उत्तराखंड में भगवान शिव को समर्पित पांच केदार हैं जिन्हें पंच केदार के नाम से जाना जाता है। उन्हीं में से तीसरा केदार है तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Mandir)। इस मंदिर का निर्माण आज से हजारों वर्षों पूर्व महाभारत के समय में पांडवों के द्वारा किया गया था। तुंगनाथ मंदिर हिमालय की पहाड़ियों पर अलकनंदा व मंदाकिनी नदियों के बीच भगवान शिव का मंदिर है।
शिव मंदिर होने के कारण इसे तुंगनाथ महादेव के नाम से भी जाना जाता है। यदि आप रोमांच के साथ-साथ धार्मिक यात्रा का मिश्रण चाहते हैं तो अवश्य ही तुंगनाथ महादेव मंदिर होकर आएं। तुंगनाथ मंदिर से ऊपर प्रसिद्ध चंद्रशिला पहाड़ी भी है जिसका संबंध भगवान श्रीराम से है।
आज हम आपको तुंगनाथ मंदिर कहां है, तुंगनाथ मंदिर कैसे पहुंचे, तुंगनाथ मंदिर का रहस्य क्या है, इत्यादि सभी के बारे में जानकारी देंगे। इस लेख में आपको तुंगनाथ ट्रेक (Tungnath Trek) से लेकर मंदिर के इतिहास, उसकी कहानी, यात्रा, संरचना व महत्व इत्यादि सभी के बारे मे जानने को मिलेगा। चलिए शुरू करते हैं।
Tungnath Mandir | तुंगनाथ मंदिर
तुंगनाथ महादेव जी का एक ऐसा मंदिर है जिसकी चढ़ाई बहुत ही दुर्गम है। वह इसलिए क्योंकि इसके लिए आपको सीधी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है जो हर किसी के बस की बात नहीं है। केदारनाथ तो सभी भक्तों के बीच में बहुत प्रसिद्ध है लेकिन केदारनाथ के बाद पंच केदारों में जिसका नाम लिया जाता है, वह यही तुंगनाथ मंदिर है।
हर वर्ष हजारों-लाखों की संख्या में भक्तगण तुंगनाथ ट्रेक करके मंदिर पहुँचते हैं। हालाँकि सर्दियों में मंदिर भीषण बर्फ़बारी के कारण बंद हो जाता है लेकिन फिर भी भक्तगण यहाँ पहुँचते रहते हैं। मंदिर की सुंदरता को शायद ही शब्दों में व्यक्त किया जा सके। इसका अनुभव तो यहाँ पहुँच कर ही किया जा सकता है। ऐसे में आइए तुंगनाथ मंदिर के बारे में समूची जानकारी ले ली जाए।
तुंगनाथ मंदिर का इतिहास
तुंगनाथ मंदिर की कहानी मुख्य रूप से महाभारत काल से जुड़ी हुई है। महाभारत के भीषण युद्ध के बाद पांडवों ने गोत्र व ब्राह्मण हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करने का निर्णय किया था। इसके बाद उन्होंने भगवान शिव को काशी से लेकर केदारनाथ तक ढूंढा लेकिन वो उन्हें नही मिले।
भगवान शिव सभी पांडवों से अत्यधिक क्रोधित थे। इसलिए वे उनसे छुपने के लिए एक बैल का रूप लेकर धरती में समाने लगे लेकिन तभी भीम ने उन्हें देख लिया और बैल को पीछे से पकड़ लिया। तब उस बैल का पीछे वाला भाग वहीं रह गया और बाकि चार भाग चार अन्य जगहों पर निकले जिन्हें हम पंच केदार कहते हैं।
जब भीम ने महादेव के बैल रूप को पकड़ा तब उसकी भुजाएं यहाँ प्रकट हुई थी। बैल का पीछे वाला भाग केदारनाथ में रह गया था जबकि अन्य तीन भाग में मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमहेश्वर में तथा जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुई थी। इन पांचों स्थानों पर पांडवों के द्वारा भगवान शिव को समर्पित मंदिरों का निर्माण किया गया था व शिवलिंग की स्थापना की गई थी। इससे भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें पाप मुक्त कर दिया था।
तुंगनाथ का अर्थ
तुंगनाथ का मतलब होता है पहाड़ों का भगवान जो कि भगवान शिव को कहा जाता है। इसी के साथ ही तुंगनाथ में तुंग का अर्थ हाथ या भुजाओं से होता है जबकि नाथ का अर्थ स्वामी से है। चूँकि भगवान शिव के बैल रुपी अवतार की भुजाएं यहाँ निकली थी, इसलिए पांडवों ने इसका नाम तुंग और शिव को स्वामी मानकर नाथ नाम दिया। इस कारण तुंगनाथ का अर्थ शिवजी की भुजाएं है।
तुंगनाथ मंदिर कहां है?
