रामायण बाली (Ramayan Bali): आज हम आपको रामायण के एक ऐसे राजा का जीवन परिचय देने जा रहे हैं जिसने श्रीराम से पहले ही राक्षस राजा रावण को धूल चटा दी थी। वह राजा थे किष्किंधा नगरी के राजा बाली। इन्हें कुछ अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे कि बालि, वाली, वालि या वली इत्यादि। हालाँकि इनके नाम का शुद्ध रूप वली ही होता है लेकिन वर्तमान में इन्हें बाली नाम से ही जाना जाने लगा है।
बाली का साम्राज्य दक्षिण भारत में दंडकारण्य के वनों में फैला हुआ था। वे वानर प्रजाति के राजा थे जिसका वध श्रीराम के हाथों हुआ था। वैसे तो बाली रामायण (Bali Ramayan) में इतनी प्रमुख भूमिका नहीं होता है क्योंकि उसकी मुख्य कहानी श्रीराम के वन में आने से पहले ही घटित हो चुकी होती है। श्रीराम तो बस सीधे आकर उसका वध कर देते हैं। ऐसे में आज हम आपके सामने रामायण के इस शक्तिशाली राजा बाली का जीवन परिचय देने वाले हैं।
Ramayan Bali | रामायण बाली का जीवन परिचय
बाली के जन्म से लेकर उसके वध तक की हरेक कहानी रोचक है। वैसे तो बाली के जन्म को लेकर रामायण में उल्लेख देखने को नहीं मिलता है। हालाँकि अन्य ग्रंथों में बाली के जन्म को लेकर कई तरह की कहानियाँ प्रसिद्ध है। क्या आप जानते हैं कि बाली का जन्म एक राक्षसी के गर्भ से हुआ था लेकिन वह इंद्र पुत्र भी था।
इसी के साथ ही बाली का विवाह समुद्र मंथन से निकली एक अप्सरा से हुआ था। वहीं बाली ने रावण तक को युद्ध में हरा दिया था और चारों दिशाओं में उसे अपनी काख़ में दबाकर घुमा था। साथ ही उसकी शक्तियां भी विचित्र थी जो भगवान ब्रह्मा से प्राप्त हुई थी। उसी बाली को मारने के लिए श्रीराम को भी अपनी मर्यादाएं तोड़कर छुपकर वार करना पड़ा था। इस तरह से बाली रामायण (Ramayana Vali) का एक विचित्र वानर ही कहा जा सकता है। आइए जाने बाली के जन्म से लेकर मृत्यु तक की कथा।
बाली का जन्म
बाली के जन्म की कथा बहुत ही विचित्र है। ऋष्यमूक पर्वत पर एक राक्षस ऋक्षराज रहा करता था। एक दिन वह वहाँ के सरोवर में नहाने गया जो चमत्कारी था। उसमें नहाते ही ऋक्षराज एक सुंदर स्त्री में बदल गया जो देवलोक की किसी अप्सरा से कम नहीं थी। उसी समय वहाँ से इंद्र देव गुजर रहे थे। इंद्र देव ने उस सुंदर स्त्री को देखा और उस पर सम्मोहित हो गए।
इंद्र देव से ही ऋक्षराज को बाली पुत्र रूप में प्राप्त हुए थे। इस तरह से बाली के माता पिता का नाम राक्षस ऋक्षराज व देव इंद्र थे। मान्यता है कि बाली का जन्म अपनी माँ के गर्भ से नहीं हुआ था बल्कि इंद्र देव के तेज से ही ऋक्षराज को बाली मिल गए थे।
बाली का भाई
ऋक्षराज अभी भी अपने साथ हुए इस घटनाक्रम को लेकर चिंतित बैठे थे। इसी तरह सुबह हो गई और सूर्य देव निकल आए। जब सूर्य देव की नज़र उन पर पड़ी तो ऋक्षराज को एक और पुत्र प्राप्त हुआ जिनका नाम सुग्रीव था। इस तरह से सुग्रीव बाली के छोटे भाई बने। सुग्रीव जन्म भी ऋक्षराज के गर्भ से नहीं हुआ था। इस तरह से दोनों भाई जुड़वाँ थे और दोनों का ही जन्म अपनी माँ के गर्भ से नहीं हुआ था।
एक मान्यता के अनुसार सूर्य देव ने अपने सारथी अरुण देव की पत्नी अरुनी को दोनों बच्चों के पालन-पोषण का दायित्व सौंप दिया था। इस कारण कई जगह बाली और सुग्रीव की माता का नाम अरुनी भी बताया जाता है।
बाली का विवाह
बाली का विवाह तारा नाम की एक अप्सरा के साथ हुआ था। तारा का जन्म समुंद्र मंथन के समय हुआ था। जब देवताओं व दानवों के द्वारा समुंद्र मंथन किया जा रहा था तब बाली भी अपने पिता इंद्र देव के साथ समुंद्र मंथन का कार्य कर रहे थे। समुंद्र में से कई अप्सराएँ निकली थी जिसमें से एक तारा थी। बाली (Ramayan Bali) का उस अप्सरा के साथ विवाह हुआ था।
