क्या आप जानते हैं कि जय विजय कौन थे (Jay Vijay Kaun The) और उन्हें क्या श्राप मिला था? यह तो हम सभी जानते हैं कि भगवान विष्णु माँ लक्ष्मी के साथ वैकुण्ठ धाम में क्षीर सागर पर अपने शेषनाग पर विराजमान होते है। यही उनका निवास स्थान होता है तथा इसके द्वारपाल जय-विजय नाम के दो देवता होते है। उनके ऊपर भगवान विष्णु के धाम के प्रहरी का भार होता है, इसलिये किसी को भी भगवान विष्णु से मिलने से पहले उनकी आज्ञा लेना आवश्यक होता है।
अपने इसी काम के कारण जय-विजय को श्राप मिला था। अब यहाँ प्रश्न यह उठा है कि जय विजय को किसने श्राप दिया था और इसके पीछे क्या कारण था!! इसी श्राप के फलस्वरूप ही जय विजय के तीन जन्म राक्षस कुल में हुए थे जिनका वध स्वयं भगवान विष्णु ने किया था। ऐसे में आज हम आपको जय विजय के तीन अवतार (Jay Vijay Ke 3 Avatar) और श्राप से जुड़ी कथा के बारे में बताएँगे।
Jay Vijay Kaun The | जय विजय कौन थे?
भगवान विष्णु का वास वैकुण्ठ लोक में है। वहां क्षीर सागर में वे अपने शेषनाग पर विराजमान रहते हैं। उनके साथ माँ लक्ष्मी भी वहां होती है। जिस प्रकार भगवान शिव कैलाश पर्वत पर और भगवान ब्रह्मा ब्रह्म लोक में रहते हैं, ठीक उसी तरह भगवान विष्णु वैकुण्ठ धाम में रहते हैं। अब इस धाम की सुरक्षा का मुख्य प्रभार जय विजय के ही पास था। वे वैकुण्ठ धाम के मुख्य द्वारपाल था जिनकी अनुमति के बिना कोई भी अंदर परवश नहीं कर सकता था।
एक बार की बात है जब भगवान ब्रह्मा के चारों मानस पुत्र भगवान विष्णु से मिलने के लिए निकल पड़े। उनके नाम सनक, सनंदन, सनातन व सनतकुमार था। यह तीनों भगवान ब्रह्मा के विचारों से उत्पन्न हुए थे जिन्हें हम चार वेद भी कह सकते है। अपने तपोबल के कारण ये चारों आयु में बड़े होने के पश्चात भी युवा दिखते थे।
जब वे चारों भगवान विष्णु से मिलने उनके धाम वैकुण्ठ पहुंचे तब उनकी भेंट जय-विजय से हुई। उन्होंने जय विजय से अंदर जाने का आग्रह किया लेकिन अपने अहंकार में चूर जय-विजय ने उन्हें अंदर नही जाने दिया। उन्होंने ब्रह्मा जी के चारों पुत्रों से कहा कि इस समय भगवान विष्णु विश्राम कर रहे है तथा अभी वे किसी से नही मिल सकते। इसलिये वे उनसे भेंट करने के लिए किसी और समय आये।
जय विजय को किसने श्राप दिया?
उनके इस व्यवहार से ब्रह्मा के चारों पुत्र रुष्ट हो गए तथा उनसे कहा कि श्रीहरि का कोई भी भक्त उनसे कभी भी मिल सकता है। अपने भक्तों के लिए भगवान विष्णु कभी व्यस्त नही होते। तुम लोगों ने अहंकार के बल पर हमें रोकने का प्रयास किया है। इसलिये हम तुम्हें श्राप देते हैं कि तुम इस लोक की बजाये पृथ्वी लोक (मृत्यु लोक) में जन्म लोगे तथा एक सामान्य मनुष्य की भांति जीवन व्यतीत करोगे।
ब्रह्मा जी के चारों पुत्रों से मिले श्राप से जय-विजय में भय व्याप्त हो गया। उसी समय भगवान विष्णु भी अपने द्वार पर आ पहुंचे तथा संपूर्ण घटना का ज्ञान उन्हें हुआ। उन्होंने ब्रह्मा जी के चारों पुत्रों से अपने द्वारपालों के कृत्य के लिए क्षमा मांगी। इसके पश्चात जय-विजय ने भी अपनी भूल के लिए क्षमा याचना की तथा भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे उन्हें श्राप से मुक्त करे। इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि वे ब्रह्म वाक्य को असत्य नही करना चाहते इसलिये यह श्राप तुम्हें भोगना ही पड़ेगा।
जय विजय के तीन जन्म
अपने द्वारपालों की पीड़ा देखकर भगवान विष्णु ने उन्हें दो रास्ते दिए। उन्होंने जय-विजय से कहा कि तुम ब्रह्म पुत्रों से मिले श्राप स्वरुप इस पृथ्वी पर तो जन्म लोगे लेकिन तुम्हारे सामने दो रास्ते हैं। प्रथम रास्ते के अनुसार तुम्हें इस पृथ्वी पर सात जन्म लेने पड़ेंगे जिसमें तुम मेरे भक्त होंगे तथा द्वितीय रास्ते के अनुसार तुम्हें इस पृथ्वी पर तीन जन्म लेने पड़ेंगे जिसमें तुम मेरे शत्रु होंगे।
चूँकि जय-विजय भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे, इसलिये सात जन्मों का विग्रह उनसे सहा नही जाता। इसलिये उन्होंने भगवान विष्णु से अपने तीन जन्म शत्रु रूप में मांगे ताकि वे जल्द से जल्द वैकुण्ठ धाम में श्रीहरि के पास आ सके। भगवान विष्णु ने उनकी यह इच्छा स्वीकार कर ली और उन्हें तीन जन्म के बाद पुनाज जय-विजय के रूप में वैकुण्ठ आने का वरदान दिया।
जय विजय के तीन अवतार (Jay Vijay Ke 3 Avatar)
भगवान ब्रह्मा के पुत्रों से मिले श्राप के कारण हर युग में जय-विजय का राक्षस कुल में जन्म हुआ। हर युग में उनकी शक्ति कम होती गयी तथा हर युग में भगवान विष्णु ने उनका वध करने के लिए अवतार लिया। सतयुग में उनका जन्म हिरण्यकश्यपु व हिरण्याक्ष के रूप में हुआ। भगवान विष्णु को दोनों का वध करने के लिए दो अलग-अलग अवतार लेने पड़े जो कि क्रमशः नरसिंह तथा वराह अवतार थे।
इसके पश्चात, त्रेता युग में दोनों का जन्म रावण तथा कुंभकरण के रूप में हुआ तथा इस युग में भगवान ने श्रीराम अवतार लेकर दोनों का वध किया। श्रीराम अवतार का मुख्य उद्देश्य दोनों का वध करना ही था। अपने तीसरे जन्म में जय विजय द्वापर युग में शिशुपाल तथा दंतवक्र के रूप में जन्मे। इस युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया तथा दोनों का वध किया। हालाँकि इस युग में भगवान श्रीकृष्ण का उद्देश्य केवल इतना ही नही अपितु महाभारत में भी भूमिका निभाना था।
इसके पश्चात जय-विजय का श्राप पूर्ण हो गया और वे पुनः अपने धाम को लौट गए। इस तरह से आज आपने जान लिया है कि जय विजय कौन थे (Jay Vijay Kaun The) और उन्हें तीन जन्म क्यों लेने पड़े थे।
जय विजय से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: जय विजय किसके पुत्र थे?
उत्तर: जय विजय के माता-पिता के बारे में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। वे दोनों भगवान विष्णु के वैकुण्ठ धाम के मुख्य द्वारपाल थे। इन्हें भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों से श्राप मिला था।
प्रश्न: जय विजय पूर्व जन्म में कौन थे?
उत्तर: जय विजय ने तीन बार राक्षस कुल में जन्म लिया था। उनके नाम हिरन्यकश्यप, हिरण्याक्ष, रावण, कुंभकरण, शिशुपाल और दंतवक्र था।
प्रश्न: विष्णु भगवान के पहरेदार कौन थे?
उत्तर: विष्णु भगवान के पहरेदार जय-विजय नाम के दो देवता थे। इन्हें भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों ने श्राप दिया था जिस कारण इन्होने तीन बार राक्षस कुल में जन्म लिया था।
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