तुंगनाथ महादेव मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के अंतर्गत आता है। यहाँ पर उखीमठ से आगे चोपता नामक एक गाँव है। इसी गाँव के पास तुंगनाथ नामक पहाड़ी है। चोपता गाँव तक हम विभिन्न साधनों से पहुँच सकते हैं। उसके बाद यहाँ से तुंगनाथ पहाड़ी पर चढ़कर तुंगनाथ मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
चोपता गाँव की समुद्र तट से ऊंचाई लगभग 3,470 मीटर (11,385 फीट) है। यहाँ से तुंगनाथ मंदिर 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तुंगनाथ मंदिर की समुंद्र तट से ऊंचाई 3,680 मीटर (12,073 फीट) है। चोपता से तुंगनाथ पहुँचने में सामान्यतया 2 से 3 घंटे का समय लगता है।
तुंगनाथ पहाड़ी से तीन झरने निकलते हैं जिनसे अक्षकामिनी नदी का निर्माण होता है। साथ ही यह पहाड़ी प्रसिद्ध अलकनंदा व मंदाकिनी नदियों के बीच में स्थित है। 3 से 4 किलोमीटर का यह रास्ता बहुत ही कठिन है क्योंकि इसके लिए लगभग सीधी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। ऐसे में बहुत से श्रद्धालु पहले ही हार मान जाते हैं और पीछे लौट पड़ते हैं।
तुंगनाथ मंदिर का रहस्य
अब बहुत से भक्तगण तुंगनाथ मंदिर के रहस्य को जानने को उतारू रहते हैं। ऐसे में अब हम तुंगनाथ मंदिर की संरचना को आपके सामने रखने जा रहे हैं ताकि इसका रहस्य भी उजागर हो सके। जब आप तुंगनाथ का ट्रेक करके मंदिर के पास पहुंचेगे तो सामने नवनिर्मित बड़ा सा अर्ध चंद्राकर बोर्ड दिखाई देगा जिस पर श्री तुंगनाथ मंदिर लिखा हुआ है। यह बोर्ड सरकार के द्वारा लगाया गया है। इसके बाद मुख्य मंदिर आता है।
मंदिर का निर्माण बड़े-बड़े पत्थरों से किया गया है जिसके अंदर काले पत्थर से बना शिवलिंग स्थापित है। Tungnath Mandir के प्रवेश द्वार पर भगवान शिव की सवारी नंदी शिवलिंग की ओर मुख किए हुए है। मंदिर के अंदर शिवलिंग के आसपास काल भैरव, महर्षि व्यास व अष्टधातु से बनी मूर्तियाँ स्थापित की गई है। इसके अलावा बाकि चार केदारों व पांडवों की नक्काशियां भी दीवार पर देखने को मिलेंगी।
तुंगनाथ मंदिर के दाईं ओर एक छोटा सा मंदिर है जहाँ भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित है। गणेश मंदिर के दाईं ओर अन्य छोटे-छोटे पांच मंदिर भी हैं। एक तरह से तुंगनाथ मंदिर के आसपास कई छोटे-छोटे मंदिर हैं। मुख्य मंदिर के ऊपर एक लकड़ी का चबूतरा बना हुआ है जो चारों ओर से सोलह खिड़कियों के माध्यम से खुला हुआ है। इस चबूतरे के ऊपर मंदिर के शिखर को बड़े-बड़े पत्थरों की सहायता से ढका गया है।
Tungnath Trek | तुंगनाथ ट्रेक
यहाँ आप अपने या सार्वजनिक साधनों से केवल चोपता गाँव तक ही पहुँच सकते हैं, इसलिए आगे की यात्रा पैदल चलकर ही करनी पड़ेगी। तुंगनाथ मंदिर का ट्रेक ज्यादा मुश्किल नही है क्योंकि इसे चट्टानों व पत्थरों को काटकर समतल बनाया गया है लेकिन कहीं-कहीं सीधी चढ़ाई आती है।
