मध्यमहेश्वर ट्रेक कैसे करें? जाने मध्यमहेश्वर मंदिर के बारे में

Madhyamaheshwar Mandir

मध्यमहेश्वर मंदिर (Madhyamaheshwar Mandir) भगवान शिव को समर्पित एक केदार है जो पंच केदारों में द्वितीय नंबर पर आता है। यह उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है जहाँ भगवान शिव की नाभि की पूजा की जाती है। इसकी कथा महाभारत काल के पांडवों से जुड़ी हुई है। इसे बहुत लोग मदमहेश्वर मंदिर भी कह देते हैं।

मध्यमहेश्वर मंदिर का जितना धार्मिक महत्व है उतना ही यह ट्रेकिंग में रुचि रखने वालों के बीच भी लोकप्रिय है। वह इसलिए क्योंकि यहाँ से हिमालय की चोटियों के होने वाले अद्भुत दृश्य किसी का भी मन मोह लेते हैं। ऐसे में आज हम आपको मध्यमहेश्वर ट्रेक (Madhyamaheshwar Trek) के बारे में भी पूरी जानकारी देंगे। आइए मध्यमेश्वर मंदिर के बारे में जान लेते हैं।

Madhyamaheshwar Mandir | मध्यमहेश्वर मंदिर के बारे में

मध्यमहेश्वर मंदिर उत्तराखंड का एक ऐसा मंदिर है जो केदारनाथ के जितना ही लोकप्रिय है। हालाँकि केदारनाथ में पिछले कुछ वर्षों में बहुत ज्यादा विकास किया गया है और वहां आने वाले भक्तों की संख्या बहुत तेजी के साथ बढ़ी है। फिर भी मध्यमहेश्वर मंदिर का आकर्षण कम नहीं हुआ है। अब जो चीज़ इसे सबसे ज्यादा अलग और अद्भुत बनाती है, वह है यहाँ तक पहुँचने का रास्ता।

यही कारण है कि हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु व भक्तगण Madmaheshwar Trek पर आते हैं और इसकी सुंदरता को देखकर अभिभूत हो बैठते हैं। यहाँ का दृश्य हर किसी का मन मोह लेता है और फिर यहाँ से जाने का मन ही नहीं करता है। यहाँ के पहाड़ जितने सुंदर हैं, उतने ही सुंदर यहां से हिमालय की चोटियों के दर्शन भी होते हैं। साथ ही इसका इतिहास भी बहुत गौरवशाली रहा है जिसका संबंध महादेव और पांडवों से है।

मध्यमहेश्वर मंदिर का इतिहास

सबसे पहले तो हम मदमहेश्वर मंदिर के इतिहास के बारे में जान लेते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत के समय में पांडवों के द्वारा किया गया था। मध्यमहेश्वर मंदिर के निर्माण की कथा के अनुसार जब पांडव महाभारत का भीषण युद्ध जीत गए थे तब वे गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव के पास गए लेकिन शिव उनसे बहुत क्रुद्ध थे।

इसलिए शिवजी बैल का अवतार लेकर धरती में समाने लगे लेकिन भीम ने उन्हें देख लिया। भीम ने उस बैल को पीछे से पकड़ लिया। इस कारण बैल का पीछे वाला भाग वहीं रह गया जबकि चार अन्य भाग चार विभिन्न स्थानों पर निकले। इन पाँचों स्थानों पर पांडवों के द्वारा शिवलिंग स्थापित कर शिव मंदिरों का निर्माण किया गया जिन्हें हम पंच केदार कहते हैं।

  • पंच केदार में मध्यमहेश्वर है दूसरा केदार

मद्महेश्वर मंदिर में भगवान शिव के बैल रुपी अवतार की नाभि (पेट) प्रकट हुई थी। बैल का जो भाग भीम ने पकड़ लिया था वहां केदारनाथ मंदिर स्थित है। अन्य तीन केदारों में तुंगनाथ (भुजाएं), रुद्रनाथ (मुख) व कल्पेश्वर (जटाएं) आते हैं। मदमहेश्वर मंदिर को पंच केदार में से दूसरे केदार के रूप में जाना जाता है।

  • शिव-पार्वती की मधुचंद्र रात्रि

एक अन्य मान्यता के अनुसार, यहाँ की सुंदरता को देखते हुए भगवान शिव व माता पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहीं बिताई थी। इस कारण इस जगह का महत्व और भी बढ़ जाता है।

मध्यमहेश्वर मंदिर कहां है?

