निषाद राज कौन थे? जाने निषाद राज का जीवन परिचय – जन्म से मृत्यु तक

निषाद राज (Nishad Raj)

रामायण में जब भगवान श्रीराम वनवास के लिए निकलते हैं तो उनकी भेंट अपने परम मित्र निषाद राज (Nishad Raj) से होती है। अब प्रश्न यह उठता है कि आखिरकार निषाद राज कौन थे (Nishad Raj Kaun The)? श्रीराम के वनवास काल के समय में हम सभी निषाद राज के बारे में पढ़ते तो हैं लेकिन क्या कभी आपने रामायण में उनकी संपूर्ण भूमिका जानने का प्रयास किया है?

इसलिए आज के इस लेख में हम आपके साथ निषाद राज का इतिहास रखने जा रहे हैं। इस लेख को पढ़कर आपको निषाद राज का जन्म कैसे हुआ था, से लेकर उनकी मृत्यु तक के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल जाएगी।

Nishad Raj | निषाद राज का इतिहास

भारत देश में निषाद जाति को इन्हीं निषाद राज की ही देन माना जाता है। रामायण काल में वे केवट का काम किया करते थे। इनकी संस्कृति व राज व्यवस्था भी अलग हुआ करती थी। वे अयोध्या के पास ही एक छोटी सी नगरी में शासन किया करते थे। इसका वर्णन हमें तब देखने को मिलता है जब भगवान श्रीराम अपने वनवास काल में आगे बढ़ते हुए निषाद राज से मिलते हैं।

इसके बाद रामायण में निषाद राज का उल्लेख समय-समय पर देखने को मिलता है। उदाहरण के तौर पर श्रीराम को गंगा पार करवाना, राम-भरत मिलन करवाना, अयोध्या वापसी के समय श्रीराम से पुनः भेंट करना और फिर श्रीराम के साथ ही जल समाधि ले लेना इत्यादि। ऐसे में आइए निषाद राज से जुड़े हरेक प्रसंग के बारे में जानते हैं।

निषाद राज का जन्म

निषाद राज के जन्म को लेकर कोई उल्लेख नहीं मिलता है। ऐसे में उनके माता-पिता के नाम का भी वर्णन नहीं है। हालाँकि उनका जन्म अयोध्या की ही एक छोटी सी नगरी श्रृंगवेरपुर में हुआ था। उनके माता-पिता भी केवट का काम किया करते थे।

केवट उन्हें कहा जाता है जो लोगों को नदी पार करवाने का काम करते हैं। इसके लिए वे अपनी नावों को तैयार करते हैं और उस पर बिठाकर लोगों को नदी के एक छोर से दूसरे छोर पर लेकर जाते हैं। एक तरह से यही नौका ही उनकी आजीविका का माध्यम होती है। इसको लेकर एक सुंदर प्रसंग Nishad Raj की ही नगरी में एक केवट और श्रीराम के बीच देखने को मिलता है।

निषाद राज कौन थे? (Nishad Raj Kaun The)

निषादराज गुह आदिवासी समुदाय से थे जो कौशल नगरी की सीमा पर श्रृंगवेरपुर नगरी के राजा था। उनका मूल नाम गुहराज था। निषाद जाति के राजा होने के कारण उन्हें निषादराज गुह या केवल निषाद राज के नाम से जाना जाता है।

वे बचपन में भगवान श्रीराम के साथ ही महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में पढ़े थे। इस कारण उनके परम मित्र भी बन गए थे। जब भगवान श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास मिला था तब उनकी भेंट अपने मित्र गुह से हुई थी। इन्होंने ही श्रीराम को गंगा पार करवाने में सहायता की थी। आइए श्रीराम के जीवन या रामायण में Nishad Raj का क्या योगदान था, उसके बारे में जान लेते हैं।

  • भगवान श्रीराम को गंगा पार करवाना

जब भगवान श्रीराम को आर्य सुमंत रथ में श्रृंगवेरपुर नगर में लेकर पहुंचे तो वहाँ निषादराज ने उनका स्वागत किया। उन्होंने भगवान श्रीराम को अपनी नगरी का राजा बनाने का अनुरोध किया किंतु प्रभु श्री राम ने उनका राज्य लेने से मना कर दिया। इसके बाद निषादराज गुह ने वहीं गंगा किनारे उनके रात्रि विश्राम का प्रबंध किया।

अगले दिन भगवान राम को गंगा पार करके प्रयागराज पहुंचना था। इसलिए Nishad Raj ने एक केवट को बुलाकर उनको उस पार छोड़ने को कहा। वे स्वयं भी नाव में साथ बैठकर उनके साथ गए। भगवान श्रीराम ने उन्हें लौट जाने को कहा किंतु निषादराज ने उनसे कहा कि आगे रास्ता पार करवाने में वे उनकी सहायता करेंगे और जब भी श्रीराम उन्हें लौट जाने को कहेंगे तो वे लौट जाएँगे।

  • चित्रकूट जाने में सहायता करना

इसके बाद भगवान श्रीराम ने अपने स्थाई निवास के लिए ऋषि भारद्वाज से भेंट की। उन्होंने यमुना पार चित्रकूट को उनके स्थाई निवास के लिए उचित बताया। इसके बाद निषादराज ने यमुना को पार करने के लिए एक बांस की नाव बनाई जिसमें बैठकर श्रीराम, लक्ष्मण व माता सीता यमुना को पार कर सकते थे।

तत्पश्चात श्रीराम ने Nishad Raj को वहाँ से वापस श्रृंगवेरपुर नगरी लौटकर अपना राज्य सँभालने को कहा। भगवान श्रीराम से मिले आदेश के अनुसार निषादराज भारी मन के साथ वहीं से अपनी नगरी लौट गए। वापस आकर उन्होंने देखा कि आर्य सुमंत वहीं बैठे थे और वापस जाने से कतरा रहे थे। इस पर निषाद राज ने उन्हें समझाया और पुनः अयोध्या लौट जाने को कहा। निषादराज के वचनों से प्रभावित होकर आर्य सुमंत अयोध्या लौट गए थे।

  • भरत पर आक्रमण की तैयारी

जब भरत वापस अयोध्या आए तो उन्हें पूरे घटनाक्रम का ज्ञान हुआ। श्रीराम को पुनः अयोध्या लाने के लिए भरत संपूर्ण राज परिवार, गुरुओं, अयोध्यावासियों और सैनिकों सहित वन को निकल पड़े थे। उसी दौरान वे गुहराज की नगरी श्रृंगवेरपुर भी पहुंचे। जब निषाद राज को इसके बारे में पता चला तो उन्हें लगा कि भरत श्रीराम को वन में मारने के उद्देश्य से इतनी बड़ी सेना लेकर कूच कर रहे हैं।

इससे घबरा कर Nishad Raj ने तुरंत अपने सभी सैनिकों और श्रृंगवेरपुर वासियों को एक जगह इकट्ठा कर लिया। वे जानते थे कि वे सभी मिलकर भी अयोध्या की इतनी बड़ी सेना से नहीं लड़ सकते थे किन्तु उन्होंने उस समय जोशीला भाषण दिया। उन्होंने श्रीराम के लिए अयोध्या की सेना से लड़ते हुए जीवन न्योछावर करने की प्रतिज्ञा ली और युद्ध के लिए निकल पड़े।

हालाँकि जब वे भरत से मिले तब उन्हें सत्य का ज्ञान हुआ। अपने किए के लिए उन्होंने भरत से क्षमा याचना की और भरत ने भी उन्हें तुरंत क्षमा कर दिया।

  • राम-भरत मिलन करवाना

भरत ने निषादराज से श्रीराम से मिलवाने की याचना की और उनका हालचाल पूछा। गुह राज श्रीराम का हाल बताते हुए भावुक हो गए। जब भरत को गुहराज से पता चला कि यहाँ से श्रीराम ने आगे की यात्रा पैदल ही पार की है तो वे भी अपने रथ से उतर गए और पैदल आगे बढ़ने का निर्णय लिया।

इसके बाद निषाद राज गुह ने भरत व उनके संपूर्ण दस्ते को गंगा पार करवाई और चित्रकूट लेकर गए। उनके बताए मार्ग पर आगे बढ़कर ही भरत व अन्य अयोध्यावासियों की श्रीराम से भेंट हुई थी। जब श्रीराम ने वापस लौटने से मना कर दिया तो Nishad Raj सभी को फिर से श्रृंगवेरपुर नगरी ले आए। वहाँ से भरत भारी मन के साथ वापस अयोध्या लौट गए।

  • अयोध्या वापस लौटते समय मिलन

जब श्रीराम अपने 14 वर्षों का वनवास समाप्त करके पुष्पक विमान से वापस अयोध्या लौट रहे थे तब वे निषादराज की नगरी में उससे मिलने भी आए। निषादराज भी उनके साथ अयोध्या उनका राज्याभिषेक देखने गए थे। भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद वे पुनः अपनी नगरी लौट गए।

  • अश्वमेघ यज्ञ में जाना

अपने राज्याभिषेक के कुछ वर्षों के पश्चात भगवान श्रीराम ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन करवाया। इसमें उन्होंने चारों दिशाओं के राजाओं को भी आमंत्रित किया था। उन्होंने अपने मित्र Nishad Raj को भी बुलावा भेजा था। श्रीराम के बुलावे पर निषाद राज भी उस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए गए थे।

  • निषाद राज की मृत्यु होना

जब श्रीराम के सभी कर्तव्य पूरे हो गए और उनका पृथ्वी लोक को छोड़ने का समय आ गया तब उन्होंने अयोध्या के निकट सरयू नदी में जल समाधि ले ली। उस समय निषाद राज भी अपनी नगरी से वहाँ पहुँच गए थे। श्रीराम के समाधि लेने के पश्चात Nishad Raj ने भी अन्य लोगों के साथ सरयू नदी में समाधि ले ली थी और मृत्यु की गोद में समा गए थे।

निषाद राज से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: निषाद राज कौन है?

उत्तर: रामायण में श्रीराम के परम मित्र के रूप में निषाद राज को जाना जाता है जो अयोध्या के पास ही एक छोटी सी नगरी श्रृंगवेरपुर के राजा थे

प्रश्न: निषाद राज कहां के राजा थे?

उत्तर: निषाद राज कौशल राज्य के श्रृंगवेरपुर नगरी के राजा थे उन्हें निषाद जाति का राजा भी कहा जाता है

प्रश्न: निषादराज गुह ने राम से मित्रता कैसे निभाई?

उत्तर: निषादराज गुह श्रीराम के परम मित्र थे उन्होंने ही श्रीराम को गंगा नदी पार करवाने में सहायता की थी और चित्रकूट तक का मार्ग दिखाया था

प्रश्न: निषादराज गुहा कौन थे?

उत्तर: निषादराज गुहा रामायण काल के समय कौशल राज्य में श्रृंगवेरपुर नगरी के राजा हुआ करते थे वे श्रीराम के परम मित्र भी थे

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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