संपाती रामायण (Sampati Ramayana) में तब आता है जब भगवान श्रीराम की वानर सेना माता सीता की खोज में समुद्र किनारे तक पहुँच जाती है। वह जटायु का बड़ा भाई होता है जो वानर सेना से अपने भाई की मृत्यु का समाचार सुनकर बहुत दुखी हो जाता है।
इसके बाद वह वानर सेना को माता सीता का पता बताता है। इस तरह से वह माता सीता की खोज में अहम भूमिका निभाता है। किंतु संपाती के साथ ऐसा क्या हो गया था जिस कारण वह समुद्र किनारे बेसहारा पड़ा था। आज हम आपको संपाती और जटायु की कहानी (Sampatti Aur Jatayu Ki Kahani) सहित उनका रामायण में योगदान भी बताएंगे।
Sampati Ramayana | संपाती रामायण
संपाती व जटायु दोनों भाई थे जो महान ऋषि कश्यप के वंशज थे। उनके पिता का नाम अरुण था जो सूर्य देव के सारथि थे। इस तरह से सभी पक्षियों में उनका प्रभाव बहुत ज्यादा था। सम्पाती और जटायु दोनों गिद्ध थे जिनमें से संपाती गिद्धों के राजा भी थे। वे आकार में बहुत ही विशाल व खूंखार दिखने वाले पक्षी थे।
अपने इसी आकार व शक्ति के कारण दोनों को बहुत घमंड भी था। खासतौर पर संपाती को अपने आप पर बहुत ज्यादा अहंकार था। इसी अहंकार का ही परिणाम था कि उसके दोनों पंख जल गए थे और वह समुद्र किनारे बेसहारा पड़ा था। इसके लिए आपको जटायु और संपाती की कहानी पढ़नी होगी जो सूर्य देव से जुड़ी हुई है। आइए जाने।
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Sampatti Aur Jatayu Ki Kahani
संपाती और जटायु जब युवा थे तब उन्हें अपने पराक्रम पर घमंड आ गया था। दोनों ही अत्यंत विशाल आकार के थे। इसी कारण वे कहीं भी लंबी दूरी की उड़ान भरने में सक्षम थे। इसी जोश में उन्होंने एक दिन कैलाश पर्वत पर ऋषियों से शर्त लगाई कि वे दोनों सूर्य देव की और उड़ान भरेंगे व उन्हें छूकर वापस आ जाएंगे।
ऐसे में दोनों ने वहाँ से सूर्य देव की ओर आकाश में लंबी उड़ान भरी। जैसे-जैसे वे सूर्य देव के समीप जा रहे थे वैसे-वैसे ही सूर्य देव का ताप और ज्यादा तेज होता जा रहा था। सूर्य के थोड़ा और नजदीक पहुँचने पर दोनों तेज गर्मी से झुलसने लगे व व्याकुल हो बैठे। अपने छोटे भाई जटायु की ऐसी हालत देखकर संपाती ने अपने बड़े-बड़े पंखों से उसे ढक लिया।
कुछ ही देर में जटायु मुर्छित होकर धरती की ओर गिर पड़े। वे पंचवटी नामक वन में गिरे जहाँ पर आगे चलकर उनका मिलन भगवान श्रीराम, लक्ष्मण व माता सीता से हुआ। इसी स्थल पर माता सीता का अपहरण होना, जटायु रावण का युद्ध व जटायु की मृत्यु हुई थी।
दूसरी ओर सम्पाती ने उड़ान जारी रखी व सूर्य की तेज रोशनी से उनके पंख जल गए। पंख जलने के कारण वे भी नीचे गिरने लगे व दक्षिण दिशा में समुंद्र किनारे पहाड़ियों पर गिरे। यहाँ पर चंद्रमा/ निशाकर नामक ऋषि ने संपाती का उपचार किया। चूँकि संपाती के पंख अब जल चुके थे तो उनका पराक्रम समाप्त हो चुका था व वे उड़ने में भी अब असमर्थ थे।
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Sampati In Ramayana In Hindi
पंख ना होने के कारण वे अपने भाई जटायु को ढूंढने व उससे मिलने में असमर्थ थे। इसलिए अब सम्पाती वहीं समुंद्र किनारे रहकर अपना जीवन यापन करने लगे। एक दिन जब वानर सेना वहाँ माता सीता की खोज में आई, तब उन्हें अपने भाई की मृत्यु का समाचार मिला। यह सुनकर संपाती बहुत ही ज्यादा भावुक हो गया था।
उन्होंने वानर सेना को अपनी गिद्ध दृष्टि से माता सीता का पता बताया व समुंद्र में उतर कर अपने भाई को जलांजलि दी। संपाती के बताए अनुसार ही हनुमान ने अपनी शक्ति के बलबूते लंका तक की यात्रा की थी और माता सीता का पता लगाया था। इस तरह से संपाती रामायण (Sampati Ramayana) में माता सीता का पता लगाने में काम आए थे।
संपाती रामायण से जुड़े प्रश्नोत्तर
प्रश्न: जटायु का भाई कौन था?
उत्तर: जटायु का भाई का नाम संपाती था जो उसका बड़ा भाई था।
प्रश्न: सम्पाती कौन था?
उत्तर: सम्पाती रामायण का एक किरदार था जो जटायु का बड़ा भाई और गिद्दों का राजा था। उसने ही वानर सेना को माता सीता का पता बताया था।
प्रश्न: संपाती कौन था उसने वानरों की सहायता किस प्रकार की?
उत्तर: संपाती जटायु का बड़ा भाई था जब वानर सेना समुद्र के तट तक पहुँच गई थी। तब उन्हें माता सीता का पता बताकर संपाती ने उनकी सहायता की थी।
प्रश्न: रामायण के अनुसार संपत्ति किसका भाई था?
उत्तर: रामायण के अनुसार संपत्ति जटायु का बड़ा भाई था। हालाँकि उसका सही नाम सम्पाती था।
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