इंडोनेशिया में स्थित प्रम्बनन शिव मंदिर की संपूर्ण जानकारी

Prambanan Mandir

प्रम्बानन मंदिर (Prambanan Mandir) इंडोनेशिया के जावा शहर के पास योग्यकर्ता शहर से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक विशाल मंदिर है। इसे वहां की स्थानीय भाषा में रोरो जोंग्गरंग मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा कुछ लोग इसे प्रम्बनन मंदिर भी कह देते हैं। यह छोटे-बड़े मंदिरों को मिलाकर कुल 240 मंदिरों का समूह है जिनमे से अधिकांश नष्ट हो चुके हैं। फिर भी तीन मुख्य मंदिर जो कि त्रिदेव को समर्पित हैं, वे आज पुनरुद्धार के बाद जीवंत अवस्था में हैं।

यह इंडोनेशिया देश का सबसे बड़ा व एशिया का एक तरह से दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है। इसकी कुल ऊंचाई 154 फुट (47 मीटर) है जिसका निर्माण 9वीं शताब्दी में महाराज पिकाटन ने करवाया था। आज हम आपको प्रम्बानन शिव मंदिर (Prambanan Shiva Mandir) के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे।

Prambanan Mandir | प्रम्बानन मंदिर के बारें में

वैसे तो भारत देश सहित दुनियाभर में कई विशाल हिन्दू मंदिर हैं किन्तु उन सभी में इंडोनेशिया का यह प्रम्बानन शिव मंदिर अपनी एक अलग ही पहचान रखता है। वह इसलिए क्योंकि यह मंदिर बहुत ही विशाल प्रांगन में तो बना ही हुआ है, साथ ही यहाँ छोटे-बड़े मंदिर मिलाकर कुल 240 मंदिर बने हुए हैं। उन्हें इस तरह से श्रंखलाबद्ध तरीके से बनाया गया है कि हर कोई इसे देखकर आश्चर्यचकित हो जाता है।

ऐसे में प्रम्बनन मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है। हालाँकि वर्तमान में यह मंदिर जर्जर हो चुका है क्योंकि ना तो वहां की सरकार ने इस पर ध्यान दिया है और साथ ही पुराने समय में मुगलों ने इस मंदिर को कई बार क्षतिग्रस्त किया था। फिर भी आज के समय में यह इंडोनेशिया का मुख्य आकर्षण है। आज हम आपको प्रम्बानन मंदिर का इतिहास सहित उसकी सुंदरता व सरंचना इत्यादि के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे।

प्रम्बानन मंदिर का इतिहास

सबसे पहले इंडोनेशिया में सनातन धर्म को मानने वाले लोग रहते थे लेकिन सम्राट अशोक के शासन काल में बौद्ध धर्म तेजी से फैला। उन्होंने भारत के उत्तर व दक्षिण में बौद्ध धर्म का जमकर प्रचार करवाया। फलस्वरूप इंडोनेशिया में भी बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या बढ़ती चली गई। आइए क्रमानुसार इंडोनेशिया सहित प्रम्बानन शिव मंदिर (Prambanan Temple In Hindi) का इतिहास जानते हैं।

  • इंडोनेशिया में लगभग एक सदी तक बौद्ध धर्म को मानने वाले राजाओं का राज रहा जिनमे शैलेन्द्र राजवंश प्रमुख था। इसके बाद वहां फिर से हिंदू धर्म का राज आया व संजय राजवंश के राजा रकाई पिकाटन (Rakai Pikatan Prambanan) राजा बने। उन्होंने वहां हिंदू धर्म की पुनः स्थापना के उद्देश्य से इस विशाल मंदिर का निर्माण करवाया जो मुख्यतया भगवान शिव को समर्पित था।
  • इस मंदिर का निर्माण 850 ईसवी में शुरू हुआ था जो राजा पिकाटन के नेतृत्व में 856 ईसवी में पूरा हो गया था। इसके बाद संजय राजवंश के अन्य राजाओं ने इस मंदिर को विस्तार दिया जिनमे राजा लोकपाला व बलितुंग महाशंभू प्रमुख थे।
  • इस मंदिर का शुरूआती नाम शिवगृह था अर्थात भगवान शिव का घर। मंदिर के पास ओपक नदी (Opak River) बहती थी जिसकी दिशा को मंदिर निर्माण के लिए मोड़ दिया गया था ताकि मंदिर को और बड़ा स्थान मिल सके।
  • इसके साथ ही बाद के राजाओं द्वारा इसे और विस्तार दिया गया व मुख्य मंदिर के चारों ओर अन्य छोटे मंदिर क्रमानुसार बनाए गए। लगभग एक सदी तक विभिन्न राजाओं के द्वारा इस मंदिर का निर्माण जारी रखा गया और इसे विस्तार दिया गया।
  • फिर दसवीं सदी में इस्याना राजवंश ने मध्य जावा से पूर्वी जावा को अपनी राजधानी बना लिया और इस क्षेत्र को छोड़ दिया गया। ऐसा उस क्षेत्र में ज्वालामुखी के बढ़ते प्रभाव के कारण किया गया।
  • इसके बाद यह जगह खाली रहने लगी और धीरे-धीरे भुला दी गई। मंदिर के चारों ओर विशाल जंगल, पेड़-पौधे, खरपतवार इत्यादि फैलने से यह कई सदियों तक अनदेखा रहा।