यह मंदिर समुंद्र तल से 3,497 मीटर (11,473 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले रुद्रप्रयाग जिले में उखीमठ के पास में स्थित है। उखीमठ से रांसी गाँव जाना पड़ता है जो यहाँ से 20 से 25 किलोमीटर की दूरी पर है। रांसी गाँव से मध्यमेश्वर का रास्ता 18 किलोमीटर का है जिसे पैदल चलकर पार करना पड़ता है।

मध्यमहेश्वर मंदिर की यात्रा में घने जंगल, मखमली घास के मैदान, पुष्प, पशु-पक्षी इत्यादि देखने को मिलेंगे। साथ ही यहाँ बीच में कई गाँव आएंगे जिनमे गौंडार गाँव मुख्य है जो कि रांसी से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर आपको रहने की सुविधा भी मिल जाएगी।

मद्महेश्वर मंदिर की संरचना 

रांसी गाँव से 18 किलोमीटर की मध्यमेश्वर मंदिर की यात्रा करके जब आप ऊपर पहुंचेंगे तो सामने बड़े-बड़े पत्थरों से बना विशाल मंदिर दिखाई देगा। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव को समर्पित नाभि के आकार का शिवलिंग स्थापित है जो काले पत्थरों से बनाया गया है।

मंदिर में दो मूर्तियाँ भी स्थापित हैं जिनमें से एक भगवान शिव व माता पार्वती के रूप अर्धनारीश्वर को समर्पित है तो एक केवल माता पार्वती को। मंदिर के पास में ही एक छोटा सा मंदिर और है जिसमें माता सरस्वती की मूर्ति स्थापित है। मुख्य मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक मंदिर और है जिसे बुढा मध्यमेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है।

बुढा मध्यमहेश्वर मंदिर

बुढा मध्यमहेश्वर मंदिर मुख्य मंदिर से ऊपर 2 से 3 किलोमीटर का ट्रेक करके आता है। जो भी भक्त मध्यमहेश्वर मंदिर जाते हैं वे बुढा मध्यमहेश्वर भी अवश्य जाते हैं। इसका मुख्य कारण है यहाँ से दिखने वाले हिमालय की चौखम्भा चोटियों के अद्भुत दृश्य।

इसलिए जब भी आप 18 किलोमीटर का लंबा ट्रेक करके मध्यमहेश्वर मंदिर की यात्रा पर जाएं तो बुढा मध्यमेश्वर का 2 किलोमीटर का ट्रेक करना ना भूलें। यहाँ से आपको हिमालय की चौखम्भा की चोटियों के साथ-साथ नीलकंठ, केदारनाथ, पंचुली व त्रिशूल की चोटियाँ भी देखने को मिलेंगी।

Madmaheshwar Trek | मदमहेश्वर ट्रेक

मदमहेश्वर मंदिर के ट्रेक को मुख्य तौर पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। इसमें सबसे पहले तो आपको वहां तक वाहन से पहुंचना होता है जहाँ से मदमहेश्वर ट्रेक शुरू होता है। इसके बाद आपको आगे का रास्ता पैदल चलकर पार करना होता है।

ऐसे में आपको मदमहेश्वर मंदिर पहुँचने के लिए किन-किन रास्तों से गुजरना होगा, इसके बारे में जान लेना चाहिए। हम आपको वाहन मार्ग और पैदल मार्ग दोनों के बीच में आने वाली जगहों की जानकारी देने जा रहे हैं।

  • वाहन के द्वारा (200 से 250 किलोमीटर के बीच)

हरिद्वार/ऋषिकेश/देहरादून-उखीमठ-मनसुना गाँव-उनियाना गाँव-रांसी गाँव

मध्यमहेश्वर ट्रेक करने के लिए आपको आखिरी पड़ाव रांसी गांव पहुंचना होता है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो रांसी गाँव ही मदमहेश्वर ट्रेक का आखिरी वाहन पड़ाव है जहाँ से पैदल यात्रा शुरू होती है।

