रामायण में त्रिजटा सीता संवाद के माध्यम से जाने त्रिजटा की कथा

Trijata Kaun Thi

रामायण में त्रिजटा की कथा (Trijata Story In Hindi) बहुत ही अलग है। त्रिजटा रामायण की एक ऐसी पात्र थी जिसने रावण के महल में रहकर अप्रत्यक्ष रूप से भगवान श्रीराम व माता सीता की सहायता की थी। रावण के छोटे भाई विभीषण ने प्रत्यक्ष रूप से भगवान श्रीराम का साथ दिया था तो त्रिजटा ने एक गुप्तचर की भाँति रावण के महल में रहकर भगवान श्रीराम का साथ दिया था।

त्रिजटा को कुछ रामायण में विभीषण व सरमा की पुत्री भी बताया गया है। वह राक्षस कुल में जन्म लेने के पश्चात भी एक अच्छे हृदय वाली स्त्री थी। अशोक वाटिका में एक बार नहीं बल्कि कई बार त्रिजटा सीता संवाद (Trijata Sita Samvad) देखने को मिलता है जिसके माध्यम से त्रिजटा माता सीता को ढांढस बंधा रही होती है।

Trijata Story In Hindi | त्रिजटा की कथा

जब रावण माता सीता को पंचवटी से बलपूर्वक व छल से उठा लाया था तो माता सीता अत्यंत दुःख में थी। राक्षसों के बीच माता सीता का मन अत्यंत व्याकुल था व वह लगातार विलाप कर रही थी। किंतु माता त्रिजटा ने अपनी सूझ-बूझ से उस स्थिति को ऐसा संभाला था कि माता सीता को वहीं पर एक सच्ची मित्र मिल गई थी।

रावण के द्वारा माता सीता को अशोक वाटिका में रखने के पश्चात त्रिजटा को ही उनकी मुख्य अंगरक्षिका व राक्षसियों का प्रमुख बनाया गया था। इसके बाद माता त्रिजटा ने कई प्रकार से माता सीता की सहायता की। आइए जाने कैसे।

#1. अन्य राक्षसियों से बचाना

जब रावण माता सीता का अपहरण कर अशोक वाटिका लाया तो उसने सभी राक्षसियों को आदेश दिया था कि किसी भी प्रकार से सीता को उनसे विवाह करवाने के लिए मनाया जाए, चाहे इसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े। तब रावण के जाने के पश्चात सभी राक्षसियाँ माता सीता को तंग करने लगी व उन पर रावण से विवाह करने के लिए दबाव बढ़ाने लगी।

ऐसे समय में त्रिजटा आगे आई व सभी राक्षसियों को पिछली रात आए अपने स्वप्न के बारे में बताया। उसने बताया कि किस प्रकार भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ ऐरावत हाथी पर बैठकर आते हैं व माता सीता को ले जाते हैं। वे रावण का अंत कर देते हैं व रावण एक समुंद्र में डूबकर मर रहा होता है। त्रिजटा सभी राक्षसियों के मन में यह डर बिठा देती है कि एक दिन रावण का अंत होगा व भगवान श्रीराम माता सीता को ले जाएंगे। ऐसे में यदि वे उन्हें तंग करेंगी तो राम एक दिन सभी को दंड देंगे। इससे डरकर सभी राक्षसियाँ उन्हें तंग करना बंद कर देती हैं।

#2. त्रिजटा सीता संवाद

माता सीता अत्यंत दुःख में थी व रावण के द्वारा उन पर लगातार विवाह का दबाव बनाया जा रहा (Trijata Sita Samvad) था। साथ ही उन्हें भगवान श्रीराम व लक्ष्मण का कोई संदेश भी प्राप्त नहीं हुआ था। ना ही उन्हें आशा थी कि उन्हें ढूंढ निकाला जाएगा क्योंकि रावण उन्हें समुंद्र पार करके लाया था। कई महीनों के बाद जब उनकी हिम्मत टूटने लगी तो कई बार उनके मन में अपने शरीर के त्याग का विचार आया। ऐसे में उन्होंने माता त्रिजटा से आत्महत्या की बात कही।

माता सीता ने त्रिजटा से स्वयं के लिए लकड़ियाँ भी मंगवाई जिसमें आग लगाकर वे आत्म-दाह कर सकें लेकिन त्रिजटा ने इसके लिए साफ मना कर दिया। वे लगातार उनकी हिम्मत बंधाती थी व कहती थी कि एक दिन राम अवश्य आएंगे व उन्हें रावण के चंगुल से मुक्ति दिलाएंगे।

#3. माता सीता की गुप्तचर

वैसे तो त्रिजटा रावण की सेविका थी किंतु वह गुप्त रूप से माता सीता के पास हर महत्वपूर्ण जानकारी पहुँचाया करती थी। जब भगवान राम लंका पर पुल बनाने लगे, हनुमान ने लंका में आग लगा दी, रावण के कई पुत्र, योद्धा आदि युद्ध में मारे गए तब त्रिजटा अपने सूत्रों से यह जानकारी लेकर तुरंत उन्हें सीता तक पहुँचाती थी ताकि उनकी हिम्मत बनी रहे।

