी

द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने भगवान श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया तो एक बार उन्होंने देवराज इन्द्र के मान को भंग करने की योजना बनायी। उन्होंने गोकुलवासियों को इन्द्र की पूजा नहीं करने को कहा। फलस्वरूप देवराज इन्द्र ने वहां भयानक वर्षा करके सबकुछ उजाड़ दिया।

तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक ऊँगली पर सात दिनों तक उठाकर रखा और इन्द्र का मान भंग किया। इसके बाद वर्षा से हुए नुकसान की भरपाई के लिए उन्होंने गोकुलवासियों की खेती में सहायता की। तब से पोंगल त्योहार (Pongal In Hindi) मनाने की शुरुआत हुई।

पोंगल कब मनाया जाता है?

जब संपूर्ण उत्तर भारत में मकर संक्राति पर्व की शुरुआत होती हैं उसी समय तमिलनाडु में पोंगल का त्यौहार मनाया जा रहा होता हैं। दरअसल यह सूर्य देव की दिशा बदलने से भी संबंध रखता है। यह सामान्यतया 14 जनवरी से शुरू होकर 17 जनवरी तक चलता हैं। पोंगल के पहले दिन से ही तमिल कैलेंडर का तै महिना शुरू हो जाता है।

पोंगल का अर्थ क्या है?

तमिल भाषा में पोंगल को उफान या विप्लव के नाम से जाना जाता है। दरअसल इसका अर्थ होता हैं उबालना। इस दिन नए चावलों को गुड़ के साथ उबाल कर खीर बनाई जाती हैं जिसे पगल भी कहते हैं। इसलिये इस त्यौहार का नाम पोंगल पड़ा।

पोंगल त्योहार कहाँ मनाया जाता है?

वैसे तो पोंगल (Pongal Festival In Hindi) को मुख्यतया तमिलनाडु राज्य में ही मनाया जाता हैं। इसके अलावा इसे केरल राज्य के कुछ भागो में भी मनाया जाता है। दरअसल इसका संबंध, जो हम अन्न उगाते हैं, उसका सम्मान करने से हैं। सर्वप्रथम इसमें घर की साफ-सफाई की जाती है और सब कचरे को गोबर और लकड़ी के साथ जला दिया जाता हैं। यह हमे स्वच्छता का संदेश देता हैं।

उसके बाद हमे इंद्र देव और सूर्य देव की सहायता से जल व धूप की महत्ता को बताया गया हैं। यदि ये दोनों ही नही रहेंगे तो मनुष्य के जीवन का कोई औचित्य नही रह जाएगा। यही हैं तभी हम हैं। इसलिये इनका महत्व हमारे लिए सर्वोपरि होना चाहिए।

तीसरा, जो पशु वर्ष भर हर ऋतु में एक किसान के काम आता हैं, उसका खेत जोतता है, भारी से भारी बोझा उठाता हैं, उस पशु का हम सभी को सम्मान करना चाहिए। इस दिन जब उनकी पूजा की जाती हैं तब उनमे भी साहस का संचार होता हैं और उनके हृदय में खुशी उमड़ती हैं।

अंतिम दिन हमे अपनी व्यस्तता भरे जीवन में भी अपनों के लिए समय निकालने व उनके साथ खुशियाँ बांटने की प्रेरणा देता हैं। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हमें हमेशा अपनों के लिए कुछ समय निकाल कर रखना चाहिए व रिश्तो को संजो कर रखना चाहिए। आइए जाने तमिलनाडु में पोंगल कैसे मनाया जाता है।

तमिलनाडु में पोंगल कैसे मनाया जाता है?

जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि यह एक दिन का पर्व ना होकर चार दिनों का पर्व होता है। इसमें हर दिन का अपना एक अलग महत्व हैं जो कि पूर्णतया किसानो और फसलो को समर्पित है। आइए एक-एक करके जानते हैं।

#1. भोगी पोंगल

इस दिन वर्षा के राजा इंद्र देव की पूजा की जाती है। किसी भी फसल के उगने में वर्षा का प्रमुख स्थान होता है। देवराज इंद्र को भोगी के नाम से भी जाना जाता है। इसलिये इस दिन इन्द्र देव को प्रसन्न करने और उनका आभार प्रकट करने के लिए यह पूजा की जाती है।

इसके साथ ही इस दिन अपने घर व आसपास के कूड़े-कचरे को साफ करके जला दिया जाता है। इसको गोबर और लकड़ी की आग में ही जलाया जाता हैं। धान के खेतो की कटाई करके उन्हें घर में रखा जाता है। इसमें मुख्य रूप से चावल और मैसूर की दाल होती हैं।

#2. सूर्य पोंगल

फसलो में सूर्य देव का स्थान भी प्रमुख होता है। उनसे मिलती धूप से ही फसले उगती हैं। इस दिन का पोंगल में विशेष रूप से स्थान हैं क्योंकि इसी दिन पोंगल का व्यंजन बनाया जाता हैं। इस दिन सभी लोग अपने घरो के बाहर मिट्टी के बर्तन में नए चावल और गुड़ की मीठी खीर बनाते हैं और उसे प्रसाद के रूप में सूर्य देव को चढ़ाते हैं।

पोंगल के व्यंजन को घर के बाहर इसलिये बनाया जाता हैं क्योंकि इसे सूर्य देव की रोशनी में बनाने का ही महत्व हैं। सूर्य देव को यह खीर अर्पित करने के पश्चात इसे प्रसाद रूप में वितरित कर दिया जाता हैं।