तुंगनाथ मंदिर के ट्रेक में आपको ज्यादा मुश्किल नही होगी। यदि आप रुक-रुक कर भी चलेंगे तो ज्यादा से ज्यादा यह ट्रेक 3 घंटे में पूरा हो जाएगा लेकिन सबसे मुख्य बात जो तुंगनाथ के ट्रेक को आकर्षक बनाती है, वह है यहाँ का मनोहर दृश्य।
तुंगनाथ मंदिर के ट्रेक के बीच में आपको बांस व बुरांश के जंगल पार करने होंगे। ये जंगल गोपेश्वर से चोपता आते हुए ही शुरू हो जाते हैं। यहाँ आपको हिमालय की पहाड़ियां, ठंडी-ठंडी हवा, कई तरह के पुष्प, मखमली घास इत्यादि देखने को मिलेंगे।
तुंगनाथ मंदिर के आसपास का दृश्य
जब आप बस या टैक्सी से चोपता तक जाएंगे तो वहां की स्थानीय भाषा में इस क्षेत्र को बुग्याल क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। बुग्याल पेड़ों और बर्फ के बीच का मखमली घास वाला क्षेत्र है। यह स्थान उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल में टिम्बर रेखा पर पड़ता है। यह रेखा वह होती है जहाँ पर असंख्य वृक्ष समाप्त हो जाते हैं और मखमली घास शुरू हो जाती है। एक तरह से यह पेड़ों और बर्फ के बीच का स्थान होता है जहाँ मखमली घास होती है।
सर्दियों में यही घास बर्फ से ढक जाती है जो इसे और भी मनोहर बना देती है। साथ ही यहाँ आपको रंग-बिरंगे पुष्प देखने को मिलेंगे जो इस मनोहर दृश्य में चार चाँद लगा देंगे। चोपता गाँव देवदार व अल्पाइन के वृक्षों से घिरा हुआ एक सुंदर गाँव है। तुंगनाथ मंदिर से डेढ़ किलोमीटर और ऊपर चढ़कर चंद्रशिला पहाड़ी के शिखर तक पंहुचा जा सकता है जहाँ से हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है।
तुंगनाथ मंदिर में पूजा अर्चना
आज से कई सदियों पहले जब आदि शंकराचार्य ने जन्म लिया था तब उनके आदेशानुसार बाकि चार केदारों में दक्षिण भारत के पंडित ही मुख्य पुजारी बने थे। यह परंपरा आज तक चली आ रही है लेकिन तुंगनाथ मंदिर के साथ ऐसा नही है। तुंगनाथ मंदिर के पुजारी वहां के स्थानीय ब्राह्मण होते हैं जो पास के ही गाँव मक्कूमठ के होते हैं। सर्दियों में जब तुंगनाथ मंदिर बंद हो जाता है तब मुख्य मूर्ति को वहां से उठाकर मक्कूमठ गाँव के मंदिर में ही स्थापित किया जाता है।
तुंगनाथ मंदिर का मौसम
यदि आप पहाड़ी इलाकों में नही रहते हैं तो यहाँ आपको हर समय सर्दी का ही अहसास होगा क्योंकि यहाँ की गर्मी मैदानी इलाकों के लिए सर्दी के बराबर ही है। यहाँ गर्मियों में अधिकतम तापमान 15 से 20 डिग्री तक पहुँचता है जबकि सर्दियों में तो यहाँ बर्फ जम जाती है और तापमान -5 से -10 डिग्री तक पहुँच जाता है। इसलिए आप जब भी यहाँ आएं तब गर्म कपड़े साथ में लेकर आएं।
तुंगनाथ मंदिर कब जाएं?
जैसा कि हमने आपको ऊपर बताया कि सर्दियों में यहाँ का तापमान -10 डिग्री तक पहुँच जाता है जिस कारण यहाँ भीषण बर्फबारी होती है। यहाँ इतनी ज्यादा बर्फबारी होती है कि आधे से ज्यादा मुख्य मंदिर ही बर्फ से ढक जाता है। इसलिए उस समय मंदिर खुलने का प्रश्न ही पैदा नही होता। ऐसे में Tungnath Mandir नवंबर से लेकर अप्रैल महीने के बीच लगभग 6 माह के लिए बंद रहता है।
मंदिर आधिकारिक रूप से गर्मियों के मौसम में अप्रैल-मई के महीने में खुलता है और दीपावली तक खुला रहता है। दीपावली के बाद मंदिर में स्थित प्रतीकात्मक या मुख्य मूर्ति को वहां से लाकर मक्कूमठ मंदिर में रख दिया जाता है जो कि यहाँ से 20 से 30 किलोमीटर की दूरी पर नीचे स्थित है। इसके बाद मंदिर अप्रैल के महीने तक बंद रहता है और मक्कूमठ में ही भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है।
तुंगनाथ मंदिर टाइमिंग
मंदिर प्रातः काल 6 बजे आम भक्तों के लिए खुल जाता है और शाम में 7 बजे के आसपास इसके कपाट बंद हो जाते हैं। ऐसे में यदि आपको तुंगनाथ महादेव के दर्शन (Tungnath Mahadev) करने हैं तो आप सुबह के समय जल्दी यात्रा शुरू कर देंगे तो बेहतर रहेगा। हालाँकि बहुत से भक्तगण अपना खुद का टेंट लेकर जाते हैं और ऊपर रुकते हैं तो वहीं अधिकांश सुबह जल्दी यात्रा शुरू करके पुनः चोपता गांव पहुँच जाते हैं।
तुंगनाथ मंदिर कैसे पहुंचे?
यहाँ पहुँचने के लिए आप उत्तराखंड राज्य के तीन बड़े शहरों हरिद्वार, ऋषिकेश या देहरादून कहीं भी आ जाएं क्योंकि उससे आगे की यात्रा बस, टैक्सी या निजी वाहन से ही करनी पड़ेगी।
- ऋषिकेश से चोपता की दूरी: 200 किलोमीटर
- हरिद्वार से चोपता की दूरी: 225 किलोमीटर
- देहरादून से चोपता की दूरी: 246 किलोमीटर
इन तीनों में से सबसे सही ऋषिकेश से चोपता जाना रहता है। हालाँकि आपको तीनों शहरों से ही तुंगनाथ जाने के लिए बस या टैक्सी मिल जाएँगी। यहाँ से चोपता की सीधी बस या टैक्सी मिलना मुश्किल होता है, इसलिए पहले आपको गोपेश्वर या उखीमठ उतरना होगा और फिर वहां से चोपता के लिए साधन पकड़ना होगा।
- गोपेश्वर से चोपता की दूरी: 41 किलोमीटर
- उखीमठ से चोपता की दूरी: 29 किलोमीटर
चोपता से तुंगनाथ की दूरी 3 से 4 किलोमीटर की है। ऐसे में सबसे मुख्य प्रश्न यही हुआ कि Tungnath Mandir जाने के लिए चोपता गांव कैसे पहुंचा जाए!! तो चोपता पहुँचने के तीनों मार्गों के बारे में जान लेते हैं।
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हवाई मार्ग
यदि आप हवाई जहाज से तुंगनाथ मंदिर आना चाहते हैं तो चोपता के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का ग्रांट जॉली हवाई अड्डा है। वहां से बस या टैक्सी करके चोपता पहुँचना पड़ेगा।
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रेल मार्ग
यदि आप सभी भारतीयों की पसंदीदा रेलगाड़ी से तुंगनाथ मंदिर आ रहे हैं तो सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश का है। यहाँ से फिर आपको बस या टैक्सी की सहायता से चोपता पहुंचना पड़ेगा।
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सड़क मार्ग
वर्तमान समय में उत्तराखंड राज्य का लगभग हर शहर व कस्बा बसों के द्वारा सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। हालाँकि कुछ जगहों पर बस सीधी नही जाती, इसलिए वहां से आपको बस बदलनी पड़ सकती है। आपको दिल्ली, चंडीगढ़, जयपुर इत्यादि से ऋषिकेश तक की सीधी बस आसानी से मिल जाएगी। फिर वहां से आप आगे के लिए स्थानीय बस या टैक्सी कर सकते हैं।
इस तरह से आप आसानी से किसी भी मार्ग के द्वारा तुंगनाथ मंदिर पहुँच सकते हैं और तुंगनाथ महादेव के दर्शन कर सकते हैं। हालाँकि यदि आपको शिवलिंग के दर्शन करने हैं तो उसके लिए गर्मियों के मौसम में आना होगा क्योंकि सर्दियों में तो लगभग आधा मंदिर बर्फ़बारी में ढक जाता है और बंद हो जाता है।
तुंगनाथ में कहां रुके?
