भगवान विश्वकर्मा चालीसा का पाठ | Vishwakarma Chalisa In Hindi

Vishwakarma Chalisa

सनातन धर्म में भगवान विश्वकर्मा का बहुत महत्व है और उन्होंने ही लगभग सभी श्रेष्ठ चीज़ों का निर्माण किया है जिसका गुणगान हम विश्वकर्मा चालीसा (Vishwakarma Chalisa) के माध्यम से करते हैं। इन्हें भारतीय वास्तुकला का शिल्पकार माना जाता है जिनके द्वारा सभी तरह की श्रेष्ठतम सरंचनाओं का निर्माण हुआ है। अब वह चाहे भगवान श्रीराम के द्वारा अश्वमेघ यज्ञ करने (Vishwakarma Chalisa In Hindi) से पूर्व माता सीता की जीवंत मूर्ति का निर्माण करना हो या भगवान श्री कृष्ण की नगरी द्वारका या फिर जगन्नाथ पूरी में भगवान की मूर्तियों का निर्माण कार्य हो, हर किसी का श्रेय भगवान विश्वकर्मा जी को ही जाता है।

इसी से ही आप यह अनुमान लगा सकते हैं कि प्राचीन इतिहास में वास्तुकला की दृष्टि से भगवान विश्वकर्मा का क्या योगदान रहा था। उन्हीं भगवान विश्वकर्मा जी के महत्व को देखते हुए आज हम भगवान विश्वकर्मा जी की चालीसा (Vishwakarma Ji Ki Chalisa) का पाठ करेंगे। आज के इस लेख में ना केवल आपको विश्वकर्मा चालीसा हिंदी में पढ़ने को मिलेगी अपितु विश्वकर्मा चालीसा का हिंदी अर्थ भी हम आपको बताएँगे। आइये हम सभी मिल कर विश्वकर्मा चालीसा का पाठ करें।

विश्वकर्मा चालीसा (Vishwakarma Chalisa)

