Mahashivratri Vrat Katha: महाशिवरात्रि व्रत कथा व शिकारी को मोक्ष मिलना

Mahashivratri Vrat Katha

आज हम आपको महाशिवरात्रि की कथा (Mahashivratri Vrat Katha) विस्तार से बताएंगे। महाशिवरात्रि का पर्व हर वर्ष फाल्गुन मास में कृष्ण चतुर्दशी के दिन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह हुआ था। महाशिवरात्रि के दिन सभी भक्तगण प्रातः काल जल्दी उठकर शिव मंदिर जाकर शिवलिंग की पूजा करते हैं।

इस दिन सभी भक्तगण एक कथा सुनते हैं जिसे महाशिवरात्रि व्रत कथा (Mahashivratri Katha) के नाम से जाना जाता है। वैसे तो महाशिवरात्रि के दिन से 5 कथाएं जुड़ी हुई है लेकिन उनमें से एक कथा को महाशिवरात्रि की व्रत कथा के रूप में सुना जाता है। आइए उसके बारे में जानते हैं।

महाशिवरात्रि की कथा (Mahashivratri Vrat Katha)

महाशिवरात्रि के दिन भक्तों के द्वारा उपवास रखने व शिवजी को बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा है। वैसे तो शिवजी को कई चीजें चढ़ाई जाती है लेकिन बेल पत्र के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। यह शिवजी को अत्यधिक प्रिय होता है। अब शिवजी को बेल पत्र चढ़ाने की परंपरा महाशिवरात्रि की कथा से ही शुरू हुई थी।

महा शिवरात्रि वाले दिन शिव-पार्वती का विवाह हुआ था, यह तो सभी जानते हैं लेकिन महाशिवरात्रि कथा (Maha Shivratri Katha) अलग है जो एक शिकारी से जुड़ी हुई है। इसका वर्णन स्वयं शिव पुराण में मिलता है। जो लोग महाशिवरात्रि का व्रत रखते हैं, उनके लिए इस कथा को सुनना जरुरी होता है। आइए पढ़ें शिकारी व शिव की कथा।

महाशिवरात्रि व्रत कथा (Mahashivratri Katha)

एक बार एक शिकारी था जिसका नाम था चित्रभानु। वह जंगली पशुओं का शिकार करके अपना व अपने परिवार का पेट भरता था व इसी तरह उनका जीवन यापन होता था। उस शिकारी पर एक सेठ का ऋण था जिसे वह चुका नहीं पा रहा था। इसी कारण सेठ ने एक दिन उसे बंदी बना लिया व सुबह से भूखा रखा। उसी दिन महाशिवरात्रि का पर्व भी था।

शाम के समय सेठ ने उसे कारागार से निकाला व ऋण चुकाने के लिए एक दिन का समय दिया। अगले दिन सुबह तक शिकारी उसका ऋण चुकाने का वादा करके वहां से निकल गया। वह अपने घर जा रहा था व बीच में एक जंगल पड़ता था। दिन भर भूख प्यास के कारण वह बहुत थक गया था व रात भी होने को आई थी। उसने सोचा इसी जंगल में कुछ जानवरों का शिकार करके वह अपना व परिवार का पेट भर लेगा व साथ में सेठ का ऋण भी चुका देगा।

इसी आशा में वह एक बेल के वृक्ष पर चढ़ गया। उस बेल के वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्व पत्रों से ढका हुआ था। उस शिवलिंग को शिकारी देख नहीं पाया था किंतु उसके पेड़ पर चढ़ते समय कुछ बिल्व पत्र टूटकर शिवलिंग पर गिरे थे। उसी वृक्ष के पास एक तालाब भी था जहाँ जंगली पशु-पक्षी जल पीने आते थे।

  • चित्रभानु का पहला शिकार

वह कई देर तक वहां शिकार की प्रतीक्षा करता रहा। कुछ देर में एक हिरण तालाब से जल पीने आई जो गर्भवती थी। शिकारी उसे देखकर बहुत खुश हुआ व वह अपने धनुष पर तीर चढ़ाकर हिरण पर निशाना लगाने के लिए तैयार हो गया। हिरण ने शिकारी को देख लिया था व उसने शिकारी से विनती की कि वह अभी गर्भवती है। यदि शिकारी उसकी हत्या करेगा तो एक साथ दो-दो जीवों की हत्या होगी।

इसलिए वह अपने बच्चे को जन्म देकर स्वयं उसके पास आ जाएगी। हिरण की यह बात सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई और उसने उसे जाने दिया।

  • चित्रभानु का दूसरा शिकार

कुछ समय बाद एक दूसरी हिरण आई तो शिकारी ने उसे मारने के लिए अपना धनुष निकाला। उस हिरण ने भी शिकारी से प्रार्थना की कि वह अभी-अभी ऋतु से निवृत हुई है व संभोग की आशा में कामातुर है। इसीलिए वह अपने स्वामी को ढूंढ रही है। उसके पश्चात वह स्वयं उसके पास आ जाएगी ताकि वह उसका शिकार कर सके। शिकारी ने उसे भी जाने दिया।

  • चित्रभानु का तीसरा शिकार

ऐसा करते-करते मध्य रात्रि हो गई व चित्रभानु भूख से तड़पता रहा। तभी उसने एक और हिरण को अपने दो बच्चों के साथ तालाब पर आते देखा। उसने फिर से उस हिरण का शिकार करने के लिए अपना धनुष उठाया। उस हिरण ने भी शिकारी से याचना की कि वह अपने बच्चों को अपने पति के पास छोड़कर स्वयं उसके पास मरने के लिए आ जाएगी। शिकारी ने उस पर भी दया करके छोड़ दिया।