इस तरह से प्रम्बानन शिव मंदिर (Prambanan Shiva Mandir) के इतिहास में कई तरह के उतार-चढ़ाव देखे गए। फिर एक समय ऐसा आया जब इस जगह और मंदिर ने मुस्लिम आक्रांताओं के भीषण आक्रमणों को झेला और फिर उठ खड़ा हुआ। आइए उसके बारे में भी जान लेते हैं।

प्रम्बनन मंदिर को तोड़ा जाना

कुछ सदियों के बाद जब भारत की भूमि पर अफगान व मुगलों के आक्रमण बहुत ज्यादा बढ़ गए थे तो उससे इंडोनेशिया भी अछूता नही था। फिर एक समय बाद यहाँ पूर्ण रूप से इस्लामिक शासन की स्थापना हो गई। उस समय यहाँ सनातन व बौद्ध धर्म मानने वाले लोगों का व्यापक नरसंहार हुआ। मंदिर-गुरुकुल इत्यादि तोड़ दिए गए व सब लूट लिया गया।

इन मंदिरों में प्रम्बनन शिव मंदिर भी था जहाँ मुगल आक्रांताओं ने भीषण तबाही मचाई। लगातार हो रहे नरसंहार के कारण इंडोनेशिया में हिंदू व बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या नगण्य रह गई। अन्तंतः इंडोनेशिया में इस्लाम धर्म स्थापित हुआ तथा हिंदू व बौद्ध धर्म को इस धरती से पूरी तरह समाप्त कर दिया गया या वे बहुत कम संख्या में बचे रह गए।

फिर 16वीं शताब्दी में आए विनाशकारी भूकंप ने यहाँ और तबाही मचाई। इस भूकंप ने प्रम्बनन शिव मंदिर (Prambanan Mandir) के बचे हुए मंदिरों को भी ध्वस्त कर दिया। इसमें मुख्य मंदिर भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ व आसपास के अन्य छोटे मंदिर इत्यादि सब टूट गए या खंडहर में बदल गए। इन मंदिरों पर वहां के शासकों ने कोई काम नही करवाया तथा ये वर्षों तक यूँ ही गुमनामी में पड़े रहे।

प्रम्बानन मंदिर का जीर्णोद्धार

इसके बाद वहां पर अंग्रेजों व डच का शासन आ गया। उनके अधिकारियों और पुरातत्व विभाग के लोगों के द्वारा समय-समय पर मंदिर को जाकर देखा गया। मंदिर की विशालता को देखकर वे बहुत आश्चर्यचकित हुए। आसपास के जावानिज लोगों ने इसके इतिहास के बारे में भी उन्हें बताया।

  • आखिर में डच के राजाओं ने मुख्य मंदिर का पुनः निर्माण करवाने का निर्णय लिया।
  • फिर सन 1918 में मुख्य शिव मंदिर का पुनर्निर्माण शुरू हुआ। यह काम बीच में कई बार रुका क्योंकि उस समय विश्व ने दो युद्ध देखे थे।
  • अंत में सन 1953 में जाकर मुख्य शिव मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य पूरा हुआ जिसका इंडोनेशिया के प्रथम राष्ट्रपति सुकर्णो (Sukarno) द्वारा उद्घाटन किया गया।
  • इसके बाद सन 1978 से लेकर 1993 के बीच में दो अन्य मुख्य मंदिरों (विष्णु व ब्रह्मा जी के मंदिर) तथा तीन वाहन मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया गया।
  • सन 1993 में प्रम्बनन शिव मंदिर के 6 मुख्य मंदिर जो कि त्रिदेव व उनके वाहनों को समर्पित थे, जीर्णोद्धार के बाद तैयार हो चुके थे, तब वहां के राष्ट्रपति सुहर्तो (Suharto) ने इसका उद्घाटन किया था।

