मंथरा पूर्व जन्म में कौन थी? जाने मंथरा का संपूर्ण जीवन परिचय

मंथरा कौन थी (Manthara Kaun Thi)

रामायण में मंथरा कौन थी (Manthara Kaun Thi) व उसका क्यों कैकई पर इतना अधिक प्रभाव था? वह मंथरा ही थी जिसने राजभवन में सब षड्यंत्र रचा था। उसी षड्यंत्र के तहत ही हंसती-खेलती अयोध्या सूनी हो गई थी। राज परिवार के सदस्य तो क्या बल्कि अयोध्या की प्रजा पर भी दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था।

एक तरह से मंथरा कैकई की प्रिय दासी थी लेकिन उसी ने ही कैकई का जीवन बर्बाद कर दिया था। मंथरा ने कैकई को सदियों सदियों तक बुराई का प्रतीक बना दिया था। दरअसल इसकी कहानी मंथरा के पूर्व जन्म से जुड़ी हुई है जिसके तहत कैकई के पिता को श्राप मिला था। अब यह प्रश्न उठता है कि मंथरा पूर्व जन्म में कौन थी? इसलिए आज हम मंथरा की जीवनी (Manthra Kaun Thi) आपके सामने रखने जा रहे हैं।

Manthara Kaun Thi | मंथरा कौन थी?

मंथरा को आखिर कौन नहीं जानता। रामायण की कथा में रानी कैकेयी के बाद सबसे बदनाम महिला मंथरा को ही माना जाता है। मंथरा के कारण ही भगवान राम को 14 वर्षों का वनवास मिला था व अयोध्या का राज परिवार हमेशा के लिए उजड़ गया था। हालाँकि मंथरा का रामायण में होना भी जरुरी था क्योंकि वह ना होती तो श्रीराम को वनवास ना मिलता। श्रीराम को वनवास ना मिलता तो ना माता सीता का हरण होता और ना ही रावण वध होता।

ऐसे में भगवान विष्णु का श्रीराम रुपी अवतार लेना निरर्थक हो जाता इसलिए यह ईश्वर की ही माया थी कि रामायण जैसी पवित्र कहानी में मंथरा जैसी कुटील स्त्री को भी एक पात्र बनाया गया। ऐसे में आइए जाने रामायण की एक प्रमुख पात्र मंथरा का जीवन परिचय।

  • मंथरा का कूबड़ बनना

मंथरा पहले एक सुंदर महिला थी जो रानी कैकेयी के देश कैकय में रहती थी। सुंदर होने के साथ-साथ मंथरा को एक बीमारी थी जिसके फलस्वरूप उसे प्यास बहुत ज्यादा लगती थी व पसीना भी बहुत मात्रा में आता था। एक दिन मंथरा ने प्यास लगने पर कुछ शरबत जैसा ऐसा पेय पदार्थ पी लिया जिससे वह मरणासन्न की स्थिति में जा पहुँची।

कई दिनों तक उसका उपचार चला व अंत में वह बच गई किंतु उसके शरीर के कई अंग खराब हो चुके थे। उस पेय पदार्थ के कारण मंथरा की रीढ़ की हड्डी, दोनों कंधे व गर्दन झुक गए थे। रीढ़ की हड्डी के ख़राब होने से ही वह झुककर चलने लगी थी। इस कारण लोग उसे कूबड़ मंथरा कहकर चिढ़ाते थे।

  • मंथरा का चरित्र चित्रण

मंथरा लालची स्वभाव वाली थी। वह हमेशा दूसरों पर अपना प्रभाव जमाने और धन-संपत्ति का सुख भोगने वाली स्त्री थी। उसे विलासता में रहना और दूसरों पर हुकुम चलाना पसंद था। जब से उसकी रीढ़ की हड्डी ख़राब हुई तो उसे लोगों की उपेक्षा सहनी पड़ी। इस कारण उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया था। इसके बाद वह किसी से सीधे मुँह बात नहीं करती थी या गुस्से में रहती थी।

  • मंथरा के पति कौन थे?

