हिरण्यकश्यप का जन्म कहां हुआ था? जाने हिरण्यकश्यप की कहानी

Hiranyakashyap In Hindi

हिरण्यकश्यप (Hiranyakashyap In Hindi) सतयुग में जन्मा एक दैत्य राजा था जो अति-पराक्रमी तथा शक्तिशाली था। उसका जन्म महर्षि कश्यप के कुल में हुआ था। साथ ही उसको भगवान ब्रह्मा से विचित्र वरदान मिला था। भगवान ब्रह्मा से मिले इसी वरदान के कारण स्वयं नारायण को मृत्यु लोक में अपना अवतार लेकर उसका वध करना पड़ा था।

हिरण्यकश्यप के कुल में ही उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था जो उसकी मृत्यु के पश्चात उसका उत्तराधिकारी बना था। आज हम आपको हिरण्यकश्यप की कहानी (Hiranyakashyap Ki Kahani) बताएँगे जिसमें उसके जन्म से लेकर मृत्यु तक का संपूर्ण विवरण है। इसे पढ़कर आप जान पाएंगे कि हिरण्यकश्यप कौन था व क्यों भगवान विष्णु ने उसका वध किया था।

Hiranyakashyap In Hindi | हिरण्यकश्यप कौन था?

अपने पूर्व जन्म में हिरण्यकश्यप तथा उसका छोटा भाई हिरण्याक्ष भगवान विष्णु के वैकुंठ धाम के प्रहरी थे जिनका नाम जय-विजय था। एक दिन उन्होंने भगवान ब्रह्मा के चार मानस पुत्रों का अपमान किया था तथा वैकुंठ में जाने से रोका था। तब उन्हें श्राप मिला था कि वे तीन जन्म तक असुर कुल में जन्म लेंगे तथा उनका वध भगवान विष्णु के हाथों होगा। इसलिये जय-विजय का अगला जन्म हिरण्यकश्यप तथा हिरण्याक्ष के रूप में हुआ था।

हिरण्यकश्यप तथा उसके भाई हिरण्याक्ष के माता-पिता का नाम महर्षि कश्यप तथा दिति था। महर्षि कश्यप की कई पत्नियाँ थी जिसमें से एक दिति थी। उसी के गर्भ से दैत्यों का जन्म हुआ था। दरअसल एक दिन दिति किसी कारणवश कामातुर हो उठी थी और उसने गलत तिथि में महर्षि कश्यप को संभोग के लिए कहा था। महर्षि कश्यप के मना करने के बाद भी जब दिति नही मानी तो दोनों के बीच संभोग हो गया। इसके परिणामस्वरुप दो दैत्यों हिरण्यकश्यप तथा हिरण्याक्ष का जन्म हुआ।

हिरण्यकश्यप का जन्म कहां हुआ था?

हिरण्यकश्यप का जन्म महर्षि कश्यप के ही आश्रम में हुआ था। वही कुछ मान्यताओं के अनुसार उसका जन्म दैत्य नगरी में हुआ था। हालाँकि दिति के पुत्रों से ही दैत्य जाति की नींव पड़ी थी। ऐसे में हिरण्यकश्यप ने ही अपने भाई हिरण्याक्ष के साथ मिलकर दैत्य नगरी बसाई थी। इसके बाद वह वहां का राजा बन गया था। इस तरह से हिरण्यकश्यप दैत्य नगरी का राजा था।

हिरण्यकश्यप की पत्नी का नाम

हिरण्यकश्यप का विवाह कयाधु नाम की स्त्री से हुआ था जिससे उसे प्रह्लाद नामक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। यही पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बना था। दरअसल जब हिरण्यकश्यप (Hiranyakashyap In Hindi) भगवान ब्रह्मा की तपस्या करने में लीन था तो उस समय देवताओं ने उसकी नगरी पर आक्रमण करके वहां अपना शासन स्थापित कर लिया था।

तब देवर्षि नारद मुनि ने कयाधु के रक्षा की थी और उसे अपने आश्रम में स्थान दिया था। वही पर हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद का जन्म हुआ था। देवर्षि नारद मुनि की संगत में रहने के कारण वह विष्णु भगवान का भक्त बन गया था।

हिरण्यकश्यप के भाई का वध

जब हिरण्यकश्यप के छोटे भाई हिरण्याक्ष ने अपने अहंकार में पृथ्वी को समुंद्र में डुबो दिया तब भगवान नारायण ने अपना तृतीय अवतार वराह लेकर उसका वध कर दिया तथा पृथ्वी को समुंद्र से निकाल दिया। अपने भाई की मृत्यु से हिरण्यकश्यप इतना ज्यादा क्रोधित हो गया था कि वह विष्णु से बदला लेना चाहता था, इस कारण उसने भगवान ब्रह्मा की कठिन तपस्या की।

हिरण्यकश्यप की कहानी (Hiranyakashyap Ki Kahani)

लगभग सौ वर्षों तक कठिन तपस्या करने के पश्चात हिरण्यकश्यप को भगवान ब्रह्मा ने दर्शन दिए। उसने वरदान माँगा कि उसकी मृत्यु भगवान ब्रह्मा के बनाये हुए किसी भी प्राणी से ना हो फिर चाहे वह मनुष्य हो या पशु। इसके साथ जी उसकी मृत्यु न अस्त्र-शस्त्र से, ना दिन व रात में, ना भवन के बाहर और ना ही अंदर, न भूमि ना आकाश में हो। इस वरदान को पाकर वह अत्यंत शक्तिशाली हो गया था।

भगवान ब्रह्मा से यह वरदान पाकर उसनें तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया तथा इंद्र का भी आसन छीन लिया। जगह-जगह उसने अधर्म के कार्य किये तथा ऋषि-मुनियों की हत्याएं करवा दी। वह स्वयं को भगवान मानने के लिए लोगों को बाध्य करने लगा लेकिन स्वयं उसका पांच वर्ष का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्ति में लीन रहता।

शुरू में तो उसने अपने छोटे से पुत्र को धमकियाँ दी लेकिन जब वह नहीं माना तब उसने उसकी हत्या के कई षड़यंत्र रचे। हिरण्यकश्यप के द्वारा प्रह्लाद को सांपों से भरे कक्ष में रखना, हाथियों के पैरों के सामने फेंकना, पर्वत से गिराना, अग्नि में जलाना इत्यादि सम्मिलित है। किंतु हर बार प्रह्लाद की भगवान विष्णु के द्वारा रक्षा कर ली जाती थी।

हिरण्यकश्यप की बहन का नाम

हिरण्यकश्यप की बहन का नाम होलिका था। होलिका को भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था कि उसे कोई भी अग्नि में जला नही सकता। इसी का लाभ उठाकर हिरण्यकश्यप (Hiranyakashyap In Hindi) ने होलिका को कहा कि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए ताकि प्रह्लाद वहां से भाग न सके और वह उसी अग्नि में जलकर ख़ाक हो जाए।

चूँकि होलिका को वरदान प्राप्त था, इसलिये वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गयी। किंतु आश्चर्यजनक बात यह रही कि उस अग्नि में होलिका जलकर ख़ाक हो गयी जबकि प्रह्लाद सकुशल बाहर आ गया। दरअसल भगवान ब्रह्मा ने होलिका को वरदान देते समय यह भी कहा था कि यदि वह इस वरदान का दुरूपयोग करेगी तो यह वरदान स्वयं ही निष्प्रभावी हो जायेगा।

