श्री राम आरती (Shri Ram Aarti) | Shree Ram Aarti – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

Ram Ji Ki Aarti

श्रीराम हम सभी के लिए पूजनीय हैं। त्रेता युग में उनके दिए संदेश आज तक मान्य है और उनका अनुसरण करने से मनुष्य का उद्धार तक हो जाता है। ऐसे में हमें श्रीराम की आराधना तथा उनके गुणों को आत्मसात करने के लिए श्री राम आरती (Shri Ram Aarti) का सच्चे मन के साथ पाठ करना चाहिए।

आज के इस लेख में हम आपके साथ श्रीराम आरती (Shree Ram Aarti) का पाठ ही करने जा रहे हैं और इसी के साथ ही आपको इसका भावार्थ भी समझायेंगे। अंत में हम आपके साथ श्री राम की आरती का महत्व व लाभ (Shri Ram Ki Aarti) भी सांझा करेंगे। तो आइये सबसे पहले करते हैं राम भगवान की आरती।

श्री राम आरती (Shri Ram Aarti)

ऐसी आरती राम रघुबीरकी करहि मन।
हरन दुखदुंद गोबिंद आनंदघन॥

अचर चर रूप हरि, सर्वगत, सर्वदा
बसत इति बासना धूप दीजै।
दीप निजबोधगत कोह-मद-मोह-तम
प्रौढ़ अभिमान चित्तवृत्ति छीजै॥

भाव अतिशय विशद प्रवर नैवेद्य शुभ
श्रीरमण परम संतोषकारी।
प्रेम-तांबूल गत शूल संशय सकल,
विपुल भव-वासना-बीजहारी॥

अशुभ-शुभ कर्म घृत-पूर्ण दशवर्तिका,
त्याग पावक, सतोगुण प्रकासं।
भक्ति-वैराग्य-विज्ञान दीपावली,
अर्पि नीराजनं जगनिवासं॥

विमल हृदि-भवन कृत शांति-पर्यंक शुभ,
शयन विश्राम श्रीरामराया।
क्षमा-करुणा प्रमुख तत्र परिचारिका,
यत्र हरि तत्र नहिं भेद माया॥

आरती-निरत सनकादि, श्रुति, शेष, शिव,
देवरिषि, अखिलमुनि तत्त्व-दरसी।
करै सोइ तरै, परिहरै कामादि मल,
वदति इति अमलमति दास तुलसी॥

श्रीराम आरती (Shree Ram Aarti) – अर्थ सहित

ऐसी आरती राम रघुबीरकी करहि मन।
हरन दुखदुंद गोबिंद आनंदघन॥

हम सभी मिलकर भगवान श्रीराम की मन ही मन ऐसी आरती करते हैं जिससे हमारे हर दुःख का नाश हो जाता है और मन को आनंद मिलता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि भगवान श्री राम की आरती करने से हमारे मन में चल रहा द्वंद्व शांत होता है और दुःख दूर हो जाते हैं।

अचर चर रूप हरि, सर्वगत, सर्वदा
बसत इति बासना धूप दीजै।
दीप निजबोधगत कोह-मद-मोह-तम
प्रौढ़ अभिमान चित्तवृत्ति छीजै॥

श्रीहरि का रूप हर जगह व्याप्त है, वे श्रीराम के रूप में भी हैं तो निराकार भी हैं, वे सभी दिशाओं में बसते हैं। हे प्रभु श्रीराम!! अब आप अपने इस भक्त पर भी कृपा कर दीजिये और मुझे अपनी छत्रछाया में ले लीजिये। श्रीराम हमारे क्रोध, अहंकार, कामना तथा अज्ञानता के अहंकार का समूल नाश कर देते हैं और हमें सद्बुद्धि प्रदान करते हैं। वे ही हमारे अभिमान का अंत कर हमारे मन को शांत करने का काम करते हैं। एक तरह से श्रीराम की कृपा से हमारे अंदर सकारात्मकता का संचार होता है।

भाव अतिशय विशद प्रवर नैवेद्य शुभ
श्रीरमण परम संतोषकारी।
प्रेम-तांबूल गत शूल संशय सकल,
विपुल भव-वासना-बीजहारी॥

हम सभी नैवेद्य का भोग श्रीराम को लगाते हैं और उनके प्रति हमारे भावों को प्रकट करते हैं। श्रीराम का रूप हमारे मन को संतोष प्रदान करने वाला है। श्रीराम हमारे मन में प्रेम के जो बीज बोते हैं उससे हमारी सभी तरह की शंकाओं और समस्याओं का समाधान हो जाता है। वे ही हमें इस सांसारिक मोहमाया से दूर कर मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करते हैं।

अशुभ-शुभ कर्म घृत-पूर्ण दशवर्तिका,
त्याग पावक, सतोगुण प्रकासं।
भक्ति-वैराग्य-विज्ञान दीपावली,
अर्पि नीराजनं जगनिवासं॥

