पाकिस्तान में स्थित भगवान शिव के कटासराज मंदिर की जानकारी

Katasraj Mandir Pakistan

आज हम आतंकवादी देश पाकिस्तान के कटासराज मंदिर (Katasraj Mandir Pakistan) के बारे में बात करेंगे। किसी समय पाकिस्तान और अन्य कई देश भारतवर्ष के ही अंग थे लेकिन लगातार मुगलों के आक्रमण के कारण वे हमारे हाथ से निकल गए। फिर भी हिंदू धर्म के कई मंदिर, ऐतिहासिक स्थल व दुर्ग आज भी वहां स्थित है। उन्हीं में से एक है भगवान शिव को समर्पित और महाभारत के काल से जुड़ा हुआ यह पाकिस्तान का कटास राज मंदिर

कटासराज मंदिर पाकिस्तान (Katas Raj Mandir) के चकवाल जिले से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर की कथा भगवान शिव द्वारा माता सती की याद में बहाए गए आंसू तथा महाभारत काल में पांडवों को मिले वनवास से जुड़ी हुई है। आज हम आपको कटासराज मंदिर का इतिहास, कथाएं, संरचना इत्यादि के बारे में विस्तार से बताएँगे।

Katasraj Mandir Pakistan: कटासराज मंदिर पाकिस्तान

एक समय पहले तक पाकिस्तान सनातन धर्म को मानने वाला देश था। पाकिस्तान तो क्या बल्कि अफगानिस्तान भी सनातनी था और वहीं पर हमारा विश्व प्रसिद्ध गुरुकुल तक्षशिला हुआ करता था। तक्षशिला वही गुरुकुल था जहाँ एक समय में आचार्य चाणक्य पढ़ाया करते थे। धीरे-धीरे भारत की पूर्वी भूमि पर मुगलों ने भीषण रक्तपात मचाया और वहां के हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया।

इसी के साथ ही उन्होंने सभी तरह के मंदिरों को भी धवस्त कर दिया और उसी में कटासराज मंदिर पर भी कई आक्रमण हुए। आज भी पाकिस्तान की आतंकवादी समर्थित सरकार हिन्दुओं का नरसंहार करती है और मंदिरों को घृणा की नज़रों से देखती है। आज हम आपको अलौकिक इतिहास व उत्कृष्ट वास्तुकला समेटे हुए पाकिस्तान के इसी कटासराज मंदिर के बारे में बताएँगे जो सदियों से मजहबी अत्याचारों के कारण अपनी चमक खो चुका है।

कटास राज मंदिर कहां स्थित है?

सबसे पहले जानते हैं कि कटास राज मंदिर कहां है। यह पाकिस्तान के पंजाब राज्य के अंदर आता है। पाकिस्तान के पंजाब के चकवाल जिले में चोव़ा सैदानशाह नामक कस्बा है, वहीं स्थित है कटासराज मंदिर। यह मंदिर पाकिस्तान के दो बड़े शहरों लाहौर व इस्लामाबाद के बीच के मोटरवे के पास साल्ट रेंज की पहाड़ियों पर पड़ता है जिसकी ऊंचाई दो हज़ार मीटर के आसपास है।

कटासराज मंदिर का इतिहास

कटासराज मंदिर का इतिहास पीड़ा-दुःख, चतुराई-दक्षता, कला-संगीत, शिक्षा-धर्मों का समावेश, विध्वंस-आक्रमण, अनदेखी-घृणा का मिश्रण है। कटासराज मंदिर के इतिहास में यह सभी पड़ाव एक-एक करके आए, जिसके बारे में हम आपको क्रमानुसार बताएँगे।

  • भगवान शिव व माता सती से जुड़ी कहानी

कटासराज मंदिर का सबसे प्राचीन इतिहास भगवान शिव और माता सती के आत्म-दाह से संबंधित है। जब माता सती ने अपने पिता राजा दक्ष के द्वारा भगवान शिव का अपमान करने पर स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया था तब भगवान शिव अत्यंत दुःख व अवसाद में चले गए थे। उन्होंने भयंकर तांडव नृत्य किया था जिसे किसी प्रकार देवताओं व भगवान विष्णु के द्वारा शांत करवाया गया था।

इसके बाद भी भगवान शिव अत्यंत दुःख में थे व माता सती के विरह में उनकी आँखों से लगातार आंसुओं की धारा बह रही थी। भगवान शिव माता सती की याद में इतना रोए थे कि उनके आंसुओं से दो कुंड निर्मित हो गए थे जिसमे से एक कटास राज मंदिर (Katas Raj Mandir) में है तो दूसरा राजस्थान के पुष्कर में। कटासराज मंदिर में स्थित इस कुंड को कटाक्ष कुंड के नाम से जाना जाता है।

नोट: कटासराज मंदिर की कहानी व उससे जुड़ा इतिहास पीड़ा व दुःख की अनुभूति करवाता है।

  • महाभारत काल से जुड़ी कथा

महाभारत के युद्ध से पहले पांडवों और कौरवों के बीच द्यूत क्रीडा हुई थी और इसी के फलस्वरूप पांडवों को तेरह वर्ष का वनवास मिला था। तब पांडवों ने अपने वनवास काल का कुछ समय इस क्षेत्र के आसपास भी बिताया था। वनों में भटकते हुए जब पांडवों को प्यास लगी तो उसमे से एक पांडव इस कटाक्ष कुंड से जल लेने आया। उस समय इस जगह को द्वैतवन के नाम से जाना जाता था जो पवित्र सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित था।

उस समय इस कुंड पर यक्ष का अधिकार था। उसने जल लेने आए पांडव से अपने प्रश्न का उत्तर देने पर ही जल लेने को कहा। जब वह पांडव उत्तर नही दे पाया तो यक्ष ने उसे मूर्छित कर दिया। इस तरह एक-एक करके सभी पांडव आए और मूर्छित होते गए।

अंत में पांडवों के सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर आए और यक्ष ने उनके सामने भी यही शर्त रखी लेकिन युधिष्ठिर ने अपनी बुद्धिमता का परिचय देते हुए यक्ष के सभी प्रश्नों के सही उत्तर दिए। इससे यक्ष उनसे इतना प्रसन्न हुए कि उन्होंने सभी पांडवों को वापस चेतना में ला दिया और उन्हें वहां से जल पीने की अनुमति भी दे दी।

नोट: इस प्रकार कटासराज मंदिर की कथा व उससे जुड़ा यह इतिहास चतुराई व दक्षता को दिखलाता है।

  • कटासराज मंदिर का रोमन जाति से संबंध

कलियुग की शुरुआत के बाद यह स्थल कला, संगीत व अध्ययन का बहुत बड़ा केंद्र बन गया। इसके पास में ही भारत का विश्वप्रसिद्ध गुरुकुल तक्षशिला हुआ करता था। इस कारण यहाँ पर हजारों की संख्या में कलाकार, संगीतकार व विद्वान रहा करते थे और अध्ययन करते थे।

यूरोप में रहने वाले रोमन या जिप्सी जाति के लोगों के पूर्वज इन्हीं संगीतकारों को माना जाता है। दरअसल दसवीं सदी आते-आते जब इस धरती पर मुगलों के आक्रमण अत्यधिक बढ़ गए तब यहाँ के कलाकार व संगीतकार कई देशों से होते हुए धीरे-धीरे यूरोप में बस गए थे। आज यूरोप में लगभग 1 से 2 करोड़ रोमन जाति के लोग रहते हैं।

रोमन जाति के लोगों की भाषा के कई शब्द संस्कृत व हिंदी से मेल खाते हैं। हालाँकि कुछ लोग इसको लेकर संदेह प्रकट करते हैं लेकिन इस बात को कोई नहीं नकार सकता कि यूरोप के रोमन जाति के पूर्वजों का संबंध भारत की भूमि से था।

नोट: कटासराज मंदिर पाकिस्तान (Katasraj Mandir Pakistan) का यह इतिहास कला व संगीत को दर्शाता है।

  • कटासराज मंदिर था एक आध्यात्मिक केंद्र

सनातन धर्म में प्राचीन समय से ही गुरु-शिष्य परंपरा, गुरुकुल, शिक्षा की परंपरा रही है। इसी क्रम में अफगानिस्तान के तक्षशिला गुरुकुल से लेकर पाकिस्तान के कटासराज मंदिर से होते हुए कश्मीर के शारदा पीठ तक एक विस्तृत विश्व-विद्यालयों, गुरुकुलों, अध्ययन केन्द्रों, पुस्तकालयों की श्रृंखला स्थापित थी।

