प्रत्यंगिरा देवी किसका अवतार है? जाने प्रत्यंगिरा देवी की कहानी

प्रत्यंगिरा देवी की कहानी

आज हम आपको प्रत्यंगिरा देवी (Pratyangira Devi In Hindi) के बारे में बताएँगे। माँ आदिशक्ति के समय-समय पर कई अवतार हुए है जिन्होंने दुष्टों, पापियों तथा अधर्मियों का नाश किया हैं। इसी के साथ माँ ने कई अवतार अपनी महिमा, शक्ति व पराक्रम को दिखाने के लिए भी लिए हैं। इसी में उनका एक रूप था माँ प्रत्यंगिरा/ प्रत्यङ्गिरा का जो अति भयानक तथा प्रलयकारी था।

प्रत्यङ्गिरा देवी का रूप उन्होंने किसी दुष्ट, राक्षस या दैत्य का वध करने के लिए नही अपितु भगवान शिव तथा भगवान विष्णु के बीच चल रहे युद्ध को समाप्त करने के उद्देश्य से लिया था। इसलिए आज के इस लेख में हम आपके साथ प्रत्यंगिरा देवी की कहानी (Pratyangira Devi Story In Hindi) ही साझा करने वाले हैं। आइये उस रोचक घटनाक्रम के बारे में जान लेते है।

Pratyangira Devi In Hindi | प्रत्यंगिरा देवी की कहानी

यह कथा सतयुग में भगवान के नरसिंह अवतार लेने तथा हिरण्यकश्यप के वध होने के बाद से जुड़ी हुई हैं। हालाँकि विभिन्न पुराणों तथा शास्त्रों में इसका अलग-अलग वर्णन किया गया हैं। सबसे प्राचीन मान्यता वह है जो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कही थी जिसके अनुसार भगवान नरसिंह हिरण्यकश्यप का वध करने के पश्चात प्रह्लाद को उसका उत्तराधिकारी घोषित करके अंतर्धान हो गए थे।

अर्थात जब भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया तब उनका क्रोध प्रह्लाद ने शांत कर दिया था। उसके पश्चात उन्होंने प्रह्लाद का राज्याभिषेक किया तथा पुनः भगवान विष्णु में समा गए। किंतु शिव पुराण, स्कन्द पुराण तथा कुछ अन्य धर्म शास्त्रों में इस घटना के बाद की कथा का वर्णन किया गया है। आज हम आपको उसी के बारे में बताएँगे तथा समझाएंगे कि आखिर क्यों माँ को अपना उग्र रूप प्रत्यंगिरा लेना पड़ा।

नरसिंह और शरभ अवतार के बीच युद्ध

शिव पुराण के अनुसार हिरण्यकश्यप का वध करने के पश्चात भी जब नरसिंह अवतार का क्रोध शांत नही हुआ तथा वे इधर-उधर विचरण करने लगे तब उनके क्रोध को शांत करने के लिए शिव ने शरभ अवतार लिया। यह अवतार दो गरुड़ पंख, शेर के पंजे, सिंह मुख, जटाएं तथा चंद्रमा लिए हुए था। यह नरसिंह अवतार से कही अधिक बड़ा था।

तब शरभ अवतार ने नरसिंह भगवान को पंजो में जकड़ लिया तथा उसे चोंच मारकर घायल करने लगे। यह देखकर भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को और ज्यादा क्रोध आ गया।

शरभ और गंडभेरुंड अवतार के बीच युद्ध

अपने ऊपर होते इस प्रहार को देखकर भगवान नरसिंह अवतार ने उससे भी भयानक तथा बड़ा रूप धारण कर लिया। यह गंडभेरुंड अवतार था जो दो पक्षी के मुख वाला था। अब शरभ तथा गंडभेरुंड अवतार के बीच भीषण युद्ध शुरू हो गया जो 18 दिनों तक चलता रहा।

उनके युद्ध के कारण तीनों लोको में त्राहिमाम मच गया। दोनों के बीच चल रहे भीषण युद्ध को रोकने की शक्ति तीनों लोकों में से किसी के पास नही थी। देवता, दानव, मनुष्य सब भय के मारे कांप रहे थे। तब माँ आदिशक्ति सृष्टि के कल्याण के उद्देश्य से उनका युद्ध रुकवाने के लिए स्वयं प्रकट हुई।

Pratyangira Devi Story In Hindi | प्रत्यंगिरा देवी कौन है?

माँ देवी ने अपनी शक्ति के द्वारा भयंकर अवतार धारण कर लिया जिसका मुख शेर के समान था। उसमें शिव के शरभ अवतार, विष्णु के दोनों अवतारों (नरसिंह व गंडभेरुंड) की शक्तियां समाहित थी। यह रूप इतना विशाल था कि उसके समक्ष ब्रह्मांड में कोई भी रूप इतना शक्तिशाली नही था। भयंकर प्रत्यंगिरा रूप धारण करके माँ आदिशक्ति शरभ तथा गंडभेरुंड अवतार के पास गयी तथा एक जोरदार चिंघाड़ मारी।

अपने सामने इतने भयंकर तथा विशालकाय रूप को देखकर शरभ और गंडभेरुंड दोनों में भय व्याप्त हो गया। उन दोनों ने युद्ध रोक दिया तथा अपने असली अवतार में वापस आ गए। इस प्रकार माँ आदिशक्ति ने भगवान शिव तथा भगवान विष्णु के बीच चल रहे भीषण युद्ध का अंत किया।

प्रत्यंगिरा देवी को दक्षिण भारत में अथर्वना भद्रकाली के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें भगवान शिव के शरभ अवतार की पत्नी के रूप में देखा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान शिव शरभ अवतार में भी भगवान विष्णु के क्रोध को शांत नहीं कर पाए और विष्णु का गंडभेरुंड अवतार उन पर हावी होने लगा, तो उन्होंने माँ पार्वती को याद किया। ऐसे में माँ पार्वती ही प्रत्यंगिरा देवी (Pratyangira Devi In Hindi) का रूप लेकर वहां आई और युद्ध रुकवा दिया।

वही उत्तर भारत में और सर्वप्रचलित मान्यताओं के अनुसार, प्रत्यंगिरा देवी को माँ लक्ष्मी का रूप माना जाता है। इस कथा के अनुसार, ना तो शिव ने शरभ अवतार लिया था और ना ही विष्णु ने गंडभेरुंड अवतार लिया था। माँ का प्रत्यंगिरा रूप कोई और नहीं बल्कि माँ लक्ष्मी का ही एक रूप था जो उन्होंने भगवान नरसिंह के साथ लिया था। इस अवतार का नाम नरसिम्ही था जिसका विवाह नरसिंह अवतार से हुआ।

रामायण में प्रत्यंगिरा देवी

रामायण में भी माँ प्रत्यंगिरा का उल्लेख मिलता है। जब मेघनाथ तथा लक्ष्मण का अंतिम युद्ध होने वाला था तब वह माँ निकुंभला का यज्ञ करने वाला था। इन्हीं माँ निकुंभला को ही माँ प्रत्यंगिरा कहा जाता हैं। यदि वह यज्ञ पूर्ण करने में सफल हो जाता तो स्वयं श्रीराम के लिए उसका वध करना असंभव हो जाता। इसलिये हनुमान ने पहले ही उसका यज्ञ विफल कर दिया था जिसके पश्चात लक्ष्मण ने उसका वध कर दिया था।

प्रत्यंगिरा का अर्थ

प्रत्यंगिरा शब्द दो शब्दों के मेल से बना हैं जिसका अर्थ होता है किसी प्रकार के आक्रमण/ तंत्र/ काला जादू को पलट देना अर्थात माँ प्रत्यंगिरा की पूजा करने से किसी प्रकार की नकारात्मक शक्ति, काला जादू इत्यादि के प्रभाव को समाप्त किया जा सकता है। प्रत्यंगिरा देवी (Pratyangira Devi In Hindi) अधर्म रुपी कार्य कर रहे किसी भी प्राणी को दंड देने में सक्षम होती है फिर चाहे वह त्रिदेव ही क्यों न हो।

प्रत्यंगिरा देवी से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: प्रत्यंगिरा देवी कितनी शक्तिशाली है?

उत्तर: प्रत्यंगिरा देवी बहुत ही शक्तिशाली है उनके माध्यम से हम अपने ऊपर किसी भी बुरी शक्ति, काला जादू या नकारात्मक प्रभाव को उल्टा मोड़ सकते हैं प्रत्यंगिरा हर तरह की बुरी शक्तियों का प्रभाव क्षीण कर देती है

प्रश्न: प्रत्यंगिरा का अर्थ क्या है?

उत्तर: प्रत्यंगिरा में प्रति शब्द का अर्थ उल्टा और अंगीरा का अर्थ आक्रमण से है ऐसे में प्रत्यंगिरा का अर्थ हुआ खुद पर हो रहे किसी भी आक्रमण या बुरी शक्ति के प्रभाव को उल्टा मोड़ देना

प्रश्न: प्रत्यंगिरा देवी किसका अवतार है?

उत्तर: प्रत्यंगिरा देवी माँ आदिशक्ति का ही एक अवतार है कुछ लोग इसे माँ पार्वती का अवतार मानते हैं जिनका एक नाम भद्रकाली है वही कुछ लोग इसे माँ लक्ष्मी का अवतार मानते हैं जिनका नाम नरसिम्ही है

प्रश्न: देवी प्रत्यंगिरा देवी कौन है?

उत्तर: देवी प्रत्यंगिरा देवी माँ आदिशक्ति का एक भयंकर रूप है इस रूप में उन्होंने भगवान शिव के शरभ अवतार और भगवान विष्णु के गंडभेरुंड अवतार के बीच युद्ध रुकवाया था

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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