गांव और शहर में अंतर (Difference Between Village And City In Hindi)

गाँव और शहर में अंतर

गाँव और शहर में अंतर (Gaon Aur Shahar Mein Antar) समझना है तो आपको आज की इस प्यारी सी कहानी को पढ़ना होगा। इस कहानी को मैंने एक चिड़िया के परिप्रेक्ष्य में लिखा है। कहने का अर्थ यह हुआ कि कहानी को एक नन्हीं सी चिड़िया की दृष्टि से लिखा गया है। इसमें वही चिड़िया अपने गाँव से शहर जाने के अनुभव को सांझा करती है।

आज के समय में जब हम देखते हैं कि शहर गाँवों से कितने आगे बढ़ चुके हैं, ऐसे में यह कहानी आपको बहुत कुछ नया सीखाकर जाने वाली है। एक तरह से यह कहानी ना केवल गांव और शहर में अंतर (Difference Between Village And City In Hindi) को दिखलाती है बल्कि मनुष्य क्या से क्या बनता जा रहा है, वह भी बताती है। तो चलिए उस चिड़िया की कहानी उसी की जुबानी शुरू करते हैं।

गाँव और शहर में अंतर (Gaon Aur Shahar Mein Antar)

चिड़िया के शब्दों में:

कैसे हो आप सभी, आज तक मैंने कभी कुछ लिखा नहीं क्योंकि मैं हमेशा उड़ने और खेलने में ही मस्त रहती थी। कभी इस गाँव से उस गाँव तो कभी अपने घर से भाभी के साथ मंदिर हो आती थी लेकिन आज तक शहर नहीं गई थी। आज पहली बार शहर देखकर आई हूँ और थक भी बहुत गई हूँ लेकिन मन में बहुत कुछ उमड़ रहा था तो सोचा कुछ लिख ही दूँ।

पहले अपने बारे में तो बता दूँ, वैसे तो मेरे मम्मी पापा ने मेरा कोई नाम नहीं रखा था क्योंकि चिड़ियों का नाम कहां होता है। आस पास के बच्चे मुझे चुनिया चुनिया कहके बुलाते थे तो मैंने सोचा शायद यही मेरा नाम हो। जब भी वे मुझे चुनिया कहके बुलाते तो मैं भी उड़के उनके साथ खेलने चली जाती थी। बहुत खुश होते थे मुझे देखकर।

बचपन से बाबा के घर के पास वाले पेड़ पर ही पली बढ़ी हूँ। सब उन्हें गाँव में होरी बाबा कहके बुलाते थे। एक छोटा सा खेत था उनका, दिन भर जब काम करके थक जाते थे तो मेरे घर वाले पेड़ के नीचे आकर ही आराम करते थे। मैं भी प्यार से उनके पास जाकर बैठ जाती थी। उनकी एक पत्नी भी थी धनिया। धनिया भाभी रोजाना मुझे अपने साथ मंदिर लेकर जाती थी। वहाँ मेरे जैसे और भी पंछी रोजाना आते थे। धनिया भाभी भगवान की पूजा के बाद उन्हें दाना देती थी और वे भी बहुत खुश हो जाते थे।

उनको दो प्यारी सी बेटियां भी थी, एक का नाम था सोना और दूसरी थी रूपा। दोनों के साथ मैं दिन भर खेलती थी। कभी खेल-खेल में रूपा को चोट लग जाती तो सोना से जल्दी जाकर धनिया भाभी को मैं ही बुलाकर लाती थी। सोना तो मेरी भाषा नहीं समझती थी लेकिन रूपा मुझसे बहुत बातें किया करती थी। हमेशा मुझे कहती थी कि मुझे शहर घूमने जाना है। सुना है वहाँ लोग बहुत आराम से रहते हैं, बहुत हँसते खेलते हैं, वहाँ बहुत कुछ है किसी चीज की कमी नहीं है।

मैं भी सोचती कि आखिर ऐसा क्या है वहाँ? मैं भी अभी छोटी थी तो ज्यादा दूर तक गई नहीं थी लेकिन अब मैं भी धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी। मम्मी पापा ने आस पास गाँवों तक ही जाने को बोला था, पता नहीं क्यों शहर जाने को मना करते थे। पूछती तो डांट दिया करते थे लेकिन रूपा मुझे हमेशा कहती कि तू तो उड़कर जा सकती है तो एक बार मेरे लिए देखकर आ ना कि वहाँ लोग कैसे रहते हैं। क्या जैसे टीवी में दिखाते हैं वैसा ही है वहाँ। मैंने सुना है शहर में तो स्वर्ग है।