अभी भी समस्या यह थी कि मंदिर के असली नक्काशीदार पत्थरों को मुगल काल में या तो लूटा जा चुका था या उन्हें बुरी तरह से तहस-नहस कर दिया गया था। इसलिए वहां की सरकार ने घोषित किया कि यदि मंदिर के 75 प्रतिशत से अधिक नक्काशीदार पत्थर मिल जाते हैं तो संपूर्ण मंदिर का पुनः निर्माण करवा दिया जाएगा। हालाँकि मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य आज भी समय-समय पर होता रहता है।

प्राचीन नक्काशी किए हुए व मंदिर के अवशेष ना मिलने के कारण यह मंदिर अभी भी खंडहर की स्थिति में है। किंतु मुख्य मंदिर व अन्य कुछ बड़े मंदिर अब पहले की तुलना में अच्छी अवस्था में है। अपनी विशालता और अद्भुत उत्कृष्ट शैली के कारण यह मंदिर खंडहर होने के बाद भी देश-विदेश के लाखों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

प्रम्बनन शिव मंदिर में आया भूकंप

16वीं सदी में आए भूकंप ने यहाँ भीषण तबाही तो मचाई ही थी और उसके बाद बहुत कोशिशों से मुख्य मंदिरों का जीर्णोद्धार किया गया था। लेकिन सन 2007 में यहाँ फिर से भीषण भूकंप आया और मंदिर को तहस-नहस कर दिया।

इस भूकंप में मंदिर के कई पत्थर टूट कर गिर गए थे। इंडोनेशिया की सरकार के द्वारा मंदिर का फिर से जीर्णोद्धार करवाने तक पर्यटकों को यहाँ जाने से रोक दिया गया था। हालाँकि कुछ ही समय बाद मंदिर को ठीक करके इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया गया।

योग्यकर्ता शहर के पास बड़े-बड़े ज्वालामुखी होने के कारण उसका प्रभाव इस मंदिर पर भी पड़ता है। हालाँकि आज भी इंडोनेशिया की सरकार के द्वारा निरंतर इस मंदिर के पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार का कार्य किया जा रहा है। साथ ही यहाँ हिंदू धर्म के लोगों के द्वारा समय-समय पर उत्सवों का आयोजन भी शुरू हो गया है।

प्रम्बानन मंदिर की सरंचना

प्रम्बनन शिव मंदिर
प्रम्बनन शिव मंदिर

प्रम्बानन मंदिर (Prambanan Temple In Hindi) इतना विशाल है कि आप ऊपर दिए गए चित्र से ही इसका अनुमान लगा सकते हैं। यहाँ कुल 240 छोटे व बड़े मंदिर थे। मंदिर का पूरा स्थल एक वर्ग के आकर में बनाया गया है जिसमे क्रमानुसार सभी मंदिरों को बनाया गया है। इसमें सबसे मुख्य और ऊँचा मंदिर भगवान शिव का है, इसलिए इसे शिव मंदिर या शिवगृह की संज्ञा दी गई थी। इसके बाद क्रमानुसार मुख्य मंदिरों में भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के मंदिर, तीनों वाहनों के मंदिर, दो अपित मंदिर व चार केरिल मंदिर आते हैं।

मंदिर की सरंचना इतनी विशाल है कि हमे इसे दो भागों में बांटकर आपको समझाना पड़ेगा। पहले चरण में हम आपको मंदिर की बाहरी सरंचना के बारे में बताएँगे जहाँ सभी मंदिरों की स्थिति, दिशा तथा वह किस भगवान से संबंधित है, यह बताया जाएगा। दूसरे चरण में मंदिरों की आंतरिक सरंचना के बारे में बताया जाएगा। आइए जानते हैं।