अब जब मंथरा कूबड़ हो चुकी थी तो उसके साथ किसी ने विवाह भी नहीं किया। ऐसे में मंथरा जीवनभर अविवाहित ही रही थी। उसे रानी कैकई के ही साथ रहना पसंद था। ऐसे में उसने जीवनभर रानी कैकई की ही सेवा करने का निर्णय लिया और उनके प्रभाव में रहकर सुख भोगने का।

  • कैकेयी और मंथरा का अयोध्या आना

जब रानी कैकेयी छोटी थी तभी से मंथरा ने उन्हें अपनी बेटी के समान पाला था। चूँकि मंथरा एक गंधर्व कन्या थी, इसलिए रानी कैकेयी का वह बहुत ध्यान रखती थी। कैकेयी के पालन-पोषण में मंथरा का भी बहुत बड़ा योगदान था। जब अयोध्या के राजा दशरथ ने रानी कैकेयी से विवाह रचाया तो वह मंथरा को भी अपने साथ अयोध्या ले आई।

चूँकि कैकेयी के मायके से केवल मंथरा ही उनके साथ आई थी इसलिए वह उनकी सबसे प्रिय दासी बन चुकी थी। अयोध्या में उन्हें कई अन्य दासियाँ भी मिली लेकिन मंथरा उनकी सबसे प्रमुख दासी, मुख्य सलाहकार व अंगरक्षिका थी। अयोध्या के राज परिवार व कैकेयी के जीवन में मंथरा का सीधा हस्तक्षेप होता था।

  • मंथरा का अयोध्या पर प्रभाव

राजा दशरथ की 3 रानियाँ थी जिसमें रानी कैकेयी दूसरे नंबर पर आती थी। सबसे बड़ी रानी कौशल्या थी व सबसे छोटी सुमित्रा किंतु राजा दशरथ को रानी कैकेयी सबसे प्रिय थी। रानी कैकेयी तीनों रानियों में सबसे सुंदर तो थी ही साथ में युद्ध कला में भी निपुण थी। एक बार राजा दशरथ देवासुर संग्राम में बुरी तरह घायल हो गए थे। उस समय रानी कैकेयी ने ही उनकी जीवन रक्षा की थी जिसके फलस्वरूप उन्हें 2 वर मिले थे।

राज दरबार में रानी कैकेयी का सबसे ज्यादा प्रभाव होने के कारण उनकी दासी का भी अन्य सभी दासियों में सबसे ज्यादा प्रभाव था। रानी कौशल्या व सुमित्रा की मुख्य दासियों व अयोध्या के अन्य सभी लोगों में मंथरा का सबसे ज्यादा प्रभाव था। इसी अभिमान में वह सब पर अपना प्रभाव जमाती थी।

  • मंथरा का षड़यंत्र

एक बार कैकेयी का पुत्र भरत अपने सौतेले भाई शत्रुघ्न के साथ अपने ननिहाल अर्थात कैकय गया हुआ था। तब अचानक से राजा दशरथ ने अपने राजगुरु से मंत्रणा कर राम के राज्याभिषेक की तैयारी शुरू कर दी। जब अयोध्या में यह समाचार फैला व मंथरा के कानों में यह सूचना पड़ी तो वह बुरी तरह बैचैन हो गई।

कैकेयी राजा दशरथ की प्रमुख रानी होने के कारण मंथरा भी राज्य की प्रमुख दासी थी। चूँकि राम के राजा बनते ही कैकेयी का प्रभाव कम हो जाता व कौशल्या की दासियों का प्रभाव बढ़ जाता। इसके फलस्वरूप मंथरा का प्रभाव भी शुन्य हो जाता जो उसे कदापि स्वीकार्य नहीं था। वह मन ही मन कुटिल योजना बनाने लगी। चूँकि उसे कैकेयी की हर बात पता थी इसलिए उसे महाराज दशरथ के कैकेयी को दिए वह दो वचन याद आ गए व इसी को उसने अपना आधार बनाया।