यदि आप तुंगनाथ मंदिर रुकने का सोच रहे हैं तो हम आपको बता दें कि मंदिर के आसपास कुछ भी रुकने के लिए नही है। इसलिए आपको एक दिन में ही तुंगनाथ ट्रेक (Tungnath Trek) पूरा करके फिर से नीचे चोपता गाँव तक आना पड़ेगा। चोपता में आपको कई होटल, विश्रामगृह, लॉज इत्यादि मिल जाएंगे जहाँ आप रुक सकते हैं।
इसके अलावा उखीमठ में भी कई बड़े होटल व हॉस्टल हैं। सरकार द्वारा विश्रामगृह की व्यवस्था भी उखीमठ में ही है जहाँ आप रुक सकते हैं। यदि आप परिवार के साथ यहाँ जा रहे हैं तो हम आपको सलाह देंगे कि होटल इत्यादि की बुकिंग पहले से ही करवा कर रखें।
तुंगनाथ के आसपास दर्शनीय स्थल
यदि आप तुंगनाथ मंदिर की यात्रा पर जाने का सोच रहे हैं तो आपको यहाँ मंदिर के साथ-साथ कुछ अन्य जगह की यात्रा पर भी होकर आना चाहिए। सबसे मुख्य तो तुंगनाथ महादेव मंदिर से ऊपर स्थित चंद्रशिला की पहाड़ी है जिसका महत्व श्रीराम के कारण बहुत बढ़ गया है। इसी के साथ ही कुछ और स्थल भी हैं, जहाँ आप तुंगनाथ मंदिर के साथ-साथ घूम सकते हैं। आइए एक-एक करके इनके बारे में जान लेते हैं।
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चंद्रशिला पहाड़ी
जो लोग तुंगनाथ मंदिर घूमने जाते हैं वे चंद्रशिला पहाड़ी पर भी जरुर जाते हैं। यह तुंगनाथ मंदिर से लगभग 1 से 2 किलोमीटर ऊपर है जिसके लिए आपको एक से डेढ़ घंटे की चढ़ाई और करनी पड़ेगी। मान्यता है कि यहाँ भगवान श्रीराम ने रावण वध के बाद ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए कुछ समय तक ध्यान किया था और भगवान शिव से क्षमा मांगी थी। यहाँ की पहाड़ी पर एक छोटा सा मंदिर भी है जहाँ से हिमायाल की चोटियों को देखा जा सकता है।
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देवरिया ताल
जब आप उखीमठ से चोपता जा रहे होते हैं तब बीच में सारी नामक एक गाँव आएगा। उस गाँव से 2 से 3 किलोमीटर की चढ़ाई पर देवरिया ताल आता है। यह एक सुंदर झील है जो चारों ओर से जंगलों से घिरी हुई है। इस झील के पानी में पहाड़ियों के प्रतिबिम्ब देखने में बहुत ही आकर्षक लगते हैं।
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चोपता गाँव
चोपता गांव अपने आप में ही एक घूमने लायक जगह है। यहाँ भी आप प्रकृति का आनंद ले सकते हैं और आसपास ट्रेक कर सकते हैं। कहने का अर्थ यह हुआ कि जब आप इतनी लंबी यात्रा करके चोपता गांव पहुचेंगे तो एकदम से तुंगनाथ मंदिर का ट्रेक शुरू करने से पहले एक या आधे दिन इसी गाँव में रुकें और वहां की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लें।
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उखीमठ
उखीमठ में भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित कई मंदिर देखने को मिलेंगे। यह चोपता से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहाँ आप जा सकते हैं।
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कस्तूरी मृग अभयारण्य
इस अभयारण्य में कस्तूरी मृग मुख्य रूप से पाए जाते हैं, इसलिए इसका नाम कस्तूरी मृग अभयारण्य पड़ा। साथ ही इसमें अन्य दुर्लभ वन्य प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं।
इन सभी के अलावा आप और भी कई जगह घूम सकते हैं लेकिन यह आप पर निर्भर करता है कि आप कितने दिन की यात्रा पर यहाँ आए हैं। बहुत से भक्तगण तुंगनाथ मंदिर के साथ ही केदारनाथ या पंच केदार की यात्रा पर भी निकलते हैं। यह सभी केदार उत्तराखंड में ही कुछ-कुछ दूरी पर स्थित हैं।
