मां महागौरी की कथा क्या है? जाने माँ महागौरी पूजा विधि

महागौरी माता (Mahagauri Mata)

नवरात्र के आठवें दिन नवदुर्गा के अष्टम रूप महागौरी माता (Mahagauri Mata) की पूजा करने का विधान है। अब मातारानी के इस रूप की आठवें दिन पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि मात्र आठ वर्ष की आयु में माँ ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करनी शुरू कर दी थी। माँ महागौरी का रंग अत्यंत चमकीला व श्वेत है। इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है।

मां महागौरी मंत्र (Mahagauri Mantra) का जाप करने से भक्तों के पाप धुल जाते हैं, चित्त शांत होता है और मन आनंदित हो उठता है। ऐसे में आज हम आपको महागौरी मंत्र समेत महागौरी माता की कथा के बारे में भी बताएंगे। आइए माँ दुर्गा के रूप महागौरी के बारे में जान लेते हैं।

Mahagauri Mata | महागौरी माता की कथा

भगवान शिव की पहली पत्नी सती ने यज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर आत्म-दाह कर लिया था। इसके कई वर्षों के पश्चात उनका पुनर्जन्म हिमालय पर्वत की पुत्री के रूप में हुआ। पर्वत की पुत्री होने के कारण उनका नाम पार्वती रखा गया। चूँकि भगवान शिव माता सती की मृत्यु के पश्चात ही लंबी साधना में चले गए थे, ऐसे में उन्हें पुनः पति रूप में प्राप्त करना इतना सरल नहीं था। इसके लिए उन्हें कई वर्षों तक तपस्या करनी थी।

इसलिए जब माँ पार्वती केवल आठ वर्ष की थी तभी से उन्होंने भगवान शिवजी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या शुरू कर दी थी। यह तपस्या कई वर्षों तक चलती रही तथा इस कारण माँ के शरीर का रंग काला पड़ गया था। अंत में भगवान शिव माँ पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी पत्नी रूप में अपना लिया।

तब भगवान शिव ने माँ के काले तथा मुरझा चुके शरीर पर गंगा जल का छिड़काव किया। गंगाजल के प्रभाव से माँ का शरीर विद्युत के समान कांतिमान व चमकदार हो गया। उनका शरीर एकदम से इतना गौरा हो गया कि उसमें से सूर्य के समान प्रकाश निकलने लगा। इसके बाद से माता पार्वती का एक नाम महागौरी पड़ा था।

मां महागौरी की दूसरी कथा

यह कथा तब की है जब माँ गौरी तपस्या कर रही थी। उस समय एक शेर भूख के मारे इधर-उधर विचरण कर रहा था। तब उसे दूर Maa Mahagauri तपस्या करते हुए दिखाई दी तो वह उनसे भोजन मिलने की आशा में वहाँ चला आया। माँ को तपस्या में लीन देखकर उस शेर ने उन्हें बीच में उठाना उचित नहीं समझा तथा वहीं बैठकर उनकी तपस्या के समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगा।

जब महागौरी की तपस्या समाप्त हुई तब उन्होंने अपने पास बैठे शेर को देखा। भूख के मारे उसका शरीर जीर्ण पड़ गया था तो माँ को उस पर दया आ गई। इस कारण माँ ने वृषभ के साथ-साथ उस शेर को भी अपनी सवारी के रूप में स्वीकार किया तथा उसे बहुत सारा भोजन खाने को दिया। तब से महागौरी की सवारी वृषभ के साथ-साथ शेर भी है।

मां महागौरी का स्वरूप

माँ का स्वरुप एक दम श्वेत है तथा वे सभी वस्त्र तथा आभूषण भी श्वेत वर्ण के धारण किए हुए है। माँ की चार भुजाएं हैं जिनमें से दाईं ओर की ऊपर वाली भुजा वर मुद्रा में तो नीचे वाली भुजा में माँ ने त्रिशूल धारण किया हुआ है। बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में डमरू तथा नीचे वाली भुजा अभय मुद्रा में है। माँ का वाहन वृषभ है तथा वे इसी पर सवार रहती हैं। माँ का रंग एक दम श्वेत होने के कारण इनका नाम महागौरी पड़ा था।