।। दोहा ।।

विनय करौं कर जोड़कर मन वचन कर्म संभारि।

मोर मनोरथ पूर्ण कर विश्वकर्मा दुष्टारि।।

।। चौपाई ।।

विश्वकर्मा तव नाम अनूपा, पावन सुखद मनन अनरूपा।

सुन्दर सुयश भुवन दशचारी, नित प्रति गावत गुण नरनारी।

शारद शेष महेश भवानी, कवि कोविद गुण ग्राहक ज्ञानी।

आगम निगम पुराण महाना, गुणातीत गुणवन्त सयाना।

जग महँ जे परमारथ वादी, धर्म धुरन्धर शुभ सनकादि।

नित नित गुण यश गावत तेरे, धन्य धन्य विश्वकर्मा मेरे।

आदि सृष्टि महँ तू अविनाशी, मोक्ष धाम तजि आयो सुपासी।

जग महँ प्रथम लीक शुभ जाकी, भुवन चारि दश कीर्ति कला की।

ब्रह्मचारी आदित्य भयो जब, वेद पारंगत ऋषि भयो तब।

दर्शन शास्त्र अरु विज्ञ पुराना, कीर्ति कला इतिहास सुजाना।

तुम आदि विश्वकर्मा कहलायो, चौदह विद्या भू पर फैलायो।

लोह काष्ठ अरु ताम्र सुवर्णा, शिला शिल्प जो पंचक वर्णा।

दे शिक्षा दुख दारिद्र नाश्यो, सुख समृद्धि जगमहं परकाश्यो।

सनकादिक ऋषि शिष्य तुम्हारे, ब्रह्मादिक जै मुनीश पुकारे।

जगत गुरु इस हेतु भये तुम, तम-अज्ञान-समूह हने तुम।

दिव्य अलौकिक गुण जाके वर, विघ्न विनाशन भय टारन कर।

सृष्टि करन हित नाम तुम्हारा, ब्रह्मा विश्वकर्मा भय धारा।

विष्णु अलौकिक जगरक्षक सम, शिवकल्याणदायक अति अनुपम।

नमो नमो विश्वकर्मा देवा, सेवत सुलभ मनोरथ देवा।

देव दनुज किन्नर गन्धर्वा, प्रणवत युगल चरण पर सर्वा।

अविचल भक्ति हृदय बस जाके, चार पदारथ करतल जाके।

सेवत तोहि भुवन दश चारी, पावन चरण भवोभव कारी।

विश्वकर्मा देवन कर देवा, सेवत सुलभ अलौकिक मेवा।

लौकिक कीर्ति कला भण्डारा, दाता त्रिभुवन यश विस्तारा।

भुवन पुत्र विश्वकर्मा तनुधरि, वेद अथर्वण तत्व मनन करि।

अथर्ववेद अरु शिल्प शास्त्र का, धनुर्वेद सब कृत्य आपका।

जब जब विपति बड़ी देवन पर, कष्ट हन्यो प्रभु कला सेवन कर।

विष्णु चक्र अरु ब्रह्म कमण्डल, रूद्र शूल सब रच्यो भूमण्डल।

इन्द्र धनुष अरु धनुष पिनाका, पुष्पक यान अलौकिक चाका।

वायुयान मय उड़न खटोले, विद्युत् कला तंत्र सब खोले।

सूर्य चन्द्र नवग्रह दिग्पाला, लोक लोकान्तर व्योम पताला।

अग्नि वायु क्षिति जल अकाशा, आविष्कार सकल परकाशा।

मनु मय त्वष्टा शिल्पी महाना, देवागम मुनि पंथ सुजाना।

लोक काष्ठ, शिल ताम्र सुकर्मा, स्वर्णकार मय पंचक धर्मा।

शिव दधीचि हरिश्चंद्र भुआरा, कृत युग शिक्षा पालेऊ सारा।

परशुराम, नल, नील, सुचेता, रावण, राम शिष्य सब त्रेता।

द्वापर द्रोणाचार्य हुलासा, विश्वकर्मा कुल कीन्ह प्रकाशा।

मयकृत शिल्प युधिष्ठिर पायेऊ, विश्वकर्मा चरणन चित ध्यायेऊ।

नाना विधि तिलस्मी करि लेखा, विक्रम पुतली दृश्य अलेखा।

वर्णातीत अकथ गुण सारा, नमो नमो भय टारन हारा।

।। दोहा ।।

दिव्य ज्योति दिव्यांश प्रभु, दिव्य ज्ञान प्रकाश।

दिव्य दृष्टि तिहुँ कालमहँ विश्वकर्मा प्रभास।।

विनय करो करि जोरि, युग पावन सुयश तुम्हार।

धारि हिय भावत रहे होय कृपा उद्गार।।

।। छन्द ।।

जे नर सप्रेम विराग श्रद्धा सहित पढ़िहहि सुनि है।

विश्वास करि चालीसा चौपाई मनन करि गुनि है।।

भव फंद विघ्नों से उसे प्रभु विश्वकर्मा दूर कर।

मोक्ष सुख देंगे अवश्य ही कष्ट विपदा चूर कर।।

विश्वकर्मा चालीसा इन हिंदी – अर्थ सहित (Vishwakarma Chalisa In Hindi)

।। दोहा ।।

विनय करौं कर जोड़कर मन वचन कर्म संभारि।

मोर मनोरथ पूर्ण कर विश्वकर्मा दुष्टारि।।

मैं हाथ जोड़ कर भगवान विश्वकर्मा जी की प्रार्थना करता हूँ और अपने पूरे मन, कर्म व वचन से उनसे विनती करता हूँ कि वे मेरी सभी तरह की मनोकामनाओं को पूरा करें और मेरे कष्टों का संहार करें

।। चौपाई ।।

विश्वकर्मा तव नाम अनूपा, पावन सुखद मनन अनरूपा।

सुन्दर सुयश भुवन दशचारी, नित प्रति गावत गुण नरनारी।

शारद शेष महेश भवानी, कवि कोविद गुण ग्राहक ज्ञानी।

आगम निगम पुराण महाना, गुणातीत गुणवन्त सयाना।

भगवान विश्वकर्मा का नाम सबसे अलग व अद्भुत है जो सभी को सुख देता है। वे बहुत ही सुन्दर, यश को प्राप्त किये हुए और हर भवन व दिशाओं में समाये हुए हैं जिनका गुणगान हर नर नारी करते हैं। उनका गुणगान तो सभी देवी-देवता, भगवान, कवि, ऋषि-मुनि, पुराण, वेद इत्यादि भी करते हैं।

जग महँ जे परमारथ वादी, धर्म धुरन्धर शुभ सनकादि।

नित नित गुण यश गावत तेरे, धन्य धन्य विश्वकर्मा मेरे।

आदि सृष्टि महँ तू अविनाशी, मोक्ष धाम तजि आयो सुपासी।

जग महँ प्रथम लीक शुभ जाकी, भुवन चारि दश कीर्ति कला की।

इस विश्व के सभी मनुष्य आपका ही गुणगान करते हैं और प्रतिदिन आपको धन्यवाद अर्पित करते हैं। इस सृष्टि में आप हर जगह व्याप्त हैं और आपकी कृपा से ही सब कुछ निर्मित हो पाया है।

ब्रह्मचारी आदित्य भयो जब, वेद पारंगत ऋषि भयो तब।

दर्शन शास्त्र अरु विज्ञ पुराना, कीर्ति कला इतिहास सुजाना।

तुम आदि विश्वकर्मा कहलायो, चौदह विद्या भू पर फैलायो।

लोह काष्ठ अरु ताम्र सुवर्णा, शिला शिल्प जो पंचक वर्णा।

जब इस सृष्टि का निर्माण हुआ और वेद इत्यादि लिखे गए, तब आप ने ही अपनी वास्तुकला से सभी सरंचनाओं का निर्माण किया। आपको ही आदि विश्वकर्मा की उपाधि दी गयी जिसने चौदह तरह की विद्याओं को इस धरती पर फैलाया। लोहा, तांबा, लकड़ी इत्यादि सभी तरह की धातुओं से आपने चीज़ों का निर्माण कार्य किया।

दे शिक्षा दुख दारिद्र नाश्यो, सुख समृद्धि जगमहं परकाश्यो।

सनकादिक ऋषि शिष्य तुम्हारे, ब्रह्मादिक जै मुनीश पुकारे।

जगत गुरु इस हेतु भये तुम, तम-अज्ञान-समूह हने तुम।

दिव्य अलौकिक गुण जाके वर, विघ्न विनाशन भय टारन कर।

आप हमें शिक्षा देकर हमारे दुःख व दरिद्रता को समाप्त कीजिये और हमें सुख समृद्धि दीजिये। सनकादिक ऋषि आपके शिष्य हैं और ब्रह्मा जी भी आपको पुकारते हैं। आप इस जगत के गुरु हैं जो इसका अंधकार हरते हैं। आपके दिव्य ज्ञान से हम सभी के संकट समाप्त हो जाते हैं।

सृष्टि करन हित नाम तुम्हारा, ब्रह्मा विश्वकर्मा भय धारा।

विष्णु अलौकिक जगरक्षक सम, शिवकल्याणदायक अति अनुपम।

नमो नमो विश्वकर्मा देवा, सेवत सुलभ मनोरथ देवा।

देव दनुज किन्नर गन्धर्वा, प्रणवत युगल चरण पर सर्वा।

सृष्टि के हित में आपका ही नाम लिखा गया है और आप भी भगवान विष्णु, ब्रह्मा व शिव के जैसे ही पूजनीय हैं। हे भगवान विश्वकर्मा! आपको नमन है, आपकी हम सभी पूजा करते हैं। सभी देवता, दनुज, किन्नर, गन्धर्व आपकी सेवा करने को तत्पर हैं।

अविचल भक्ति हृदय बस जाके, चार पदारथ करतल जाके।

सेवत तोहि भुवन दश चारी, पावन चरण भवोभव कारी।

विश्वकर्मा देवन कर देवा, सेवत सुलभ अलौकिक मेवा।

लौकिक कीर्ति कला भण्डारा, दाता त्रिभुवन यश विस्तारा।

हम हृदयभाव से अपने पैरों से चल कर आपकी भक्ति करते हैं। आप दसों दिशाओं में व्याप्त हैं और आपके चरण हम धोते हैं। आप देवताओं के भी देवता हैं और आपकी मनोभाव से सेवा करने से हमें इच्छित फल की प्राप्ति होती है। आप सभी कलाओं से भरे हुए हैं और आपका यश हर जगह व्याप्त है।

भुवन पुत्र विश्वकर्मा तनुधरि, वेद अथर्वण तत्व मनन करि।

अथर्ववेद अरु शिल्प शास्त्र का, धनुर्वेद सब कृत्य आपका।

जब जब विपति बड़ी देवन पर, कष्ट हन्यो प्रभु कला सेवन कर।

विष्णु चक्र अरु ब्रह्म कमण्डल, रूद्र शूल सब रच्यो भूमण्डल।

आप इस धरती के पुत्र हो और वेद आदि भी आपका मनन करते हैं। अथर्ववेद में शिल्प शास्त्र का अच्छे से ज्ञान मिलता है और धनुर्वेद में तो आपका ही गुणगान है। जब-जब देवताओं पर कोई संकट आया है तब-तब आपने उसका निवारण किया है। भगवान विष्णु का चक्र, भगवान ब्रह्मा का कमंडल, शिवजी का त्रिशूल, यह पृथ्वी सब आपने ही बनाये हैं।

इन्द्र धनुष अरु धनुष पिनाका, पुष्पक यान अलौकिक चाका।

वायुयान मय उड़न खटोले, विद्युत् कला तंत्र सब खोले।

सूर्य चन्द्र नवग्रह दिग्पाला, लोक लोकान्तर व्योम पताला।

अग्नि वायु क्षिति जल अकाशा, आविष्कार सकल परकाशा।

इंद्र देव का धनुष, पिनाक धनुष, पुष्पक विमान, वायुयान, विद्युत् यंत्र इत्यादि सब विश्वकर्मा जी ने ही बनाये हैं। आपने ही सूर्य, चन्द्र, नवग्रह, पाताल लोक इत्यादि का निर्माण अग्नि, जल, वायु, मिट्टी व आकाश के माध्यम से किया है जिन्हें हम पंच तत्व भी कहते हैं।

मनु मय त्वष्टा शिल्पी महाना, देवागम मुनि पंथ सुजाना।

लोक काष्ठ, शिल ताम्र सुकर्मा, स्वर्णकार मय पंचक धर्मा।

शिव दधीचि हरिश्चंद्र भुआरा, कृत युग शिक्षा पालेऊ सारा।

परशुराम, नल, नील, सुचेता, रावण, राम शिष्य सब त्रेता।

आप ही हमारे लिए सबसे महान शिल्पकार हैं और सभी चीज़ों का निर्माण करते हैं। आपने ही महर्षि दधीचि की हड्डियों से अस्त्र शस्त्रों का निर्माण किया था जिसका उपयोग भगवान परशुराम, नल, नील, रावण, श्रीराम इत्यादि ने किया था।

द्वापर द्रोणाचार्य हुलासा, विश्वकर्मा कुल कीन्ह प्रकाशा।

मयकृत शिल्प युधिष्ठिर पायेऊ, विश्वकर्मा चरणन चित ध्यायेऊ।

नाना विधि तिलस्मी करि लेखा, विक्रम पुतली दृश्य अलेखा।

वर्णातीत अकथ गुण सारा, नमो नमो भय टारन हारा।

आपने द्वापर युग में भी बहुत कार्य किया था और युधिष्ठिर की नगरी व द्वारका नगरी का निर्माण किया था। आप ही सभी सरंचनाओं के रचयिता हैं और सभी श्रेष्ठ चीज़ों का निर्माण आपने ही किया है।

।। दोहा ।।

दिव्य ज्योति दिव्यांश प्रभु, दिव्य ज्ञान प्रकाश।

दिव्य दृष्टि तिहुँ कालमहँ विश्वकर्मा प्रभास।।

विनय करो करि जोरि, युग पावन सुयश तुम्हार।

धारि हिय भावत रहे होय कृपा उद्गार।।

हे भगवान विश्वकर्मा! आप हमें दिव्य ज्योति दें, दिव्य अंश दें और दिव्य ज्ञान का प्रकाश दें। उस दिव्य दृष्टि से हम आपके कार्य को देख सकें। यही मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप हम पर कृपा करें और आपका यश हर जगह फैला हुआ है।

।। छन्द ।।

जे नर सप्रेम विराग श्रद्धा सहित पढ़िहहि सुनि है।

विश्वास करि चालीसा चौपाई मनन करि गुनि है।।

भव फंद विघ्नों से उसे प्रभु विश्वकर्मा दूर कर।

मोक्ष सुख देंगे अवश्य ही कष्ट विपदा चूर कर।।

जो भी नर नारी पूरे प्रेम व भक्तिभाव के साथ इस विश्वकर्मा चालीसा का पाठ करता है और मन से इसकी चौपइयां पढ़ता है, उसके सभी दुःख व संकट समाप्त हो जाते हैं और भगवान विश्वकर्मा उसे मोक्ष प्रदान करते हैं

विश्वकर्मा जी की चालीसा – द्वितीय (Vishwakarma Ji Ki Chalisa)

भगवान विश्वकर्मा जी की चालीसा एक नहीं बल्कि दो-दो है। इसमें से जो पहले हमने विश्वकर्मा चालीसा पढ़ी, वह मुख्य विश्वकर्मा चालीसा है जबकि एक और चालीसा है जो कई भक्तों के द्वारा पढ़ी जाती है। आइये हम उस विश्वकर्मा चालीसा का पाठ भी कर लेते हैं।

।। दोहा ।।

श्री विश्वकर्म प्रभु वन्दऊं, चरणकमल धरिध्यान।

श्री, शुभ, बल अरु शिल्पगुण, दीजै दया निधान।।

।। चौपाई ।।

जय श्री विश्वकर्म भगवाना, जय विश्वेश्वर कृपा निधाना।

शिल्पाचार्य परम उपकारी, भुवना-पुत्र नाम छविकारी।

अष्टमबसु प्रभास-सुत नागर, शिल्पज्ञान जग कियउ उजागर।

अद्‍भुत सकल सृष्टि के कर्ता, सत्य ज्ञान श्रुति जगहित धर्ता।

अतुल तेज तुम्हतो जग माहीं, कोई विश्व मंह जानत नाही।

विश्व सृष्टिकर्ता विश्वेशा, अद्‍भुत वरण विराज सुवेशा।

एकानन पंचानन राजे, द्विभुज चतुर्भुज दशभुज साजे।

चक्र सुदर्शन धारण कीन्हे, वारि कमण्डल वर कर लीन्हे।

शिल्पशास्त्र अरु शंख अनूपा, सोहत सूत्र माप अनुरूपा।

धनुष बाण अरु त्रिशूल सोहे, नौवें हाथ कमल मन मोहे।

दसवां हस्त बरद जग हेतु, अति भव सिंधु मांहि वर सेतु।

सूरज तेज हरण तुम कियऊ, अस्त्र शस्त्र जिससे निरमयऊ।

चक्र शक्ति अरू त्रिशूल एका, दण्ड पालकी शस्त्र अनेका।

विष्णुहिं चक्र शूल शंकरहीं, अजहिं शक्ति दण्ड यमराजहीं।

इंद्रहिं वज्र व वरूणहिं पाशा, तुम सबकी पूरण की आशा।

भांति-भांति के अस्त्र रचाए, सतपथ को प्रभु सदा बचाए।

अमृत घट के तुम निर्माता, साधु संत भक्तन सुर त्राता।

लौह काष्ट ताम्र पाषाणा, स्वर्ण शिल्प के परम सजाना।

विद्युत अग्नि पवन भू वारी, इनसे अद्भुत काज सवारी।

खान-पान हित भाजन नाना, भवन विभिषत विविध विधाना।

विविध व्सत हित यत्रं अपारा, विरचेहु तुम समस्त संसारा।

द्रव्य सुगंधित सुमन अनेका, विविध महाऔषधि सविवेका।

शंभु विरंचि विष्णु सुरपाला, वरुण कुबेर अग्नि यमकाला।

तुम्हरे ढिग सब मिलकर गयऊ, करि प्रमाण पुनि अस्तुति ठयऊ।

भे आतुर प्रभु लखि सुर-शोका, कियउ काज सब भये अशोका।

अद्भुत रचे यान मनहारी, जल-थल-गगन मांहि-समचारी।

शिव अरु विश्वकर्म प्रभु मांही, विज्ञान कह अंतर नाही।

बरनै कौन स्वरूप तुम्हारा, सकल सृष्टि है तव विस्तारा।

रचेत विश्व हित त्रिविध शरीरा, तुम बिन हरै कौन भव हारी।

मंगल-मूल भगत भय हारी, शोक रहित त्रैलोक विहारी।

चारो युग परताप तुम्हारा, अहै प्रसिद्ध विश्व उजियारा।

ऋद्धि सिद्धि के तुम वर दाता, वर विज्ञान वेद के ज्ञाता।

मनु मय त्वष्टा शिल्पी तक्षा, सबकी नित करतें हैं रक्षा।

पंच पुत्र नित जग हित धर्मा, हवै निष्काम करै निज कर्मा।

प्रभु तुम सम कृपाल नहिं कोई, विपदा हरै जगत मंह जोई।

जै जै जै भौवन विश्वकर्मा, करहु कृपा गुरुदेव सुधर्मा।

इक सौ आठ जाप कर जोई, छीजै विपत्ति महासुख होई।

पढहि जो विश्वकर्म चालीसा, होय सिद्ध साक्षी गौरीशा।

