धन्वंतरि चालीसा | Dhanvantari Chalisa | धन्वंतरी चालीसा इन हिंदी

Dhanvantari Chalisa

धन्वंतरी चालीसा का पाठ (Dhanvantari Chalisa) – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

श्रीहरि के आदेश पर जब देवता व दानव साथ मिलकर समुंद्र मंथन का कार्य कर रहे थे तब उसमे से चौदह रत्नों की प्रप्ति हुई थी। उस समय समुंद्र में से भगवान धन्वंतरि भी निकले थे जो अपने साथ अमृत कलश के साथ ही आयुर्वेद का ज्ञान लेकर प्रकट हुए थे। ऐसे में भगवान धन्वंतरी को आयुर्वेद का जनक माना जाता है। इसलिए आज के इस लेख में आपको धन्वंतरी चालीसा (Dhanvantari Chalisa) पढ़ने को मिलेगी।

आयुर्वेद में मानवीय शरीर की सभी जटिल सरंचनाओं का गहन अध्ययन कर उसमें हो सकने वाले रोगों और उनके उपचारों का विस्तृत उल्लेख किया गया है जो किसी भी मनुष्य को स्वस्थ बनाने की क्षमता रखता है। इसी को ध्यान में रखते हुए और भगवान धन्वंतरी के महत्व को बताने के उद्देश्य से हम आपके साथ धन्वंतरी चालीसा इन हिंदी (Dhanvantari Chalisa In Hindi) में भी सांझा करेंगे ताकि आप उसका भावार्थ समझ सकें। अंत में आपको श्री धन्वंतरि चालीसा पढ़ने के लाभ व महत्व (Shri Dhanvantari Chalisa) भी जानने को मिलेंगे।

धन्वंतरी चालीसा (Dhanvantari Chalisa)

॥ दोहा ॥

करूं वंदना गुरू चरण रज, हृदय राखी श्री राम।
मातृ पितृ चरण नमन करूँ, प्रभु कीर्ति करूँ बखान॥

तव कीर्ति आदि अनंत है, विष्णु अवतार भिषक महान।
हृदय में आकर विराजिए, जय धन्वंतरि भगवान॥

॥ चौपाई ॥

जय धनवंतरि जय रोगारी, सुनलो प्रभु तुम अरज हमारी।

तुम्हारी महिमा सब जन गावें, सकल साधुजन हिय हरषावे।

शाश्वत है आयुर्वेद विज्ञाना, तुम्हरी कृपा से सब जग जाना।

कथा अनोखी सुनी प्रकाशा, वेदों में ज्यूँ लिखी ऋषि व्यासा।

कुपित भयऊ तब ऋषि दुर्वासा, दीन्हा सब देवन को श्रापा।

श्री हीन भये सब तबहि, दर दर भटके हुए दरिद्र हि।

सकल मिलत गए ब्रह्मा लोका, ब्रह्म विलोकत भये हुँ अशोका।

परम पिता ने युक्ति विचारी, सकल समीप गए त्रिपुरारी।

उमापति संग सकल पधारे, रमा पति के चरण पखारे।

आपकी माया आप ही जाने, सकल बद्धकर खड़े पयाने।

इक उपाय है आप हि बोले, सकल औषध सिंधु में घोंले।

क्षीर सिंधु में औषध डारी, तनिक हंसे प्रभु लीला धारी।

मंदराचल की मथानी बनाई, दानवो से अगुवाई कराई।

देव जनो को पीछे लगाया, तल पृष्ठ को स्वयं हाथ लगाया।

मंथन हुआ भयंकर भारी, तब जन्मे प्रभु लीलाधारी।

अंश अवतार तब आप ही लीन्हा, धनवंतरि तेहि नामहि दीन्हा।

सौम्य चतुर्भुज रूप बनाया, स्तवन सब देवों ने गाया।

अमृत कलश लिए एक भुजा, आयुर्वेद औषध कर दूजा।

जन्म कथा है बड़ी निराली, सिंधु में उपजे घृत ज्यों मथानी।

सकल देवन को दीन्ही कान्ति, अमर वैभव से मिटी अशांति।

कल्पवृक्ष के आप है सहोदर, जीव जंतु के आप है सहचर।

तुम्हरी कृपा से आरोग्य पावा, सुदृढ़ वपु अरु ज्ञान बढ़ावा।

देव भिषक अश्विनी कुमारा, स्तुति करत सब भिषक परिवारा।

धर्म अर्थ काम अरु मोक्षा, आरोग्य है सर्वोत्तम शिक्षा।

तुम्हरी कृपा से धन्व राजा, बना तपस्वी नर भू राजा।

तनय बन धन्व घर आये, अब्ज रूप धनवंतरि कहलाये।

सकल ज्ञान कौशिक ऋषि पाये, कौशिक पौत्र सुश्रुत कहलाये।

आठ अंग में किया विभाजन, विविध रूप में गावें सज्जन।

अथर्व वेद से विग्रह कीन्हा, आयुर्वेद नाम तेहि दीन्हा।

काय, बाल, ग्रह, उर्ध्वांग चिकित्सा, शल्य, जरा, दृष्ट्र, वाजी सा।

माधव निदान, चरक चिकित्सा, कश्यप बाल, शल्य सुश्रुता।

जय अष्टांग जय चरक संहिता, जय माधव जय सुश्रुत संहिता।

आप है सब रोगों के शत्रु, उदर नेत्र मष्तिक अरु जत्रु।

सकल औषध में है व्यापी, भिषक मित्र आतुर के साथी।

विश्वामित्र ब्रह्म ऋषि ज्ञान, सकल औषध ज्ञान बखानि।

भारद्वाज ऋषि ने भी गाया, सकल ज्ञान शिष्यों को सुनाया।

काय चिकित्सा बनी एक शाखा, जग में फहरी शल्य पताका।

कौशिक कुल में जन्मा दासा, भिषकवर नाम वेद प्रकाशा।

धन्वंतरि का लिखा चालीसा, नित्य गावे होवे वाजी सा।

जो कोई इसको नित्य ध्यावे, बल वैभव सम्पन्न तन पावें।

॥ दोहा ॥

रोग शोक सन्ताप हरण, अमृत कलश लिए हाथ।
जरा व्याधि मद लोभ मोह, हरण करो भिषक नाथ॥

धन्वंतरी चालीसा इन हिंदी (Dhanvantari Chalisa In Hindi)

॥ दोहा ॥

करूं वंदना गुरू चरण रज, हृदय राखी श्री राम।
मातृ पितृ चरण नमन करूँ, प्रभु कीर्ति करूँ बखान॥

तव कीर्ति आदि अनंत है, विष्णु अवतार भिषक महान।
हृदय में आकर विराजिए, जय धन्वंतरि भगवान॥

मैं गुरुओं के चरणों को धोकर और उनकी वंदना कर, श्रीराम को अपने हृदय में बसाकर तथा माता-पिता के चरणों को नमस्कार कर प्रभु धन्वंतरी जी की चालीसा के जरिये उनकी महिमा का वर्णन करता हूँ। भगवान धन्वंतरि का यश इस सृष्टि में हर जगह है जिसका कोई अंत नहीं है। वे साक्षात श्रीहरि के अवतार हैं। हे धन्वंतरि भगवान!! अब आप मेरे हृदय में वास कीजिये।

॥ चौपाई ॥

जय धनवंतरि जय रोगारी, सुनलो प्रभु तुम अरज हमारी।

तुम्हारी महिमा सब जन गावें, सकल साधुजन हिय हरषावे।

शाश्वत है आयुर्वेद विज्ञाना, तुम्हरी कृपा से सब जग जाना।

कथा अनोखी सुनी प्रकाशा, वेदों में ज्यूँ लिखी ऋषि व्यासा।

धन्वंतरि भगवान की जय हो। जो हमारे रोगों का निवारण कर देते हैं, उनकी जय हो। अब आप हमारी प्रार्थना को भी सुन लीजिये। आपकी महिमा का वर्णन तो सभी करते हैं और साधु भी आपको देखकर हर्षित होते हैं। आयुर्वेद का विज्ञान हमेशा रहने वाला है और आपकी कृपा से ही हमें यह ज्ञान प्राप्त हुआ था। आपकी कथा बहुत ही अद्भुत है जिसे महर्षि वेदव्यास ने वेदों में लिखा है।

कुपित भयऊ तब ऋषि दुर्वासा, दीन्हा सब देवन को श्रापा।

श्री हीन भये सब तबहि, दर दर भटके हुए दरिद्र हि।

सकल मिलत गए ब्रह्मा लोका, ब्रह्म विलोकत भये हुँ अशोका।

परम पिता ने युक्ति विचारी, सकल समीप गए त्रिपुरारी।

एक बार देवताओं के कृत्य से ऋषि दुर्वासा बहुत क्रोधित हो गए थे और उसी क्रोध में उन्होंने देवताओं को श्राप दे दिया था। सभी देवता लक्ष्मी रहित हो गए थे और निर्धन होकर इधर-उधर भटक रहे थे। अपनी दुविधा को लेकर सभी देवता ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जी से मिलने गए। तब ब्रह्मा जी ने इस समस्या के समाधान के लिए त्रिपुरारी (महादेव) के पास जाने को कहा।

उमापति संग सकल पधारे, रमा पति के चरण पखारे।

आपकी माया आप ही जाने, सकल बद्धकर खड़े पयाने।

इक उपाय है आप हि बोले, सकल औषध सिंधु में घोंले।

क्षीर सिंधु में औषध डारी, तनिक हंसे प्रभु लीला धारी।

इसके बाद सभी देवता ब्रह्मा जी व उमापति (शिव जी) के साथ क्षीर सागर में रमापति (भगवान विष्णु) के पास पहुंचे और उनके चरणों की वंदना की। देवताओं ने मायापति (विष्णु) की माया का वर्णन किया और समस्या का समाधान करने को कहा। यह सुनकर श्रीहरि ने इसका उपाय बताया कि इसके लिए सागर में औषधि मिली हुई है। श्रीहरि ने ही क्षीर सागर में औषधि घोली थी और यह देखकर वे अपनी ही लीला पर हंस पड़े।

मंदराचल की मथानी बनाई, दानवो से अगुवाई कराई।

देव जनो को पीछे लगाया, तल पृष्ठ को स्वयं हाथ लगाया।

मंथन हुआ भयंकर भारी, तब जन्मे प्रभु लीलाधारी।

अंश अवतार तब आप ही लीन्हा, धनवंतरि तेहि नामहि दीन्हा।

श्रीहरि के आदेश पर मंदराचल पर्वत की मथानी बनायी गयी और शेषनाग को रस्सी की जगह उपयोग में लाया गया। स्वयं भगवान श्रीहरि ने कच्छप अवतार लेकर उस पर्वत को आधार दिया। दानवों को शेषनाग के मुख की ओर जबकि देवताओं को उसकी पूँछ की ओर लगाया गया। बहुत दिनों तक समुंद्र मंथन का यह कार्य चलता रहा और अंत में उसमें से लीलाधारी प्रभु प्रकट हुए। वह श्रीहरि का ही अंशावतार थे जिनका नाम धन्वंतरि रखा गया।

सौम्य चतुर्भुज रूप बनाया, स्तवन सब देवों ने गाया।

अमृत कलश लिए एक भुजा, आयुर्वेद औषध कर दूजा।

जन्म कथा है बड़ी निराली, सिंधु में उपजे घृत ज्यों मथानी।

सकल देवन को दीन्ही कान्ति, अमर वैभव से मिटी अशांति।

भगवान धन्वंतरि चार भुजाएं व सौम्य रूप लिए हुए थे। सभी देवताओं ने उनके नाम की जय-जयकार की। उनके एक हाथ में अमृत कलश तो दूसरे हाथ में आयुर्वेद की औषधियों का ज्ञान था। भगवान धन्वंतरी की जन्मकथा तो बहुत ही निराली है जो समुंद्र मंथन से प्रकट हुए थे। उन्होंने सभी देवताओं को अमृतपान करवा कर उन्हें अमरता प्रदान की जिससे उसके शरीर में तेज व मन में शांति का अनुभव हुआ।

कल्पवृक्ष के आप है सहोदर, जीव जंतु के आप है सहचर।

तुम्हरी कृपा से आरोग्य पावा, सुदृढ़ वपु अरु ज्ञान बढ़ावा।

देव भिषक अश्विनी कुमारा, स्तुति करत सब भिषक परिवारा।

धर्म अर्थ काम अरु मोक्षा, आरोग्य है सर्वोत्तम शिक्षा।

कल्पवृक्ष जो अत्यधिक औषधीय गुण लिए होता है, आप उसके भाई हैं। आप सभी तरह के जीव-जंतुओं के सहायक हैं। आपकी कृपा से ही हम स्वस्थ रहते हैं और हमारा शरीर शक्तिशाली बनता है। देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार, अपने परिवार सहित आपकी आराधना करते हैं। धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष में सर्वोत्तम शिक्षा आरोग्य रहने की ही है क्योंकि यदि शरीर ही स्वस्थ नहीं रहेगा तो हम बाकि कुछ भी नहीं कर पाएंगे।

तुम्हरी कृपा से धन्व राजा, बना तपस्वी नर भू राजा।

तनय बन धन्व घर आये, अब्ज रूप धनवंतरि कहलाये।

सकल ज्ञान कौशिक ऋषि पाये, कौशिक पौत्र सुश्रुत कहलाये।

आठ अंग में किया विभाजन, विविध रूप में गावें सज्जन।

आपकी कृपा से तो धन-धान्य से संपन्न राजा भी तपस्वी बन जाता है और संपूर्ण भूमि पर राज करता है। शरीर स्वस्थ होने से घर धन-धान्य से भरा रहता है और उस घर में कमल रूप में भगवान धन्वंतरी प्रवेश करते हैं। धन्वंतरि भगवान की कृपा से कौशिक ऋषि को आयुर्वेद का संपूर्ण ज्ञान मिला और उन्हीं कौशिक के पौत्र सुश्रुत थे। सुश्रुत जी ने आयुर्वेद का आठ भागों में विभाजन किया और उसे आमजन को उपलब्ध करवाया।

अथर्व वेद से विग्रह कीन्हा, आयुर्वेद नाम तेहि दीन्हा।

काय, बाल, ग्रह, उर्ध्वांग चिकित्सा, शल्य, जरा, दृष्ट्र, वाजी सा।

माधव निदान, चरक चिकित्सा, कश्यप बाल, शल्य सुश्रुता।

जय अष्टांग जय चरक संहिता, जय माधव जय सुश्रुत संहिता।

आयुर्वेद के ज्ञान को अथर्ववेद में लिखा हुआ था जिसे अलग कर आपने उसे आयुर्वेद नाम दिया। आयुर्वेद में शरीर, बाल, ग्रह, उर्ध्वांग, शल्य, जरा, दृष्ट्र, वाजी इत्यादि की चिकित्सा का वर्णन मिलता है। माधव निदान, चरक चिकित्सा, कश्यप बाल, शल्य सुश्रुत सभी उसी के ही अंग हैं। अष्टांग, चरक संहिता, माधव व सुश्रुत संहिता सभी की जय हो जिन्होंने आयुर्वेद को फैलाने का कार्य कर मनुष्य जाति का कल्याण किया।

आप है सब रोगों के शत्रु, उदर नेत्र मष्तिक अरु जत्रु।

सकल औषध में है व्यापी, भिषक मित्र आतुर के साथी।

विश्वामित्र ब्रह्म ऋषि ज्ञान, सकल औषध ज्ञान बखानि।

भारद्वाज ऋषि ने भी गाया, सकल ज्ञान शिष्यों को सुनाया।

भगवान धन्वंतरी सभी तरह के रोगों के शत्रु हैं फिर चाहे वह पेट, आँख, मस्तिष्क, हड्डियों इत्यादि से संबंधित हो। आयुर्वेद की औषधियों में इन सभी का उपचार है और वैद्य हमारा उपचार इसी की सहायता से करता है। विश्वामित्र जो कि ब्रह्मर्षि हैं, उन्होंने भी भगवान धन्वंतरी जी के द्वारा दिए गए औषधीय ज्ञान का वर्णन किया है। भारद्वाज ऋषि भी उनके ज्ञान का वर्णन करते हैं और अपने शिष्यों को उसके बारे में बताते हैं।

काय चिकित्सा बनी एक शाखा, जग में फहरी शल्य पताका।

कौशिक कुल में जन्मा दासा, भिषकवर नाम वेद प्रकाशा।

धन्वंतरि का लिखा चालीसा, नित्य गावे होवे वाजी सा।

जो कोई इसको नित्य ध्यावे, बल वैभव सम्पन्न तन पावें।

गुरुकुलों में काय चिकित्सा को एक अलग विषय मानकर उसकी एक शाखा बनायी गयी और इसी के कारण ही संपूर्ण विश्व को शल्य चिकित्सा का ज्ञान हुआ। कौशिक के कुल में जन्मे वैद्यों ने संपूर्ण विश्व में आयुर्वेद का ज्ञान बढ़ाया। जो भी धन्वंतरि चालीसा को लिखता है या उसका जाप करता है, वह स्वस्थ काया वाला हो जाता है। जो कोई भी धन्वंतरी चालीसा का पाठ करता है, उसका शरीर बलवान व शक्तिशाली बनता है।

॥ दोहा ॥

रोग शोक सन्ताप हरण, अमृत कलश लिए हाथ।
जरा व्याधि मद लोभ मोह, हरण करो भिषक नाथ॥

इस सृष्टि के रोग, शोक व दुखों को हरने के लिए भगवान धन्वंतरी अपने साथ अमृत कलश लेकर समुंद्र में से निकले थे। हे भगवान धन्वंतरि!! अब आप हमारे रोग, संकट, अहंकार, कामना, मोह इत्यादि को दूर कर दीजिये।

धन्वंतरि चालीसा (Shri Dhanvantari Chalisa) – महत्व

भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के जनक हैं और उन्हें भगवान विष्णु का अंशावतार भी माना जाता है। उन्हीं के कारण ही इस सृष्टि को आयुर्वेद का ज्ञान हो पाया जिस कारण हम किसी भी रोग का निवारण कर पाने में सक्षम हुए। भारतीय चिकित्सा पद्धति इतनी अधिक उन्नत थी कि हम मानव के शरीर को पूर्ण रूप से स्वस्थ बनाने की क्षमता रखते थे किन्तु 800 वर्षों की दासता और उसमे भी 600 वर्षों के बर्बर इस्लामिक अत्याचारों ने सनातन साहित्य को नष्ट करने का काम किया।

फिर भी धन्वंतरि चालीसा में भगवान धन्वंतरी के गुणों, महत्व, शिक्षा, उद्देश्य इत्यादि के बारे में विस्तृत वर्णन मिलता है। ऐसे में यदि हम नित्य रूप से श्री धन्वंतरि चालीसा का पाठ करते हैं तो हमें उसके बहुत लाभ देखने को मिलते हैं। भगवान धन्वंतरि के बारे में संक्षिप्त रूप से संपूर्ण जानकारी देने तथा उनकी आराधना करने के लिए धन्वन्तरी चालीसा की रचना की गयी। यही धन्वन्तरि चालीसा का महत्व होता है।

श्री धन्वंतरी चालीसा पढ़ने के लाभ (Shree Dhanvantari Chalisa Benefits In Hindi)

आयुर्वेद का महत्व आप सभी को शायद ही बताने की आवश्यकता हो क्योंकि आप आयुर्वेद की शक्ति व क्षमता को अच्छे से जानते होंगे। जिस रोग या व्याधि का उपचार अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति में भी संभव नहीं होता है, वह आयुर्वेद की सहायता से सरलता से किया जा सकता है। इतना ही नहीं, आयुर्वेद की सहायता से व्यक्ति के शरीर पर कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है और वह रोग जड़सहित दूर हो जाता है। वह इसलिए क्योंकि आयुर्वेद में मनुष्य के शरीर की सभी जटिल प्रणालियों, सरंचनाओं और उसकी कार्यप्रणाली पर गहन अध्ययन कर उपचार लिखे गए हैं।

ऐसे में यदि आप धन्वंतरी चालीसा का प्रतिदिन पाठ करते हैं और भगवान धन्वंतरी का सच्चे मन से ध्यान करते हैं तो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है तथा हमारे अंदर रोगों से लड़ने की क्षमता विकसित होती है। इसी के साथ ही भगवान धन्वंतरी की कृपा दृष्टि भी हमारे ऊपर रहती है और वे हमें स्वस्थ शरीर प्रदान करते हैं। यही धन्वंतरि चालीसा को पढ़ने के मुख्य लाभ होते हैं।

धन्वंतरी चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: धन्वंतरी की पूजा कैसे की जाती है?

उत्तर: यदि आप भगवान धन्वंतरी जी की पूजा करना चाहते हैं तो सुबह के समय नहा-धोकर धन्वंतरी जी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर सच्चे मन से धन्वंतरी चालीसा व आरती का पाठ करना चाहिए।

प्रश्न: धन्वंतरी भगवान कौन है?

उत्तर: धन्वंतरी भगवान आयुर्वेद के जनक माने जाते हैं जिनका प्राकट्य समुंद्र मंथन के समय हुआ था। वे अपने साथ अमृत कलश व आयुर्वेद का ज्ञान लेकर समुंद्र में से निकले थे।

प्रश्न: धन्वंतरि आयुर्वेद क्या है?

उत्तर: भगवान धन्वंतरि ने ही इस सृष्टि को आयुर्वेद का ज्ञान दिया था। जिस पुस्तक में आयुर्वेद के बारे में लिखा गया है, वह धन्वंतरी जी ने ही प्रदान की थी। इस कारण उस पुस्तक को धन्वंतरि आयुर्वेद कहा जाता है।

प्रश्न: धन्वंतरि आयुर्वेद के देवता क्यों हैं?

उत्तर: समुंद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि ही आयुर्वेद का ज्ञान लेकर प्रकट हुए थे और सभी को उसके बारे में बताया था। ऐसे में धन्वंतरि जी को आयुर्वेद का देवता माना जाता है।

नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘‍♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:

अन्य संबंधित लेख:

Recommended For You

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *