आज हम आपके सामने तुलसीदास हनुमान जी का मिलन (Tulsidas Hanuman Ji Ka Milan) रखने जा रहे हैं। महान कवि तुलसीदास जी का जन्म 1532 ईसवी में उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में हुआ था। इन्हें रामायण के रचियता महर्षि वाल्मीकि का पुनर्जन्म माना जाता है। साथ ही भक्त हनुमान को माता सीता के द्वारा उनकी श्रीराम भक्ति के कारण कलयुग के अंत तक जीवित रहने का वरदान मिला था।
तुलसीदास जी ने ना केवल रामचरितमानस की रचना की थी अपितु हनुमान चालीसा भी उन्हीं के द्वारा लिखी गई थी। इसके साथ ही तुलसीदास जी का भक्त हनुमान से गहरा नाता था। ऐसे में आज हम आपके सामने तुलसीदास हनुमान मिलन (Tulsidas Hanuman Milan) के रोचक प्रसंग के साथ ही कुछ अन्य प्रसंग भी रखेंगे।
तुलसीदास हनुमान जी का मिलन
क्या आप जानते हैं कि रामायण को महर्षि वाल्मीकि जी से पहले किसी और ने ही लिख दिया था!! वह रामायण महर्षि वाल्मीकि की रामायण से ज्यादा श्रेष्ठ थी। क्या आप यह भी जानते हैं कि जब अकबर ने तुलसीदास जी को बंदी बना लिया था तब स्वयं हनुमान उनकी रक्षा करने आए थे!!
ऐसे ही और भी कई रोचक प्रसंग हैं जो तुलसीदास हनुमान जी का मिलन (Hanuman Ji Tulsidas Ki Kahani) और प्रेम दर्शाते हैं। चलिए जानिए ऐसे ही तीन रोचक प्रसंगों के बारे में।
-
वाल्मीकि का ही रूप है तुलसीदास
यह त्रेतायुग के समय की बात है। उस समय भक्त हनुमान ने वाल्मीकि जी से पहले ही और उनसे ज्यादा उत्कृष्ट रामायण लिख दी थी जिसे हनुमंत रामायण के नाम से जाना जाता है। यह रामायण उन्होंने हिमालय के पर्वतों पर अपने नाखूनों से लिखी थी। उस समय वाल्मीकि जी अपने द्वारा रचित रामायण शिवजी को दिखाने कैलाश पर्वत जा रहे थे लेकिन बीच में हनुमान की रामायण को देखकर उनके मन में निराशा का भाव आ गया।
यह देखकर भक्त हनुमान ने अपनी रामायण लिखे उस संपूर्ण पर्वत को उठाकर समुंद्र में डुबो दिया था। वाल्मीकि जी हनुमान की ऐसी भक्ति व निष्ठाभाव देखकर अभिभूत हो गए। उन्होंने हनुमान को वचन दिया कि भविष्य में वे फिर से इस धरती पर जन्म लेंगे। उस समय वे श्रीराम की कथा को और भी उत्कृष्ट व विस्तृत रूप में लिखने का प्रयास करेंगे।
साथ ही उसमे हनुमान के गुणों व शक्ति की उचित व्याख्या भी होगी। इसलिए भविष्य में जब महर्षि तुलसीदास जी का जन्म हुआ व उन्होंने रामचरितमानस तथा हनुमान चालीसा को लिखा तो उन्हें वाल्मीकि जी का ही पुनर्जन्म माना गया।
-
हनुमान ने तुलसीदास को कारावास से निकाला
यह उस समय की बात है जब दुष्ट विदेशी आक्रांताओं का भारत पर राज था व भारत के सिंहासन पर धूर्त अकबर बैठा था। अकबर ने तुलसीदास जी की राम भक्ति व चमत्कार के बारे में बहुत सुना था। इसलिए उसने तुलसीदास जी को राज दरबार में बुलाया व एक मृत व्यक्ति को जीवित करने का कहकर उनका उपहास उड़ाया। इस पर तुलसीदास जी ने कहा कि “यह सब असत्य है, मैं केवल श्रीराम को जानता हूँ”।
तब अकबर ने तुलसीदास को अपने सामने झुकने व उन्हें श्रेष्ठ मानने को कहा लेकिन तुलसीदास ने राज दरबार के दंड की परवाह किए बिना श्रीराम को ही सबसे श्रेष्ठ बताया। यह सुनकर दुष्ट अकबर अत्यधिक क्रोधित हो गया और उसने तुलसीदास जी को कारावास की सजा सुना दी। अकबर के सैनिकों के द्वारा तुलसीदास जी को फतेहपुर सिकरी के कारावास में बंद कर दिया गया।
