ज्वाला माता की चालीसा – हिंदी में अर्थ, महत्व व लाभ सहित

ज्वाला चालीसा (Jwala Chalisa)

आज हम आपके साथ ज्वाला चालीसा (Jwala Chalisa) का पाठ करेंगे। माता सती ने अपने पिता दक्ष के द्वारा अपने पति शिव का अपमान किये जाने पर यज्ञ कुंड की अग्नि में कूदकर आत्म-दाह कर लिया था। इसके बाद जब भगवान शिव प्रलाप करते हुए माता सती के जले हुए शरीर को लेकर दसों दिशाओं में घूम रहे थे तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसके 51 टुकड़े कर दिए थे। इसमें से माता सती की जीभ ज्वाला की पहाड़ी पर गिरी थी जहाँ पर माँ का एक शक्तिपीठ स्थापित हुआ।

ज्वाला माता चालीसा (Jwala Mata Chalisa) के माध्यम से ज्वाला देवी के गुणों, महत्व व शक्तियों का वर्णन किया गया है। ऐसे में आज के इस लेख में आपको ज्वाला चालीसा हिंदी में भी पढ़ने को मिलेगी। इससे आप ज्वाला मैया की चालीसा का संपूर्ण भावार्थ समझ पाएंगे। अंत में आपको ज्वाला चालीसा के लाभ व महत्व भी जानने को मिलेंगे।