  • कैकई मंथरा संवाद

जब मंथरा कैकेयी के पास पहुँची तो उसे खुश देखकर विचलित हो उठी। उसने अपनी विष भारी बातों से कैकेयी के मन में ईर्ष्या की भावना उत्पन्न की व भविष्य में घटित हो सकने वाली घटनाओं का वर्णन किया। हालाँकि रानी कैकेयी अन्य रानियों पर अपना प्रभाव जमाती थी लेकिन उसे राम से भी अपने पुत्र भरत जितना ही प्रेम था। उसने कभी भरत के छोटे होने के कारण उसके राज्याभिषेक के बारे में सोचा भी नहीं था किंतु मंथरा ने कैकेयी के कान भरने जारी रखे।

मंथरा ने उसे भविष्य में उसका प्रभाव कम हो जाने की आशंका व्यक्त की। साथ ही उसे इस समस्या से निकलने की युक्ति भी सुझाई। मंथरा के अनुसार यदि वह राजा दशरथ से मिले दो वर आज माँग ले तो यह समस्या समाप्त हो सकती थी। वह दो वर थे राम को 14 वर्ष का वनवास व भरत को अयोध्या का राजा नियुक्त करना।

रानी कैकेयी को मंथरा की यह युक्ति पसंद आई व उन्होंने ऐसा ही किया। मंथरा के कहे अनुसार रानी कैकेयी ने योजना अनुसार राजा दशरथ से दोनों वचन मांगे। इसके फलस्वरूप भगवान श्रीराम को अयोध्या का राजा बनाने का निर्णय वापस ले लिया गया व उन्हें 14 वर्षों का वनवास मिला। राम के साथ उनकी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण भी वन में गए।

दूसरी ओर भरत को अयोध्या का राजा नियुक्त कर दिया गया व उनके आने की प्रतीक्षा होने लगी। राजा दशरथ अपने प्रिय पुत्र राम के वन में जाने से अत्यंत दुखी थे व इसी दुःख में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। दशरथ की मृत्यु के तुरंत बाद कैकय से भरत को बुलावा भेजा गया।

  • मंथरा को दंड

जब भरत व शत्रुघ्न अयोध्या वापस आए तब उन्हें अपने पिता की मृत्यु, भगवान राम के वनवास व स्वयं के राज्याभिषेक के बारे में पता चला। इस षड्यंत्र के पीछे कैकेयी व मंथरा का हाथ होने पर दोनों अत्यंत क्रोधित हो गए। भरत ने अपनी माँ कैकेयी का परित्याग कर दिया व अयोध्या का राज सिंहासन ठुकरा दिया। शत्रुघ्न भरी सभा में मंथरा को बालों के बल घसीट कर लेकर आए व उसको प्राणदंड देने की बात करने लगे।

शत्रुघ्न को स्त्री हत्या करता देखकर भरत ने उन्हें रोका व समझाया कि धर्म के अनुसार स्त्री हत्या करना पाप है। साथ ही उन्हें अपने भाई राम के क्रोध का भी डर था कि कहीं उनके द्वारा स्त्री हत्या किए जाने से भगवान श्रीराम स्वयं उनका त्याग ना कर दें। इसलिए मंथरा को 14 वर्ष तक एक अँधेरे कमरे/ कलकोठरी में बंद रखा गया।

  • मंथरा का पश्चाताप

रानी कैकेयी के द्वारा मंथरा का त्याग करने व भरत के द्वारा उन्हें इतना कठोर दंड देने के बाद मंथरा पश्चाताप की अग्नि में जलने लगी। उसे अब अपने किए पर ग्लानि अनुभव हुई व वह 14 वर्षों तक एक अँधेरी काल कोठरी में अपने दिन व्यतीत करती रही। उनकी अपेक्षा थी कि 14 वर्षों के बाद जब भगवान श्रीराम आएंगे तो उन्हें इससे भी अधिक कठोर दंड मिलेगा।

  • भगवान राम का मंथरा को क्षमा करना

जब भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के पश्चात वापस अयोध्या लौटे तो वे स्वयं मंथरा से मिलने कारावास गए। श्रीराम को अपने सामने देखकर मंथरा उनके चरणों में गिर पड़ी व उनसे अपने कर्मों के लिए क्षमायाचना की। भगवान श्रीराम ने द्रवित होकर उसी समय उन्हें क्षमा कर दिया व कारावास से मुक्ति दिलाई।

  • मंथरा की मृत्यु

मंथरा की मृत्यु सामान्य रूप से ही हुई थी। इसके बारे में रामायण में तो उल्लेख नहीं मिलता है लेकिन वह बूढ़ी होकर सामान्य मौत मरी थी। जिस प्रकार अयोध्या की तीनों रानियाँ व अन्य लोग बूढ़े होकर मौत की गोद में समा गए थे, ठीक उसी तरह मंथरा की भी मृत्यु हुई होगी।

Manthra Kaun Thi | मंथरा पूर्व जन्म में कौन थी?

एक कथा के अनुसार मंथरा अपने पिछले जन्म में एक हिरण थी जो कैकेय देश में रहती थी। एक दिन कैकेय देश के राजकुमार शिकार पर निकले थे तब उन्होंने एक नर हिरण का शिकार किया। उसकी पत्नी मादा हिरण ने जब यह देखा तब वह अपनी माँ के पास गई व विलाप करने लगी।

उसकी माँ राजकुमार के पास गई व उसने उससे कहा कि जो कार्य तुमने किया है वह अच्छा नहीं है। किसी मादा स्त्री के सुहाग को उजाड़ना तुम्हें शोभा नहीं देता। इसलिए मैं तुम्हे श्राप देती हूँ कि एक दिन मैं तुम्हारे दामाद की मृत्यु व बेटी के दुःख का कारण बनूंगी। अगले जन्म में उसी हिरण ने मंथरा का रूप लिया था व राजा दशरथ की मृत्यु का कारण बनी थी।

कुछ मान्यताओं के अनुसार मंथरा को माता लक्ष्मी का विपरीत रूप अलक्ष्मी भी कहा जाता है जिसे स्वयं देवताओं ने ही पृथ्वी पर भेजा था। दरअसल जब भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक की तैयारी हो रही थी तब सभी देवतागण चिंता में पड़ गए थे। चिंता यह थी कि यदि भगवान श्रीराम को वनवास ही नहीं मिला तो रावण का अंत कैसे हो पाएगा।

ऐसे समय में ही मंथरा ने कैकेयी की बुद्धि को भ्रष्ट किया जिसके फलस्वरूप राम को 14 वर्षों का कठोर वनवास मिला था। इस तरह से आपने मंथरा कौन थी (Manthara Kaun Thi) व रामायण में उसकी भूमिका कितनी महत्वपूर्ण थी, इसके बारे में जान लिया है।

मंथरा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: पिछले जन्म में मंथरा कौन थी?

उत्तर: पिछले जन्म में मंथरा एक हिरण थी कैकई के पिता ने उसके पति का वध कर दिया था इसी कारण कैकई के पति की भी मृत्यु हो गई थी

प्रश्न: मंथरा किसकी पत्नी थी?

उत्तर: कूबड़ होने के कारण मंथरा का विवाह नहीं हुआ था ऐसे में मंथरा किसी की पत्नी नहीं थी

प्रश्न: मंथरा की मृत्यु कैसे हुई?

उत्तर: मंथरा की मृत्यु सामान्य रूप से बूढ़े होकर हुई थी जिस प्रकार तीनों रानियों की बूढ़े होकर मृत्यु हुई थी, ठीक उसी तरह मंथरा की भी हुई

प्रश्न: रामायण में मंथरा की मृत्यु कैसे होती है?

उत्तर: रामायण में मंथरा की मृत्यु सामान्य रूप से एक आयु के बाद हो गई थी जब मंथरा बूढ़ी हो गई थी, तो वह सामान्य मौत मर गई थी

प्रश्न: रामायण में मंथरा का असली नाम क्या है?

उत्तर: रामानंद सागर जी के रामायण धारावाहिक में मंथरा की भूमिका निभाने वाली प्रसिद्ध अभिनेत्री ललिता पवार है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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