ऐसे में आप भारत के किसी भी शहर या राज्य से आ रहे हो, अंत में आपको ऋषिकेश या देहरादून ही आना होगा। वह इसलिए क्योंकि मध्यमेश्वर मंदिर के सबसे पास का रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा देहरादून का है। इसके बाद आपको ऊपर बताए गए मार्ग के अनुसार बस या टैक्सी से यात्रा करनी होगी। अंत में आपको रांसी गाँव पहुंचना होगा और वहीं से मदमहेश्वर मंदिर ट्रेक शुरू होगा।

  • पैदल मार्ग (18 किलोमीटर)

रांसी गाँव-गौंडार गाँव-बन्तोली-कून चट्टी मंदिर-मध्यमहेश्वर मंदिर-बूढा मध्यमहेश्वर मंदिर

Madmaheshwar Trek की असली परीक्षा यहीं से शुरू होती है। वह इसलिए क्योंकि वाहन से आप रांसी गाँव तो पहुँच जाएंगे लेकिन आगे का रास्ता चढ़ाई वाला है। अब आपको पहाड़ों के बीच में से चलना होगा और वहां वाहन नहीं जा सकते हैं। ऐसे में आपको चलकर या यूँ कहें कि ट्रेक करके ही मंदिर तक पहुंचना होगा।

ऐसे में आप शुरुआत रांसी गाँव से करेंगे और उसके बाद गौंडार गाँव, बन्तोली और कून चट्टी मंदिर होते हुए अंत में मदमहेश्वर मंदिर पहुंचेंगे। इसके साथ ही आप इस बात का भी ध्यान रखें कि मुख्य मंदिर से कुछ किलोमीटर ऊपर बूढा मध्यमहेश्वर मंदिर भी है। आप यहाँ के दर्शन भी करके आएं अन्यथा यात्रा अधूरी मानी जाएगी।

Madhyamaheshwar Trek | मध्यमहेश्वर ट्रेक

मध्यमहेश्वर का ट्रेक मध्यम श्रेणी का, लंबा, सीधी चढ़ाई वाला व थका देने वाला ट्रेक है। पंच केदारों में मध्यमहेश्वर व रुद्रनाथ के ट्रेक को सबसे कठिन माना जाता है। साथ ही मध्यमहेश्वर के ट्रेक में आपको केदारनाथ के ट्रेक जैसी सुविधाएँ भी नही मिलेंगी। ऊपर हमने आपको मध्यमहेश्वर ट्रेक का मोटा-मोटा बता दिया है। अब हम आपको विस्तार से मध्यमहेश्वर ट्रेक की जानकारी देने वाले हैं।

  1. इसके लिए सबसे पहले आपको उत्तराखंड के किसी भी शहर से उखीमठ पहुंचना होगा।
  2. आप चाहे हरिद्वार से आ रहे हो या ऋषिकेश से या देहरादून से, वहां से आपको स्थानीय बस या टैक्सी लेकर उखीमठ पहुंचना होगा।
  3. कोई भी बस सीधी मध्यमेश्वर के लिए नही जाती, इसलिए पहले उखीमठ पहुंचें। फिर उखीमठ से रांसी के लिए सीधी बस मिल जाएगी।
  4. यदि बस ना भी मिले तो आप मनसुना या उनियाना की बस ले सकते हैं अथवा टैक्सी या जीप भी कर सकते हैं।
  5. पहले मध्यमेश्वर की यात्रा मनसुना गाँव से शुरू होती थी क्योंकि आगे का मार्ग बना नही था।
  6. मनसुना गाँव रांसी से 15 किलोमीटर दूर है जिस कारण मद्महेश्वर की यात्रा 33 किलोमीटर लंबी थी।
  7. इसके बाद उनियाना गाँव तक का मार्ग बनाया गया और कुछ समय पहले ही रांसी गांव तक का मार्ग बना दिया गया है।
  8. इसलिए आप वाहनों के द्वारा रांसी गाँव तक सीधे पहुँच सकते हैं। इसके बाद का रास्ता पैदल ही पार करना पड़ता है।
  9. रांसी से मद्महेश्वर मंदिर की दूरी लगभग 18 किलोमीटर लंबी है।
  10. रांसी गाँव से गौंडार गाँव 6 किलोमीटर दूर है। रांसी से गौंडार का रास्ता आप आसानी से पार कर लेंगे।
  11. वह इसलिए क्योंकि इसमें ज्यादा चढ़ाई नही है। रास्ता भी पत्थरों और पगडंडियों की सहायता से सुगम बनाया गया है।
  12. गौंडार गाँव से आगे का 12 किलोमीटर का मध्यमहेश्वर का रास्ता बहुत दुर्गम है क्योंकि यहाँ से सीधी चढ़ाई शुरू हो जाती है।
  13. इस रास्ते में आपको कुछ चुनिंदा जगह रहने की या विश्राम करने के लिए मिलेंगी लेकिन मध्यमेश्वर मंदिर के ट्रेक में आखिरी मुख्य स्थान गौंडार गाँव ही है।
  14. गौंडार गाँव में ही आपको होमस्टे, खाने-पीने की छोटी दुकाने या रेस्टोरेंट मिलेंगे। इससे आगे के लिए आपको अपनी तैयारी खुद करके ही आगे बढ़ना चाहिए।
  15. मध्यमहेश्वर ट्रेक में आपको मध्यमेश्वर गंगा नदी भी देखने को मिलेगी जो नीचे की ओर बहती है।
  16. साथ ही ट्रेक के बीच में कई प्राकृतिक झरने भी देखने को मिलेंगे जहाँ आप हाथ-मुहं धो सकते हैं व पानी पी सकते हैं।
  17. लगभग 18 किलोमीटर चढ़ाई के बाद आप मध्यमहेश्वर मंदिर पहुँच जाएंगे।
  18. मंदिर पहुँच कर शिवलिंग को प्रणाम करने के बाद कुछ समय वहां बिताएं लेकिन ज्यादा नही क्योंकि आगे बूढा मध्यमहेश्वर का ट्रेक अभी बाकी है।
  19. यह ट्रेक नही किया तो इस यात्रा का आनंद अधूरा रह जाएगा। इसलिए कुछ देर मुख्य मंदिर में समय बिताने के बाद आप बूढा मध्यमहेश्वर के ट्रेक के लिए निकल पड़ें।
  20. यह मुख्य मंदिर से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  21. बूढा मद्महेश्वर मंदिर पहुँच कर आपको यहाँ की असली सुंदरता देखने को मिलेगी क्योंकि यहाँ से हिमालय की चोटियों के जो सुंदर दृश्य देखने को मिलेंगे वह आपका मन मोह लेंगे।
  22. मुश्किल से आपका यहाँ से वापस जाने का मन करेगा लेकिन समय रहते यहाँ से निकल जाएं क्योंकि दिन छिपने के बाद ट्रेक करना जोखिमभरा हो सकता है।

इस तरह से आप Madhyamaheshwar Trek पूरा कर सकते हैं। समय के साथ-साथ यहाँ कई तरह की सुविधाएँ भारत सरकार व राज्य सरकार के द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही है। साथ ही यदि आप गर्मियों के मौसम में यहाँ जाते हैं तो आपको कई तरह के होम स्टे, खाने पीने की दुकाने और टेंट इत्यादि की सुविधा जगह-जगह मिल जाएँगी।

मध्यमहेश्वर मंदिर के अन्य नाम

इसे लोग अपनी भाषा या बोली के अनुसार कुछ अन्य नामो से भी बुलाते हैं। साथ ही इसे वर्तनी की अशुद्धि भी कह सकते हैं। इसलिए आपको मध्यमहेश्वर मंदिर का नाम कुछ इन रूपों में भी देखने या पढ़ने को मिलेगा।

  • मद्महेश्वर मंदिर
  • मध्यमेश्वर मंदिर
  • मदमहेश्वर मंदिर
  • मध्म्हेश्वर मंदिर
  • मध्यमाहेश्वर मंदिर इत्यादि।

हालाँकि मंदिर का असली नाम मध्यमहेश्वर मंदिर ही है और यही इसका शुद्ध उच्चारण भी है। इसलिए यदि आपसे कोई मंदिर का नाम पूछे या लिखने को कहे तो आप उसका सही नाम ही लिखें।