1. प्रम्बानन शिव मंदिर की बाहरी सरंचना

ऊपर दिए गए चित्र को देखने पर आप पाएंगे कि मंदिर दो वर्गों के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें एक बड़ा/ बाह्य वर्ग है जिसमें सभी 240 मंदिर हैं जबकि एक छोटा/ आंतरिक वर्ग है जिसमें सभी मुख्य मंदिर स्थित हैं। इससे ऊपर दिए चित्र को देखने पर मंदिर के संपूर्ण क्षेत्रफल को 3 भागों में बांटा जा सकता है। इसमें आंतरिक वर्ग सबसे पवित्र स्थल/ दैवीय स्थल, बाह्य वर्ग तपस्वी, ऋषि-मुनियों का स्थल व बाह्य वर्ग के चारों ओर फैला उद्यान सामान्य मनुष्य स्थल का प्रतिनिधित्व करते हैं।

  • तीन त्रिमूर्ति मंदिर

इसमें सबसे पहले 3 मुख्य मंदिर हैं जो त्रिमूर्ति को समर्पित हैं। सबसे बड़ा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जो प्रम्बनन शिव मंदिर के एकदम केंद्र में स्थापित है। यह मंदिर सभी मंदिरों में सबसे ऊँचा व विशाल है। अन्य दो मुख्य मंदिर भगवान विष्णु व भगवान ब्रह्मा को समर्पित हैं। भगवान विष्णु का मंदिर शिवजी के उत्तर में व ब्रह्मा जी का मंदिर शिवजी के दक्षिण में स्थित है। इन तीनों मंदिर के मुख सूर्योदय की दिशा में अर्थात पूर्व दिशा में हैं।

  • तीन वाहन मंदिर

इसके बाद आते हैं 3 वाहन मंदिर जो इन तीन मंदिरों के ठीक सामने बने हैं। यह 3 मंदिर भगवान ब्रह्मा, विष्णु व शिव के वाहनों को समर्पित हैं। भगवान शिव के सामने नंदी का, विष्णु के सामने गरुड़ का व ब्रह्मा के सामने हंस का मंदिर है। इन तीनों मंदिरों के मुख सूर्यास्त की दिशा में अर्थात पश्चिम दिशा में हैं।

  • दो अपित मंदिर

त्रिमूर्ति व उनके तीन वाहनों के बीच में उत्तर व दक्षिण दिशा की ओर मुख किए हुए दो और मंदिर हैं जिनमे अब मूर्तियां नहीं है। मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा के पास स्थित मंदिर माता सरस्वती को व भगवान विष्णु के पास स्थित मंदिर माता लक्ष्मी को समर्पित था। अपित को जावानिज भाषा में बगल में कहा जाता है। मुख्य मंदिरों के बगल में स्थित होने के कारण इनका नाम अपित मंदिर पड़ा।

  • चार केलिर मंदिर

जैसा कि आप ऊपर चित्र में देख सकते हैं कि पूरा मंदिर एक विशाल वर्ग के आकार में फैला हुआ है जिसमें 240 मंदिर बने हुए हैं। इस विशाल वर्ग के बीचों बीच एक छोटा वर्ग है जिसमे सभी मुख्य मंदिर स्थित हैं। इस आंतरिक वर्ग में त्रिमूर्ति, वाहन व अपित वाले कुल 8 मंदिर स्थित हैं। आंतरिक वर्ग के चारों ओर बाह्य वर्ग की भांति दीवार बनाई गई है। इस वर्ग में प्रवेश करने के लिए चारों दिशाओं से चार अन्य मंदिर बनाए गए हैं जिन्हें केलिर मंदिर नाम दिया गया है।

  • 224 पेरवाडा मंदिर

फिर चारों दिशाओं में क्रमानुसार एक पंक्ति में 4-4 मंदिरों का निर्माण किया गया है जो कि अपने आप में अद्भुत है। इस तरह कुल 224 मंदिर चारों दिशाओं में बनाए गए हैं जिनमें प्रत्येक की ऊंचाई 14 मीटर है। इनको चारों दिशाओं में 44, 52, 60 व 68 के क्रम में बनाया गया है।

मंदिर के चारों कोनों में स्थित 4-4 मंदिर (कुल 16) दो दिशाओं में खुलते हैं व अन्य 208 मंदिर अपनी ओर की दिशा में बाहर की ओर खुलते हैं। इसे आप चित्र में दिए गए निशान के आधार पर अच्छे से समझ सकते हैं। इनमे से ज्यादातर मंदिर क्षतिग्रस्त हो चुके हैं या खंडहर की स्थिति में हैं। हालाँकि कुछ का पुनः निर्माण हुआ है।

  • चार पतोक मंदिर

आंतरिक वर्ग की ही भांति बाह्य वर्ग के चारों ओर भी एक मजबूत दीवार का निर्माण करवाया गया था। इसमें भी चारों दिशाओं से चार मंदिरों का निर्माण किया गया था जिसमे से होकर मंदिर के अंदर प्रवेश किया जा सकता है। इन्हीं चारों मंदिरों को पतोक मंदिर के नाम से जाना जाता है।

इस तरह यहाँ कुल 240 मंदिर हैं जिनमे अंदर के वर्ग में कुल 8 मुख्य मंदिर, इसमें प्रवेश करने के लिए चारों दिशाओं में 4 मंदिर, बाहरी वर्ग में 224 मंदिर व उसमे प्रवेश करने के लिए चारों दिशाओं में 4 अन्य मंदिर स्थित हैं। मंदिर में प्रवेश करने की दिशा और वहां से निकलने का स्थान, मंदिर का मुख, उसकी स्थिति इत्यादि आप दिए गए चित्र के माध्यम से भलीभांति समझ सकते हैं।

2. प्रम्बानन मंदिर की आंतरिक सरंचना

अब हम प्रम्बानन शिव मंदिर की आंतरिक सरंचना के बारे में जान लेते हैं। ऊपर आपने मंदिरों की स्थिति के बारे में जाना लेकिन यह सभी मंदिर अंदर से कैसे बने हुए हैं, उनके बारे में जानना अभी बाकी है। आइए वह भी जान लेते हैं।

  • शिव मंदिर

शिव मंदिर चौकोर क्षेत्र में फैला हुआ सबसे ऊँचा व विशाल मंदिर है। मंदिर की ऊंचाई 47 मीटर व चौड़ाई 34 मीटर है। मंदिर धरातल पर ना होकर ऊंचाई पर स्थित है जिस पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गई है। सीढ़ियों से चढ़ने पर आप पाएंगे कि मंदिर को चारों ओर से एक मजबूत दीवार से घेरा गया है। मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है अर्थात इसमें पूर्वी दिशा से प्रवेश किया जा सकता है।

मंदिर के बाहरी द्वार पर दोनों ओर दो कक्ष हैं जिनमे महाकाल व नन्दीश्वर की मूर्तियां स्थापित है। सीढ़ियाँ चढ़कर मंदिर में प्रवेश करने पर वहां 5 कक्ष और मिलेंगे। इनमे से मुख्य कक्ष मंदिर के मध्य में स्थित है जो कि भगवान शिव को समर्पित है। मुख्य कक्ष के चारों ओर चारों दिशाओं में चार कक्ष हैं। मंदिर में प्रवेश करने पर हम पूर्वी कक्ष में प्रवेश करेंगे जो कि मुख्य कक्ष से जुड़ा हुआ है।

मुख्य कक्ष में भगवान शिव को समर्पित 3 मीटर ऊँची मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति कमल के आकार की योनी पर खड़ी है। भगवान शिव के मुकुट पर अर्द्धचंद्रमा, मस्तिष्क के मध्य में तीसरी आँख भी बनी हुई है। मूर्ति के चार हाथ हैं जिससे उन्होंने त्रिशूल, डमरू व जपमाला पकड़ी हुई है।

पूर्वी दिशा के कक्ष में कोई मूर्ति नही है। उस कक्ष से केवल मुख्य कक्ष में प्रवेश किया जाता है। मुख्य मंदिर के अन्य तीन दिशाओं के कक्ष किसी ना किसी को समर्पित है। इसमें उत्तर दिशा के कक्ष में माँ दुर्गा की महिषासुर मर्दिनी मूर्ति, दक्षिण में महर्षि अगस्त्य की मूर्ति व पश्चिम में भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित है।

  • विष्णु व ब्रह्मा मंदिर

भगवान शिव के बाद दो मुख्य मंदिर भगवान विष्णु व भगवान ब्रह्मा को समर्पित है। दोनों मंदिरों की ऊंचाई 33 मीटर व चौड़ाई 20 मीटर है। इन दोनों मंदिरों में प्रवेश करने के लिए भी सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है। शिव मंदिर की भांति इनमे कई कक्ष नही हैं बल्कि एक मुख्य कक्ष ही है जहाँ पर भगवान विष्णु व ब्रह्मा जी को समर्पित मूर्तियाँ स्थापित है।