साथ ही उस समय सनातन धर्म से अलग होकर जैन व बौद्ध धर्म भी पनप रहे थे और उन पर अध्ययन चल रहा था। मुगलों के भारत आने के बाद सनातन धर्म से एक और वर्ग ने अलग होकर सिख धर्म की स्थापना की थी। कटास राज मंदिर (Katas Raj Mandir) के अंदर और उसके आसपास सैकड़ों बौद्ध स्तूपों, जैन मंदिरों इत्यादि के अवशेष यह दिखाते हैं कि यह स्थल अपने आप में कई धर्मों की स्मृतियाँ समेटे हुए था। इसी के साथ इसका सिख समुदाय व नाथ संप्रदाय से भी संबंध था।

नोट: कटासराज मंदिर का यह इतिहास शिक्षा व सभी धर्मों के समावेश को दर्शाता है।

  • कटास राज मंदिर पर आक्रमण

सातवीं शताब्दी के बाद भारत की पश्चिमी सीमा लगातार मुगलों के आक्रमण और लूटपाट को देख रही थी। मुगलों की बर्बर सेना आती, बिना युद्ध के नियमों के युद्ध करती, आम प्रजा में भयंकर लूटपाट व मारकाट मचाती, मंदिरों, गुरुकुलों को नष्ट कर देती व वापस चली जाती थी।

इसी तरह मुगलों की सेना के द्वारा गांधार (वर्तमान अफगानिस्तान) प्रांत में स्थित तक्षशिला विश्वविद्यालय का विध्वंश कर दिया गया। उसके बाद वे आगे बढ़ती हुई कटासराज मंदिर भी पहुंची और यहाँ स्थित मंदिर, गुरुकुलों, कला क्षेत्र सभी को तहस-नहस करके रख दिया।

उन्होंने यहाँ पर हजारों लोगों की हत्या कर दी और स्त्रियों को अरब देशों में बेच दिया गया। इसके बाद से यहाँ से सभी विद्वानों, कलाकारों और संगीत प्रेमियों का पलायन शुरू हो गया था। वे सभी अपनी जान बचाकर सिंध नदी के इस पार भारत देश में आ गए तो कुछ वहां से यूरोप चले गए जिनमे ज्यादातर संगीतकार थे।

नोट: कटासराज मंदिर का यह इतिहास विध्वंस व आक्रमण को दर्शाता है।

  • कटासराज मंदिर की अनदेखी

भारतवर्ष से समय-समय पर कई प्रांत अलग होकर देश बने। इसके दो मुख्य कारण थे, एक बौद्ध धर्म का आवश्यकता से अधिक उत्थान (सम्राट अशोक के कारण) तथा दूसरा इस्लामिक आक्रांताओं के कारण। स्वतंत्रता के समय इस्लामिक कट्टरता व ब्रिटिश कूटनीति के कारण देश ने एक और विभाजन देखा जिसमें भारतवर्ष से पाकिस्तान व बांग्लादेश (पहले पूर्वी पाकिस्तान) अलग हो गए।

1947 में जब भारत से कटकर पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र बन गया तब से कटासराज मंदिर को वहां की सरकारों द्वारा अनदेखा किया गया व मुस्लिमों के द्वारा इसे क्षति पहुंचाई गई। इसका प्रमाण हम वर्तमान में भी वहां हो रहे मंदिरों पर हमले के रूप में देख सकते हैं।

– मंदिर के कटाक्ष सरोवर का जल आसपास की फैक्ट्रियों द्वारा प्रयोग किया जाने लगा जिस कारण 2 से 3 बार सरोवर सूखने की कगार पर आ पहुंचा था।

– इसी के साथ वहां स्वच्छता का कोई ध्यान नही रखा गया तथा वहां के स्थानीय लोगों के द्वारा सरोवर में गंदगी फैलाई गई।

– हिन्दुओं को भी मुश्किल से वहां जाने दिया जाता था। शिवरात्रि के अवसर पर ही हिंदू जत्था भगवान शिव का जलाभिषेक करने वहां जा पाता था।

– 2005 में भारत के उपप्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवानी जी ने इस मंदिर की यात्रा की थी तथा मंदिर की स्थिति को देखकर बहुत निराशा प्रकट की थी।

– इस यात्रा के बाद यह मंदिर वैश्विक समाचार में आया। इसके बाद पाकिस्तान सरकार के द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार करने का निर्णय लिया गया।