मध्यमहेश्वर मंदिर खुलने व बंद होने की तिथि

अन्य केदारों की तरह यह मंदिर भी सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण बंद हो जाता है। मंदिर मुख्यतया मई माह में हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक निश्चित तिथि को खोल दिया जाता है। इसके लिए उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर से मध्यमहेश्वर डोली यात्रा निकाली जाती है। इसके बाद यह मंदिर छह माह तक खुला रहता है और दीपावली के आसपास एक निश्चित तिथि को मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।

मदमहेश्वर मंदिर खुलने व बंद होने का समय

मंदिर के कपाट भक्तों के लिए प्रातः काल 6 बजे के पास खुल जाते हैं व संध्या 7 बजे के आसपास बंद हो जाते हैं। फिर भी आप दोपहर तक Madmaheshwar Mandir पहुँचने का प्रयास करें क्योंकि फिर इसके ऊपर बूढ़ा मध्यमहेश्वर मंदिर के दर्शन करके नीचे भी आना होता है।

मद्महेश्वर मंदिर में पूजा का समय

मंदिर में सुबह की आरती 8 बजे होती है। फिर संध्या में 6:30 बजे के पास आरती की जाती है। इसके कुछ देर बाद मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं।

मध्यमहेश्वर मंदिर का मौसम

मध्यमहेश्वर मंदिर का मौसम वर्षभर ठंडा रहता है। गर्मियों में हल्की ठंड का अहसास होता है जबकि सर्दियों में तो भीषण बर्फबारी के कारण मंदिर जाने के रास्ते तक बंद हो जाते हैं। उस समय मंदिर से महादेव के प्रतीकात्मक स्वरुप को उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है। उसके बाद छह माह तक भगवान यहीं निवास करते हैं। फिर छह माह के बाद मई माह में मद्महेश्वर डोली यात्रा के द्वारा महादेव को पुनः मध्यमहेश्वर मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है।

मध्यमहेश्वर कैसे पहुंचें?

अभी तक तो हमने आपको मध्यमहेश्वर के ट्रेक के बारे में जानकारी दी थी लेकिन अब प्रश्न उठता है कि रांसी गाँव के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा या रेलवे स्टेशन कौन सा है। इसलिए अब हम आपको Madhyamaheshwar Mandir पहुँचने के हवाई, रेल व सड़क तीनों मार्गों के बारे में जानकारी देंगे।

  • हवाई मार्ग से मध्यमहेश्वर मंदिर कैसे जाएं: यदि आप हवाई जहाज से मदमहेश्वर मंदिर जाना चाहते हैं तो उखीमठ के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का ग्रांट जॉली हवाई अड्डा है। यहाँ से बस या टैक्सी करके रांसी गाँव पहुँचना पड़ेगा।
  • रेल मार्ग से मध्यमहेश्वर मंदिर कैसे जाएं: यदि आप सभी भारतीयों की पसंदीदा रेलगाड़ी से मदमहेश्वर मंदिर जा रहे हैं तो सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश का है। यहाँ से फिर आपको बस या टैक्सी की सहायता से रांसी पहुंचना पड़ेगा।
  • सड़क मार्ग से मध्यमहेश्वर मंदिर कैसे जाएं: वर्तमान समय में उत्तराखंड राज्य का लगभग हर शहर व कस्बा बसों के द्वारा सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आपको दिल्ली, चंडीगढ़, जयपुर इत्यादि से ऋषिकेश तक की सीधी बस आसानी से मिल जाएगी। फिर वहां से आप आगे के लिए स्थानीय बस या टैक्सी कर रांसी गाँव तक पहुँच सकते हैं।

मध्यमहेश्वर में कहां रुकें?

मंदिर के आसपास रुकने की सुविधा उपलब्ध नही है इसलिए आपको वापस नीचे आना पड़ेगा। आप जब ट्रेक करके ऊपर जा रहे होंगे तो बीच-बीच में आपको कई छोटे होटल, लॉज, कैम्पस इत्यादि की सुविधा दिख जाएगी। इसलिए आपको फिर से वहीं आना पड़ेगा।

हालाँकि यदि आप अपना कैंप व खाना लेकर ट्रेक कर रहे हैं तो मंदिर के आसपास अपना कैंप लगा सकते हैं और मौसम का आनंद उठा सकते हैं। मनसुना, उनियाना, रांसी या गौंडार गाँव में रहने की कुछ सुविधाएँ मिल जाएंगी। इसके अलावा उखीमठ में तो बड़े होटल, हॉस्टल, लॉज, कैम्पस इत्यादि सभी प्रकार की सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध हैं।