  • नंदी, गरुड़ व हंस मंदिर

तीनों मुख्य मंदिरों के सामने उनके वाहनों के मंदिर स्थित हैं। जिसमें भगवान शिव के मंदिर के सामने वाहन नंदी का मंदिर, भगवान विष्णु के सामने वाहन गरुड़ का मंदिर व भगवान ब्रह्मा के सामने वाहन हंस का मंदिर है। तीनों मंदिरों का मुख पश्चिम दिशा की ओर है या यूँ कहें कि अपने भगवान के मुख्य मंदिरों की ओर है।

नंदी मंदिर में प्रवेश करने पर सामने नंदी जी की विशाल मूर्ति है। मूर्ति के ठीक पीछे दोनों ओर सूर्यदेव व चंद्रदेव की मूर्तियाँ स्थापित है। सूर्यदेव अपने रथ पर 7 घोड़ों के साथ व चंद्रदेव अपने रथ पर 10 घोड़ों के साथ स्थापित हैं। गरुड़ व हंस मंदिरों में अब गरुड़ व हंस देव की मूर्तियाँ नही है। इन मूर्तियों को मुगल आक्रांताओं के द्वारा या तो ध्वस्त कर दिया गया था या लूट लिया गया था अन्यथा यह प्रम्बानन मंदिर (Prambanan Mandir) के मुख्य आकर्षण थे।

  • माँ लक्ष्मी व सरस्वती मंदिर

भगवान विष्णु व ब्रह्मा जी के बगल में दो छोटे-छोटे मंदिर ओर हैं जिनमे अब मूर्तियाँ स्थापित नही हैं। हालाँकि इनकी दीवारों पर की गई नक्काशी से यह अनुमान लगाया गया है कि विष्णु के समीप वाला अपित मंदिर माँ लक्ष्मी को समर्पित था व भगवान ब्रह्मा के पास वाला माँ सरस्वती को।

  • केलिर व पतोक मंदिर

यह आठों मंदिर (चार केलिर व 4 पतोक) आतंरिक व बाह्य वर्ग में प्रवेश करने के लिए चारों दिशाओं में स्थित हैं। यदि आप यहाँ जाएंगे तो सबसे पहले आपको किसी पतोक मंदिर के अंदर से प्रवेश करना पड़ेगा। फिर पेरवाडा मंदिरों से होते हुए आंतरिक वर्ग में प्रवेश करने के लिए किसी केरिल मंदिर से होकर जाना पड़ेगा। केरिल मंदिरों को गोपुर भी कह दिया जाता है।

  • पेरवाडा मंदिर

अब बचते हैं बाहरी वर्ग में स्थित छोटे-छोटे 224 मंदिरों का समूह। आश्चर्य की बात यह है कि इनमे से हरेक मंदिर की सरंचना, ऊंचाई व चौड़ाई सब समान रूप से बनाई गई है। इनमें प्रवेश करने की दिशा चारों दिशाओं से अलग-अलग है केवल कोणों के सोलह मंदिरों को छोड़कर। कोने के सोलह मंदिर दो दिशाओं से खुलते हैं।

इन 224 मंदिरों की ऊंचाई 14 मीटर व क्षेत्रफल 6*6 के आकर में है। यह सभी मंदिर किसी ना किसी देवता को समर्पित थे लेकिन वर्तमान में इनकी स्थिति सबसे खंडहर है। हालाँकि कुछ का पुनर्निर्माण करवाया गया है लेकिन ज्यादातर अभी भी जर्जर अवस्था में हैं।

3. प्रम्बनन शिव मंदिर की दीवारों पर भित्ति चित्र

तीनों मुख्य मंदिरों की दीवारों पर अंदर की ओर भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के समय से जुड़ी विभिन्न कथाओं को भित्तिचित्रों के माध्यम से जीवंत रूप दिया गया है। इसमें आप माता सीता का रावण द्वारा अपहरण, हनुमान का वानर सेना के साथ श्रीराम की सहायता करना, श्रीराम का रावण पर आक्रमण व उसका वध, भगवान श्रीकृष्ण की बचपन की लीलाओं समेत कई अन्य कथाएं चित्रों के माध्यम से देख सकते हैं।

चित्रों को भी क्रमानुसार व मंदिर घूमने के अनुसार बनाया गया है। यह चित्र शिव मंदिर में प्रवेश करने से लेकर शुरू होते हैं जो मंदिर की प्रदक्षिणा करने के अनुसार चलते रहते हैं। शिव मंदिर में श्रीराम के जीवन से संबंधित चित्र बने हुए हैं जो ब्रह्मा मंदिर तक जाते हैं। विष्णु मंदिर पर श्रीकृष्ण के जीवन से संबंधित चित्र उकेरे गए हैं।