– पाकिस्तान की सर्वोच्च न्यायालय भी इसे पाकिस्तान की राष्ट्रीय धरोहर मानकर कई बार सँभालने का आदेश दे चुकी है किंतु इस आदेश की भी अनदेखी की गई।

– अभी भी पाकिस्तान की सरकार तथा वहां के लोगों के द्वारा मंदिर को अनदेखा किया जाता है व इसे सँभालने के कोई प्रयास नहीं किए जाते हैं। फिर भी पाकिस्तान में रह रहे हिंदू इसके जीर्णोद्धार के लिए संघर्षरत हैं व भारत से भी कई श्रद्धालु शिवरात्रि के अवसर पर यहाँ जाते रहते हैं।

नोट: कटासराज मंदिर पाकिस्तान (Katasraj Mandir Pakistan) का यह इतिहास अनदेखी व घृणा को दर्शाता है।

कटासराज मंदिर का निर्माण

वैसे तो इसकी कथा भगवान शिव से जुड़ी हुई है जो सतयुग में घटित हुई थी। उस समय यहाँ कटाक्ष कुंड का निर्माण हो चुका था जिसके प्रमाण महाभारत के समय में भी मिलते हैं। उस समय यहाँ मंदिर होने के प्रमाण नही मिलते हैं जबकि कटाक्ष कुंड यहाँ था। महाभारत के समय में इस स्थल को द्वैतवन कहा जाता था।

मंदिर का वर्तमान स्वरुप छठी से नौंवी शताब्दी के बीच के राजाओं द्वारा दिया गया था। तब से लेकर अब तक यह मंदिर वैसे ही खड़ा है किंतु मुस्लिम आक्रांताओं के द्वारा इस पर आक्रमण करने व पाकिस्तान के अलग होने पर इस मंदिर पर ध्यान ना देने के कारण आज के समय में यह मंदिर क्षतिग्रस्त हालत में है।

कटासराज मंदिर की सरंचना

कटासराज केवल एक मंदिर नही बल्कि कई मंदिरों की श्रृंखला है जिसमें से तीन मुख्य मंदिर हैं या यूँ कहें कि यह तीन मंदिर थोड़ी सही स्थिति में हैं जबकि बाकि तोड़े जा चुके हैं। यह तीन मंदिर भगवान शिव, श्रीराम व भक्त हनुमान के हैं। इसके अलावा मंदिर परिसर में कटाक्ष सरोवर तथा राजा हरि सिंह नलवा की हवेली है।

यहाँ के मंदिरों की स्थापत्य कला कश्मीरी है जिसमें मंदिर की छत शिखर से नुकीली होती है। मंदिरों को चौकोर/ वर्गाकार आकार में बनाया गया है जिसमें सबसे बड़ा रामचंद्र मंदिर है। मंदिर की दीवारों व छत पर आकर्षक नक्काशियां व भित्तिचित्र देखने को मिलेंगे।

  • कटासराज का रामचंद्र मंदिर

रामचंद्र मंदिर 2 मंजिलों का मंदिर है जिसमे आठ कक्ष हैं। यह मंदिर तीन ओर से बंद है व सामने की ओर से इसमें जाया जा सकता है। पहली मंजिल पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है जहाँ पर दो झरोखे (बालकनी) हैं। हालाँकि इन झरोखों को अब बुरी तरह तोड़ा जा चुका है।

  • कटासराज मंदिर का सरोवर

यह मंदिर के बीच में स्थित एक विशाल सरोवर है जो मान्यता के अनुसार भगवान शिव के आंसुओं से निर्मित है। इसे पहले विषकुंड के नाम से जाना जाता था, फिर इसे समय के साथ-साथ अमरकुंड कहा जाने लगा। वर्तमान में लोग इसे कटाक्ष कुंड या कटाक्ष सरोवर के नाम से जानते हैं।

हालाँकि उर्दू भाषा में इसे चश्म-ए-आलम के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि इस कुंड में जल दो रंगों में दिखता है। जहाँ पर कुंड कम गहरा है वहां पर जल हरे रंग की किरणें परावर्तित करता है व जहाँ यह ज्यादा गहरा है वहां नीला रंग परावर्तित होता है।

  • कटासराज की हरि सिंह नलवा हवेली

मंदिरों के अलावा यहाँ एक हवेली भी है जिसका निर्माण राजा हरी सिंह नलवा ने करवाया था। यह हवेली एक पहाड़ी पर स्थित है जहाँ से संपूर्ण कटासराज मंदिर के दर्शन करने को मिलते हैं। इस हवेली के बीच में एक विशाल धनुषाकार आँगन, विभिन्न कक्ष तथा चारों कोणों में चार बुर्ज इत्यादि बने हुए हैं।

इसके अलावा मंदिर परिसर के आसपास कई अन्य हिंदू मंदिर (सतग्रह), जैन व बौद्ध मंदिरों के अवशेष मिल जाएंगे। साथ ही टूटा हुआ बौद्ध स्तूप मिलेगा जो कि सम्राट अशोक के शासनकाल में बनाया गया था। उस समय उसकी ऊंचाई 200 फीट थी लेकिन आज बस इसके अवशेष बचे हैं।

कटासराज मंदिर का अन्य धर्मों व संप्रदायों से जुड़ाव

कटास राज मंदिर का इतिहास (Katas Raj Mandir) हिंदू धर्म के अलावा बौद्ध, जैन व सिख धर्म से भी जुड़ा हुआ है। साथ ही इसका संबंध नाथ संप्रदाय तथा चीनी यात्रियों के यहाँ आने से भी है, आइए जाने।

  • बौद्ध धर्म

अशोक के शासनकाल में बौद्ध का धर्म का जितनी तेजी से प्रचार-प्रसार हुआ वह कभी नही हुआ। अशोक ने भारत समेत उसके चारों कोनों में तेजी से बौद्ध धर्म के फैलाव के लिए बौद्ध मठों व स्तूपों का निर्माण करवाया। इसी क्रम में कटासराज मंदिर के पास भी 200 फीट लंबा बौद्ध स्तूप बनाया गया तथा कई बौद्ध मंदिर भी बनवाए गए। इसके अलावा यह बौद्ध धर्म के अध्ययन का एक बड़ा केंद्र बन गया था तथा बैरागी नाम से बौद्ध विश्वविद्यालय भी यहाँ था।

  • जैन धर्म

जैन मंदिरों के अवशेष भी यहाँ होने के कारण मंदिर का संबंध जैन धर्म से होने से नकारा नही जा सकता। हालाँकि सभी जैन मंदिरों को ध्वस्त किया जा चुका है।

  • सिख धर्म

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने कटासराज मंदिर की यात्रा की थी। उन्होंने यहाँ कुछ समय व्यतीत किया था। इसके अलावा महाराज रंजीत सिंह ने बैसाखी के अवसर पर कई बार इस मंदिर की यात्रा की है और बैसाखी का पर्व मनाया है।

  • नाथ संप्रदाय

नाथ संप्रदाय के संस्थापक गोरखनाथ जी भी कटासराज मंदिर की यात्रा कर चुके हैं। नाथ संप्रदाय को मानने वाले कई लोग यहाँ रहते थे तथा अध्ययन करते थे।

  • चीनी लोगों की यात्रा

वैसे तो इस मंदिर के पास विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय तक्षशिला था जहाँ देश-विदेश से हजारों-लाखों की संख्या में छात्र पढ़ने आते थे। लेकिन इस मंदिर की यात्रा प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्येनसांग के द्वारा भी की गई थी और उन्होंने इसके बारे में बहुत कुछ लिखा भी है।

कटासराज क्या है?

कटासराज मंदिर कटाक्ष शब्द से बना है जो कि एक संस्कृत भाषा का शब्द है। हिंदी में कटाक्ष शब्द का अर्थ होता है किसी पर व्यंग्य करना या उसकी आलोचना करना जो कि माता सती के पिता राजा दक्ष ने भगवान शिव के ऊपर किए थे। इन्हीं कटाक्ष को सुनकर माता सती ने आत्म-दाह कर लिया था और उन्हीं की याद में भगवान शिव के आंसुओं से इस पवित्र सरोवर/ कुंड का निर्माण हुआ था। इसलिए इस मंदिर का नाम कटासराज मंदिर पड़ा।

निष्कर्ष

इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने कटासराज मंदिर पाकिस्तान (Katasraj Mandir Pakistan) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। यह देश का दुर्भाग्य ही था कि मजहब के नाम पर भारत माता के टुकड़े कर दिए गए या फिर यूँ कहें कि मजहब के नाम पर भारत माता के कुछ हिस्से काट कर अलग कर दिए गए। फिर भी वहां स्थगित कटासराज मंदिर हमारे गौरवशाली इतिहास को दर्शाता है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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