होलिका दहन क्यों मनाया जाता है? जाने होलिका दहन की कहानी

Holika Dahan Story In Hindi

आज हम आपको होलिका दहन की कहानी (Holika Dahan Story In Hindi) बताएँगे। होली से एक दिन पहले हम होलिका दहन का पर्व मनाते हैं। होलिका दहन वाले दिन को होली का त्यौहार माना जाता हैं जबकि रंगों वाली होली को धुलंडी। होलिका दहन वाले दिन हम सुबह या दोपहर के समय उसकी पूजा करने जाते हैं तथा संध्या के समय उसमे आग लगा दी जाती है।

आज हम इसके पीछे जुड़ी रोचक कथा के बारे में जानेंगे जो भगवान विष्णु के सबसे बड़े भक्त प्रह्लाद से जुड़ी हुई है। आइये जानते हैं होलिका दहन क्यों मनाया जाता है (Holika Dahan Story Hindi) और भक्त प्रहलाद का होलिका दहन की कथा से क्या संबंध है।

Holika Dahan Story In Hindi | होलिका दहन की कहानी

सतयुग में हिरण्यकश्यप नाम का एक क्रूर दैत्य था जिसे भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था। उसे भगवान ब्रह्मा के द्वारा बनाए गए किसी भी प्राणी के द्वारा नही मारा जा सकता था जिस कारण उसमे अहंकार आ गया था। वह अपने आप को भगवान विष्णु से भी बड़ा समझने लगा था किंतु उसका ही पांच वर्ष का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था।

अपने पुत्र के द्वारा विष्णु भक्ति को देखकर हिरण्यकश्यप अत्यंत क्रोधित रहता तथा इसी क्रोध में उसने अपने पुत्र को मरवाने की बहुत बार कोशिश की किंतु हर बार भगवान विष्णु आकर उसके प्राणों की रक्षा कर लेते। एक दिन वह इसी दुविधा में था कि आखिर कैसे उसके पुत्र का वध किया जाये कि तभी उसकी बहन होलिका उसके सामने एक प्रस्ताव लेकर आई।

होलिका का वरदान

होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी जिसे भगवान ब्रह्मा का वरदान प्राप्त था कि वह कभी भी अग्नि में नही जल सकती तथा ना ही अग्नि उसका कुछ बिगाड़ सकती है। इसलिये उसने अपने भाई के सामने प्रस्ताव रखा कि वह अपने सैनिकों की सहायता से लकड़ियों तथा घास-फूस का एक बहुत बड़ा ढेर बनाये। इस ढेर के बीचों बीच वह उसके पुत्र प्रह्लाद को लेकर बैठ जाएगी। इसके पश्चात वह अपने सैनिकों को उसमें आग लगाने को कह दे।

चूँकि उसे मिले वरदान के कारण वह अग्नि में जल नही पायेगी किंतु वह प्रह्लाद को वहां से भागने नही देगी जिस कारण वह उसी अग्नि में जलकर भस्म हो जायेगा।

Holika Dahan Story Hindi | होलिका दहन क्यों मनाया जाता है?

हिरण्यकश्यप को अपनी बहन का यह प्रस्ताव पसंद आया। उसके बाद लकड़ियों तथा घास-फूस के ढेर का इंतेज़ाम किया गया। होलिका उस ढेर में प्रह्लाद को लेकर बैठ गयी तथा सैनिकों के द्वारा उसमें आग लगा दी गयी। भक्त प्रह्लाद अपनी बुआ होलिका की गोद में बैठा लगातार भगवान विष्णु के नाम का जाप करता रहा।

धीरे-धीरे आग की लपटे फैलने लगी तथा उन तक पहुँच गयी। अचानक से अग्नि में होलिका के चीखने की आवाजे आने लगी क्योंकि होलिका इस अग्नि में स्वयं को जलता महसूस कर रही थी जबकि प्रह्लाद को कुछ नही हो रहा था। यह देखकर वह चीख-चीखकर भगवान ब्रह्मा के वरदान को झूठा बताने लगी।

इस पर भगवान ब्रह्मा प्रकट हुए तथा स्वयं उसकी शंका का समाधान किया। उन्होंने होलिका से कहा कि यह वरदान उन्होंने उसे स्वयं की रक्षा करने के लिए दिया था ना कि दुरूपयोग करने। यदि वह कभी भी इस वरदान का दुरूपयोग करेगी तो यह वरदान निष्प्रभावी हो जायेगा। चूँकि इस समय उसने इस वरदान का प्रयोग न ही स्वयं की रक्षा के लिए तथा ना ही किसी की भलाई के लिए प्रयोग किया है, इसलिये यह निष्प्रभावी सिद्ध हुआ।

अंत में उस अग्नि में होलिका जलकर भस्म हो गयी तथा भक्त प्रह्लाद की हमेशा की तरह भगवान विष्णु ने सहायता की तथा वह सकुशल बाहर आ गया। तब से लेकर आज तक हम होलिका दहन का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। होलिका दहन की कहानी (Holika Dahan Story In Hindi) हमें अच्छाई के मार्ग पर बने रहने की प्रेरणा देती है।

होलिका दहन की कहानी से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: होलिका की सच्चाई क्या है?

उत्तर: होलिका एक राक्षसी थी जो हिरण्यकश्यप की बहन और भक्त प्रह्लाद की बुआ थी उसे भगवान ब्रह्मा से अग्नि में ना जलने का वरदान था लेकिन केवल अच्छे उद्देश्य की पूर्ति हेतु इसी कारण जब वह प्रह्लाद को जलाने के उद्देश्य से अग्नि में बैठी तो स्वयं जल बैठी

प्रश्न: होलिका पूर्व जन्म में कौन थी?

उत्तर: होलिका के पूर्व जन्म के बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता है ना ही किसी शास्त्र या पुराणों में इसके बारे में कुछ बताया गया है ऐसे में यदि कोई आपको होलिका के पूर्व जन्म के बारे में बता रहा है तो वह केवल आपको भ्रमित करने का प्रयास कर रहा है

प्रश्न: होलिका का असली नाम क्या है?

उत्तर: होलिका का असली नाम सिंहिका है वह महर्षि कश्यप व दिति की पुत्री थी जिसके दो भाई थे उनके नाम हिरण्यकश्यप व हिरण्याक्ष थे

प्रश्न: होलिका के पति का नाम क्या था?

उत्तर: होलिका के पति का नाम विप्रचीति था विप्रचीति दानवों का राजा माना जाता है होलिका को विप्रचीति से दो पुत्रों की प्राप्ति हुई थी जिनके नाम राहु व केतु है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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