सिख धर्म के बंदी छोड़ दिवस (Bandi Chhor Divas) और हिन्दू धर्म की दिवाली का एक गहरा रिश्ता है। दीपावली हिंदू धर्म का एक ऐसा पर्व हैं जिस दिन ना केवल श्रीराम का अयोध्या आगमन हुआ था बल्कि इस दिन हिंदू धर्म की अन्य शाखाओं जैन, बौद्ध व सिख धर्म में भी शुभ घटनाएँ घटित हुई थी। इसलिये दिवाली पर्व का महत्व इन सभी धर्मो में भी बढ़ जाता है।
सिख समुदाय के लोग दीपावली को बंदी छोड़ दिवस (Diwali Bandi Chhor Divas) के रूप में मनाते हैं क्योंकि इस दिन उनके छठवे गुरु गुरु हरगोविंद सिंह जी की मुगल राजा जहाँगीर की कैद से आजादी मिली थी। इसी दिन सिख धर्म से जुड़ी और भी कई घटनाएँ हुई थी। आइए सिख धर्म में दिवाली त्योहार के महत्व को जानते हैं।
Bandi Chhor Divas | बंदी छोड़ दिवस
जब से भारत में मुगल आए थे तभी से उन्होंने हिंदू व भारत में रह रहे अन्य धर्म के लोगो का कत्लेआम शुरू कर दिया था। इनके विरुद्ध आवाज़ हिंदू धर्मगुरुओं, राजाओं के साथ-साथ सिख समाज के गुरु भी उठाते थे। उस समय भारत के सम्राट जहाँगीर थे जिसने सरेआम हिंदुओं व सिखों का कत्लेआम किया हुआ था।
जहाँगीर सिख गुरु हरगोविंद के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भयभीत हो गया था तथा उन्हें ग्वालियर के किले में बंदी बना दिया था। उस किले में 52 अन्य हिंदू राजाओं को भी बंदी बनाया गया था। कहते हैं कि जब गुरु हरगोविंद जी को बंदी बनाकर उस कारावास में लाया गया तो सभी हिंदू राजाओं ने उनका बहुत आदर-सम्मान किया।
कुछ वर्षो तक गुरु हरगोविंद को उस कारावास में रखने के पश्चात जहाँगीर ने उन्हें मुक्त करने की घोषणा की किंतु गुरु हरगोविंद ने यह शर्त रखी की उनके साथ सभी 52 हिंदू राजाओं को भी मुक्त किया जाए। आख़िरकार जहाँगीर ने उनकी यह शर्त मान ली तथा दिवाली के दिन सभी को मुक्त कर दिया गया।
ग्वालियर के कारावास से मुक्त होने के पश्चात गुरु हरगोविंद अमृतसर जिले के स्वर्ण मंदिर में आ गए जहाँ उनके आने के उपलक्ष्य में पूरे मंदिर को दीयो की रोशनी से सजा दिया गया। उसके बाद इस दिन को बंदी छोड़ दिवस (Bandi Chhor Divas) के रूप में जाना जाने लगा। गुरु हरगोविंद जी की मुक्ति के रूप में हर वर्ष सिख समुदाय के लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं।
हिंदू और सिख दिवाली में क्या अंतर है?
हिन्दू धर्म के लोगो की भांति ही सिख समुदाय के लोग भी इस दिन अपने मंदिर/ गुरुदारे में गुरु के दर्शन करने जाते है व एक दूसरे को बधाई देते है। इसके साथ ही वे अपने रिश्तेदारों व मित्रों के घर जाकर खुशियाँ मनाते है।
अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर को इस दिन फूलों से सजा दिया जाता है। दिवाली के दिन स्वर्ण मंदिर में निरंतर कीर्तन चलता रहता है व गुरु ग्रन्थ साहिब का अखंड पाठ भी होता है। सिख समुदाय के लोग इस दिन अपने घर व मोहल्लो को दीपक की रोशनी से जगमगा देते है।
Diwali Bandi Chhor Divas | सिख दिवाली की अन्य घटनाएँ
गुरु हरगोविंद सिंह जी की कारावास से मुक्ति के अलावा कुछ और भी घटनाएँ हैं जो सिख समुदाय के साथ इस दिन घटित हुई थी, जैसे कि:
- सिख धर्म के तीसरे गुरु गुरु अमर दास जी ने इस दिन गोइंदवाल में 84 सीढ़ियों के एक कुएं का निर्माण किया था तथा सिख समुदाय से आह्वान किया था कि वे बैसाखी व दिवाली के दिन इस कुएं में स्नान करके आपसी भाईचारे का संदेश दे।
- इसी के साथ सन 1577 ईसवीं में अमृतसर नगर की स्थापना हुई थी।
- इसी दिन 1738 ईसवीं में भाई मणि सिंह जी की मुगलों के द्वारा हत्या कर दी गयी थी। उहें दिवाली मनाने के लिए बंदी बनाया गया था तथा इसके लिए जुर्माना भरने को कहा गया जिसके लिए उन्होंने मना कर दिया। इसके बाद उन्हें इस्लाम कबूल करने को कहा गया तो उसके लिए भी उन्होंने मना कर दिया। तब मुगल सैनिको ने उनकी हत्या कर दी थी।
बस इसी कारण सिख धर्म में दिवाली का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है जिसे बंदी छोड़ दिवस (Bandi Chhor Divas) के नाम से मनाया जाता है।
बंदी छोड़ दिवस से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: सिख दिवाली क्यों मनाते है?
उत्तर: सिख धर्म हिन्दू धर्म की ही एक शाखा है। सिखों के पूर्वक हिन्दू धर्म के ही अनुयायी थे। इस कारण दिवाली का पर्व सिख धर्म के लिए भी बहुत महत्व रखता है।
प्रश्न: सिख लोग दिवाली क्यों मनाते हैं?
उत्तर: कृत मुगल आक्रांता जहाँगीर ने दिवाली वाले दिन ही सिखों के गुरु गुरु हरगोविंद जी को कारावास से मुक्त किया था। इस कारण सिख धर्म के लोगों ने स्वर्ण मंदिर में दीपक जलाए थे।
प्रश्न: पंजाबी लोग दिवाली क्यों मनाते हैं?
उत्तर: पंजाब भारत देश का एक राज्य है और वहाँ के निवासी पंजाबी कहलाते हैं। पंजाब में हिन्दू व सिख धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। इस कारण वहाँ दिवाली मनाई जाती है।
प्रश्न: क्या सिख पंजाबी में दिवाली मनाते हैं?
उत्तर: सिखों के द्वारा भी दिवाली का त्यौहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। वह इसलिए क्योंकि एक समय पहले तक सभी सिख हिन्दू ही थे।
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