सनातन/ हिंदू धर्म के 16 संस्कार: सोलह संस्कारों के बारे में संपूर्ण जानकारी

16 Sanskar In Hindu Dharma

#8. मुंडन / चूड़ाकर्म संस्कार (Mundan Sanskar In Hindi)

यह संस्कार शिशु के जन्म के पहले या तीसरे वर्ष में किया जाता है। इसमें उसके अपनी माँ के गर्भ से मिले सिर के बालों को हटा दिया जाता है। शिशु को जन्म के समय माँ के गर्भ से कई प्रकार की अशुद्धियाँ मिलती है तथा इस संस्कार के द्वारा उन अशुद्धियों को पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया जाता है। जो केश शिशु को जन्म से मिले होते है उनमे कई तरह के जीवाणु तथा विषाणु व्याप्त होते है किंतु एक वर्ष से पहले उसका मुंडन नही किया जा सकता क्योंकि उसकी खोपड़ी अत्यधिक नाजुक होती है। इसलिये उसके जन्म के एक वर्ष के पश्चात इस संस्कार को करना उचित माना गया है।

#9. कर्णभेद संस्कार (Karn Bhed Sanskar In Hindi)

यह संस्कार प्राचीन समय में बालक व बालिका में समान रूप से किया जाता था किंतु वर्तमान में अधिकतर बालिकाओं में ही यह संस्कार किया जाता है। यह संस्कार उस बालक की विद्या को आरंभ करने से पहले किया जाता है। इस संस्कार को उसके जन्म के तीसरे वर्ष में करना होता हैं जिसमें उसके कान के उचित स्थान पर भेदन करके कुंडल/ बालि इत्यादि पहनाई जाती है। इस संस्कार को करने से उसके मस्तिष्क की ओर जाने वाली नसों पर दबाव पड़ता हैं जिससे उसके रक्त संचार, सीखने की शक्ति, याददाश्त, मानसिक शक्ति इत्यादि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

#10. विद्यारंभ संस्कार (Vidyarambh Sanskar In Hindi)

यह संस्कार एक बालक के जन्म के पांचवें से आठवें वर्ष में शुरू किया जाता है। एक समाज में विद्या को ग्रहण करना अति-आवश्यक होता है तभी एक सुशिक्षित तथा संस्कारी समाज का निर्माण संभव है अन्यथा चारो और अराजकता व्याप्त होने का डर रहता है। किसी भी शिक्षा को ग्रहण करने के लिए पहले एक बालक को अक्षर तथा भाषा का ज्ञान करवाना अति-आवश्यक होता है। इसलिये इस संस्कार के माध्यम से उसे भाषा, अक्षर, लेखन तथा शुरूआती ज्ञान दिया जाता है।

#11. उपनयन/ यज्ञोपवित संस्कार (Upnayan Sanskar In Hindi)

यह संस्कार एक बालक के आठवें से बारहवें वर्ष के अन्तराल में किया जाता है। इस संस्कार के माध्यम से एक गुरु उस बालक की परीक्षा लेते है तथा उसे जनेऊ धारण करवा कर कठिन प्रतिज्ञा दिलवाई जाती है। इस संस्कार को करने के पश्चात उस बालक पर पच्चीस वर्ष की आयु तक उसके माता-पिता का अधिकार समाप्त हो जाता है तथा उसे ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए गुरुकुल में रहना होता है। एक तरह से गुरुकुल में प्रवेश पाने के लिए यह संस्कार किया जाता है जिसमें एक गुरु उसे अपने शिष्य के रूप में स्वीकार करते हैं।

#12. वेदारंभ संस्कार (Ved Aarambh Sanskar In Hindi)

यज्ञोपवित संस्कार के तुरंत बाद वेदारंभ संस्कार शुरू हो जाता है जिसमें वह बालक अपने गुरु के आश्रम में रहकर ब्रह्मचर्य का पूर्ण रूप से पालन करते हुए वेदों का अध्ययन करता है। इसमें उसे भूगोल, ज्योतिष, चिकित्सा, धर्म, संस्कृति, नियम, राजनीति इत्यादि की शिक्षा दी जाती है। इसी के साथ उसे आश्रम की सफाई, भिक्षा मांगना, गुरु की सेवा करना, भूमि पर सोना इत्यादि कठिन नियमों का पालन करना होता है।

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

3 Comments

  1. राम राम जी….
    मैं इन सभी 16 संस्कारों को खोज रहा था, जिनके बारे में मुझे जानना चाहिए था। आपका बहुत बहुत धन्यवाद…सनातन धर्म बहुत महान है इसमें हर एक विषय को अच्छे से बताया जाता है…राम राम जी

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