एक दिन मम्मी पापा मुझे रूपा के पास छोड़कर पास के गाँव में चाचा-चाची से मिलने गए थे। वे 2-3 दिन बाद आने वाले थे, मेरे पास भी मौका था। मैंने बस रूपा को बताया और उड़ गई शहर की उड़ान। बहुत दूर था शहर तो बीच-बीच में आराम करती और खा पीकर वापस उड़ जाती।

अचानक से मुझे सांस लेने में थोड़ी परेशानी हुई, सोचा किसी ने कुछ जला दिया होगा। गर्मी भी पता नहीं क्यों अचानक से बढ़ गई थी लेकिन धुएं के कारण कुछ ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था। फिर अचानक से मैं उड़ते-उड़ते किसी चीज़ से जोर से टकराई। मैं लड़खड़ा कर एक दम से रुक गई, देखा तो थोड़ी सी ही चोट लगी थी। आँखें साफ करके देखा तो सामने एक बहुत बड़ा घर था। मैं तो देखते ही रह गई कि इतना बड़ा घर।

फिर जब आसपास देखा तो सभी घर बहुत बड़े-बड़े थे, बहुत शोर भी हो रहा था, सोचा शायद शहर आ गया। मैं बहुत खुश हुई कि आखिर इतनी देर बाद शहर आखिरकार आ ही गया। अब सब देखूंगी और रूपा को बताऊंगी। देखने के लिए आसमान से नीचे उतरी तो शोर कुछ ज्यादा बढ़ गया था। पता नहीं किस चीज़ का शोर था। फिर एक दम से शोर इतना बढ़ा जैसे कि मेरे कान फट जाएंगे। अचानक से एक बड़ी सी बैलगाड़ी जैसी चीज़ बहुत तेज आवाज़ करते हुए मेरे सामने से निकल गई। मैं डर के मारे वापस ऊपर चली गई।

ऊपर से ही नीचे देखा तो वहाँ केवल एक ही बैलगाड़ी नहीं बल्कि हजारों बैलगाड़ियां चल रही थी लेकिन उनको गाय और भैंस नहीं चला रहे थे। साथ ही वे सब चल भी बहुत तेज रही थी। ध्यान से देखा और सुना तो शोर उन्हीं से आ रहा था और पीछे से धुआं भी छोड़ रही थी।

वहाँ मुझे बैठने के लिए कोई पेड़ नहीं दिख रहा था, गर्मी भी बहुत थी, प्यास भी लगी थी। जहाँ बैठी थी वहां धूप थी तो एक घर की बालकनी में जाकर बैठ गई। कुछ बच्चे खेल रहे थे वहाँ, सोचा उनके साथ खेल लूंगी और कुछ बात भी कर लूंगी लेकिन ये क्या मुझे देखकर तो डर गए वे सब और मुझे उड़ाने लगे। मैं पूछने लगी कि क्या हुआ तो मेरी बात सुनी भी नहीं और मुझे मारने दौड़े। मैं भी गुस्से में वहाँ से उड़ गई।

आसपास सब घर ही थे, कोई खाली जगह ही नहीं थी, ना पानी था और ना ही कुछ खाने को दिख रहा था। मुझे लगा थोड़ा उड़कर कहीं और जाती हूँ, शायद कहीं कुछ मिल ही जाए। थोड़ा उड़ी तो अचानक से मुझे बहुत सारे पेड़ दिखे। मैं बहुत खुश हो गई। जल्दी से वहाँ गई और एक पेड़ के नीचे आराम करने लगी। वहाँ कुछ लोग घूम रहे थे तो कुछ बैठे थे।

मैंने छुपकर कुछ लोगों की बातें सुनी तो समझ में आया कि वे लोग इसे पार्क बोलते हैं। मैं हंसी, मैं तो सोच रही थी कि फिर इस पार्क को अलग से बनाने की क्या जरुरत थी। हमारा तो पूरा गाँव एक पार्क है और उसी पार्क के अंदर लोगों के घर हैं।

यही देखते-देखते शाम हो गई और गर्मी भी थोड़ी कम हो गई। धूप तो गाँव में भी निकलती थी लेकिन पता नहीं क्यों यहाँ कुछ ज्यादा थी। फिर उड़कर एक घर की बालकनी में गई, वहाँ कोई नहीं था लेकिन पता नहीं एक चीज़ चल रही थी। शायद एसी था, एक बार सोना ने बताया था कि शहरों में लोगों के पास पंखे नहीं एसी होते हैं और उससे बहुत ठंडी हवा मिलती है। मैं यही सोचकर उसके पास चली गई लेकिन ये क्या ये तो बहुत गर्म हवा फेंक रहा था। ऐसा लगा जैसे कि मेरे पंख जल जाएंगे। मुझे सोना पर बहुत गुस्सा आया, घर जाकर उसे बहुत डांट लगाऊंगी।

सुबह से किसी से बात नहीं की थी, सोचा शहर के इंसान तो बहुत व्यस्त हैं तो किसी और से ही बात कर लूं। नीचे देखा तो एक कुत्ता था लेकिन बहुत सूख गया था। उससे जाकर पूछा कि क्यों भाई, कुछ खाते पीते नहीं हो क्या, कैसे सूख से गए हो। मेरे गाँव का कुत्ता तो खा-खा के पूरा शेरू बन गया है। वो उदास होकर बोला कि अब लोगों ने घरों में विदेशी कुत्ते पाल लिए हैं, इस कारण हमें भूल गए हैं।

अब हमें कोई खाना ही नहीं देगा तो खाएंगे कहां से। मैं भी सोच में पड़ गई लेकिन आसपास देखा तो शायद सभी गाय कुत्ते भूखे-भूखे ही नज़र आ रहे थे। कुछ बिल्कुल खाली पेट थे तो कुछ का आधा ही भरा था। मुझे लगा शायद यहाँ खाने की कमी होगी। कभी-कभी बाबा की भी खेती बिगड़ जाती है तो दिन में एक बार ही खाना खा पाते हैं।

अब थोड़ा अँधेरा होने लगा था व पानी अभी तक नहीं मिला था। सोचा किसी घर में जाकर ही मांगना पड़ेगा। यही सोचकर एक घर की खिड़की से झांककर अंदर देखा तो कोई कुछ बोल नहीं रहा था। सब अपने हाथ में मोबाइल लेकर बैठे थे लेकिन किसी से बात नहीं कर रहे थे। बाबा के पास भी मोबाइल था लेकिन वो तो झट से नंबर मिला लेते थे। ये सब तो इतने पढ़े लिखे हैं फिर भी किसी से नंबर क्यों नहीं मिल रहा। कोई आपस में भी बात नहीं कर रहा था तो मुझे लगा शायद इनमें झगड़ा हुआ है व आपस में नाराज़ हैं। मैं इस समय इनसे पानी मांगूंगी तो मुझ पर भी गुस्सा करेंगे।

अब अँधेरा हो चुका था लेकिन लोग अभी भी काम कर रहे थे। गाँव में तो लोग दिन ढलते ही फ्री हो जाते थे और सब दोस्त मिलकर खेलते थे। सब गाँव की सहेलियां मिलकर नाच गाना करती थी, आदमी लोग खटिया डालकर दिन भर की बातें और मैं बच्चों के साथ खेलती थी। इस समय तक तो सब सो भी जाते थे फिर सुबह जल्दी उठना भी तो होता था लेकिन यहाँ सब शायद देर तक काम करते हैं और देर से उठते हैं।

अँधेरा हो चला था और अब सड़कों पर बहुत कम लोग थे। तभी मैंने देखा कि कुछ लोग मदिरा पीकर अपनी बैलगाड़ी में बैठ रहे थे। शायद बहुत पी ली थी, कभी-कभी होरी बाबा भी अपने दोस्तों के साथ पी लिया करते थे। मैंने सोचा इनकी बैलगाड़ी बहुत तेज चलती है तो मैं भी इन्हें घर छोड़ आती हूँ लेकिन वो बहुत तेज चला रहे थे।

मैं भी पूरी तेजी के साथ उनके साथ-साथ उड़ रही थी लेकिन ये क्या उन्होंने तो एक फुटपाथ पर गाड़ी चढ़ा दी थी। कुछ लोग सो रहे थे वहाँ, बहुत चोट लगी थी, कई तो चोट के मारे बेहोश हो गए थे। सोचा जल्दी से इनको गाड़ी में बिठाकर डॉक्टर के पास ले जाने में मदद करूंगी लेकिन ये क्या वो गाड़ी तो उनको कुचलते हुए आगे बढ़ गई। मैं तो ये सब देखती ही रह गई।

आसपास कुछ लोग थे मुझे लगा शायद उनके साथ मिलकर इन्हें डॉक्टर के पास पहुंचा दूंगी लेकिन वे तो पता नहीं अपने मोबाइल से उनके मुँह पर लाइट मार रहे थे। मुझे समझ नहीं आया, पास जाकर देखा तो वो तो गाँव के शादी में आने वाले कैमरामैन के जैसे उनकी वीडियो बना रहे थे।

मुझे लगा क्या ये लोग पागल हैं? सुबह से देख रही हूँ कि इन्हें हमारी कद्र नहीं है लेकिन क्या इन्हें खुद के लोगों की भी कद्र नहीं है? मुझे बहुत गुस्सा आया लेकिन उनकी मदद करूं भी तो कैसे करूं। कुछ देर में उन करहाते हुए लोगों की चीख अपने आप बंद हो गई। मैं यह देख ना सकी और अब मुझे इस शहर में एक मिनट भी नहीं रुकना था। मैं अब वापस अपने गाँव जाना चाहती थी।

