रामायण में राम भरत मिलाप (Ram Bharat Milap) कोई सामान्य मिलाप नहीं था यह मनुष्य को दी गई एक ऐसी शिक्षा थी जिसको यदि हम समझ जाएंगे तो हमारा उद्धार हो जाएगा। एक व्यक्ति जो राजा बनने वाला था, वह अपने पिता का वचन निभाने हेतु दर-दर की ठोकरें खा रहा था। वहीं दूसरा, जो राजा बन चुका था, वह सब कुछ त्याग कर पहले वाले को वापस लेने के लिए वन में दौड़ गया था।
उस समय हुआ भरत राम संवाद हर किसी को अंदर तक झकझोर कर रख देता है। एक ओर श्रीराम का कर्तव्य व धर्म था तो दूसरी ओर भरत का निश्छल प्रेम। क्या आप जानते हैं कि उस समय राजा जनक ने भरत के पक्ष में निर्णय सुनाया था लेकिन फिर भी श्रीराम अयोध्या नहीं लौटे? आखिर ऐसा क्यों हुआ!!
जब आप इसके पीछे का गूढ़ जानेंगे तो आपको भी आश्चर्य होगा और मिलेगी एक अद्भुत शिक्षा। आखिरकार रामायण की हरेक गाथा है ही शिक्षा का भंडार। उसी में एक अद्भुत शिक्षा राम भरत मिलन (Ram Bharat Milan) का यह रोचक प्रसंग देकर जाता है। आइए हम इस ऐतिहासिक घटना का वृतांत व उससे मिलती शिक्षा को आपके सामने रख देते हैं।
Ram Bharat Milap | राम भरत मिलाप
श्रीराम व भरत के चित्रकूट में मिलन व उनके प्रेम को कौन नहीं जानता। जब भगवान श्रीराम को माता कैकेयी व मंथरा के छल के द्वारा 14 वर्षों का वनवास हुआ और यह बात भरत को पता चली तो वह सब कुछ छोड़कर सीधे अपने भाई श्रीराम को लेने चित्रकूट पहुँच गए। उनके साथ अयोध्या के राज परिवार के सदस्य गण, राजगुरु, मंत्री व माता सीता के मायके से राजा जनक व सुनैना भी गए थे।
चित्रकूट में भगवान श्रीराम एक कुटिया बनाकर रह रहे थे। वहीं पर राम भरत मिलन हुआ था। भरत श्रीराम को वनवासी के रूप में देखकर अत्यंत भावुक हो गए थे और उनके चरणों में गिर पड़े थे। जब भरत ने उनसे पुनः अयोध्या चलने का आग्रह किया तो श्रीराम ने मना कर दिया।
भरत अपने भाई श्रीराम से अत्यधिक प्रेम करते थे। इसलिए उन्होंने सबके सामने उनसे अपनी माँ कैकई के कृत्यों के लिए क्षमा मांगी व अयोध्या का राज सिंहासन पुनः उन्हें सौंप दिया ताकि वे अयोध्या चल सकें। फिर भी श्रीराम वापस चलने को तैयार नहीं हुए। आइए पढ़ते हैं भरत राम संवाद का वह रोचक प्रसंग।
भरत राम संवाद | Ram Bharat Samvad
भरत और राम का संवाद बहुत ही सुंदर व मन को संतोष देने वाला है। भरत अपने मन पर बहुत बड़ा बोझ लेकर चित्रकूट गए थे। इसी कारण उन्होंने श्रीराम व सभी अयोध्यावासियों के सामने इसी के लिए ही क्षमा याचना की थी। इसके तुरंत बाद उन्होंने अयोध्या का राज सिंहासन श्रीराम को संभालने को कहा था। इस पर श्रीराम ने भरत को समझाया कि अपने पिता की मृत्यु के पश्चात उनके चारों पुत्र उनके दिए गए वचनों को ना मानकर उनका अनादर नहीं कर सकते हैं।
श्रीराम ने भरत से कहा कि उनके पिता की आज्ञा थी कि उनका एक पुत्र वन में रहे तो दूसरा सिंहासन संभाले। इस पर भरत कहते हैं कि वे वन में रहेंगे और श्रीराम सिंहासन संभालेंगे। इस पर राम ने धर्म को व्यापार की भाँति अदला-बदली ना होने वाला बताया। जब श्रीराम नहीं माने तो भरत ने प्रतिज्ञा ली कि वे श्रीराम की कुटिया के सामने अन्न-जल का त्याग करके तब तक बैठेंगे जब तक श्रीराम पुनः अयोध्या नहीं चलते।
इस पर श्रीराम धर्मसंकट में फंस गए और गुरु को सहायता करने को कहा। किंतु श्रीराम के बार-बार मना करने व भरत के हठ करने के कारण गुरुजन भी इसका निर्णय नहीं ले पा रहे थे। कुछ समय मिथिला नगरी से महाराज जनक पधारने वाले थे। इसलिए महर्षि वशिष्ठ ने इसका निर्णय महाराज जनक को सौंप दिया क्योंकि वे राजा भी थे और ऋषि भी। अब महाराज जनक ने जो निर्णय सुनाया वही राम भरत मिलाप (Ram Bharat Milap) से मिला सबसे बड़ा संदेश था।
महाराज जनक का निर्णय
जब महाराज जनक पधारे तब उन्हें भरत राम संवाद (Ram Bharat Samvad) का सारा सार बता दिया गया। साथ ही श्रीराम और भरत दोनों ने ही अपनी-अपनी बात उनके सामने रखी और सही निर्णय देने को कहा। महाराज जनक ने भगवान शिव को साक्षी मानकर भरत के पक्ष में निर्णय सुनाया।