विश्व विश्वकर्मा प्रभु मेरे, हो प्रसन्न हम बालक तेरे।

मैं हूं सदा उमापति चेरा, सदा करो प्रभु मन मंह डेरा।

।। दोहा ।।

करहु कृपा शंकर सरिस, विश्वकर्मा शिवरूप।

श्री शुभदा रचना सहित, ह्रदय बसहु सूर भूप।।

विश्वकर्मा चालीसा का महत्व (Vishwakarma Chalisa Ka Mahatva)

अब आपको इसी के साथ यह भी जान लेना चाहिए कि भगवान विश्वकर्मा जी की चालीसा का क्या महत्व होता है। तो आप यह तो जान ही गए होंगे कि भगवान विश्वकर्मा जी के द्वारा ही सृष्टि की लगभग सभी श्रेष्ठतम सरंचनाओं का निर्माण कार्य किया गया है जिनमे से कुछ हम आज भी देखते हैं। तो उन्हीं विश्वकर्मा जी की चालीसा के माध्यम से हमें यह पता चलता है कि उनका किन किन चीज़ों में योगदान रहा है तथा किस तरह से उन्होंने इतिहास को महिमामंडित करने का कार्य किया है।

प्राचीन समय में जो भी बड़े स्तर पर या अद्भुत निर्माण कार्य होता था, वह भगवान विश्वकर्मा जी के हाथों से ही होता था। इस तरह से देखा जाए तो वे उस समय के इंजीनियर व आर्किटेक्ट ही थे जिन्हें वास्तुकला की बहुत अच्छे से पहचान थी। तो इस विश्वकर्मा चालीसा के माध्यम से हमें भगवान विश्वकर्मा की महत्ता और उनके द्वारा निर्मित सरंचनाओं के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है।

विश्वकर्मा चालीसा के लाभ (Vishwakarma Chalisa Benefits In Hindi)

यदि आप प्रतिदिन भगवान विश्वकर्मा चालीसा का पाठ करते हैं तो आपके अंदर सरंचनाओं को बेहतर तरीके से देखने और उन्हें समझने की शक्ति प्राप्त होती है। अभी तक आप सरंचनाओं को जिस दृष्टि से देखते आ रहे थे, वही विश्वकर्मा चालीसा के निरंतर पाठ के बाद आपको उनकी वास्तुकला पहचानने की दिव्य दृष्टि तक प्राप्त हो सकती है।

कहने का तात्पर्य यह हुआ कि भगवान विश्वकर्मा स्वयं वास्तुकला के भगवान हैं और जो व्यक्ति उनकी सच्चे मन से भक्ति करता है या उनकी चालीसा का पाठ करता है तो उस पर भी भगवान विश्वकर्मा की कृपा दृष्टि होती है। ऐसा व्यक्ति आगे चल कर इंजीनियरिंग या आर्किटेक्चर में भी बहुत प्रगति करता है या उसमे सफल होता है।

विश्वकर्मा चालीसा से संबंधित प्रशोत्तर

प्रश्न: विश्वकर्मा जी का मंत्र क्या है?

उत्तर: ॐ आधार शक्तपे नम:, ओम कूमयि नम:, ओम अनन्तम नम:, पृथिव्यै नम:।

प्रश्न: विश्वकर्मा जी किसका अवतार है?

उत्तर: भगवान विश्वकर्मा भगवान ब्रह्मा के ही एक अंश हैं या उनके कुल से हैं जिनके माता-पिता का नाम वास्तुदेव व अंगीरसी है।

प्रश्न: विश्वकर्मा कैसे लिख आएगा?

उत्तर: यदि आपको विश्वकर्मा लिखना है तो उसकी स्पेल्लिंग Vishwakarma होगी।

प्रश्न: विश्वकर्मा की कितनी पत्नी है?

उत्तर: भगवान विश्वकर्मा जी की एक पत्नी है जिनका नाम घृताची है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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