Mahagauri Mantra | मां महागौरी मंत्र

महागौरी माता के कई मंत्र हैं जिनका जाप आप उनकी पूजा करते समय कर सकते हैं। महागौरी के मंत्रों में बीज मंत्र, ध्यान मंत्र, उपासना मंत्र इत्यादि आते हैं। इन मंत्रों के माध्यम से महागौरी को प्रसन्न किया जा सकता है। आइए सबसे पहले महागौरी उपासना मंत्र को पढ़ लेते हैं।

श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥

  • महागौरी बीज मंत्र

श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नमः।

  • महागौरी का ध्यान मंत्र

सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते॥

  • महागौरी स्तुति

सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

भावार्थ: हे माँ! सर्वत्र विराजमान व माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख व समृद्धि प्रदान करें।

इस तरह से आपने मां महागौरी मंत्र (Mahagauri Mantra) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। यदि आप इन मंत्रों का जाप नवरात्र के आठवें दिन करते हैं तो मातारानी की विशेष कृपा आप पर बरसती है।

माँ महागौरी पूजा विधि

इस दिन कन्या पूजन का भी महत्व है। महागौरी की पूजा करने के लिए प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें। उसके पश्चात एक चौकी पर श्वेत वस्त्र बिछाकर माँ महागौरी की प्रतिमा या यंत्र स्थापित करें। माँ की हल्दी, कुमकुम, चंदन, धूप इत्यादि से पूजा करें तथा ऊपर दिए गए मंत्रों का जाप करें। माँ को श्वेत पुष्प अर्पित करें तथा मीठे का भोग लगाएं।

इस दिन Mahagauri Mata की पूजा के साथ-साथ कन्या पूजन का भी विधान है। कुछ लोग अष्टमी के दिन कन्या पूजन करते हैं तो कुछ नवमी के दिन। यह आप अपनी सुविधा के अनुसार देख सकते हैं। कन्या पूजन के लिए नौ कन्याओं का होना आवश्यक है जिनकी आयु दो से दस वर्ष के बीच हो।

महागौरी की महिमा

Maa Mahagauri की कृपा से विवाहित स्त्रियों को हमेशा सुहागन बनी रहने का आशीर्वाद मिलता है। इसके लिए विवाहित स्त्रियों को खासतौर पर महागौरी की मूर्ति पर या उनके मंदिर में जाकर उन्हें चुनरी चढ़ानी चाहिए। वहीं जिन कन्याओं का विवाह नहीं हुआ है, उनके विवाह के योग भी महागौरी के आशीर्वाद से ही बनते हैं।

रामायण में माता सीता ने श्रीराम को पति रूप में प्राप्त करने के लिए महागौरी की ही पूजा की थी। वहीं द्वापर युग में माता राधा ने महागौरी की पूजा की थी और उसके फलस्वरूप ही श्रीकृष्ण ने उनके साथ रासलीला रचाई थी। पुरुषों को Mahagauri Mata की पूजा करने से सुख की प्राप्ति होती है तथा उनके जीवन से कष्ट दूर होते हैं।

महागौरी माता से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: महा गौरी की कहानी क्या है?

उत्तर: भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता पार्वती ने कठोर तपस्या की थी इस कारण उनका रंग काला पड़ गया था इसके बाद जैसे ही उन्होंने गंगाजल से स्नान किया तो उनका रंग एकदम श्वेत हो गया इसलिए उन्हें महागौरी कहा जाता है

प्रश्न: महागौरी नाम क्यों पड़ा?

उत्तर: माता पार्वती को जब गंगाजल से स्नान करवाया गया था तब उनका वर्ण एकदम श्वेत हो गया उनके अंदर से विद्युत के समान प्रकाश निकल रहा था इसी कारण उनका एक नाम महागौरी रखा गया था

प्रश्न: मां महागौरी किसका प्रतीक है?

उत्तर: मां महागौरी सुहागिन स्त्रियों के सुहाग की रक्षा करने और अविवाहित स्त्रियों को उचित वर प्राप्ति का प्रतीक मानी जाती है ऐसे में विवाह की इच्छा रखने वाली और विवाहित महिला महागौरी की पूजा अवश्य करती हैं।

प्रश्न: मां महागौरी को कौन सा रंग पसंद है?

उत्तर: मां महागौरी को श्वेत/ सफेद रंग पसंद है इसलिए उनकी पूजा करते समय श्वेत रंग के वस्त्र पहने जाते हैं, श्वेत पुष्प अर्पित किए जाते हैं और मिठाई भी श्वेत रंग की ही लाई जाती है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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