आज हम शिव आरती हिंदी में (Shiv Aarti Lyrics In Hindi) पढ़ेंगे। भगवान शिव सबसे निराले है और उन्हें जल्दी प्रसन्न भी किया जा सकता है। सोमवार वाले दिन तो शिव पूजा करने का विधान है। ऐसे में उस दिन शिव आरती भी की जाती है लेकिन यदि हम शिव आरती अर्थ सहित जान लेंगे तो आरती का ज्यादा फल मिलता है।
इस लेख में आपको सर्वप्रथम ओम जय शिव ओंकारा की आरती लिखी हुई (OM Jai Shiv Omkara Aarti In Hindi) अर्थ सहित पढ़ने को मिलेगी। इतना ही नहीं, आपको उस अर्थ का भावार्थ भी जानने को मिलेगा। अंत में आपको शिव आरती का महत्व और लाभ भी जानने को मिलेगा ताकि आप इसके भावों को अच्छे से समझ सकें। तो आइए सबसे पहले शिवजी की आरती हिंदी में पढ़ लेते हैं।
Shiv Aarti Lyrics In Hindi | शिव आरती हिंदी में
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
हे भगवान शिव! आपकी जय हो। हे ॐ शब्द के रचियता भगवान शिव! आपकी जय हो। ब्रह्मा, विष्णु व सभी देवताओं के स्वरुप आप ही हो अर्थात सभी ईश्वर व देवता आप ही के रूप हैं। यहाँ भगवान शिव को त्रिदेव का रूप बताया गया है अर्थात वे ही ब्रह्मा हैं, वे ही विष्णु हैं और वे ही शिव हैं।
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥
आप ही एक मुख वाले नारायण हैं, आप ही चार मुख वाले परम ब्रह्मा हैं, आप ही पांच मुख वाले भगवान शिव हैं। आप ही ब्रह्मा के वाहन हंस पर विराजते हैं, आप ही विष्णु के वाहन गरुड़ के वाहक हैं और आप ही शिव के वाहन बैल के ऊपर विराजित हैं।
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ब्रह्मा की भांति आपकी दो भुजाएं हैं, विष्णु की भांति आपकी चार भुजाएं हैं व शिव की भांति दस भुजाएं हैं। आपके अंदर त्रिदेवों के गुण हैं और तीनों लोकों में आप आमजन के बीच प्रिय हो।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥
ब्रह्मा की भांति रुद्राक्ष की माला, विष्णु की भांति सुगन्धित पुष्पों की माला तो शिव की भांति राक्षसों के कटे हुए सिर की माला आपने पहनी हुई है। ब्रह्मा की भांति चंदन का तिलक, विष्णु की भांति मृगमद कस्तूरी का तिलक तो शिव की भांति चंद्रमा आपके मस्तक पर सुशोभित है।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
आपने ब्रह्मा की भांति श्वेत वस्त्र, विष्णु की भांति पीले वस्त्र तो शिव की भांति बाघ की खाल के वस्त्र पहने हुए हैं। आपके साथ में ब्रह्मा जी के अनुयायी अर्थात ऋषि-मुनि व चारों वेद, विष्णु के अनुयायी गरुड़ व धर्मपालक, शिवजी के अनुयायी भूत, प्रेत इत्यादि हैं।
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखकारी जगपालन कारी॥
आपके हाथों में भगवान ब्रह्मा की भांति कमंडल, विष्णु की भांति चक्र तो शिव की भांति त्रिशूल है। आप ही ब्रह्मा की भांति इस विश्व का निर्माण करते हो, विष्णु की भांति इसका संचालन करते हो तो शिव की भांति इसका संहार करते हो।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका॥
कोई अविवेकी व्यक्ति भी यह जान सकता है कि ब्रह्मा, विष्णु व सदाशिव आप ही के रूप हैं। ब्रह्मांड के प्रथम अक्षर ॐ के मध्य में ये तीनों ईश्वर विराजमान हैं।
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥
भगवान महादेव अपनी नगरी काशी में विश्वनाथ रूप में विराजते हैं जिनकी सवारी नंदी है और जो ब्रह्मचारी भी है अर्थात मोह-माया को त्यागने वाले। जो भी भक्तगण उन्हें प्रतिदिन सुबह उठकर भोग लगाता है, उस पर भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
त्रिगुण शिव जी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥
तीनों गुणों से युक्त भगवान शिव जी की आरती जो कोई भी भक्त करता है, शिवानन्द स्वामी जी के अनुसार उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
इस तरह से आपने ओम जय शिव ओंकारा की आरती लिखी हुई (OM Jai Shiv Omkara Aarti In Hindi) अर्थ सहित पढ़ ली है। अब हम शिव आरती का भावार्थ भी जान लेते हैं।
शिवजी की आरती हिंदी में – भावार्थ
सनातन धर्म में ईश्वर के कई रूपों व विभिन्न देवी-देवताओं को मानने की परंपरा है। यहाँ तक कि हिंदू धर्म में सृष्टि के संचालन व सहायक वस्तुओं को भी पूजनीय माना गया है जैसे कि जल, वायु, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, समुंद्र, सूर्य, मिट्टी इत्यादि। इसलिए ही कहा जाता है कि ईश्वर कण-कण में विद्यमान हैं।
सभी देवताओं व ईश्वर में त्रिदेव को सबसे महान बताया गया है व उन्हें देवताओं से भी ऊपर ईश्वर की संज्ञा दी गयी है। इन तीनों को सृष्टि के रचियता परम ब्रह्मा, उसके पालनहार श्रीहरि नारायण व संहारक महादेव की संज्ञा दी गयी है। शिव आरती में यह समझाने का प्रयत्न किया गया है कि यह तीनों अलग-अलग नही बल्कि एक ही है।
यह तीनों भगवान शिव के ही रूप हैं और वे ही सभी का संचालन करते हैं। जो संहारक हैं वही रचियता हैं क्योंकि बिना रचना के संहार संभव नही और बिना संहार के रचना संभव नही। यदि किसी चीज़ का निर्माण करना है तो किसी को तो नष्ट करना ही पड़ेगा अन्यथा नयी चीज़ का निर्माण असंभव है। ठीक उसी प्रकार किसी चीज़ को नष्ट किया जाएगा तो किसी नयी चीज़ का निर्माण तो अवश्य ही होगा।
इसलिए प्रलय लाने वाला ही रचना करने वाला है और वही उसका संचालन करने वाला है। अतः हमे तीनों को अलग-अलग कर उनकी तुलना ना करते हुए, तीनों को एक ही मानना चाहिए। उन तीनों को अलग-अलग गुणों के आधार पर किया गया है क्योंकि यह तीन गुण हैं। यदि आप शिव आरती के इस मार्मिक व उत्तम भाव को समझ जाएंगे तो अवश्य ही आपका उद्धार संभव है।
शिव आरती का महत्व
भगवान शिव तो भोलेनाथ है। भगवान शिव तो सभी के माने जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि यदि हम किसी भगवान को जल्द से जल्द प्रसन्न करना चाहते हैं तो वे भगवान शिव ही है। साथ ही भगवान शिव द्वारा भक्तों की हरेक इच्छा को पूरा किया जाता है। ऐसे में यदि हम भगवान शिव आरती करते हैं तो वे बहुत प्रसन्न होते हैं।
शिव आरती के माध्यम से हम भगवान शिव की आराधना भी कर लेते हैं और उन्हें खुश भी कर देते हैं। इतना ही नहीं, शिव जी की आरती के माध्यम से हम भगवान शिव के निराकार और निर्गुण रूप को समझ पाते हैं। भगवान शिव की महिमा का वर्णन करने के कारण ही शिव आरती का महत्व बढ़ जाता है।
शिव आरती पढ़ने के लाभ
यदि आप प्रतिदिन या मुख्यतया सोमवार के दिन शिव आरती का पाठ करते हैं तो इससे आपको कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं। भगवान शिव की कृपा से आपका वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है और अपने जीवनसाथी के साथ संबंध मधुर होता है। यदि आप विवाह के लिए उचित जीवनसाथी खोज रहे हैं तो वह भी मिल जाता है।
शिव की आरती के पाठ से भक्तों को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। शिव जी की कृपा से आपको मनचाही संतान की प्राप्ति होती है। यदि किसी रोग या संकट से ग्रस्त है तो वह भी दूर होता है। कुल मिलाकर शिव आरती का सच्चे मन के साथ पाठ किया जाता है तो उस व्यक्ति का जीवन सरल बनता है। यहीं शिव आरती पढ़ने के लाभ होते हैं।
निष्कर्ष
आज के इस लेख के माध्यम से आपने शिव आरती हिंदी में (Shiv Aarti Lyrics In Hindi) अर्थ सहित पढ़ ली है। साथ ही आपने शिव आरती पढ़ने का लाभ और महत्व भी जान लिया है। आशा है कि आपको हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी पसंद आई होगी। आप अपनी प्रतिक्रिया नीचे कमेंट कर दे सकते हैं।
शिव आरती से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: शिवजी की आरती कौन सी है?
उत्तर: शिवजी की आरती को ओम जय शिव ओंकारा की आरती के नाम से जाना जाता है। वैसे तो शिवजी भगवान की और भी कई आरतीयां है लेकिन उन सभी में यहीं आरती सर्वप्रसिद्ध है।
प्रश्न: शिव जी के गुरु कौन है?
उत्तर: शिव भगवान स्वयं आदिगुरू है। कहने का अर्थ यह हुआ कि वे गुरुओं के भी गुरु है। ऐसे में उनका कोई गुरु नहीं है क्योंकि उन्हें संपूर्ण ब्रह्माण्ड और उसके परे का भी ज्ञान है।
प्रश्न: शिव से बड़ा भगवान कौन है?
उत्तर: आपका यह प्रश्न एकदम निरर्थक और तर्कहीन है। भगवान शिव सर्वेश्वर है कुछ लोग भगवान शिव और विष्णु में तुलना करते हैं जबकि वास्तव में दोनों एक ही है।
प्रश्न: शिवजी की कितनी शादी हुई थी?
उत्तर: शिवजी की शादी पहले तो माता सती के साथ हुई थी। माता सती के आत्म-दाह करने के पश्चात उनका विवाह माता पार्वती के साथ हुआ था। माता पार्वती माता सती का ही पुनर्जन्म थी।
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