मारीच ने रावण को क्या समझाया? पढ़ें रावण मारीच का संवाद

Marich Kaun Tha

रामायण में रावण मारीच संवाद (Ravan Marich Samvad) के माध्यम से यह देखने को मिलता है कि रावण को उसके सगे-संबंधी पहले ही सीता हरण करने को मना कर रहे थे। किंतु रावण अपने अहंकार में इतना चूर था कि उसे किसी की भी नहीं सुननी थी। उसे केवल उन लोगों की ही बात पसंद आती थी जो उसकी चाटुकारिता करते थे या उसकी हाँ में हाँ मिलाते थे।

ऐसे में मारीच ने रावण को क्या समझाया (Marich Ne Ravan Ko Kya Samjhaya), यह प्रश्न मुख्य रूप से उभर कर सामने आता है। वह इसलिए क्योंकि मारीच वही था जिसने माता सीता का हरण करवाने में मुख्य भूमिका निभाई थी। अब जब मारीच सीता हरण के विरुद्ध था तो क्यों वह इस षड्यंत्र में रावण के साथ मिल गया था। यह सब आपको रामायण में रावण मारीच संवाद से देखने को मिलेगा।

Ravan Marich Samvad | रावण मारीच संवाद

मारीच ताड़का का पुत्र व रावण का मामा था जो पहले अयोध्या में सरयू नदी के किनारे ऋषि मुनियों के यज्ञ में बाधा पहुँचाता था। फिर एक दिन ऋषि विश्वामित्र के आदेश पर श्रीरामलक्ष्मण ने बाणों से उसकी माँ ताड़का व सुबाहु का वध कर डाला व मारीच को दूर समुंद्र किनारे फेंक दिया। तब से मारीच ने बुरे कर्म त्याग दिए थे व एक साधु बनकर रहने लगा था। अब वह प्रतिदिन धर्म इत्यादि के कार्य करता व भगवान शिव की भक्ति में लीन रहता।

फिर एक दिन जब रावण माता सीता का अपहरण करने के उद्देश्य से मारीच से सहायता मांगने पहुँचा तो मारीच यह सुनकर घबरा गया। उसने रावण को समझाया कि जिस कार्य को वह करने जा रहा है वह उसके विनाश का कारण बन सकता है क्योंकि माँ सीता स्वयं लक्ष्मी व श्रीराम नारायण का रूप हैं। ऐसे में आइए जाने मारीच ने रावण को क्या समझाया (Marich Ne Ravan Ko Kya Samjhaya) था।

मारीच ने रावण को क्या समझाया?

उसने रावण को समझाया कि वह लंका का राजा है व सीता का अपहरण करके वह अपने राज्य को खो देगा। उसने रावण को सीता का हरण करने की बजाए लंका वापस लौट जाने की विनती की व वहाँ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने को कहा।

मारीच के मुख से शत्रु की महीमा सुनकर रावण का अहंकार जाग उठा। उसने मारीच के सामने स्वयं की महिमा का बखान करना शुरू कर दिया। उसने स्वयं को सर्व शक्तिमान व अजेय बताया तथा राम व लक्ष्मण को स्वयं के सामने तुच्छ समझा।

रावण की यह महिमा सुनकर मारीच ने उसे अन्य घटनाओं का ज्ञान करवाया। उसने रावण को बताया कि किस प्रकार राम ने ताड़का वन में उसकी माँ व भाई का वध कर दिया था, शिव धनुष को एक झटके में तोड़ डाला था, खर दूषण का संपूर्ण सेना समेत एक ही बाण में वध कर डाला था। मारीच के अनुसार वे एक साधारण मानव नहीं हो सकते थे। इसलिए उसने रावण से वापस लौट जाने का पुनः अनुरोध किया।

इस पर भी रावण नहीं माना व पुनः अपनी महिमा का बखान करने लगा। उसके अनुसार स्वयं यमराज व काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे। वह लंका का ही नहीं अपितु संपूर्ण ब्रह्मांड का राजा था। उसके सामने सभी देवता भी नतमस्तक होते थे। इसलिए उसने मारीच को सीता के अपहरण में स्वयं का साथ देने का आदेश दिया।

इस पर मारीच ने उसे नीति की दुहाई दी व कहा कि उसने जो भी शक्तियां अर्जित की हैं वह धर्म के मार्ग पर चलकर व कठिन तपस्या से अर्जित की हैं। किंतु अब वह उनका प्रयोग अधर्म के लिए कर रहा है जो कि अनुचित है। साथ ही किसी पराई स्त्री के विवाहित होते हुए भी उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध उठाना नीतिसंगत नहीं था।

इस पर रावण ने उसे स्वयं के साथ तर्क ना करने को कहा व उसकी आज्ञा मानने का आदेश दिया। तब मारीच ने कहा कि जो राजा अपने हितेषियों की बात नहीं सुनता उसका अंत हो जाता है। उसके अनुसार रावण के मंत्रियों को उसको उचित परामर्श देना चाहिए था ताकि वह ऐसा पाप करने का नहीं सोचता।

इस पर रावण ने कहा कि मंत्रियों को राजा के सामने तभी तर्क या परामर्श तब देना होता है जब राजा की आज्ञा हो अन्यथा उन्हें राजा की हाँ में हाँ मिलानी होती है। मंत्री को राजा के सामने हमेशा हाथ जोड़कर खड़ा होना चाहिए व राजा को हर बात विनम्रता के साथ कहनी चाहिए। राजा को अपने हित व अहित का सोचने का पूरा अधिकार है। मंत्रियों को राजा के सामने केवल वही बात कहनी चाहिए जो राजा को पसंद हो।

इस पर मारीच रावण को शास्त्रों की दुहाई देता है व समझाता है कि राजा की प्रशंसा करने वाले तो सब जगह होते हैं। इसलिए एक राजा को अपने पास ऐसे मंत्रियों को रखना चाहिए जो बिना डरे राजा को सत्य का ज्ञान करवा सकें अन्यथा उसका विनाश हो जाता है। उसने रावण को कहा कि जो मंत्री राजा को कटु व सत्य वचन कहने का साहस रखता हो वही सच्चा मंत्री व राजा का हितैषी होता है।

यह बात सुनकर व मारीच के लगातार तर्क करते रहने से रावण को अत्यधिक क्रोध आ जाता है। इसलिए उसने मारीच को चेतावनी दी कि यदि वह उसकी सहायता नहीं करेगा तो वह उसी समय उसकी हत्या कर देगा।

यह सुनकर मारीच रावण को कहता है कि आज उसकी मृत्यु निश्चित है चाहे वह रावण के हाथों एक अपराधी व देशद्रोही बनकर मरे व राम के हाथों एक शत्रु की भाँति वीरगति को प्राप्त हो। इस तरह से रावण मारीच संवाद (Ravan Marich Samvad) का यहीं अंत हो जाता है। इसके बाद मारीच रावण के साथ पुष्पक विमान में बैठकर पंचवटी जाता है और वहाँ सोने का हिरण बनकर माता सीता के हरण में मुख्य भूमिका निभाता है।

रावण मारीच संवाद से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: मारीच और रावण में क्या संबंध है?

उत्तर: मारीच रावण का मामा लगता था वह रावण की माँ कैकसी का भाई था

प्रश्न: मारीच ने रावण को क्या बताया?

उत्तर: जब रावण मारीच से सहायता मांगने आया तो मारीच ने बताया कि श्रीराम विष्णु का अवतार हैं और यदि वह माता सीता का हरण करेगा तो उसका अंत निश्चित है

प्रश्न: राम ने मारीच को क्यों मारा?

उत्तर: श्रीराम ने मारीच को इसलिए मार गिराया था क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि वह हिरण के वेश में छुपा कोई बहरूपिया है

प्रश्न: मारीच क्यों क्रोधित था?

उत्तर: मारीच के इतना समझाने के बाद भी रावण ने उसकी एक नहीं सुनी थी इस कारण मारीच को क्रोध आ गया था

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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