हिरण्यकश्यप का वध

भगवान विष्णु वैकुंठ में बैठे अपने भक्त प्रह्लाद पर यह सब अत्याचार होते हुए देख रहे थे तथा धीरे-धीरे उनके क्रोध का घड़ा भरता जा रहा था। एक दिन हिरण्यकश्यप प्रह्लाद से विष्णु के होने का प्रमाण मांग रहा था। तब प्रह्लाद ने कहा कि वे तो कण-कण में हैं। इस पर हिरण्यकश्यप ने अपने भवन के एक स्तंभ की ओर ईशारा करते हुए कहा कि क्या वे इसमें भी हैं? तब प्रह्लाद ने इस पर हां में उत्तर दिया।

यह सुनकर हिरण्यकश्यप ने क्रोध में वह स्तंभ तोड़ डाला। जैसे ही वह स्तंभ टूटा उसमें से भगवान विष्णु का अत्यंत क्रोधित रूप नरसिंह अवतार में प्रकट हुआ जिसका आधा शरीर सिंह का तथा बाकि का आधा शरीर मनुष्य का था।

उस नरसिंह अवतार ने हिरण्यकश्यप को उसके भवन की चौखट पर ले जाकर, संध्या के समय, अपने गोद में रखकर नाखूनों की सहायता से उसका वध कर दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने उसको मिले वरदान की काट ढूंढ़कर हिरण्यकश्यप का अंत किया तथा उसका उत्तराधिकारी भक्त प्रह्लाद को बनाया। इस तरह से हिरण्यकश्यप की कहानी (Hiranyakashyap Ki Kahani) का यहीं अंत हो जाता है।

हिरण्यकश्यप का अगला जन्म

चूँकि जय-विजय को तीन बार राक्षस कुल में जन्म लेना था जिनका वध भगवान विष्णु के अवतार के हाथों ही होना था। हिरण्यकश्यप व हिरण्याक्ष तो उनका पहला जन्म था। इसलिये अपने दूसरे जन्म में दोनों फिर से राक्षस कुल में जन्मे।

हिरण्यकश्यप का अगला जन्म महर्षि विश्रवा के कुल में रावण के रूप में हुआ था जो कि लंका का राजा था। जबकि उसके छोटे भाई हिरण्याक्ष का जन्म अगले जन्म में भी उसके छोटे भाई कुंभकरण के रूप में हुआ था। इन दोनों का वध स्वयं भगवान विष्णु के ही अवतार श्रीराम के हाथों हुआ था।

इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने यह जान लिया है कि हिरण्यकश्यप कौन था (Hiranyakashyap In Hindi) और क्यों भगवान विष्णु को नरसिंह अवतार लेकर उसका वध करना पड़ा था

हिरण्यकश्यप से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: हिरण्यकश्यप किस जाति का था?

उत्तर: हिरण्यकश्यप दैत्य जाति का था उसके माता-पिता का नाम दिति व महर्षि कश्यप था दिति ने दैत्य जाति के पुत्रों का जन्म दिया था जिसमें से एक हिरण्यकश्यप भी था

प्रश्न: हिरण्यकश्यप कहाँ का राजा था?

उत्तर: हिरण्यकश्यप दैत्य नगरी का राजा था यह नगरी पृथ्वी लोक से अलग थी जहाँ केवल दैत्य ही रहा करते थे हिरण्यकश्यप के बाद उसका सबसे बड़ा पुत्र प्रह्लाद दैत्य नगरी का अगला राजा बना था

प्रश्न: हिरण्यकश्यप का वध कहां हुआ था?

उत्तर: भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध उसके भवन की चौखट पर ले जाकर पृथ्वी से कुछ ऊँचाई पर अपने घुटनों पर टिका कर किया था इसके माध्यम से उन्होंने भगवान ब्रह्मा के दिए वरदान का मान रखा था

प्रश्न: हिरण्यकश्यप का वध किसने किया?

उत्तर: हिरण्यकश्यप का वध भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार ने किया था यह अवतार बहुत ही भयंकर था जो आधा मानव और आधे शेर के रूप में था

नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘‍♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:

अन्य संबंधित लेख:

Recommended For You

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझ से किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *