सुचिन्द्रम मंदिर कन्याकुमारी (Suchindram Mandir Kanyakumari) में स्थित विश्व प्रसिद्ध व भव्य मंदिर है। यह मंदिर त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु व महेश) को समर्पित है। इस मंदिर को थानुमलायन मंदिर या स्तानुमलायण मंदिर भी कहते हैं जो कि त्रिदेव के नाम पर ही पड़ा है। इसमें “स्तानु” भगवान शिव को, “मल” भगवान विष्णु को व “आयन” भगवान ब्रह्मा को रेखांकित करता है।
इस मंदिर की भव्यता का अनुमान आप इसी से ही लगा सकते हैं कि इसमें कुल सात मंजिल हैं जिसका गोपुरम लगभग 134 फीट ऊँचा है। इसी तरह सुचिन्द्रम मंदिर का इतिहास भी बहुत गौरवशाली है। आज हम आपको सुचिंद्रम मंदिर (Suchindram Mandir) के बारे में शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं।
Suchindram Mandir Kanyakumari | सुचिन्द्रम मंदिर कन्याकुमारी के बारे में
आपने अवश्य ही सोशल मीडिया या अन्य जगह पर इस मंदिर की भव्यता से जुड़ी फोटोज या वीडियोज देखी होगी। इस मंदिर में स्थित शिवजी का महासदाशिवम रूप जगत प्रसिद्ध है। साथ ही यहाँ के त्रिलिंगम का अलग ही महत्व है जिसे देखने दूर-दूर से भक्तगण यहाँ आते हैं। दरअसल इसके पीछे एक नहीं बल्कि कई कारण हैं।
सुचिन्द्रम मंदिर कन्याकुमारी के लिए ही नहीं बल्कि समूचे तमिलनाडु को एक अलग पहचान देता है। कन्याकुमारी घूमने आने वाले लोग रामेश्वरम के साथ-साथ सुचिन्द्रम मंदिर भी होकर आते हैं और यहाँ की भव्यता को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। ऐसे में आपके लिए सबसे पहले इसका इतिहास व उससे जुड़ी कथाएं जाननी आवश्यक है।
सुचिन्द्रम मंदिर का इतिहास
इस मंदिर का कितना महत्व (Suchindram Temple History In Hindi) है, इसका अनुमान आप इसी बात से ही लगा लीजिए कि इसके इतिहास से एक नहीं बल्कि तीन-तीन दैवीय कथाएं जुड़ी हुई है। इसमें से एक माता अनुसूया और त्रिदेव भगवान की कथा है तो दूसरी गौतम ऋषि व इंद्र देव से जुड़ी हुई है। वहीं तीसरी कथा माता सती के आत्म-दाह से जुड़ी हुई है। आइए एक-एक करके तीनों कथाओं के बारे में जान लेते हैं।
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माता अनुसूया द्वारा त्रिदेव को शिशु बनाना
यह इस स्थल की सबसे महत्वपूर्ण कथा है जो इस मंदिर की महत्ता को और भी अधिक बढ़ाती है। एक बार अपनी-अपनी पत्नियों के कहने पर जब भगवान शिव, विष्णु व ब्रह्मा जी माता अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने पहुंचे तब माता अनुसूया ने तीनों को शिशु बना दिया। उसके बाद माता ने त्रिदेव के शिशु रुपी अवतार को दूध पिलाया।
माता के पतिव्रत धर्म व बुद्धिमता से प्रसन्न होकर त्रिदेव ने उनसे वरदान मांगने को कहा। तब माता अनुसूया ने उन तीनों को प्रतीकात्मक स्वरुप में उनके पास रहने को कहा। त्रिदेव के आशीर्वाद से माता अनुसूया को तीन मुख वाले संतान की प्राप्ति हुई जिसे दत्तात्रेय भगवान कहा जाता है। तब से Suchindram Mandir में त्रिदेव की पूजा की जाती है। विस्तार से जाने…
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इंद्र का गौतम ऋषि के श्राप से मुक्त होना
देव इंद्र ने गौतम ऋषि की धर्मपत्नी माता अहिल्या के साथ छल से दुराचार किया था जिसका गौतम ऋषि को पता चल गया था। तब उन्होंने इंद्र को नपुंसक बनने का श्राप दे दिया था। उसी श्राप से मुक्ति पाने के लिए इंद्र ने इसी स्थल पर दिन रात तपस्या की थी व गौतम ऋषि के श्राप से मुक्ति पाई थी। तब से इस मंदिर का नाम सुच्चिन्द्रम या सुचिन्द्रम पड़ गया अर्थात इंद्र की शुद्धि होना। विस्तार से जाने…
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माता सती का अंग गिरना व शक्तिपीठ बनना
माता सती ने अपने पति व भगवान शिव का अपमान होने पर अपने पिता के द्वारा आयोजित किए गए यज्ञ कुंड में आत्म-दाह कर लिया था। तब भगवान शिव सती के मृत शरीर को कंधे पर रखकर दसों दिशाओं में व्याकुल होकर घूम रहे थे। यह देखकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए जो पृथ्वी पर अलग-अलग स्थानों पर गिरे। उसी में से माता सती के ऊपरी दांत सुचिन्द्रम मंदिर के पास गिरे थे। तब से यह 51 शक्तिपीठों में भी सम्मिलित हो गया। विस्तार से जाने…
इस तरह से Suchindram Mandir Kanyakumari के लिए बहुत महत्व रखता है। इस मंदिर से जुड़ी कथाएं इसका महत्व अत्यधिक बढ़ा देती है। इसी कारण हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं।
सुचिन्द्रम मंदिर का निर्माण कब हुआ था?