सुबह से ना कुछ खाया था और ना ही पानी मिला था। बिना कुछ खाए पिए इतनी दूर कैसे जाऊंगी तो मैंने आसपास देखा। पास में एक खाने की दुकान दिखी, उसके पास ही एक कूड़ेदान था। लोग अपना खाना आधा खाते और आधा उसमें फेंक देते। मन मारकर उसी कूड़ेदान में से कुछ खाना खाया, बदबू तो आ रही थी लेकिन क्या करती। सड़क पर देखा तो एक जगह गड्ढा था जिसमें कुछ गंदा पानी इकठ्ठा हो गया था। मन मार कर वही पानी पिया सोचा अब आगे से कभी यह पानी नहीं पीना पड़ेगा क्योंकि अब कभी यहाँ आऊंगी ही नहीं।

अब मुझमें शक्ति आ चुकी थी और मैंने भर दी अपने गाँव अपने असली स्वर्ग की ओर उड़ान। मन में इतना गुस्सा था कि रात भर एक बार भी नहीं रुकी, ना आराम किया। मन में कई तरह के ख्याल आ रहे थे, सोच रही थी कि रूपा तो अभी बहुत छोटी है, उसे कैसे समझाऊंगी कि यह शहर एक स्वर्ग नहीं नरक है जहाँ किसी की कोई कद्र नहीं।

यहाँ लोग खुद को बहुत बड़ा और खुश समझते हैं लेकिन शायद उन्हें खुशी पता ही नहीं कि क्या होती है। यहाँ लोगों को लगता है कि उनके पास तो सब कुछ है लेकिन शायद उन्हें पता ही नहीं कि चैन कैसे मिलता है। यहाँ लोगों को लगता है कि उनके पास बहुत बड़े-बड़े पार्क हैं लेकिन उन्हें पता ही नहीं कि उन्होंने पार्क खत्म करके ही पार्क बनाए हैं।

सबसे बुरी बात जो मुझे लग रही थी कि यहाँ मुझे केवल इंसान ही इंसान दिखाई दिए। धनिया भाभी तो कहती थी कि ये दुनिया भगवान ने सभी जीवों के लिए बराबर बनाई है व सभी का इस पर समान अधिकार है फिर क्यों मुझे यहाँ कोई पंछी नहीं दिखाई दिया, आखिर कहाँ गए मेरे वे सभी दोस्त?

यही सोचते-सोचते मेरा गाँव आ गया और वहाँ सबको देखकर मैं यह सब भूल गई। रूपा ने पूछा तो उसे बताया कि शहर बहुत दूर था और मैं वहाँ तक जा ही नहीं पाई। आखिर उसे बताती भी तो क्या बताती। सोचा जब बड़ी हो जाएगी तब अपने आप समझ जाएगी कि उसका असली स्वर्ग शहर नहीं बल्कि यही गाँव है।

और इस तरह से इस कहानी का अंत हो जाता है आशा है कि अब आपको गाँव और शहर में अंतर (Gaon Aur Shahar Mein Antar) समझ में आ गया होगा। कहानी पसंद आई हो तो नीचे टिप्पणी करके हमें अवश्य बताइएगा।

गाँव और शहर में अंतर से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: गाँव और शहर में अंतर क्या है?

उत्तर: गाँव और शहर में अंतर को हमने इस लेख में एक चिड़िया की कहानी लेकर बहुत अच्छे से समझाने का प्रयास किया है जिसे आपको पढ़ना चाहिए

प्रश्न: शहरों और गांवों में क्या अंतर है?

उत्तर: शहरों और गांवों में बहुत अंतर है जो हमने इस लेख में एक नन्हीं सी चिड़िया की कहानी को सुनाकर बतलाया है आपको भी इसे पढ़ना चाहिए

प्रश्न: ग्रामीण और शहरी जीवन में क्या अंतर है?

उत्तर: ग्रामीण और शहरी जीवन में जमीन-आसमान का अंतर देखने को मिलता है शहरी जीवन चकाचौंध व आधुनिक सुविधाओं से भरा हुआ है तो वहीं ग्रामीण जीवन शांति व अपनों के साथ से

प्रश्न: ग्रामीण और शहरी में क्या अंतर है?

उत्तर: ग्रामीण वह है जिसका स्थाई निवास गाँव होता है तो शहरी उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसका स्थाई निवास शहर होता है

नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘‍♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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1 Comment

  1. गावँ,गोदान,प्रकृती का सुन्दर मिश्रण।

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