मदमहेश्वर मंदिर के आसपास के दर्शनीय स्थल

अब यदि आप Madhyamaheshwar Mandir घूमने जा ही रहे हैं तो आपको वहां एक नहीं बल्कि कई तरह के मंदिर और अन्य जगह देखने को मिलेंगी। ऐसे में आप अपनी सुविधा और दिनों की संख्या के अनुसार इन जगह घूमकर आ सकते हैं।

इस बात का ध्यान रखें कि Madhyamaheshwar Trek बहुत लम्बा ट्रेक है और इस ट्रेक के दौरान व्यक्ति थक जाता है। ऐसे में आप किसी और मंदिर के ट्रेक का कार्यक्रम बना रहे हैं तो अपनी क्षमता के अनुसार ही बनाएं। हालाँकि आप उन जगह जा सकते हैं जहाँ जाने के लिए किसी तरह के ट्रेक की जरुरत नहीं पड़ती है।

मदमहेश्वर मंदिर ट्रेक के लिए टिप्स

मध्यमहेश्वर ट्रेक पर जाने से पहले यदि आप हमारी बताई गई कुछ बातों को गाँठ बाँध लेंगे तो अवश्य ही आपकी यात्रा सुगम हो जाएगी। ऐसे में हम आपको कुछ टिप्स देने जा रहे हैं जो मध्यमहेश्वर मंदिर की यात्रा को आनंददायक व सुविधाजनक बनाने का काम करेगी।

  • यहाँ वर्षभर ठंडा मौसम रहता है, इसलिए गर्म कपड़े हमेशा साथ लेकर चलें।
  • ट्रैकिंग करने के लिए ट्रैकिंग वाले जूते व एक छड़ी भी साथ में रखेंगे तो पहाड़ों पर चढ़ने में आसानी होगी।
  • होटल इत्यादि की बुकिंग पहले ही करवा कर रखें।
  • मंदिर के अंदर फोटोग्राफी करना निषेध है।
  • नवंबर से लेकर अप्रैल माह तक मंदिर के कपाट बंद रहते हैं।
  • बारिश के मौसम में यहां जाने से बचें।
  • यहाँ पर मोबाइल सिग्नल भी बहुत कम ही मिलते हैं।

इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने मध्यमहेश्वर मंदिर (Madhyamaheshwar Mandir) के बारे में समूची जानकारी ले ली है। आशा है कि आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई होगी। यदि आपके मन में किसी तरह की शंका रह गई है तो आप नीचे कमेंट करके हमसे पूछ सकते हैं।

मध्यमहेश्वर मंदिर से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: मदमहेश्वर मंदिर कैसे पहुंचे?

उत्तर: मदमहेश्वर मंदिर पहुँचने के लिए सबसे पहले तो आपको ऋषिकेश या देहरादून से रांसी गाँव तक के लिए बस या टैक्सी करनी होगी उसके बाद आपको 18 किलोमीटर का ट्रेक कर मंदिर पहुंचना होगा

प्रश्न: मदमहेश्वर मंदिर कितना पुराना है?

उत्तर: मदमहेश्वर मंदिर हजारों वर्ष पुराना है महाभारत युद्ध के पश्चात इस मंदिर का निर्माण पांडवों के द्वारा करवाया गया था

प्रश्न: मदमहेश्वर ट्रेक मुश्किल है?

उत्तर: मदमहेश्वर ट्रेक ना ही ज्यादा मुश्किल है और ना ही इतना सरल है कुल 18 किलोमीटर के ट्रेक में शुरूआती 6 किलोमीटर का रास्ता तो बहुत सरल है लेकिन आगे का 12 किलोमीटर थोड़ा मुश्किल है

प्रश्न: मद्महेश्वर के कपाट कब बंद होंगे?

उत्तर: मद्महेश्वर के कपाट मुख्य तौर पर दीपावली के बाद बंद हो जाते हैं इसके लिए मंदिर समिति के द्वारा हर वर्ष निर्णय लिया जाता है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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