उनके अनुसार कर्तव्य व धर्म को सबसे महान माना जाता है लेकिन प्रेम व भक्ति को किसी स्वार्थ भावना के बिना किया जाता है। प्रेम के अंदर किसी भी प्रकार का कपट इत्यादि नहीं छिपा होता है। जब यही प्रेम अत्यधिक बढ़ जाता है तो वह भक्ति का रूप ले लेता है। चूँकि भरत भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त थे, इसलिए प्रभु श्रीराम को अपने भक्त के सामने झुकना ही पड़ेगा। यही सोचकर राजा जनक ने भरत के पक्ष में निर्णय सुनाया। निर्णय सुनाने के साथ ही राजा जनक ने कहा कि प्रेम के भी कुछ नियम होते हैं।
राजा जनक ने भरत से पूछा कि तुम अपने प्रेम के लिए क्या दे सकते हो। इस पर भरत ने प्रभु श्रीराम के लिए अपने प्राणों को त्याग देने तक की बात कह डाली। फिर राजा जनक ने उन्हें समझाया कि प्रेम में अपने प्राणों को त्याग देना सरल है क्योंकि इससे हम सांसारिक बंधनों से उसी समय मुक्त हो जाते हैं किंतु अपने प्रेम के लिए जीना व त्याग उतना ही कठिन होता है।
Ram Bharat Milan | राम भरत मिलन से मिलती शिक्षा
राजा जनक के अनुसार प्रेम के भी अपने विधान होते हैं व यदि व्यक्ति निस्वार्थ प्रेम करता है तो वह अपने प्रेमी से कभी कुछ आशा नहीं रखता। इसलिए वह कुछ लेने के उद्देश्य से नहीं अपितु हमेशा कुछ देने के उद्देश्य से ही प्रेम करता है। उन्होंने भरत के प्रेम को ही आधार बनाते हुए उन्हें अपना प्रेम सिद्ध करने को बोला। उन्होंने आदेश दिया कि यदि वे श्रीराम से सच्चे मन से प्रेम करते हैं तो उन्हें अपने प्रभु के जीवन को और कठिन नहीं बनाना चाहिए, उनको किसी चीज़ के लिए विवश नहीं करना चाहिए व उनके आदेश का हमेशा पालन करना चाहिए।
राजा जनक के ऐसे वचन सुनकर भरत की आँखें खुल गई। अभी तक भरत प्रेम में डूबे हुए अप्रत्यक्ष रूप से केवल अपने ही हित, प्रतिष्ठा का सोच रहे थे लेकिन राजा जनक के समझाने के पश्चात उन्होंने प्रभु श्रीराम की मन की व्यथा को समझा। इसलिए उन्होंने उसी समय प्रभु श्रीराम के चरणों में बैठकर आज्ञा ली व पुनः अयोध्या जाने का निश्चय किया।
साथ ही भरत ने स्वयं को कभी राजा नहीं माना अपितु वे जाते समय भगवान श्रीराम की चरण पादुका लेकर गए ताकि उन्हें श्रीराम के सांकेतिक रूप में राज सिंहासन पर रख सकें। इस प्रकार श्रीराम व भरत का मिलन हमें यह संदेश देता है कि एक मनुष्य के लिए यदि प्रेम सच्चा हो तो उसके लिए त्याग ही सबसे बड़ा होता है।
यदि हम इसे आज के संदर्भ में देखें तो हमें इस प्रकार प्रेम करना चाहिए जिससे हमारे प्रेमी को किसी प्रकार की परेशानी ना हो व उसे दुःख ना भोगना पड़े। कभी-कभी हम प्रेम में इतने अंधे हो जाते हैं कि हमें अपने प्रेमी के मन की व्यथा समझ नहीं आती व हम सोचते हैं कि हम यह सब उसके लिए ही कर रहे हैं लेकिन वास्तव में हम केवल अपना भला ही सोच रहे होते हैं।
यदि आपका प्रेम सच्चा होता है तो आप अपनी आँखों से नहीं अपितु अपने प्रेमी की मन की आँखों से उसकी पीड़ा को समझने का प्रयास करेंगे व हर वह कार्य करेंगे जिससे आपके प्रेमी का जीवन सरल बने। तो कुछ इस तरह से रामायण में राम भरत मिलाप (Ram Bharat Milap) एक ऐसी घटना बन गई जिसका उदाहरण हम आज तक लेते और देते हैं।
राम भरत मिलाप से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: भरत और राम का मिलन कहाँ हुआ था?
उत्तर: भरत और राम का मिलन चित्रकूट में हुआ था। चित्रकूट वैसे तो मध्य प्रदेश में पड़ता है लेकिन इसका कुछ हिस्सा उत्तर प्रदेश राज्य में भी आता है।
प्रश्न: भरत मिलाप क्यों मनाया जाता है?
उत्तर: राम भरत मिलाप से हम सभी को धर्म व प्रेम के बीच अंतर को लेकर बहुत बड़ी शिक्षा मिली थी। इसे हमने इस लेख में विस्तार से समझाया है।
प्रश्न: श्री राम से मिलने भरत चित्रकूट क्यों गए थे?
उत्तर: भरत अयोध्या का राज सिंहासन पुनः अपने बड़े भाई श्रीराम को सौंपना चाहते थे। साथ ही उन्हें वन से लेने के लिए वे चित्रकूट गए थे।
प्रश्न: श्रीराम से मिलने भरत कहाँ गये थे?
उत्तर: श्रीराम से मिलने के लिए भरत निषाद राज गुह के नेतृत्व में चित्रकूट गए थे। वहाँ से भरत श्रीराम की चरण पादुका लेकर लौटे थे।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
अन्य संबंधित लेख: