Ramayan Bharat | रामायण के भरत का चरित्र व जीवनी – जन्म से मृत्यु तक

भरत रामायण (Bharat Ramayan)

श्रीराम के छोटे भाई भरत रामायण (Bharat Ramayan) में एक ऐसी भूमिका में रहते हैं जो श्रीराम के साथ ना होते हुए भी चौदह वर्ष का वनवास जीते हैं। जिस प्रकार श्रीराम और उनके साथ माता सीता और लक्ष्मण ने चौदह वर्ष तक वनवासी का जीवन जिया था, वैसा ही जीवन भरत ने भी जिया था। त्रेता युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र के रूप में जन्म लिया तब उनके सुदर्शन चक्र ने उनके सौतेले भाई भरत के रूप में कैकेयी के गर्भ से जन्म लिया था।

रामायण के भरत का चरित्र (Ramayan Bharat) एक ऐसे आदर्श भाई के रूप में दिखाया गया हैं जिन्होंने अपने माथे पर अपनी माँ के द्वारा लगाए गए कलंक को मिटाने के अथक प्रयास किए थे। इसी कारण इतिहास में भरत का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। आज हम आपको भरत का संपूर्ण जीवन परिचय देंगे।

Bharat Ramayan | भरत रामायण

जब भी रामायण की बात आती है तब हम भगवान श्रीराम, उनके छोटे भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता का ही ध्यान करते हैं। भरत को हम ज्यादातर भगवान श्रीराम के एक और भाई और कैकई के पुत्र के रूप में जानते हैं। रामायण में भी भरत का उल्लेख तभी तक मिलता है जब भगवान श्रीराम वनवास नहीं चले जाते हैं या फिर जब उनका चित्रकूट में मिलन होता है।

इसलिए आज हम आपके सामने भरत के नजरिये से रामायण को रखने जा रहे हैं। इससे आपको श्रीराम के एक ओर भाई भरत का उनके प्रति अथाह प्रेम और त्याग पता चल पाएगा। आइए श्रीराम भक्त भरत के जीवन के बारे में शुरू से अंत तक जान लेते (Bharat Ramayan) हैं।

  • जन्म

राजा दशरथ की तीन रानियाँ थी जिनमे से उनकी दूसरी रानी कैकई थी जो कि कैकेय देश की राजकुमारी भी थी। उन्ही के गर्भ से भरत का जन्म हुआ। वे दशरथ के चार पुत्रों में दूसरे नंबर पर थे। उनके बड़े भाई कौशल्या पुत्र श्रीराम थे जबकि दो छोटे भाई सुमित्रा नंदन लक्ष्मण व शत्रुघ्न थे।

  • शिक्षा

जब सभी भाइयो की आयु शिक्षा ग्रहण के लिए हो गयी तब भरत अपने भाइयो के साथ महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने गए। वहां जाकर उन्होंने विधिवत रूप से शिक्षा ग्रहण की तथा उसके बाद पुनः अयोध्या लौट आए।

  • विवाह

अयोध्या लौटने के कुछ समय के पश्चात श्रीराम व लक्ष्मण ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के साथ गए थे। उसके कुछ दिनों के बाद मिथिला से अयोध्या में सूचना आयी कि श्रीराम का माता सीता से विवाह हो चुका हैं। तब राजा दशरथ व राजा जनक ने अपने बाकि पुत्र-पुत्रियों का भी आपस में विवाह करवाने का निर्णय किया। इसके फलस्वरूप भरत का विवाह माता सिता की चचेरी बहन व कुशध्वज की बड़ी पुत्री मांडवी के साथ हुआ। मांडवी से भरत को दो पुत्र प्राप्त हुए जिनके नाम तक्ष व पुष्कल थे।

भरत का कैकेय जाना

विवाह के कुछ समय के पश्चात भरत के नाना के घर से उनके लिए बुलावा आया। उनके नाना अश्वपति कैकेय देश के राजा थे जिनका स्वास्थ्य ठीक नही चल रहा था इसलिये वे भरत से मिलना चाहते थे। यह सूचना पाकर भरत अपने छोटे भाई शत्रुघ्न को साथ लेकर कैकेय देश चले गए। वहां कुछ दिन रहने के पश्चात उन्हें अचानक से अयोध्या से बुलावा आया तथा तुरंत अयोध्या लौटने को कहा गया। भरत ने सैनिको से बहुत पूछा लेकिन उन्हें कुछ नही बताया गया। इसके बाद भरत तीव्र गति से अयोध्या के लिए निकल गए।

Ramayan Bharat | रामायण के भरत का चरित्र

अयोध्या आकर उन्होंने देखा कि पूरी अयोध्या में मातम पसरा हैं व सभी उन्हें हेय तथा तुच्छ दृष्टि से देख रहे हैं। जब वे राजमहल पहुंचे तो उन्हें अपनी माँ की प्रिय दासी मंथरा के द्वारा सीधे कैकेयी के कक्ष में ले जाया गया। वहां जाकर भरत अपनी माँ को विधवा के वस्त्रों में देखकर सन्न रह गए।