#3. मट्टू पोंगल

पोंगल त्योहार (Pongal In Hindi) खेती में काम आने वाले बैलो, गायो को समर्पित हैं। इसी दिन भगवान शिव ने अपने वसव बैल को मनुष्य की सहायता करने के लिए धरती पर भेजा था। इसलिये इस दिन सभी किसान अपने बैलों, गाय, बछड़ो को तिलक लगाते हैं, उनके सींघो को रंगते हैं और उनकी पूजा करते हैं।

इसी दिन तमिलनाडु का मुख्य त्यौहार जल्लीकट्टू का भी आयोजन किया जाता हैं जिसमे बैलो की दौड़ लगाई जाती हैं और पुरुष उनके साथ युद्ध करते हैं। प्राचीन समय में जो पुरुष इस खेल में जीतता था उसका सम्मान किया जाता था तथा गाँव की महिला उससे विवाह रचाती थी।

#4. कनु/ कनुम/ कान्नुम/ कन्या पोंगल

यह त्यौहार दीपावली की राम-रामी की तरह ही हैं। इस दिन नए वस्त्र धारण करते हैं और अपने सगे-संबंधियों और मित्रों के घर बधाई देने जाते हैं। इसके साथ ही इस दिन का संबंध माँ काली की पूजा करने से भी हैं जो मुख्यतया महिलाओं के द्वारा ही की जाती हैं।

इस दिन बचे हुए पोंगल को केले के पत्ते पर रखकर कौवो को खाने के लिए दिया जाता हैं। उत्तर भारत के भाई-दूज त्यौहार की ही भांति इस दिन विवाहित स्त्रियाँ अपने भाई के मंगल स्वास्थ्य की कामना करती हैं और उन्हें तिलक लगाती हैं। भाई भी अपनी बहन के घर जाते हैं और उन्हें अपना आशीर्वाद देते हैं।

पोंगल कैसे बनाते हैं?

  • चावल- 250 ग्राम
  • गुड़- एक छोटी कटोरी
  • घी- दो बड़े चम्मच
  • मेवे (काजू, बादाम, किशमिश, पिस्ता इत्यादि)- बारीक कटे हुए स्वादानुसार

पोंगल बनाने की रेसिपी

  • सबसे पहले एक कुकर में घी डालकर गर्म करे।
  • जब घी गर्म हो जाए तब इसमें चावल डाल दे और गैस धीमा कर दे।
  • कुछ देर तक चावल को घी में चलाते रहे।
  • एक अलग बर्तन में पानी को उबाले और उसमे गुड़ डाल दे।
  • जब गुड़ पानी में अच्छे से घुल जाए तब इसे छलनी की सहायता से छान ले और गंदगी निकाल ले।
  • अब यह गुड़ वाला पानी चावल वाले कुकर में डाले और कुकर बंद कर दे।
  • जब चावल पक जाए तब उसमे ऊपर से मेवे सजा दे और सूर्य देव को भोग लगाने के बाद घरवालो को परोसे।

पोंगल से जुड़े अन्य त्यौहार

जिन दिनों तमिलनाडु और केरल में पोंगल का त्यौहार मनाया जाता हैं उसी दिन भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग त्यौहार मनाए जा रहे होते हैं जैसे कि गुजरात-राजस्थान में उत्तरायण, असम में बिहू, हरियाणा और पंजाब में माघी और शेष भारत व नेपाल में मकर संक्राति। इसी के साथ इस दिन बांग्लादेश में शक्रैन का त्यौहार मनाया जाता है।

इस तरह से आज आपने जान लिया है कि पोंगल क्यों मनाया जाता है (Pongal Festival In Hindi) और इस दिन क्या कुछ किया जाता है। आशा है कि आपको पोंगल त्योहार से जुड़ी संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। फिर भी यदि आपको कुछ और पूछना है तो आप नीचे कमेंट कर हमने पूछ सकते हैं।

पोंगल त्योहार से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: पोंगल त्योहार कैसे मनाया जाता है?

उत्तर: पोंगल त्योहार को चार दिनों तक मनाया जाता है इन चार दिनों को क्रमशः भोगी पोंगल, सूर्य पोंगल, मट्टू पोंगल और कनु पोंगल के नाम से जाना जाता है

प्रश्न: पोंगल का त्योहार क्यों मनाया जाता है?

उत्तर: पोंगल का त्योहार किसानों से जुड़ा हुआ है हम सभी जो अन्न खाते हैं, उसका सम्मान करने के लिए ही पोंगल का त्योहार मनाया जाता है साथ ही इसकी कथा भगवान शिव और श्रीकृष्ण से नभी जुड़ी हुई है

प्रश्न: पोंगल में किसकी पूजा होती है?

उत्तर: पोंगल में पहले दिन देवराज इंद्र, दूसरे दिन सूर्य देवता, तीसरे दिन भगवान शिव और चौथे दिन माँ महाकाली की पूजा की जाती है

प्रश्न: पोंगल का दूसरा नाम क्या है?

उत्तर: पोंगल का कोई दूसरा नाम नहीं है और इसे केवल पोंगल के नाम से ही जाना जाता है हालाँकि इस दिन भारत के अन्य राज्यों में अलग त्यौहार मनाए जा रहे होते हैं जैसे कि मकर संक्रांति व बिहू

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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