तुंगनाथ मंदिर जाते समय इन बातों का रखें ध्यान
आखिर में आप यह भी जान लें कि यदि आप Tungnath Mahadev के दर्शन करने जा ही रहे हैं तो उस दौरान आपको किन-किन बातों का ध्यान मुख्य तौर पर रखना चाहिए। ऐसे में हम आपको कुछ टिप्स देने जा रहे हैं ताकि आपकी तुंगनाथ महादेव की यात्रा सुगम व आनंददायक रहे।
- यहाँ वर्षभर ठंडा मौसम रहता है, इसलिए गर्म कपड़े हमेशा साथ लेकर चलें।
- ट्रैकिंग करने के लिए ट्रैकिंग वाले जूते व एक छड़ी भी साथ में रखेंगे तो पहाड़ों पर चढ़ने में आसानी होगी।
- होटल इत्यादि की बुकिंग पहले ही करवा कर रखें।
- मंदिर के अंदर फोटोग्राफी करना निषेध है।
- बारिश के मौसम में यहाँ आने से बचें।
- यहाँ पर मोबाइल सिग्नल भी बहुत कम ही मिलते हैं।
तो कुछ इस तरह से आपने इस लेख के माध्यम से तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Mandir) की संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली है। ऐसे में अब आपका मन भी भगवान शिव को समर्पित इस अद्भुत मंदिर की यात्रा करने का कर रहा होगा। तो फिर देर किस बात की, आप अभी अपने परिवारजनों या मित्रों के साथ Tungnath Mahadev Mandir की यात्रा का कार्यक्रम बना सकते हैं।
तुंगनाथ मंदिर से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: तुंगनाथ मंदिर भारत के किस शहर में स्थित है?
उत्तर: तुंगनाथ मंदिर भारत के रुद्रप्रयाग शहर में स्थित है। यह उत्तराखंड राज्य के अंतर्गत आता है। यहाँ की चढ़ाई बहुत ही कठिन है।
प्रश्न: तुंगनाथ में किसकी पूजा होती है?
उत्तर: तुंगनाथ में भगवान शिव के बैल रुपी अवतार की भुजाओं अर्थात हाथों की पूजा होती है। तुंग का अर्थ भुजाएं है जबकि नाथ का अर्थ स्वामी है।
प्रश्न: तुंगनाथ के कपाट कब खुलते हैं?
उत्तर: तुंगनाथ मंदिर के कपाट अक्षय तृतीय के आसपास खोले जाते हैं। उसी समय ही केदारनाथ मंदिर के कपाट भी खोले जाते हैं।
प्रश्न: क्या तुंगनाथ और केदारनाथ एक ही है?
उत्तर: नहीं, तुंगनाथ और केदारनाथ दोनों अलग-अलग हैं जिन्हें पंच केदार में से दो केदार माना जाता है।
प्रश्न: केदारनाथ से तुंगनाथ कैसे पहुंचे?
उत्तर: केदारनाथ उत्तराखंड के सोनप्रयाग जिले में तो वहीं तुंगनाथ रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। दोनों के बीच लगभग 100 किलोमीटर की दूरी है जिसे तय करने में 3 घंटे का समय लग जाता है। हालाँकि इसमें ट्रेक का समय सम्मिलित नहीं किया गया है।
प्रश्न: तुंगनाथ मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर: तुंगनाथ में भगवान शिव के बैल रुपी अवतार की भुजाएं प्रकट हुई थी। इसके बाद पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था जो भक्तों के बीच आस्था का एक केंद्र है।
प्रश्न: तुंगनाथ मंदिर के पीछे की कहानी क्या है?
उत्तर: तुंगनाथ मंदिर के पीछे की कहानी यही है कि यहाँ पर भगवान शिव के बैल रुपी अवतार की भुजाएं प्रकट हुई थी। उसके बाद महादेव के आशीर्वाद से पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
प्रश्न: तुंगनाथ ट्रेक मुश्किल है?
उत्तर: जी हां, तुंगनाथ ट्रेक बहुत ही कठिन ट्रेक है क्योंकि इसकी चढ़ाई आखिर में जाकर एकदम सीधी हो जाती है। ऐसे में यह अनुभवी ट्रेकर के लिए सही है या फिर गाइड के साथ की जानी चाहिए।
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