होलिका कौन थी व उसकी कहानी

Holika Story In Hindi

हम हर वर्ष बड़ी ही धूमधाम से रंगों का त्यौहार होली मनाते हैं जिसे धुलंडी कहा जाता (Holika Kaun Thi) है। उससे एक दिन पहले मुख्य होली का त्यौहार मनाया जाता हैं जिसे होलिका दहन कहते है। इसमें सुबह के समय लोग वहां जाकर पूजा करते हैं जहाँ रात को होलिका दहन होना होता (Holika Story In Hindi) हैं और रात में उसका दहन कर दिया जाता है।

दरअसल इसकी कथा सतयुग के एक दैत्य राजा हिरण्यकश्यप व उसके पुत्र भक्त प्रह्लाद से जुड़ी हुई (Holika Kon Thi) हैं। होलिका इसी राक्षस राजा हिरण्यकश्यप की बहन थी जो अग्नि में जलकर भस्म हो गयी थी। आज हम उसी कथा व होलिका के बारे में जानेंगे।

होलिका की कहानी (Holika Ki Kahani)

होलिका कौन थी (Holika Kaun Thi)

सतयुग में महर्षि कश्यप की कई पत्नियाँ थी जिनमें से एक दिति भी थी। दिति के गर्भ से ही जन्में बच्चों को दैत्यों की संज्ञा दी गयी थी। उसकी कोख से मुख्यतया दो बालक व एक बालिका का जन्म हुआ था जिनके नाम हिरण्यकश्यप, हिरण्याक्ष व होलिका था।

इनमें सबसे बड़ा हिरण्यकश्यप (Holika Kiski Bahan Thi) था। इन दोनों दैत्यों का वध भगवान विष्णु को अलग-अलग अवतार लेकर करना पड़ा था। जिनमें से हिरण्याक्ष दैत्य का वध भगवान विष्णु के वराह अवतार ने तो हिरण्यकश्यप दैत्य का वध नरसिंह अवतार ने किया था।

होलिका को भगवान ब्रह्मा का वरदान (Holika Vardaan)

होलिका ने भगवान ब्रह्मा की कठिन तपस्या की (Holika Ko Kisne Vardan Diya) थी और उनसे एक विशिष्ट वरदान प्राप्त किया था। दरअसल होलिका को भगवान ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त था कि कोई भी अग्नि उसे कभी जला नही पायेगी। इसी के साथ ब्रह्मा ने कहा था कि यह वरदान तभी प्रभावी होगा जब वह इसे स्वयं की रक्षा करने या दूसरों की भलाई करने के उद्देश्य से प्रयोग में लाएगी।

इस वरदान को पाकर होलिका बहुत खुश हो गयी (Holika Ki Story In Hindi) थी। अब तीनों लोकों की अग्नि भी उसे जलाकर भस्म नही कर सकती थी।

होलिका ने की अपने भाई की सहायता (Prahlad Holika Story In Hindi)

होलिका के छोटे भाई हिरण्याक्ष राक्षस का भगवान वराह के द्वारा वध हो चुका था। इसके पश्चात उसके बड़े भाई हिरण्यकश्यप ने भगवान ब्रह्मा से विचित्र वरदान प्राप्त किया था जिस कारण कोई भी उसका वध नही कर सकता था। उसने तीनों लोकों पर आधिपत्य स्थापित कर लिया था तथा विष्णु को नकार दिया था। इसी के साथ उसने स्वयं को भगवान घोषित किया हुआ था।

किंतु उसी के परिवार में उसका बेटा और होलिका का भतीजा प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त (Holika Real Story In Hindi) था। सभी उसके इस व्यवहार से बहुत दुखी रहते थे। हिरण्यकश्यप ने कई बार प्रह्लाद का वध करने का प्रयास किया किंतु हर बार भगवान विष्णु के द्वारा उसके प्राणों की रक्षा कर ली जाती थी।

एक दिन हिरण्यकश्यप इसी चिंता में डूबा हुआ था तभी होलिका को एक विचार आया। वह अपने भाई के पास गयी और उसके सामने प्रस्ताव रखा कि यदि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाकर अग्नि में बैठ जाए तो। अर्थात सैनिकों की सहायता से एक बड़ी जगह पर चिता जलायी जाए और उस अग्नि में होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर बैठ जाएगी।

चूँकि उसे तो भगवान ब्रह्मा का वरदान प्राप्त था, इसलिये उसे कुछ नही होगा लेकिन प्रह्लाद उस अग्नि से निकल कर भागने ना पाए, इसलिये वह उसे कसके पकड़कर रखेगी ताकि वह वही जलकर भस्म हो जाए। हिरण्यकश्यप को यह प्रस्ताव पसंद आया और उसने ऐसा ही करने को कहा।

होलिका का प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठना (Holika Dahan Ki Kahani)

इसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपने सैनकों को यही आदेश दिया। कुछ ही पलों में एक खाली जगह पर विशाल लकड़ियों और घास-फूस इकठ्ठा कर दिया गया और उसके बीचों बीच होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर बैठ गयी।

इसके पश्चात हिरण्यकश्यप की आज्ञानुसार उस चिता में आग लगा दी (Holika Dahan Story In Hindi) गयी। आग लगते ही प्रह्लाद हमेशा की तरह विष्णु-विष्णु का नाम जपने लगा। जैसे-जैसे अग्नि की आंच उन तक पहुँचने लगी वैसे-वैसे होलिका को उसकी तपन महसूस होने लगी। वह आश्चर्यचकित थी क्योंकि इससे पहले अग्नि ने उसे कभी ऐसा अनुभव नही करवाया था।

अब अग्नि उन तक पहुँच चुकी थी और होलिका का शरीर उस अग्नि से जलने लगा था तो वही प्रह्लाद निश्चिंत होकर बैठा था और विष्णु-विष्णु जपे जा रहा था। होलिका को यह देखकर बहुत क्रोध आया और वह चीख-चीख कर भगवान ब्रह्मा के दिए वरदान को झूठा बताने लगी।

यह देखकर भगवान ब्रह्मा ने उसे दर्शन दिए और कहा कि यह वरदान देते समय उन्होंने उससे कहा था कि यह तभी प्रभावी होगा जब वह इसे स्वयं की रक्षा करने या दूसरों की भलाई के लिए प्रयोग में लाएगी। यदि वह इस वरदान का दुरूपयोग करेगी तो यह स्वतः ही निष्प्रभावी हो जायेगा। यह कहकर भगवान ब्रह्मा अंतर्धान हो गए।

वह अग्नि बहुत ही विशाल थी और होलिका चाहकर भी उस अग्नि से नही निकल सकती (Holika Vadh) थी। प्रह्लाद की रक्षा तो स्वयं नारायण कर रहे थे, इसलिये उसे कुछ नही हो रहा था। बाहर खड़े सभी सैनिक और हिरण्यकश्यप होलिका की चीत्कार सुन सकते थे लेकिन सभी असहाय थे। देखते ही देखते होलिका का शरीर उसी अग्नि में जलकर भसम हो गया जबकि भक्त प्रह्लाद सकुशल बाहर आ गया।

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

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