किंतु जब कैकेयी के द्वारा उन्हें सब घटना का वृतांत सुनाया गया तो उन्हें अपने कानो पर विश्वास नही हुआ। कैकेयी के द्वारा उन्हें बताया गया कि किस प्रकार राजा दशरथ ने श्रीराम के राज्याभिषेक करने का निर्णय लिया था। तब कैकेयी ने अपने प्रभाव व अपने दो वचनों की आड़ में सब कुछ पलट दिया।

कैकेयी ने भरत को बताया कि उसने अपने दो वचनों में श्रीराम की बजाए भरत का राज्याभिषेक मांग लिया व श्रीराम के लिए चौदह वर्षों का वनवास। इसके पश्चात श्रीराम अपनी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण सहित चौदह वर्ष के वनवास पर चले गए व पुत्र वियोग में राजा दशरथ की मृत्यु हो गयी।

  • भरत कैकेयी संवाद

कैकेयी को आशा थी कि भरत (Ramayan Bharat) यह सुनकर बहुत प्रसन्न होगा तथा खुशी-खुशी अयोध्या का राज सिंहासन संभाल लेगा लेकिन हुआ इसके विपरीत। भरत की आँखों से विवशता के आंसू बह रहे थे, हृदय क्रोध की अग्नि से जलने लगा था तथा मस्तिष्क ने कार्य करना बंद कर दिया था।

उसने उसी समय अपनी माँ कैकेयी का हमेशा के लिए त्याग कर दिया तथा जीवनभर उनका मुख ना देखने का प्रण लिया। इसके बाद वे सीधे माँ कौशल्या के कक्ष में गए तथा अपनी माँ के द्वारा किये गए कर्मो के लिए क्षमा मांगी। वे कौशल्या से लिपटकर विलाप करने लगे थे।

  • पिता का अंतिम संस्कार

तब अयोध्या के राजगुरु महर्षि वशिष्ठ ने भरत को बुलाया तथा अपने पिता दशरथ का अंतिम संस्कार करने को कहा। दुर्भाग्य से जब दशरथ की मृत्यु हुई तब उनके चारो पुत्रों में से एक भी वहां उपस्थित नही था। इसलिये भरत ने शत्रुघ्न के साथ अपने पिता का अंतिम संस्कार किया।

  • भरत गए चित्रकूट

अपने पिता का अंतिम संस्कार करने के पश्चात भरत श्रीराम को वन से वापस अयोध्या वापस लाने चित्रकूट के लिए निकल गए। उनके साथ अयोध्या का पूरा राज परिवार, सैनिक व प्रजागण भी गए। चित्रकूट पहुंचकर भरत श्रीराम के चरणों में गिरकर रोने लगे तथा उनसे वापस चलने की विनती की।

श्रीराम ने चौदह वर्ष से पहले वापस जाने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें यह वचन उनके पिता ने दिया था जो अब जीवित नही थे। इसलिये वचन को वापस लेने का अधिकार केवल उन्ही का था किंतु भरत ने उन्हें अयोध्या का राज्य उन्हें ही सँभालने को कहा।

  • भरत का अयोध्या लौटना

इस पर श्रीराम ने उनकी यह बात मान ली तथा अपनी अनुपस्थिति में चौदह वर्षों तक भरत को अयोध्या सँभालने का आदेश दिया। इसके बाद भरत ने श्रीराम से अपनी खडाऊ उन्हें देने का आग्रह किया। वह खडाऊ भरत अपने सिर पर रखकर आँखों में आंसू भरकर वापस अयोध्या लौट गए।

  • भरत का वनवास

श्रीराम की खडाऊ अपने सिर पर रखकर भरत अयोध्या पहुँच गए तथा पूरी प्रजा के सामने घोषणा की कि अयोध्या के राजा केवल और केवल श्रीराम हैं। उन्होंने वह खडाऊ राज सिंहासन पर रख दी। श्रीराम ने उनकी अनुपस्थिति में अयोध्या का राज्य सँभालने का आदेश दिया था। इसलिये भरत ने श्रीराम की भांति ही अयोध्या के निकट नंदीग्राम के वनों में एक वनवासी का जीवन व्यतीत करने व वही से राज्य की व्यवस्था सँभालने का निर्णय लिया।

इसके बाद भरत नंदीग्राम में कुटिया बनाकर रहने लगे। उन्होंने भूमि में एक गड्डा बनाया ताकि उनका स्थान हमेशा श्रीराम से नीचे रहे। वे प्रतिदिन श्रीराम के चरणों की खडाऊ की पूजा करते व अयोध्या का राजकाज सँभालते।

भारत और हनुमान का मिलन

जब श्रीराम अपने वनवास के अंतिम वर्ष में थे तब भरत ने अयोध्या के ऊपर से एक विशाल प्राणी को पर्वत के साथ उड़ते हुए देखा। उन्हें लगा कि अयोध्या पर किसी ने आक्रमण कर दिया हैं इसलिये उन्होंने उस पर बाण चला दिया। बाण के प्रभाव से वह प्राणी पर्वत समेत नीचे गिर पड़ा।

जब उसे होश आया तब उसने अपना परिचय हनुमान के रूप में दिया तथा बताया कि वे यह पर्वत श्रीराम की सेवा के लिए ही लेकर जा रहे हैं। तब हनुमान के द्वारा उन्हें माता सीता के हरण, श्रीराम-रावण युद्ध व लक्ष्मण के मुर्छित होने की बात पता चली। यह सुनकर भरत (Bharat Ramayan) अत्यधिक अधीर हो गए लेकिन अपने भाई की आज्ञा का पालन करते हुए वही रहे।

भरत राम और अयोध्या

भरत ने श्रीराम से यह प्रतिज्ञा ली थी कि यदि वे चौदह वर्ष पूरे होने के बाद एक दिन देर से भी आए तो वे अपना आत्म-दाह कर लेंगे। इसलिये श्रीराम तय समय पर वहां आ गए। श्रीराम के आते ही भरत ने उन्हें उनका राज्य वैसा का वैसा सौंप दिया। इसके बाद श्रीराम का राज्याभिषेक किया गया। श्रीराम के साथ ही अब भरत का वनवास भी समाप्त हो चुका था और वे पहले की भांति राजभवन में रहने लगे थे।

भरत और लव कुश का युद्ध

राजभवन में सब कुछ सही से चल रहा था। इसी बीच एक दिन उन्हें पता चला कि श्रीराम के द्वारा माता सीता का त्याग कर दिया गया है और लक्ष्मण माता सीता को वन में छोड़ आए है। यह काम एक ही रात में हो गया था और भरत को अन्य लोगों की तरह सुबह ही इस घटनाक्रम के बारे में पता चला था। श्रीराम ने राजधर्म से विवश होकर माता सीता का त्याग किया था और भरत ने भी इसे स्वीकार कर लिया।

इसके कई वर्षों के पश्चात श्रीराम के द्वारा अश्वमेध यज्ञ किया गया। अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को जब घूमने के लिए छोड़ा गया तब भरत को सूचना मिली कि दो बालकों ने उस अश्वमेध घोड़े को पकड़ लिया है और शत्रुघ्न को हरा दिया है। तब श्रीराम ने भरत को भी युद्ध के लिए भेजा। भरत ने उन दो बालकों लव कुश के साथ भीषण युद्ध किया लेकिन अंत में परास्त हो गए।

भरत की मृत्यु

कुछ समय बाद भरत को यह पता चला कि लव कुश कोई और नहीं बल्कि श्रीराम और माता सीता के ही पुत्र है। यह सब घटनाक्रम राजभवन में सभी के बीच में ही हुआ। इसके बाद माता सीता धरती में समा गई और श्रीराम ने लव कुश को अपने पुत्रों के रूप में अपना लिया। श्रीराम के आदेश पर भरत के दोनों पुत्रों को भरत के नाना के राज्य गांधार का शासन सौंप दिया गया। वही श्रीराम पुत्र को अयोध्या का राजा बनाया गया।

इसके बाद भारत ने देखा कि श्रीराम ने लक्ष्मण का त्याग कर दिया। अपना त्याग किए जाने के बाद लक्ष्मण ने सरयू नदी में समाधि ले ली। कुछ ही दिनों में श्रीराम ने भी जल समाधि लेने की घोषणा कर दी। भरत ने भी श्रीराम के साथ ही जल समाधि लेने का निर्णय लिया। श्रीराम के बाद भरत ने भी सरयू नदी में जल समाधि ली और भगवान श्रीराम के साथ ही वैकुण्ठ धाम लौट गए। इस तरह से भरत की रामायण (Bharat Ramayan) का यहीं अंत हो जाता है।

भरत रामायण से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: भरत जी किसका अवतार थे?

उत्तर: रामायण में भरत भगवान श्रीहरि के सुदर्शन चक्र के अवतार थे जब श्रीहरि ने श्रीराम रूप में जन्म लिया तो उनके सुदर्शन चक्र ने श्रीराम के सौतेले भाई भरत के रूप में जन्म लिया था

प्रश्न: भरत किसका बेटा है?

उत्तर: रामायण में भरत अयोध्या के महाराज दशरथ और उनकी दूसरी पत्नी कैकई के पुत्र होते हैं वे अपने माता की एकलौती संतान होते हैं

प्रश्न: रामायण में भारत का पुत्र कौन है?

उत्तर: रामायण में भरत का विवाह कुशध्वज की पुत्री मांडवी के साथ हुआ था उससे उन्हें दो पुत्रों की प्राप्ति हुई थी जिनके नाम तक्ष और पुष्कल था

प्रश्न: भरत कौन अवतार है?

उत्तर: रामायण में भरत भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र के अवतार होते हैं भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में इस धरती पर जन्म लिया था तो वही उनके सुदर्शन चक्र ने उनके भाई भरत के रूप में जन्म लिया था

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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