हमारे द्वारा किये गए सभी अशुभ व शुभ कर्म घी के समान दसों दिशाओं में फैल जाते हैं। हमें श्रीराम की भांति त्याग की अग्नि में जलना होता है तभी उन सद्गुणों का प्रकाश चारों ओर फैलता है। दीपावली भक्ति, वैराग्य व विज्ञान का त्यौहार है जिस दिन हम सभी दीपक प्रज्ज्वलित करते हैं, तरह-तरह की रोशनियाँ कर श्रीराम का स्वागत करते हैं।

विमल हृदि-भवन कृत शांति-पर्यंक शुभ,
शयन विश्राम श्रीरामराया।
क्षमा-करुणा प्रमुख तत्र परिचारिका,
यत्र हरि तत्र नहिं भेद माया॥

श्रीराम की कृपा से हमारा हृदय शांत व निर्मल होता है और सभी कार्य शुभ होते हैं। श्रीराम की कृपा से ही हम विश्राम कर पाते हैं और थकान को दूर करते हैं। श्रीराम अपने भक्तों पर क्षमा व करुणा का भाव रखते हैं। जहाँ हरि का वास होता है, वहां माया का भेद नहीं होता है।

आरती-निरत सनकादि, श्रुति, शेष, शिव,
देवरिषि, अखिलमुनि तत्त्व-दरसी।
करै सोइ तरै, परिहरै कामादि मल,
वदति इति अमलमति दास तुलसी॥

श्री राम आरती को सनकादि, श्रुति, शेषनाग, महादेव, देवर्षि, सभी ऋषि-मुनि मिलकर गाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। श्रीराम आरती के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि जो कोई भी इस आरती का पाठ करता है, वह सांसारिक मोहमाया से दूर हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त करता है।

श्री राम की आरती (Shri Ram Ki Aarti) – महत्व

भगवान श्रीराम को हम जितना अधिक समझते जाते हैं, जीवन उतना ही सरल बनता चला जाता है। विष्णु रूप होकर भी उन्होंने अपने जीवन में आने वाली हर चुनौती को सहज स्वीकार किया, मनुष्य की भांति सभी कष्टों को बिना किसी शिकायत के झेला तथा हर स्थिति में स्वयं को ढालने का प्रयास किया। श्रीराम के इन्हीं गुणों के कारण ही वे सदियों तक मनुष्य जाति के लिए प्रेरणा स्रोत बन गये।

श्रीराम आरती के माध्यम से हम उन्हीं गुणों को ही आत्म-सात करते हैं। श्री राम आरती के माध्यम से ना केवल हम उनकी पूजा कर रहे होते हैं बल्कि श्रीराम को निकटता से जानने का भी प्रयास करते हैं। यही श्री राम की आरती का महत्व होता है।

राम भगवान की आरती (Ram Bhagwan Ki Aarti) – लाभ

जो व्यक्ति श्री राम को अपने जीवन का आदर्श मान लेता है और हर दिन सच्चे मन के साथ श्री राम आरती का पाठ करता है, उसके लिए जीवन बहुत ही सरल व सुगम हो जाता है। मनुष्य के जीवन में हर पथ पर कई तरह की बाधाएं आती है लेकिन उनका किस तरह से सामना किया जाए, विपरीत परिस्थितियों में क्या किया जाए, अच्छे व बुरे में किस तरह से भेद किया जाए, इसकी समझ हमें श्रीराम की कृपा से ही मिलती है।

ऐसे में श्रीराम आरती के माध्यम से हमें एक नहीं अनेक लाभ देखने को मिलते हैं। इसके माध्यम से अपने जीवन को सरल बनाना तो है ही बल्कि मृत्यु के पश्चात भी हमारा उद्धार तय है। यदि हम जीवनपर्यंत श्रीराम के बताये आदर्शों पर चलते हैं तो अंतिम समय में भवसागर को पार कर हरिलोक में स्थान प्राप्त करते हैं। यही श्री राम की आरती के लाभ होते हैं।

श्री राम आरती से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: राम जी महाराज का जन्म कब हुआ?

उत्तर: राम जी महाराज का जन्म त्रेता युग के चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन माँ कौशल्या के गर्भ से हुआ था। तब से ही हम उस दिन को पूरे देश में राम नवमी के रूप में बहुत ही धूमधाम के साथ मनाते हैं।

प्रश्न: श्री राम का जन्म कहाँ हुआ था?

उत्तर: श्री राम का जन्म सरयू नदी के किनारे बसी हुई अयोध्या नगरी में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। यह वही स्थल है जो वर्तमान में राम जन्मभूमि के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न: राम जी का असली नाम क्या है?

उत्तर: राम जी का असली नाम राम ही है जो उन्हें उनके राजगुरु महर्षि वशिष्ठ ने दिया था। हालाँकि उन्हें कई अन्य नामो से भी जाना जाता है जैसे कि रामचंद्र, सीतापति, मर्यादा पुरुषोत्तम इत्यादि।

प्रश्न: राम जी की कितनी पत्नियां थी?

उत्तर: राम जी की केवल एक ही पत्नी थी जिन्हें हम माता सीता के नाम से जानते हैं। सीतात्याग के पश्चात भी उन्होंने जीवनपर्यंत केवल सीता को ही अपनी पत्नी रूप में स्वीकार किया था।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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