मंदिर का निर्माण मुख्य रूप से 9वीं शताब्दी में शुरू हुआ था। इस बात का प्रमाण उस समय के कुछ शिलालेख हैं। इसी के साथ इसका पुनः निर्माण 17वीं शताब्दी में हुआ था जब इसे पहले से और अधिक विशाल रूप दिया गया व सुसज्जित किया गया। मंदिर की स्थापत्य कला व कुछ मूर्तियाँ अत्यधिक प्राचीन हैं जो इसका गौरवशाली इतिहास दर्शाती हैं। 17वीं शताब्दी तक यह मंदिर वहां के शासक नम्बूदरी के अधीन आता था।
सुच्चिन्द्रम मंदिर की संरचना
Suchindram Mandir बहुत ऊँचा है जिसका गोपुरम बहुत दूर से भी दिखाई पड़ता है। यहाँ अंदर प्रवेश करते ही 30 छोटे मंदिर हैं। मंदिर के अंदर भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्मा, नंदी, हनुमान जी की मूर्तियाँ स्थापित हैं। साथ ही उपवन, वृक्ष, गलियारें इत्यादि इसकी शोभा को और भी बढ़ा देते हैं। आइए एक-एक करके सभी के बारे में जानते हैं।
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त्रिलिंगम
यह लिंगम केवल शिव को ही नही अपितु भगवान विष्णु व ब्रह्मा को भी समर्पित है, इसलिए इसे त्रिलिंगम कहा जाता है। यह इस मंदिर की मुख्य मूर्ति है जो त्रिदेव को समर्पित है। तीनों भगवानों को एक साथ प्रदर्शित करने के कारण यह पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध है।
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शिवजी भगवान का महासदाशिवम रूप
यहाँ भगवान शिव की अति-प्राचीन मूर्ति स्थित है जिसके 25 मुख, 75 आँखे व 50 हाथ हैं। भगवान शिव के ऐसे रूप को महासदाशिवम नाम दिया गया है। यह मूर्ति अद्भुत स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
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भगवान हनुमान की मूर्ति
मंदिर के अंदर भगवान हनुमान की अति-विशाल मूर्ति स्थापित है जो लगभग 22 फीट ऊँची है। इसे एक ही ग्रेनाइट के पत्थर को काटकर बनाया गया है। यह एक तरह से भारत की सबसे बड़ी मूर्तियों में से एक है व साथ ही इस मंदिर की मुख्य पहचान भी है। एक मान्यता के अनुसार, भगवान हनुमान ने माता सीता को अशोक वाटिका में इसी रूप में दर्शन दिए थे जिसका रेखांकन इस मंदिर में मूर्ति के रूप में किया गया है।
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नंदी की विशाल प्रतिमा
भगवान शिव के वाहन नंदी की भी यहाँ एक विशाल मूर्ति है जिसकी ऊंचाई 13 फीट व लंबाई 21 फीट है। यह भी नंदी की मूर्तियों में भारतवर्ष में विशालतम मूर्तियों में से एक है।
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चार मुख्य स्तंभ
यहाँ चार मुख्य स्तंभ हैं जो एक ही चट्टान के पत्थरों से बने हैं। इन चारों में से विभिन्न वाद्य यंत्रों सितार, मृदंग, जलतरंग व तंबूरे के संगीत की ध्वनि आती है। प्राचीन समय में इन्ही से मंदिर में पूजा अर्चना व आरती की जाती थी। इन चारों वाद्ययंत्रों की सबसे अनोखी बात यह है कि यह चारों एक ही चट्टान से बने होने के बाद भी अलग-अलग धुन निकालते हैं।
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नृत्य कक्ष
इन चार मुख्य स्तंभों के अलावा यहाँ 1035 ऐसे स्तंभ हैं जिनसे विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ निकलती है। इस कक्ष को नृत्य मंडप या नृत्य कक्ष के नाम से जाना जाता है।
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मंदिर का गोपुरम
थानुमलायन मंदिर का गोपुरम लगभग 134 फीट ऊँचा है जो कि बहुत दूर से भी दिखाई देता है। इस गोपुरम पर विभिन्न नक्काशियां करके चित्र व भित्तियां उकेरी गई हैं। इसी के साथ यहाँ के विभिन्न स्तंभों पर भी अलग-अलग आकृतियाँ उकेरी गई हैं जिससे मंदिर की भव्यता और भी अधिक बढ़ जाती है।
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कोनायाडी वृक्ष
यहाँ पर एक से दो हज़ार वर्ष पुराना एक वृक्ष भी है जिसका तना अंदर से खोखला है। इसे वहां की स्थानीय भाषा में कोनायाडी वृक्ष के नाम से जाना जाता है। इसी वृक्ष के तने में त्रिमूर्ति स्थापित है।
इस तरह से आपको Suchindram Mandir में एक नहीं बल्कि कई तरह की चीजें देखने को मिलेंगी। यह सब आपका मन मोह लेंगी। जो भी भक्तगण यहाँ आता है, वह कभी भी इस मंदिर को नहीं भूलता है।
सुचिंद्रम मंदिर खुलने व बंद होने का समय
मंदिर आम भक्तों के लिए सुबह 4:30 बजे खुल जाता है जो दोपहर 1 बजे बंद हो जाता है। इसके बाद मंदिर शाम में 4 बजे के पास खुलता है जो रात्रि 8 बजे पूजा के पश्चात बंद हो जाता है।
थानुमलायन मंदिर कैसे पहुंचे?
Thanumalayan Mandir पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन कन्याकुमारी का रेलवे स्टेशन है जहाँ से मंदिर लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यदि आप हवाई मार्ग से आ रहे हैं तो यहाँ से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा थिरुवनंतपुरम/ त्रिवेंद्रम हवाई अड्डा है जहाँ से मंदिर लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वहां से आगे आप ट्रेन, बस या निजी वाहन से यात्रा कर सकते हैं।
स्तानुमलायण मंदिर में क्या पहने?
मंदिर में प्रवेश करने के लिए पुरुषों व महिलाओं का भारतीय परिधान में होना अनिवार्य है। यदि आप विदेशी या छोटे कपड़े पहनकर मंदिर में जाना चाहते हैं तो अनुमति नही मिलेगी। साथ ही मंदिर के अंदर किसी भी प्रकार का बैग या अन्य कोई सामान ले जाने की भी अनुमति नही है। यह सब सामान आपको बाहर जमा करवाना होगा।
मंदिर का मुख्य आयोजन
मंदिर में मुख्य रूप से रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है जो 10 दिनों तक चलता है। इसमें सभी भगवानों को रथों पर लेकर विशाल यात्रा निकाली जाती है। इसके अलावा यहाँ दुर्गा पूजा, नवरात्र व तमिलनाडु के त्यौहार मुख्य रूप से मनाए जाते हैं।
इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने सुचिन्द्रम मंदिर कन्याकुमारी (Suchindram Mandir Kanyakumari) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। इसलिए यदि आप कन्याकुमारी घूमने जाने का सोच रहे हैं तो अवश्य ही इस मंदिर के भी दर्शन करके आएं।
सुचिन्द्रम मंदिर से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: सुचिंद्रम मंदिर में क्या खास है?
उत्तर: सुचिंद्रम मंदिर में स्थित शिवजी की महासदाशिवम की मूर्ति और त्रिलंगम बहुत ख़ास है। इसे देखने दूर-दूर से करोड़ो भक्त पहुँचते हैं।
प्रश्न: सुचिन्द्रम मंदिर में किस भगवान की पूजा की जाती है?
उत्तर: सुचिन्द्रम मंदिर में त्रिदेव भगवान की पूजा की जाती है। त्रिदेव भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश को बोला जाता है।
प्रश्न: सुचिन्द्रम मंदिर का निर्माण किस राजा ने करवाया था?
उत्तर: सुचिन्द्रम मंदिर का निर्माण समय-समय पर अलग-अलग राजाओं के द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है।
प्रश्न: सुचिन्द्रम किस लिए प्रसिद्ध है?
उत्तर: सुचिन्द्रम मंदिर अपने गौरवशाली इतिहास के कारण प्रसिद्ध है। इसका इतिहास माता अनुसूया, त्रिदेव, गौतम ऋषि, इंद्र देव व माता सती से जुड़ा हुआ है।
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