भगवान श्रीराम के द्वारा किए जा रहे हर कार्य व युद्ध का परिणाम माता सीता तक पहुँचाने का कार्य माता त्रिजटा ही करती थी व किसी को कोई शक भी नहीं होने देती थी। वे अंत तक माता सीता को हर जानकारी देती रही लेकिन किसी को बिल्कुल भी शक नहीं हुआ।

#4. राम-लक्ष्मण का नागपाश में बंधना

जब मेघनाद ने अपने नागपाश में भगवान श्रीराम व लक्ष्मण को बाँध दिया तब पूरी लंका में यह बात फैल गई कि राम व लक्ष्मण मर गए। यह बात रावण ने सीता तक भी पहुँचाई। यह सुनकर माता सीता बहुत विचलित हो गई व प्रलाप करने लगी। तब त्रिजटा ने ही उन्हें बताया कि पहले वह उन्हें इस बात की पुष्टि करने दे व फिर ही वे उन्हें प्रमाणिक समाचार देगी।

उन्होंने अपने सूत्रों से विभीषण के द्वारा सटीक जानकारी पता लगाई व माता सीता को बताया कि वे दोनों अभी जीवित हैं व उसका उपाय ढूंढा जा रहा है। जब गरुड़ देव द्वारा उन्हें नागपाश से मुक्ति दिलवाई गई तब माता त्रिजटा ने तुरंत माता सीता को इसकी जानकारी दी।

#5. राम का कटा सिर दिखाना

जब रावण युद्ध में लगातार अपने सगे-संबंधियों व बड़े-बड़े योद्धाओं को खो रहा था व माता सीता भी उससे विवाह के लिए तैयार नहीं हुई थी तब उसने अपनी माया का सहारा लेने का सोचा। इसी माया के जाल में माता सीता को फंसाने के उद्देश्य से वह भगवान श्रीराम का कटा हुआ नकली सिर लेकर सीता के सामने पहुँचा व उन्हें बताया कि उसने राम को युद्ध में मार गिराया है।

अपने पति श्रीराम का मस्तक अपने सामने देखकर माता सीता के दुःख की सीमा नहीं रही किंतु उन्होंने रावण को दुत्कार दिया। इससे क्रोधित होकर रावण वहाँ से चला गया। चूँकि माता त्रिजटा रावण के सामने कुछ नहीं बोल सकती थी इसलिए वे चुप रही। माता सीता ने फिर से त्रिजटा को आत्म-हत्या की बात कही व उनके लिए लकड़ियाँ मंगवाने को कहा। तब माता त्रिजटा ने पुनः अपने सूत्रों से पता लगवाया व सीता को सत्य का ज्ञान करवाया।

इस प्रकार माता त्रिजटा ने हरसंभव रूप से माता सीता की सहायता की थी जिसका पुरस्कार उन्हें रावण की मृत्यु के पश्चात मिला था। भगवान श्रीराम व माता सीता के द्वारा त्रिजटा को इतने उपहार दिए गए थे कि वह बहुत धनवान बन गई थी। साथ ही लंका के नए राजा विभीषण के द्वारा उन्हें कई अहम पद लंका में दिए गए व उनका उचित सम्मान किया गया। इस तरह से त्रिजटा की कथा (Trijata Story In Hindi) का यहीं अंत हो जाता है और इसके बाद उनके बारे में नहीं लिखा गया है।

त्रिजटा की कथा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: राक्षसी त्रिजटा ने सपने में क्या देखा?

उत्तर: राक्षसी त्रिजटा ने सपने में देखा था कि श्रीराम विजयी हो रहे हैं जबकि रावण हार रहा है उसने लंका की अन्य राक्षसियों को बताया था कि यदि वे श्रीराम का साथ नहीं देंगी तो अवश्य ही उन्हें भी दंड मिलेगा

प्रश्न: त्रिजटा सीता जी को क्या समझा रही थी?

उत्तर: अशोक वाटिका में त्रिजटा माता सीता को एक बार नहीं बल्कि कई बार समझाती हुई दिखती हैं। जब माता सीता बहुत निराश हो जाती है तब त्रिजटा के द्वारा ही उन्हें ढांढस बंधाया जाता है

प्रश्न: रामायण में त्रिजटा किसकी पत्नी थी?

उत्तर: रामायण में त्रिजटा के पति का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। हालाँकि कई रामायण में त्रिजटा का विवाह हनुमान से होना बताया गया है

प्रश्न: त्रिजटा किसकी बहन है?

उत्तर: कुछ रामायण में त्रिजटा को महाराज विभीषण और सरमा की पुत्री बताया गया है हालाँकि उसके भाई का कोई उल्लेख देखने को नहीं मिलता है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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