  • चित्रभानु का चौथा शिकार

अब सुबह होने को आई थी व सूर्य निकलने लगा था लेकिन शिकारी अभी तक एक भी शिकार नहीं कर पाया था। इसलिए वह भूख से अत्यधिक व्याकुल था। तभी उसने एक हृष्ट पुष्ट हिरण को वहां आते देखा व सोचा इसका शिकार तो वह अवश्य करेगा। उसने तुरंत ही उस हिरण को मारने के लिए अपना धनुष उठा लिया।

यह देखकर उस हिरण ने शिकारी से कहा कि यदि वह यहाँ आने वाली तीनों हिरणों को पहले ही मार चुका है तो वह उसे भी मार दे। वहीं यदि उसने उन्हें क्षमा कर दिया है तो वह उसे भी क्षमा कर दे। उसने शिकारी को बताया कि वह उन तीनों हिरणों का पति है। यदि वह उसको मार देगा तो वे तीनों हिरण अपना दिया गया वचन पूरा नहीं कर पाएंगी।

उसने शिकारी से वादा किया कि वह उन तीनों हिरण से मिलेगा। उसके बाद वह सभी के साथ उस शिकारी के भोजन के लिए आ जाएगा। यह सुनकर शिकारी ने विवश होकर उस हिरण को भी जाने दिया।

  • चित्रभानु का हृदय परिवर्तन

सुबह हो चुकी थी व शिकारी भूख से तड़प रहा था। साथ ही उसके मन में यह संदेह भी था कि क्या वह सभी हिरण अपना किया वादा निभाएंगी या उसे भूखे ही यहाँ से जाना पड़ेगा। कुछ समय बाद उसने उस नर हिरण को अपनी तीनों पत्नियों के साथ शिकारी के पास आते देखा। उसके पास आकर सभी हिरणों ने अपना वचन निभाया था।

शिकारी पेड़ पर जिस जगह बैठा था, वहां उससे अनजाने में नीचे स्थित शिवलिंग पर बेलपत्र भी गिर रहे थे। इस कारण उसका हृदय निर्मल हो गया था। साथ ही जंगली पशुओं की ऐसी सत्यनिष्ठा का भाव देखकर उसे अपने पीछे किए गए कर्मों पर ग्लानि अनुभव हुई। उसने उन सभी से क्षमा मांगी व आगे से कभी शिकार नहीं करने की प्रतिज्ञा की।

  • चित्रभानु को मिला मोक्ष

अब उस शिकारी का हृदय निर्मल हो चुका था व साथ ही महाशिवरात्रि का व्रत भी। वह इसलिए क्योंकि शिकारी कल से भूखा था और कुछ नहीं खाया था, साथ ही उसने रातभर शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाए थे। साथ ही उसने क्षमा भाव दिखाकर पवित्र मन का भी संकेत दिया था।

शिकारी की ऐसी उदारता देखकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए व उन्होंने उसे दर्शन दिए। उन्होंने उस शिकारी को मृत्यु पश्चात मोक्ष प्रदान किया व शिवलोक में स्थान दिया। इसके बाद से ही महाशिवरात्रि (Maha Shivratri Katha) वाले दिन भक्तों के द्वारा उपवास रखने और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई। किन्तु इसी के साथ ही इसका भी ध्यान रखें कि शिवजी की कृपा उसी पर ही होती है, जिसका हृदय भी पवित्र हो।

निष्कर्ष

इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने महाशिवरात्रि की कथा (Mahashivratri Vrat Katha) के बारे में जान लिया है। सनातन धर्म से जुड़ी हरेक कथा हमें कोई ना कोई शिक्षा देकर जाती है। इसलिए हर कथा का अपना अलग महत्व है जो आपके जीवन को सरल व सुगम बनाने का कार्य करती है।

महाशिवरात्रि की कथा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: महाशिवरात्रि की असली कहानी क्या है?

उत्तर: महाशिवरात्रि की असली कहानी एक शिकारी से जुड़ी हुई है जिसका नाम चित्रभानु था इस लेख में हमने विस्तार से उस कहानी को बताया है

प्रश्न: महाशिवरात्रि का इतिहास क्या है?

उत्तर: महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का माता पार्वती के साथ विवाह हुआ था उसके बाद से ही इस दिन का महत्व सभी सनातनियों के बीच बढ़ गया था

प्रश्न: महाशिवरात्रि के पीछे की कहानी क्या है?

उत्तर: महाशिवरात्रि के पीछे की कहानी शिकारी को शिवजी के द्वारा मोक्ष मिलने की कथा से जुड़ी हुई है इसे हमने इस लेख में विस्तार से बताया है

प्रश्न: महाशिवरात्रि से क्या तात्पर्य है?

उत्तर: महाशिवरात्रि से तात्पर्य भगवान शिव व माता पार्वती की उपासना करने से है इस दिन भक्तों के द्वारा उपवास रखा जाता है और शिवलिंग की पूजा की जाती है

प्रश्न: महाशिवरात्रि की रात को क्या हुआ था?

उत्तर: महाशिवरात्रि की रात को भगवान शिव का माता पार्वती के साथ विवाह संपन्न हुआ था माता पार्वती ने उन्हें पुनः पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी

प्रश्न: महाशिवरात्रि की शुरुआत कब हुई?

उत्तर: महाशिवरात्रि की शुरुआत शिव-पार्वती के विवाह के बाद से हुई इस दिन दोनों का विवाह संपन्न हुआ था जिस कारण यह दिन एक पर्व बन गया

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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