इसके साथ ही इन तीनों मंदिरों की बाहरी दीवारों पर भी चित्रों को उकेरा गया है। शिव मंदिर पर लोकपालों के चित्र, विष्णु मंदिर पर देवताओं व अप्सराओं के चित्र तथा ब्रह्मा मंदिर पर ऋषि-मुनियों के चित्रों को उकेरा गया है। मंदिर की निचली बाहरी दीवारों पर विभिन्न पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों के आकार के चित्रों को उकेरा गया है।

प्रम्बानन मंदिर से जुड़ी रोरो जोंग्गरंग की कथा

इस मंदिर को रोरो जोंग्गरंग के नाम से भी जाना जाता है। मुख्य मंदिर में स्थापित माँ दुर्गा की मूर्ति को रोरो जोंग्गरंग के नाम से पूजा जाता है जिसे एक समय की राजकुमारी का असली मूर्त रूप बताया गया है। इसके पीछे एक रोचक कथा जुड़ी हुई है।

एक समय में यहाँ के दो राजाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ। उनके नाम थे प्रबु बोको व प्रबु दमार मोयो। मोयो के बेटे राजकुमार बांडुंग बोंदोवोसो ने राजा बोको की हत्या कर दी। राजा बोको की एक सुंदर बेटी थी जिसका नाम था रोरो जोंग्गरंग। राजकुमार उसकी सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध हो गया और उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे राजकुमारी ने ठुकरा दिया।

बोंदोवोसो के बार-बार कहने पर राजकुमारी ने उनके सामने शर्त रखी कि यदि वह प्रम्बनन मंदिर के पास एक रात में 1000 मूर्तियों को बनवा देगा तो वह उससे विवाह कर लेगी। उसने यह शर्त मान ली और अपनी शक्तियों के द्वारा एक रात में ही 999 मूर्तियों का निर्माण करवा दिया। यह देखकर राजकुमारी ने आसपास के सभी चावल के खेतों में आग लगवा दी। इस कारण वहां दिन जैसा उजाला हो गया व बोंदोवोसो शर्त हार गया।

जब बोंदोवोसो को राजकुमारी के द्वारा किए गए छल का पता चला तो वह इतना क्रोधित हो गया था कि उसने राजकुमारी को स्वयं एक मूर्ति बन जाने का श्राप दे दिया। इस तरह 1000वीं मूर्ति के रूप में रोरो जोंग्गरंग की स्थापना हुई जिसकी पूजा आज तक वहां के लोग करते हैं। यही प्रम्बानन मंदिर (Prambanan Mandir) की कहानी और इतिहास है।

कैसे पहुंचें प्रम्बनन मंदिर?

मंदिर के पास के सबसे बड़े शहर योग्यकर्ता या सेमामर्ग हैं। इंडोनेशिया के ज्यादातर सभी बड़े शहरों से योग्यकर्ता के लिए फ्लाइट मिल जाएगी। योग्यकर्ता पहुँचने के बाद आप टैक्सी से क्लातें (Klaten) पहुँच जाएं।यहाँ से मंदिर कुछ ही दूरी पर है जहाँ आप पैदल चलकर पहुँच सकते हैं।

इस बात का भी ध्यान रखें कि आपको प्रम्बानन शिव मंदिर (Prambanan Shiva Mandir) घूमने के लिए कम से 3 से 4 घंटे का समय लगेगा। वहीं यदि आप इसकी बारीकी व वास्तुकला की बारीकियां देखना चाहते हैं तो उसमें 6 से 7 घंटे भी निकल सकते हैं। चूँकि यह मंदिर शहर से थोड़ा दूर है, इसलिए समय रहते यहाँ से निकल जाएं।

प्रम्बानन शिव मंदिर के आसपास दर्शनीय स्थल

इंडोनेशिया में जब बौद्ध धर्म को मानने वालों की संख्या अत्यधिक बढ़ गई थी व जब वहां बौद्ध राजाओं का राज था तब उन्होंने कई विशाल बौद्ध मंदिरों का निर्माण करवाया था। इसलिए जब हिंदू राजा फिर से वहां के राजा बने थे तब उन्होंने इन बौद्ध मंदिरों की काट के रूप में विशाल व अद्भुत प्रम्बनन शिव मंदिर का निर्माण करवाया था। आइए जानते हैं प्रम्बनन शिव मंदिर के आसपास के दर्शनीय स्थलों के बारे में।

  • बरोंग हिंदू मंदिर
  • इजो हिंदू मंदिर
  • सम्बिसरी हिंदू मंदिर
  • बोरोबुदुर बुद्ध मंदिर
  • बुब्रह बौद्ध मंदिर
  • लुम्बुंग बुद्ध मंदिर/ कैंडी लुम्बुंग
  • सेवू बुद्ध मंदिर/ मंजुश्रीग्रह
  • प्लओसन बुद्ध मंदिर
  • सजीवन बुद्ध मंदिर
  • सरी बुद्ध शरण स्थल
  • बन्युनिबो बुद्ध मंदिर
  • अर्चा बुगिसन की बुद्ध मूर्तियाँ
  • कालासन बुद्ध मंदिर
  • मेंदूत बुद्ध मंदिर
  • इन्द्रयान्ति समुंद्री किनारा
  • तमन्सरी दुर्ग

प्रम्बानन मंदिर से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

  • सन 1991 में यूनेस्को के द्वारा प्रम्बनन शिव मंदिर को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में सम्मिलित किया जा चुका है।
  • यह मंदिर कुल 39.8 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • हालाँकि प्रम्बनन मंदिर का संपूर्ण क्षेत्रफल बहुत बड़ा है जिसमें 4 मंदिर (एक हिंदू व तीन बौद्ध) आते हैं। एक तो प्रम्बनन शिव मंदिर ही है जो अपने आप में 240 मंदिरों का विशाल समूह है। इसके अलावा बुब्रुह, लुम्बुंग व सेवू बुद्ध मंदिर भी इसी क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
  • इंडोनेशिया की स्थानीय जावानीज भाषा में प्रम्बनन शिव मंदिर को रोरो जोंग्गरंग के नाम से जाना जाता है।
  • शिव मंदिर के शीर्ष पर बनी आकृति पुन्काक मस्तक के रूप में जानी जाती है। यह हमारे आत्म अवलोकन व मोक्ष को दर्शाती है।
  • प्राचीन हिंदू मान्यता के अनुसार प्रम्बनन शिव मंदिर के डिजाईन को सुमेरु पर्वत की महामेरु चोटी की भांति तैयार किया गया था। महामेरु चोटी को देवताओं के घर के रूप में जाना जाता है।
  • मंदिर के चारों ओर विशाल उद्यान हैं जहाँ आप घूम सकते हैं या आराम कर सकते हैं।
  • मंदिर के आसपास खरीदारी करने के लिए कई दुकाने हैं।

इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने प्रम्बानन मंदिर (Prambanan Mandir) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। पहले के समय में यह मंदिर बहुत ही सुंदर व विशाल था लेकिन आक्रांताओं ने इस मंदिर को तहस-नहस करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फिर भी आज यह मंदिर अपनी सुंदरता व विशालता का परिचय देता है।

प्रम्बानन मंदिर से जुड़े प्रश्नोत्तर

प्रश्न: प्रम्बानन मंदिर किसके लिए जाना जाता है?

उत्तर: प्रम्बानन मंदिर इंडोनेशिया में स्थित एक भव्य और विशाल हिन्दू मंदिर है यह मंदिर वहां की मुख्य पहचान है जो देश-विदेश के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है

प्रश्न: प्रम्बानन मंदिर का निर्माण किसने करवाया था?

उत्तर: प्रम्बानन मंदिर का निर्माण रकाई पिकाटन के द्वारा करवाया गया था हालाँकि इसका इतिहास बहुत ही विशाल है जिसके बारे में हमने इस लेख में बताया है

प्रश्न: प्रम्बानन मंदिर परिसर में किन तीन हिंदू देवताओं को समर्पित मंदिरों से सम्मानित किया जाता है?

उत्तर: प्रम्बानन मंदिर परिसर में भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश हिंदू देवताओं को समर्पित मंदिरों से सम्मानित किया जाता है इन्हें त्रिदेव के नाम से भी जाना जाता है

प्रश्न: हमें प्रम्बानन मंदिर कब जाना चाहिए?

उत्तर: आप अपनी स्थिति व समय के अनुसार वर्ष के किसी भी माह और समय में प्रम्बानन मंदिर की यात्रा पर जा सकते हैं

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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