सनातन/ हिंदू धर्म के 16 संस्कार: सोलह संस्कारों के बारे में संपूर्ण जानकारी

16 Sanskar In Hindu Dharma

#3. सीमंतोन्नयन संस्कार (Simantonnayana Sanskar In Hindi)

यह संस्कार गर्भाधान के सातवें से नौवें महीने में किया जाता है। गर्भावस्था की तीसरी तिमाही तक एक शिशु का अपनी माँ के गर्भ में इतना विकास हो चुका होता हैं कि वह सुख-दुःख की अनुभूति कर सकता है, बाहरी आवाज़ों को समझ सकता है तथा उन पर अपनी प्रतिक्रिया भी दे सकता है। इस अवस्था तक उसमें बुद्धि का भी विकास हो चुका होता है। इसलिये इस संस्कार के द्वारा उस महिला को धार्मिक ग्रंथों, कथाओं, सुविचारों का अध्ययन करने को कहा जाता है जिसे उसे इस समय ग्रहण करना चाहिए। इसके द्वारा वह गर्भ में ही अपने शिशु को अच्छे संस्कार दे सकती हैं। इसका एक उदाहरण अभिमन्यु के द्वारा अपनी माँ सुभद्रा के गर्भ में ही चक्रव्यूह को भेदने का ज्ञान लेने का मिलता है।

#4. जातकर्म संस्कार (Jatakarma Sanskar In Hindi)

यह संस्कार शिशु के जन्म लेने के तुरंत बाद किया जाता है। चूँकि एक शिशु नौ माह तक अपनी माँ के गर्भ में रहता है तथा जन्म लेने के पश्चात उसकी गर्भ नलिका काटकर माँ से अलग कर दिया जाता है। अब उसे स्वतंत्र रूप से वायु में साँस लेनी होती है तथा दूध पीना होता है। इसलिये इस संस्कार के माध्यम से उसके मुहं में ऊँगली डालकर बलगम को निकाला जाता है ताकि वह अच्छे से साँस ले सके। इसी के साथ उसे हाथ की तीसरी ऊँगली या सोने की चम्मच से शहद घी चटाया जाता हैं जिससे उसके वात, पित्त के दोष दूर होते है। माँ के द्वारा अपने शिशु को प्रथम बार दूध पिलाना भी इसमें सम्मिलित है।

#5. नामकरण संस्कार (Namkaran Sanskar In Hindi)

यह सामान्यतया शिशु के जन्म के दस दिन के पश्चात किया जाता हैं जिसमे घर में हवन यज्ञ का आयोजन किया जाता है। इस संस्कार के माध्यम से उसके जन्म लेने के समय, तिथि इत्यादि को ध्यान में रखकर उसकी कुंडली का निर्माण किया जाता है तथा उसी के अनुसार उसका नामकरण किया जाता है। यह नाम उसके गुणों के आधार पर किया जाता है जो जीवनभर उसकी पहचान बना रहता है। एक मनुष्य के अंदर भेद स्थापित करने तथा उसकी पहचान बनाने के लिए नामकरण की अत्यधिक आवश्यकता थी। इसलिये इस संस्कार के माध्यम से उसका उचित नाम रखा जाता है।

#6. निष्क्रमण संस्कार (Nishkraman Sanskar In Hindi)

शिशु को उसके जन्म से लेकर चार मास तक घर में रखा जाता है तथा कही बाहर नही निकाला जाता है। इस समय तक वह अत्यधिक नाजुक होता है तथा बाहरी वायु, कणों और वातावरण के संपर्क में आकर उसको संक्रमण होने की आशंका बनी रहती है। इसलिये जब वह चार मास का हो जाता हैं तब निष्क्रमण संस्कार के माध्यम से प्रथम बार उसे घर से बाहर निकाला जाता है तथा सूर्य, जल व वायु देव के संपर्क में लाकर उनसे अपने शिशु के कल्याण की प्रार्थना की जाती है। इस संस्कार के पश्चात एक शिशु बाहरी दुनिया के संपर्क में रहने लायक बन जाता है।

#7. अन्नप्राशन संस्कार (Annaprashan Sanskar In Hindi)

जन्म से लेकर छह माह तक एक शिशु पूर्ण रूप से अपनी माँ के दूध पर ही निर्भर होता है तथा इसके अलावा उसे कुछ भी खाने पीने को नही दिया जाता है। छह माह का होने के पश्चात उसे धीरे-धीरे माँ के दूध के अलावा अन्य भोजन तरल या अर्धठोस रूप में देने शुरू कर दिए जाते हैं जैसे कि दाल या चावल का पानी, दलिया इत्यादि। शिशु को माँ के दूध के अलावा प्रथम बार भोजन देने की प्रक्रिया को ही अन्नप्राशन संस्कार कहा गया है। यह संस्कार इसलिये भी आवश्यक होता हैं क्योंकि माँ के स्तनों में भी दूध कम होने लगता है। इसलिये धीरे-धीरे उसे माँ के स्तन से दूर किया जाता है जिससे कि वह भोजन करने की आदत डाल सके। इसलिये यह संस्कार शिशु व माँ दोनों के स्वास्थ्य के लिए उचित रहता है।

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

3 Comments

  1. राम राम जी….
    मैं इन सभी 16 संस्कारों को खोज रहा था, जिनके बारे में मुझे जानना चाहिए था। आपका बहुत बहुत धन्यवाद…सनातन धर्म बहुत महान है इसमें हर एक विषय को अच्छे से बताया जाता है…राम राम जी

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