क्या आपने कभी सोचा है कि बौद्ध धर्म में दिवाली क्यों मनाई जाती है (Gautam Buddha Diwali) या दीपावली का बौद्ध धर्म से क्या संबंध है!! दिवाली का त्यौहार हिंदू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मो में भी मनाया जाता हैं जैसे कि जैन, बौद्ध व सिख धर्म। इन सभी धर्मो में इस दिन कुछ न कुछ शुभ हुआ था जिस कारण दिवाली का महत्व और भी बढ़ जाता हैं।
बौद्ध धर्म में दिवाली का अत्यधिक महत्व हैं क्योंकि इसी दिन सम्राट अशोक ने हिंदू धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्म को अपना लिया था। साथ ही दिवाली वाले दिन का संबंध गौतम बुद्ध (Diwali Buddha) से भी है जिस कारण बौद्ध धर्म में दीपावली का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है। आइए जाने बौद्ध धर्म वाले दीपावली क्यों मनाते हैं।
Gautam Buddha Diwali | बौद्ध धर्म में दिवाली क्यों मनाई जाती है?
ऐसी मान्यता हैं कि बौद्ध धर्म के भगवान गौतम बौद्ध इसी दिन अपनी जन्मभूमि कपिलवस्तु में 18 वर्षो के पश्चात वापस लौटे थे। उनके वापस आने की खुशी में वहां के लोगो ने लाखो दीप प्रज्जवलित कर उनका भव्य स्वागत किया था। यह कुछ उसी तरह का स्वागत था, जिस प्रकार त्रेता युग में भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात पुनः अयोध्या नगरी लौटने पर हुआ था।
इतना ही नहीं, उसी दिन गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों को “अप्पो दीपो भवः” का उपदेश दिया था। इसका अर्थ होता है कि हमें अपना दीपक स्वयं बनना चाहिए अर्थात अपना आत्म-जागरण करो। तब से उसकी याद में दिवाली का त्यौहार बौद्ध धर्म (Buddha Diwali) में मनाया जाता है।
अशोक का बौद्ध धर्म अपनाना
आज से हजारो वर्ष पूर्व आचार्य चाणक्य ने एक शुद्र को भारत के प्रमुख राजा की राजगद्दी तक पहुँचाया था जो थे महाराज चंद्रगुप्त मौर्य। उन्ही के पौत्र/ पोते थे सम्राट अशोक जिन्हें युद्ध लड़ना अत्यधिक अच्छा लगता था। वे शुरू से ही इतने हिंसक थे कि उन्होंने अपने से बड़े सभी 99 भाइयो को मारकर राज सिंहासन का पद प्राप्त किया था।
कलिंग के भीषण युद्ध के पश्चात उन्होंने दिवाली के दिन ही हिंदू धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्म (Diwali Buddha) को पूर्णतया अपना लिया था। इसके बाद उन्होंने जीवनभर देश-विदेश में बौद्ध धर्म का प्रचार और बौद्ध स्तूपों व मूर्तियों का निर्माण किया। सम्राट अशोक के द्वारा ही भारत व आसपास के देशो में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया गया जिस कारण यह विश्व का एक बड़ा धर्म उभरकर सामने आया। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसी की याद में प्रमुखता से दिवाली का त्यौहार मनाते हैं।
किंतु यह आधा-अधूरा सत्य हैं क्योंकि लोगो की यह मान्यता हैं कि सम्राट अशोक ने हिंसा से व्यथित होकर हिंदू धर्म को त्याग दिया था व शांति के धर्म बौद्ध को अपना लिया था जबकि सत्य इसके बिल्कुल विपरीत हैं। बौद्ध धर्म (Buddha Diwali) को अपनाने के पश्चात सम्राट अशोक ने युद्ध तो नही किये लेकिन अन्य धर्म मुख्यतया जैन धर्म के प्रति उनके अत्याचार बहुत बढ़ गए थे। इसलिये बौद्ध धर्म को अपनाने के पश्चात सम्राट अशोक अहिंसावादी बन गए थे यह कथन सरासर अनुचित हैं।
नेपाल में दिवाली का त्यौहार
नेपाल में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगो के लिए दिवाली का त्यौहार बहुत मुख्य हैं। वे इसे हिंदू धर्म की भांति ही पांच दिनों के लिए मनाते हैं जिसे तिहार पर्व के रूप में जाना जाता हैं। इन पांच दिनों में वे क्रमशः कौवे, कुत्ते, गाय, बैल की पूजा करते हैं तथा अंतिम दिन भाई-टिका के रूप में मनाया जाता हैं।
दिवाली वाले दिन सभी बौद्ध धर्म के लोग माँ लक्ष्मी की आराधना करते हैं। इसी के साथ बौद्ध मंदिरों व घरो को दीपक से सजा दिया जाता हैं व एक-दूसरे को बधाई दी जाती हैं। जिस प्रकार हिंदू धर्म में दिवाली का त्यौहार मनाया जाता हैं उसी प्रकार बौद्ध लोग भी इसे वैसे ही मनाते हैं। इस तरह से आज आपने जान लिया है कि बौद्ध धर्म में दिवाली क्यों मनाई जाती है (Gautam Buddha Diwali) और दिवाली का उनके लिए क्या महत्व है।
बौद्ध धर्म में दिवाली से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: दीपावली का बौद्ध धर्म से क्या संबंध है?
उत्तर: दीपावली वाले दिन ही बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध अपनी जन्मभूमि कपिलवस्तु में 18 वर्षों के बाद लौटे थे। उनके स्वागत में लोगों ने घी और तेल के दीपक जलाए थे।
प्रश्न: बौद्ध धर्म वाले दीपावली क्यों मनाते हैं?
उत्तर: मान्यता है कि दीपावली वाले दिन ही सम्राट अशोक ने हिन्दू धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया था। उसके बाद उन्होंने चारों ओर बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया था।
प्रश्न: क्या बौद्ध और हिंदू धर्म एक ही है?
उत्तर: बौद्ध धर्म हिन्दू धर्म में से निकला हुआ धर्म है। एक समय पहले गौतम बुद्ध हुए थे जो हिन्दू थे। उन्होंने एक अलग पंथ की नींव रखी जो बौद्ध कहलाए। उसके बाद सम्राट अशोक ने इसका प्रचार किया था।
प्रश्न: क्या बौद्ध धर्म में दिवाली मनाई जाती है?
उत्तर: हां, बौद्ध धर्म में दिवाली मनाई जाती है। इसी दिन गौतम बुद्ध 18 वर्षों के बाद अपनी जन्मभूमि कपिलवस्तु लौटे थे। वही सम्राट अशोक ने भी इसी दिन बौद्ध धर्म अपना लिया था।
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