Jwala Chalisa | ज्वाला चालीसा

॥ दोहा ॥

शक्ति पीठ मां ज्वालपा धरूं तुम्हारा ध्यान।
हृदय से सिमरन करूं दो भक्ति वरदान॥

सुख वैभव सब दीजिए बनूं तिहारा दास।
दया दृष्टि करो भगवती आपमें है विश्वास॥

॥ चौपाई ॥

नमस्कार हे ज्वाला माता, दीन दुखी की भाग्य विधाता।

ज्योति आपकी जगमग जागे, दर्शन कर अंधियारा भागे।

नव दुर्गा है रूप तिहारा, चौदह भुवन में दो उजियारा।

ब्रह्मा विष्णु शंकर द्वारे, जै मां जै मां सभी उच्चारे।

ऊंचे पर्वत धाम तिहारा, मंदिर जग में सबसे न्यारा।

काली लक्ष्मी सरस्वती मां, एक रूप हो पार्वती मां।

रिद्धि-सिद्धि चंवर डुलावें, आ गणेश जी मंगल गावें।

गौरी कुंड में आन नहाऊं, मन का सारा मैल हटाऊं।

गोरख डिब्बी दर्शन पाऊं,  बाबा बालक नाथ मनाऊं।

आपकी लीला अमर कहानी, वर्णन कैसे करें ये प्राणी।

राजा दक्ष ने यज्ञ रचाया, कंखल हरिद्वार सजाया।

शंकर का अपमान कराया, पार्वती ने क्रोध दिखाया।

मेरे पति को क्यों ना बुलाया, सारा यज्ञ विध्वंस कराया।

कूद गई माँ कुंड में जाकर, शिव भोले से ध्यान लगाया।

गौरा का शव कंधे रखकर, चले नाथ जी बहुत क्रोध कर।

विष्णु जी सब जान के माया, चक्र चलाकर बोझ हटाया।

अंग गिरे जा पर्वत ऊपर, बन गए मां के मंदिर उस पर।

बावन है शुभ दर्शन मां के, जिन्हें पूजते हैं हम जा के।

जिह्वा गिरी कांगड़े ऊपर, अमर तेज एक प्रगटा आकर।

जिह्वा पिंडी रूप में बदली, अनसुइया गैया वहां निकली।

दूध पिया मां रूप में आके, घबराया ग्वाला वहां जाके।

मां की लीला सब पहचाना, पाया उसने वहींं ठिकाना।

सारा भेद राजा को बताया, ज्वालाजी मंदिर बनवाया।

चंडी मां का पाठ कराया, हलवे चने का भोग लगाया।

कलयुग वासी पूजन कीना, मुक्ति का फल सबको दीना।

चौंसठ योगिनी नाचें द्वारे, बावन भैरों हैं मतवारे।

ज्योति को प्रसाद चढ़ावें, पेड़े दूध का भोग लगावें।

ढोल ढप्प बाजे शहनाई, डमरू छैने गाएं बधाई।

तुगलक अकबर ने आजमाया, ज्योति कोई बुझा नहीं पाया।

नहर खोदकर अकबर लाया, ज्योति पर पानी भी गिराया।

लोहे की चादर थी ठुकवाई, जोत फैलकर जगमग आई।

अंधकार सब मन का हटाया, छत्र चढ़ाने दर पर आया।

शरणागत को मां अपनाया, उसका जीवन धन्य बनाया।

तन मन धन मैं करुं न्यौछावर, मांगू मां झोली फैलाकर।

मुझको मां विपदा ने घेरा, काम क्रोध ने लगाया डेरा।

सेज भवन के दर्शन पाऊं, बार-बार मैं शीश नवाऊं।

जै जै जै जगदम्ब ज्वालपा, ध्यान रखेगी तू ही बालका।

ध्यानु भगत तुम्हारा यश गाया, उसका जीवन धन्य बनाया।

कलिकाल में तुम वरदानी, क्षमा करो मेरी नादानी।

शरण पड़े को गले लगाओ, ज्योति रूप में सन्मुख आओ।

॥ दोहा ॥

रहूं पूजता ज्वालपा जब तक हैं ये स्वांस।
“ओम” को दर प्यारा लगे तुम्हारा ही विश्वास॥

Jwala Mata Chalisa | ज्वाला माता चालीसा हिंदी में

॥ दोहा ॥

शक्ति पीठ मां ज्वालपा धरूं तुम्हारा ध्यान।
हृदय से सिमरन करूं दो भक्ति वरदान॥

सुख वैभव सब दीजिए बनूं तिहारा दास।
दया दृष्टि करो भगवती आपमें है विश्वास॥

हे शक्तिपीठ के रूप में स्थापित माँ ज्वाला!! मैं आपका ही ध्यान करता हूँ। मैं मन से आपका सिमरन करता हूँ और अब आप मुझे अपनी भक्ति वरदान रूप में प्रदान कीजिये। आप मुझे सुख, यश इत्यादि सब दीजिये और मैं आपका सेवक बनना चाहता हूँ। मुझे आप पर पूरा विश्वास है कि आपकी कृपा दृष्टि पर मुझ पर होगी।

॥ चौपाई ॥

नमस्कार हे ज्वाला माता, दीन दुखी की भाग्य विधाता।

ज्योति आपकी जगमग जागे, दर्शन कर अंधियारा भागे।

नव दुर्गा है रूप तिहारा, चौदह भुवन में दो उजियारा।

ब्रह्मा विष्णु शंकर द्वारे, जै मां जै मां सभी उच्चारे।

हे ज्वाला माता!! आपको मेरा नमस्कार है। आप ही बेसहारा लोगों के भाग्य को बनाती हैं। आपकी ज्योति सदैव ही जलती रहती है जिसके दर्शन करने से हमारे जीवन का अंधकार दूर हो जाता है। आप ही नवदुर्गा का रूप हैं और आपकी ज्योत से चौदह भवनों में उजाला होता है। स्वयं भगवान ब्रह्मा, विष्णु व शंकर भी आपके द्वार पर आकर जय माँ का उच्चारण कर रहे हैं।

ऊंचे पर्वत धाम तिहारा, मंदिर जग में सबसे न्यारा।

काली लक्ष्मी सरस्वती मां, एक रूप हो पार्वती मां।

रिद्धि-सिद्धि चंवर डुलावें, आ गणेश जी मंगल गावें।

गौरी कुंड में आन नहाऊं, मन का सारा मैल हटाऊं।

आपका धाम ऊँचें पर्वतों पर स्थित है और आपका मंदिर जगत में सबसे प्यारा हैमाँ काली, लक्ष्मी व सरस्वती के रूप में आप ही माँ पार्वती का रूप हो। आपके भवन में तो रिद्धि-सिद्धि आपको चंवर करती हैं और गणेश भगवान मंगलगान करते हैं। हम गौरी कुंड में नहाकर अपने मन का सारा दोष व दुर्भावना निकाल देते हैं।

गोरख डिब्बी दर्शन पाऊं,  बाबा बालक नाथ मनाऊं।

आपकी लीला अमर कहानी, वर्णन कैसे करें ये प्राणी।

राजा दक्ष ने यज्ञ रचाया, कंखल हरिद्वार सजाया।

शंकर का अपमान कराया, पार्वती ने क्रोध दिखाया।

मैं बाबा गोरखनाथ के दर्शन कर और बाबा बालकनाथ को मनाता हूँ। आपकी लीला तो अपरंपार है और मैं इसका वर्णन कैसे ही करूँ। राजा दक्ष ने यज्ञ करने के लिए पूरी हरिद्वार नगरी को सजा दिया था। किन्तु इस यज्ञ में उन्होंने अपनी बेटी सती के पति भगवान शिव को आमंत्रित ना कर उनका घोर अपमान किया। यह देखकर माता पार्वती (सती) बहुत ही ज्यादा क्रोधित हो गयी थी।

मेरे पति को क्यों ना बुलाया, सारा यज्ञ विध्वंस कराया।

कूद गई माँ कुंड में जाकर, शिव भोले से ध्यान लगाया।

गौरा का शव कंधे रखकर, चले नाथ जी बहुत क्रोध कर।

विष्णु जी सब जान के माया, चक्र चलाकर बोझ हटाया।

उन्होंने राजा दक्ष पर अपना क्रोध दिखाया और उनका यज्ञ विध्वंश करने की ठान ली। इसके लिए वे यज्ञ की अग्नि में कूद गयी और आत्म-दाह कर लिया। अपनी पत्नी सती के आत्म-दाह की बात सुनकर भगवान शिव अत्यधिक विचलित हो गए और वे माँ गौरी के जले हुए मृत शरीर को लेकर दसों दिशाओं में दौड़ने लगे। भगवान शिव की यह दशा देखकर भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र छोड़ दिया।

अंग गिरे जा पर्वत ऊपर, बन गए मां के मंदिर उस पर।

बावन है शुभ दर्शन मां के, जिन्हें पूजते हैं हम जा के।

जिह्वा गिरी कांगड़े ऊपर, अमर तेज एक प्रगटा आकर।

जिह्वा पिंडी रूप में बदली, अनसुइया गैया वहां निकली।

सुदर्शन चक्र के द्वारा माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए जो अलग-अलग पर्वतों और स्थानों पर जाकर गिरे। जहाँ-जहाँ माता के शरीर के अंग गिरे, वहां-वहां एक मंदिर की स्थापना की गयी। इनकी संख्या कुल बावन है जिनकी हम पूजा करते हैं। माता सती की जिव्हा (जीभ) कांगड़ा जिले के पहाड़ पर गिरी जहाँ से एक तेज प्रकट हुआ। वह जिव्हा एक पिण्डी के रूप में बदल गयी और अनसुइया नाम की गाय वहां से निकली।

दूध पिया मां रूप में आके, घबराया ग्वाला वहां जाके।

मां की लीला सब पहचाना, पाया उसने वहींं ठिकाना।

सारा भेद राजा को बताया, ज्वालाजी मंदिर बनवाया।

चंडी मां का पाठ कराया, हलवे चने का भोग लगाया।

आपने वहां माँ रूप में आकर गाय माता का दूध पिया और यह दृश्य देखकर एक ग्वाला घबरा गया। वह आपकी लीला को अच्छे से पहचान गया और उसने वह सब बात जाकर अपने राजा भुमिचंद को बता दी। राजा भुमिचंद ने यह जानकर वहां पर आपका एक भव्य मंदिर बनवाया जिसका नाम ज्वालाजी रखा गया। राजा ने वहां पर चंडी माता का पाठ करवाया और आपको हलवे व चने का भोग लगाया।

कलयुग वासी पूजन कीना, मुक्ति का फल सबको दीना।

चौंसठ योगिनी नाचें द्वारे, बावन भैरों हैं मतवारे।

ज्योति को प्रसाद चढ़ावें, पेड़े दूध का भोग लगावें।

ढोल ढप्प बाजे शहनाई, डमरू छैने गाएं बधाई।

कलयुग में लोग आपकी पूजा करते हैं और मुक्ति पाते हैं। आपके द्वार पर तो चौसंठ योगिनियाँ नृत्य करती हैं और बावन भैरव बाबा आपका ही ध्यान करते हैं। हम सभी ज्वाला माता की ज्योति को पेड़े, दूध इत्यादि का प्रसाद चढ़ाते हैं। मातारानी के दरबार में ढोल, नगाड़े व शहनाईयां, डमरू इत्यादि बजते हैं।

तुगलक अकबर ने आजमाया, ज्योति कोई बुझा नहीं पाया।

नहर खोदकर अकबर लाया, ज्योति पर पानी भी गिराया।

लोहे की चादर थी ठुकवाई, जोत फैलकर जगमग आई।

अंधकार सब मन का हटाया, छत्र चढ़ाने दर पर आया।

मातारानी का चमत्कार भारत पर राज कर रहा दुष्ट मुगल आक्रांता अकबर सह नहीं पाया और उसने माता की ज्योत बुझाने की ठान ली। दुष्ट अकबर ने मातारानी की ज्योत पर बहुत सारा पानी उड़ेल दिया, उसके ऊपर लोहे की चादर ढक दी लेकिन मातारानी की ज्योत नहीं बुझी। सब प्रयास करने के बाद भी विफल होने पर दुष्ट अकबर भी माँ के चमत्कार को मान गया और उसने वहां सोने का छत्र चढ़ाया।

शरणागत को मां अपनाया, उसका जीवन धन्य बनाया।

तन मन धन मैं करुं न्यौछावर, मांगू मां झोली फैलाकर।

मुझको मां विपदा ने घेरा, काम क्रोध ने लगाया डेरा।

सेज भवन के दर्शन पाऊं, बार-बार मैं शीश नवाऊं।

अपनी शरण में आये हुए दुष्ट अकबर को भी माँ ने अपना लिया और उसको आशीर्वाद दिया। हे ज्वाला माता! मैं आपके सामने अपना तन-मन-धन सब न्यौछावर कर देता हूँ और अपनी झोली फैलाकर याचना करता हूँ। मैं चारों ओर से संकटों से घिरा हुआ हूँ और काम व क्रोध ने मुझे वश में किया हुआ है। मैं आपके इस दरबार के बार-बार दर्शन कर पाऊं और आपके सामने अपना शीश झुकाऊ।

जै जै जै जगदम्ब ज्वालपा, ध्यान रखेगी तू ही बालका।

ध्यानु भगत तुम्हारा यश गाया, उसका जीवन धन्य बनाया।

कलिकाल में तुम वरदानी, क्षमा करो मेरी नादानी।

शरण पड़े को गले लगाओ, ज्योति रूप में सन्मुख आओ।

हे जगदंबा और ज्वाला माता!! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप ही अपने भक्तों का ध्यान रखेंगी। जो भी भक्तगण माँ ज्वाला के यश का वर्णन करता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। कलयुग में माँ ही हमारा उद्धार कर सकती हैं और अब आप मेरी नादानियों को क्षमा कर दीजिये। जो भी आपकी शरण में आ रहा है, आप उसका कल्याण कर उद्धार कर दीजिये।

॥ दोहा ॥

रहूं पूजता ज्वालपा जब तक हैं ये स्वांस।
“ओम” को दर प्यारा लगे तुम्हारा ही विश्वास॥

जब तक मेरे शरीर में सांस है, तब तक मैं ज्वाला देवी की पूजा करता रहूँ। ओम को आपका ही दरबार प्यारा लगता है और उनका आप पर ही पूर्ण विश्वास है।

ऊपर आपने ज्वाला मां चालीसा हिंदी में अर्थ सहित (Jwala Maa Chalisa) पढ़ ली है। इससे आपको ज्वाला माता चालीसा का भावार्थ समझ में आ गया होगा। अब हम ज्वाला चालीसा के लाभ और महत्व भी जान लेते हैं।

ज्वाला माता चालीसा का महत्व

मातारानी के कुल 51 शक्तिपीठ हैं जिनमें से एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ ज्वाला देवी का है। यहाँ भक्त इसलिए भी ज्यादा आते हैं क्योंकि यहाँ पर मातारानी के नाम की ज्योत हर समय जलती रहती है और यह सदियों से ही जलती आ रही है जो कभी भी बुझी नहीं है। दुष्ट आक्रांता अकबर ने भी इसे बुझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह विफल रहा।

ज्वाला देवी चालीसा के माध्यम से यही बताने का प्रयास किया गया है कि मातारानी की शक्तियों का कोई अंत नहीं है और वह हर जगह व्याप्त हैं। ज्वाला चालीसा माँ ज्वाला की शक्तियों, गुणों, कर्मों इत्यादि का वर्णन करती है और यही ज्वाला मैया की चालीसा का मुख्य महत्व होता है। ऐसे में हम सभी को प्रतिदिन ज्वाला माता चालीसा का पाठ करना चाहिए।

ज्वाला चालीसा के लाभ

यदि आप प्रतिदिन सच्चे मन से माता ज्वाला का ध्यान कर ज्वाला चालीसा का पाठ करते हैं तो माँ की कृपा आप पर बरसती है। मातारानी के सभी रूप अलग-अलग जरुर हैं लेकिन अंत में वे माता आदिशक्ति का ही रूप हैं। ऐसे में आप उनकी किसी भी रूप में पूजा करें लेकिन माँ आदिशक्ति आपसे प्रसन्न हो जाती हैं। यही ज्वाला मैया की चालीसा का सबसे बड़ा लाभ होता है।

यदि आपके ऊपर मातारानी की कृपा दृष्टि होती है तो संसार की कोई भी नकारात्मक शक्ति आपके ऊपर हावी नहीं हो सकती है और आपका मन भी शांत होता है। इससे आपके अंदर काम करने की ऊर्जा आती है और मान-सम्मान में वृद्धि देखने को मिलती है। आपका यश चारों दिशाओं में फैलता है तथा सभी तरह की बाधाएं स्वतः ही दूर हो जाती है।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने ज्वाला चालीसा हिंदी में अर्थ सहित (Jwala Chalisa) पढ़ ली हैं। साथ ही आपने ज्वाला माता चालीसा के लाभ और महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।

ज्वाला चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: ज्वाला माता किसकी कुल देवी हैं?

उत्तर: ज्वाला माता एक शक्तिपीठ है जहाँ पर माता सती की जिव्हा गिरी थी। अब इनका किसी के लिए कुलदेवी होना व्यक्ति के परिवार, जाति व कुल पर निर्भर करता है।

प्रश्न: ज्वालामुखी मंदिर का रहस्य क्या है?

उत्तर: ज्वालामुखी मंदिर का रहस्य यही है कि वहां पर अग्नि कभी भी बुझती नहीं है और ना ही इसे जलने के लिए किसी चीज़ की आवश्यकता होती है।

प्रश्न: ज्वाला देवी कौन से राज्य में है?

उत्तर: ज्वाला देवी हिमाचल प्रदेश राज्य के कांगड़ा जिले में स्थित है।

प्रश्न: ज्वाला माता का दूसरा नाम क्या है?

उत्तर: ज्वाला माता का दूसरा नाम वैष्णवी, सती, आदि शक्ति इत्यादि है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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