तुलसीदास जी अपने अपमान व कारावास में बंद किए जाने के बाद भी विचलित नहीं हुए और अकबर का शासन स्वीकार नही किया। उन्होंने वहीं कारावास में बैठे-बैठे ही हनुमान चालीसा की रचना कर दी व लगातार चालीस दिनों तक हनुमान चालीसा का पाठ किया। फिर एक दिन अचानक फतेहपुरी सिकरी के कारावास और नगर पर हजारों बंदरों के समूह ने हमला कर दिया। बंदरों ने नगर को चारों ओर से घेर लिया व हर घर में घुस गए व सामान को इधर-उधर उठाकर फेंकने लगे।
बंदरों के भीषण आक्रमण से अकबर की सेना में त्राहिमाम मच गया और महर्षि तुलसीदास जी को तुरंत कारावास से मुक्त कर दिया गया। इसके बाद बंदर भी वह नगर छोड़ कर चले गए किंतु उनका आंतक अकबर के सैनिकों में इस तरह बैठा कि वे पुनः लौटकर उस जगह पर नहीं गए।
-
Tulsidas Hanuman Milan | तुलसीदास हनुमान मिलन
तुलसीदास जी वाराणसी के घाट पर प्रतिदिन रामायण का पाठ पढ़कर लोगों को सुनाया करते थे। वह पाठ सुनने एक वृद्ध कुष्ठ रोगी भी प्रतिदिन वहां सबसे पहले आ जाया करता था व अंत में जाता था। वह वृद्ध व्यक्ति हमेशा सभी लोगों के आखिर में पीछे बैठता था। एक दिन तुलसीदास जी ने जब पाठ समाप्त किया तब सब जा चुके थे किंतु वह व्यक्ति वहीं बैठा था।
तुलसीदास जी उसके पास गए व उसके चरणों में गिर गए। वह व्यक्ति कोई और नही बल्कि स्वयं भक्त हनुमान थे जिसे तुलसीदास जी ने पहचान लिया था। इसके बाद हनुमान ने उन्हें अपने असली रूप में दर्शन दिए। तब तुलसीदास जी ने प्रथम बार हनुमान जी के ही सामने हनुमान चालीसा का पाठ किया था।
अपने अंतिम समय में तुलसीदास जी ने उसी जगह पर संकटमोचन नाम से मंदिर बनवाया था व समाधि ले ली थी। आज उस घाट को काशी के तुलसीघाट के नाम से जाना जाता है। साथ ही वहां संकटमोचन मंदिर भी स्थित है जहाँ लाखों की संख्या में भक्त अपने संकटों को दूर करने की प्रार्थना भक्त हनुमान से करते हैं।
इस तरह से आज आपने तुलसीदास हनुमान जी का मिलन (Tulsidas Hanuman Ji Ka Milan) और उससे जुड़ी कहानी को पूर्ण रूप में जान लिया है। आशा है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी।
तुलसीदास हनुमान मिलन से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: क्या तुलसीदास हनुमान से मिले थे?
उत्तर: जब तुलसीदास जी गंगा किनारे अपनी लिखी रामचरितमानस का पाठ किया करते थे तब हनुमान जी भी उसे सुनने आया करते थे।
प्रश्न: तुलसीदास को हनुमान जी के दर्शन कैसे हुए?
उत्तर: हनुमान जी तुलसीदास की कथा में एक बुजुर्ग व्यक्ति बनकर आते थे। एक दिन तुलसीदास जी को संदेह हुआ तो हनुमान जी ने उन्हें अपने असली रूप के दर्शन दिए।
प्रश्न: Kya तुलसीदास जी को भगवान कैसे मिले?
उत्तर: तुलसीदास जी को हनुमान जी के दर्शन हुए थे। हनुमान जी के बताए मार्ग पर चलने पर उन्हें प्रभु श्रीराम भी मिल गए थे।
प्रश्न: तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा कब लिखा था?
उत्तर: तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा को पंद्रहवीं शताब्दी में लिखा था।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
अन्य संबंधित लेख: