रामायण में लक्ष्मण के मूर्छित होने पर हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने गए (Hanuman Sanjivani Buti) थे लेकिन वे अपने साथ पूरा का पूरा पहाड़ उठा लाए थे। लंका से संजीवनी पर्वत की दूरी लगभग चार हज़ार किलोमीटर की है। इस तरह से हनुमान जी ने कुछ ही घंटों में आठ हज़ार किलोमीटर की दूरी तय कर ली थी। इसमें भी आधी दूरी अर्थात हिमालय से लंका वापस आते समय उनके पास पूरा का पूरा संजीवनी पर्वत भी था।
अब इसी संजीवनी बूटी (Hanuman Sanjeevani Booti) से लक्ष्मण सही हो गए थे, यह तो सभी जानते हैं। अब यहाँ जो मुख्य प्रश्न उठता है, वह यह है कि क्या इस संजीवनी पर्वत को हनुमान जी ने लंका में ही रहने दिया था? या फिर इसे पुनः उसी जगह छोड़ आए थे, जहाँ से वे इसे उठा कर लाए थे। ऐसे में आज हम आपको हनुमान जी द्वारा संजीवनी बूटी लाने और उसके बाद की पूरी कहानी बताएँगे।
Hanuman Sanjivani Buti | हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने गए
जब लक्ष्मण मेघनाद के शक्ति बाण से मूर्छित हो गए थे तब वीर हनुमान लंका के राजवैद्य सुषेण के बताए अनुसार हिमालय से संजीवनी पर्वत को उठा लाए थे। रामायण के अनुसार यह पर्वत कैलाश तथा ऋषभ पर्वत के बीच स्थित था। वर्तमान में इसका स्थान उत्तराखंड के द्रोणागिरी पर्वत या उड़ीसा के गंधमर्दन पर्वत को माना जाता है।
सुषेण वैद्य ने हनुमान को सूर्योदय होने से पहले तक संजीवनी बूटी (Hanuman Ji Sanjivani Buti) लाने को कहा था अन्यथा लक्ष्मण के प्राण निकल जाते। संजीवनी बूटी का पता पाकर हनुमान हिमालय पर्वत की ओर उड़ पड़े। उन्होंने यह दूरी बहुत ही तेजी से पार की थी किंतु वहाँ पहुँचकर कई सारी दिव्य औषधियों को देखकर वे अचंभित हो गए थे।
संजीवनी पर्वत पर केवल संजीवनी बूटी ही नहीं थी बल्कि वहाँ कई सारी औषधियों का जमावड़ा था। वैद्यराज सुषेण ने हनुमान जी को संजीवनी बूटी के बारे में जो विवरण दिया था, वह हनुमान जी को याद तो था लेकिन उसके जैसी दिखने वाली और भी कई औषधियां वहाँ थी। ऐसे में हनुमान को यह डर था कि यदि वे गलती से संजीवनी बूटी की बजाए किसी और औषधि को ले जाएँगे तो लक्ष्मण के प्राण नहीं बचाए जा सकेंगे।
वहीं इतना समय भी नहीं था कि इस बात का पता लगाया जा सके कि इन सभी में संजीवनी बूटी (Sanjivani Buti Hanuman) कौन-सी है। इसलिए समय व्यर्थ न करते हुए हनुमान पूरा का पूरा संजीवनी पहाड़ ही उठा लाए थे। इसके लिए उन्होंने अपने शरीर को बहुत बड़ा कर लिया था ताकि संजीवनी पर्वत को उठाया जा सके।
Hanuman Sanjeevani Booti | क्या हनुमान जी संजीवनी पर्वत को वापस छोड़ आए थे?
जब वैद्यराज सुषेण ने संजीवनी बूटी से लक्ष्मण का उपचार कर लिया तथा वे भलीभाँति ठीक हो गए तब उन्होंने हनुमान को वह पर्वत वापस उसी स्थान पर रख आने को बोला। इस पर हनुमान ने प्रश्न किया कि अब इसकी क्या आवश्यकता है।
इस प्रश्न का उत्तर सुषेण वैद्य ने विस्तार से दिया। उन्होंने हनुमान व अन्य लोगों को समझाया कि किसी चीज़ पर केवल एक प्राणी या जाति का अधिकार नहीं होता। यह पहाड़ तथा उस पर उगने वाली विभिन्न बूटियाँ केवल हिमालय के प्राकृतिक स्वरुप में ही फलफूल सकती हैं। यदि उन्हें इसी लंका नगरी में रखा गया तो एक बार समाप्त होने के पश्चात वह वापस नहीं उगेगी।
इससे उस पर्वत की महत्ता समाप्त हो जाती तथा उन बूटियों से मिलने वाला मानव जाति को लाभ अधूरा रह जाता। इसलिए सुषेण वैद्य ने वह पर्वत उसी स्थान पर वापस रख आने को बोला। सुषेण वैद्य के यह वचन सुनकर हनुमान को अपनी भूल का आभास हुआ। इसके बाद वे श्रीराम से आज्ञा पाकर पुनः उस पर्वत और संजीवनी बूटी (Hanuman Sanjivani Buti) को उसी जगह रख आए।
Hanuman Sanjivani Buti से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: हनुमान जी संजीवनी बूटी कौन से पर्वत से लाए थे?
उत्तर: हनुमान जी संजीवनी बूटी उत्तराखंड के द्रोणागिरी पर्वत से लाए थे। हालाँकि इसको लेकर उड़ीसा के गंधमर्दन पर्वत से विरोधाभास देखने को मिलता है।
प्रश्न: संजीवनी पर्वत अभी भी श्रीलंका में है?
उत्तर: नहीं, संजीवनी पर्वत श्रीलंका में नहीं है। हनुमान जी ने वैद्यराज सुषेण के कहने पर लक्ष्मण उपचार के बाद उस पर्वत को पुनः उसी जगह छोड़ दिया था, जहाँ से वे इसे लाए थे।
प्रश्न: हनुमान कौन सा पौधा लाए थे?
उत्तर: हनुमान जी कोई पौधा नहीं बल्कि पूरा का पूरा पहाड़ चक लाए थे। हालाँकि वे मुख्य तौर पर संजीवनी का पौधा लेने गए थे।
प्रश्न: संजीवनी पर्वत अभी कहां है?
उत्तर: इसको लेकर जो मत सर्वाधिक प्रचलित है, उसके अनुसार यह उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित द्रोणागिरी पर्वत है।
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