धर्म क्या है? अधर्म क्या है? जाने धर्म अधर्म क्या है

Dharm Kya Hai

हम सभी धर्म के अनुसार अपना जीवन जीते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि धर्म क्या है (Dharm Kya Hai) और इसकी उत्पत्ति क्यों हुई? क्या आप जानते हैं कि सनातन संस्कृति या हिंदू धर्म को सबसे प्राचीन धर्म क्यों माना जाता है? क्यों हिंदू धर्म विश्व के सभी धर्म के लोगों, नास्तिकों, जीवों, पेड़-पौधों, प्रकृति इत्यादि को अपनाने की बात करता है?

आजकल कुछ लोग धर्म का विरोध करते हैं तथा स्वयं को नास्तिक कहते हैं। इसलिए आज हम आपको हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार बताएंगे कि धर्म की स्थापना क्यों की गई थी और अधर्म क्या है (Adharm Kya Hai)। इससे आप धर्म तथा अधर्म के बीच में अंतर को समझ पाएंगे। साथ ही इस विश्व को धर्म की आवश्यकता क्यों है, यह भी समझ पाएंगे। चलिए जानते हैं।

Dharm Kya Hai | धर्म क्या है?

धर्म की व्याख्या को जानने से पहले हमारा मत्स्य न्याय को जानना आवश्यक है जिसे प्राकृतिक न्याय या जंगल का न्याय भी कहा जाता है। मत्स्य न्याय के अनुसार एक बड़ी मछली छोटी मछली को अपना आहार बनाती है तथा अपना भरण-पोषण करती है। ठीक उसी प्रकार हमारी पृथ्वी पर भी यही नियम प्राकृतिक रूप से लागू होता है।

हमारी पृथ्वी पर सब कुछ वनों से ही शुरू हुआ था व उसका अंत भी उसी में ही होगा। इस वन रुपी जीवन में कोई नियम, कानून, व्यवस्था नहीं होते तथा वहाँ सब कुछ अनियंत्रित होता है। इसमें एक सशक्त, स्वस्थ तथा होशियार प्राणी ही अपने भोजन तक पहुँच सकता है तथा उसे खाकर जीवित रह सकता है। किंतु दूसरी ओर एक निर्बल, असहाय तथा कमजोर प्राणी भोजन के अभाव में या तो स्वयं मर जाता है या किसी शक्तिशाली प्राणी का आहार बन जाता है।

हिंदू वेदों तथा शास्त्रों में इसे ही मत्स्य न्याय कहा गया है जिसमें शक्तिशाली जीवित रहता है तथा निर्बल मारा जाता है। इसी मत्स्य न्याय को समाप्त करने के लिए धर्म की स्थापना की गई थी।

  • धर्म की परिभाषा

अब जानते हैं कि धर्म क्या है। इस संपूर्ण सृष्टि में ईश्वर ने केवल मानव को वह शक्ति दी है जो किसी अन्य प्राणी में नहीं और वह है असीमित बुद्धि तथा ज्ञान अर्जित करने की शक्ति। एक मनुष्य अपनी क्षमता तथा कुशलता से कुछ भी कर सकता है। मानवों के द्वारा जंगलों को काटकर खेत, बस्तियां, नगर इत्यादि बनाए गए व वहाँ एक शासन व्यवस्था का निर्माण किया गया।

इस शासन प्रणाली में नियम, कानून, अधिकार, कर्तव्य इत्यादि निर्धारित किए गए तथा सभी को उसके अनुसार चलाने की एक व्यवस्था बनाई गई। इसका मुखिया एक सरदार, राजा, महाराजा इत्यादि को बनाया गया जिसका उत्तरदायित्व होता था इस शासन व्यवस्था का पालन करवाना।

इस शासन व्यवस्था के अनुसार सभी के लिए नियम निर्धारित थे जिसके द्वारा कमजोर व असहाय प्राणियों की रक्षा की जाती थी तथा सभी को न्याय दिया जाता था। इसी को धर्म की संज्ञा दी गई जिसका पालन करवाने का उत्तरदायित्व राजा का होता था। राजा को यह विशेषाधिकार प्राप्त थे कि वह अनुचित कार्य करने वाले प्राणियों को दंड दे तथा सभी के लिया न्याय सुनिश्चित करे।

  • Adharm Kya Hai | अधर्म क्या है?

अधर्म एक तरह से मत्स्य न्याय का ही रूप है लेकिन यह उससे थोड़ा भिन्न है क्योंकि मत्स्य न्याय को हम अधर्म की संज्ञा नहीं दे सकते। अधर्म वह होता है जो धर्म के विपरीत हो व धर्म मत्स्य न्याय के विपरीत नहीं अपितु उससे हटकर एक अलग न्याय व्यवस्था मानी जाती है।

जब मनुष्य के द्वारा नगरों का निर्माण किया गया तो वहाँ धर्म का पालन करवाना आवश्यक होता था। लेकिन जब नगरों में भी राजा या नगरवासियों के द्वारा मत्स्य न्याय के नियमों पर चला जाए, जिसमें एक राजा के द्वारा निर्बल प्राणियों के अधिकारों का शोषण किया जाए तथा शक्तिशाली प्राणियों को सरंक्षण दिया जाए तो इसे अधर्म की संज्ञा दी गई।

एक नगर या बस्ती को बसाना धर्म की स्थापना के उद्देश्य से किया जाता था किंतु यदि उसमें भी जंगल के नियम लागू हो जाए तो इसे अधर्म कहा जाता था। इसे हम हमारे महाकाव्य का उदाहरण लेकर समझ सकते हैं।

धर्म अधर्म क्या है?

हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के मुख्यतया दो अवतार हुए जिन्हें श्रीराम तथा श्रीकृष्ण की संज्ञा दी गई। श्रीराम भी एक नगरवासी थे तथा रावण भी लेकिन रावण नगरवासी होने के पश्चात भी बलपूर्वक अपना कार्य करवाता था। उसके द्वारा निर्बल प्राणियों की हत्या की जाती तथा उनका शोषण किया जाता जो कि अधर्म है। इसी प्रकार दुर्योधन भी चालाकी से दूसरों का शोषण करता। रावण तथा दुर्योधन के द्वारा केवल स्वयं के हितों की रक्षा की जाती तथा दूसरों की उन्हें कोई परवाह नहीं थी। यह अधर्म था तथा राजा के कर्तव्यों के बिल्कुल विपरीत भी।

इसलिए ही धर्म की पुनः स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने श्रीराम तथा श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया तथा रावण व दुर्योधन रुपी अधर्मियों का नाश कर धर्म की पुनः स्थापना की जहाँ सभी प्राणियों के अधिकारों की रक्षा की जाती थी। इस तरह से आपने धर्म क्या है (Dharm Kya Hai) और अधर्म उससे किस तरह से भिन्न होता है, उसके बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली है।

धर्म अधर्म से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: अधर्म से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: धर्म के अनुसार मनुष्य के लिए नियम, नीतियाँ, सिद्धांत इत्यादि बनाए गए होते हैं यदि कोई व्यक्ति धर्म के बनाए इन नियमों के विपरीत कार्य करता है तो उसे ही अधर्म की संज्ञा दी गई है

प्रश्न: धर्म और अधर्म से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: धर्म का अर्थ होता है वनों के अलावा जो भूमि मनुष्य के द्वारा बसाई गई है, वहाँ नियमानुसार कार्य करना शक्तिशाली मनुष्य के द्वारा दुर्बल मनुष्य की रक्षा व सहायता करना जबकि अधर्म इसका विपरीत हो जाता है

प्रश्न: धर्म का सही अर्थ क्या है?

उत्तर: धर्म का सही अर्थ होता है मनुष्य के द्वारा बसाया गया एक गाँव, नगर या राज्य में नियमों व सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना इसके तहत सभी मनुष्यों को एकजुट होकर एक-दूसरे की सहायता करना तथा उस भूभाग में रहने वाले पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों व अन्य जीव-जंतुओं की भी सहायता करना होता है।

प्रश्न: धर्म और अधर्म का अर्थ क्या है?

उत्तर: धर्म का अर्थ होता है एक ऐसे समाज का निर्माण करना जहाँ शक्तिशाली मनुष्य के द्वारा दुर्बल मनुष्य की सहायता की जाती है, सभी को साथ लेकर चला जाता है और सभी के कल्याण का कार्य किया जाता है जबकि अधर्म का अर्थ होता है दूसरों का शोषण करना या उन पर अत्याचार करना

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लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझ से किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

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