तारा बहुत ही चतुर व विद्वान नारी थी। रामायण में उल्लेख है कि किस तरह से तारा ने बाली को सुग्रीव से युद्ध करने के लिए रोका था क्योंकि उसे किसी अनहोनी की आशंका थी। वहीं जब लक्ष्मण क्रोध में किष्किंधा नगरी आए थे तब तारा ने ही अपनी बुद्धिमता से उनके क्रोध को शांत किया था। इतना ही नहीं, वह पंच कन्याओं में से भी एक थी। पंच कन्या का अर्थ होता है एक स्त्री को विवाह के बाद भी कन्या/ कुँवारी ही कहा जाता है। ईश्वर के आशीर्वाद से तारा हर उगते सूर्य के साथ अपने कुंवारे रूप को पुनः प्राप्त कर लेती थी।
बाली का पुत्र
बाली को तारा से एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी जिसका नाम अंगद था। चूँकि बाली रामायण (Ramayana Vali) में बहुत कम देखने को मिलता है और उसकी ज्यादातर कहानी श्रीराम से पहले की ही है। किंतु उसके पुत्र अंगद की रामायण में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। यह भी विचित्र ही है कि जिस श्रीराम ने छुपकर बाली का वध कर दिया था, उसी बाली ने अपने पुत्र अंगद को जीवनभर श्रीराम की सेवा करने का आदेश दिया था।
वह अंगद ही था जिसे श्रीराम ने रावण के साथ युद्ध शुरू करने से पहले शांति दूत बनाकर लंका में भेजा था। वह अंगद ही था जिसका पैर रावण की सभा में कोई भी नहीं उठा पाया था। वह अंगद ही था जो सुग्रीव के बाद किष्किंधा नगरी का अगला राजा बना था।
बाली का वरदान
बाली को स्वयं भगवान ब्रह्मा जी से वरदान स्वरुप एक हार मिला था जिसको पहनने से उसकी शक्ति अत्यधिक बढ़ जाती थी। इस वरदान के फलस्वरूप बाली जब भी युद्ध करने जाता उसे सामने वाले प्रतिद्वंदी की आधी शक्ति प्राप्त हो जाती थी। अर्थात यदि बाली में 100 हाथियों का बल है व उसके प्रतिद्वंद्वी में एक हज़ार हाथियों का तो युद्ध के समय बाली को उसकी आधी शक्ति अर्थात 500 हाथियों का बल मिल जाएगा। इस प्रकार बाली की शक्ति 600 हाथियों के बराबर व उसके प्रतिद्वंद्वी की शक्ति केवल 500 हाथियों के बराबर रह जाएगी।
इसी वरदान के कारण बाली (Ramayan Bali) अत्यंत बलशाली हो गया था व उसे हराना असंभव था। अपने इसी वरदान के कारण बाली ने जितने भी युद्ध लड़े उसमें उसने विजय प्राप्त की। बाली को सामने से चुनौती देकर हराना किसी के लिए भी असंभव था। इसीलिए ही भगवान राम ने उसे छुपकर मारा था।
बाली की शक्तियां
बाली की पराक्रम की कथा स्वयं रामायण में लिखी हुई है। उसके बारे में लिखा गया है कि वह पहाड़ों के साथ एक गेंद के समान खेलता था व उन्हें अपने हाथों से इधर-उधर कर देता था। प्रातः काल जल्दी उठकर वह अपनी किष्किंधा नगरी से पूर्वी सागर (बंगाल की खाड़ी), फिर दक्षिण सागर (हिंद महासागर), फिर पश्चिम सागर (अरब सागर) तक जाता था। उसके बाद पश्चिम सागर से किष्किंधा नगरी वापस लौट आता था लेकिन फिर भी उसे थकान अनुभव नहीं होती थी।
बाली के युद्ध
बाली (Bali Ramayan) ने अपने जीवन में मुख्य तौर पर 5 युद्ध लड़े थे। उसके द्वारा लड़ा गया हरेक युद्ध अलग था जिसने उसके जीवन को अलग-अलग रूप में प्रभावित किया। किसी ने उसे श्राप दिलवाया तो किसी ने उसकी कीर्ति तीनों लोकों में फैला दी। इसमें से अंतिम युद्ध में भगवान श्रीराम ने उसका वध कर दिया था। आइए जानते हैं।
#1. बाली दुंदुभी युद्ध
दुंदुभी नाम का एक राक्षस था जिसे अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था। इसी घमंड में उसने समुंद्र देवता को युद्ध के लिए ललकारा लेकिन उन्होंने उसे पर्वत से युद्ध करने को कहा। फिर उसने पर्वत को युद्ध के लिए ललकारा तब उन्होंने बाली से युद्ध करने को कहा। जब दुंदुभी बाली से युद्ध करने गया तब बाली ने उसे पकड़कर मार डाला व अपने हाथों से उठाकर दूर फेंक डाला।
उस राक्षस के रक्त की कुछ बूँदें ऋषि मतंग के आश्रम पर गिरी। इस कारण ऋषि ने बाली को श्राप दिया कि वह उनके आश्रम के आसपास की एक योजन की भूमि पर आया तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। उनका आश्रम ऋष्यमूक पर्वत पर स्थित था जहाँ बाली को जाने की मनाही थी।
#2. बाली रावण युद्ध
बाली की शक्ति का परिचय सुनकर रावण को उससे ईर्ष्या होने लगी। रावण स्वयं को इस पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली समझता था इसलिए उसने बाली को युद्ध के लिए ललकारा। बाली ने रावण को भी हरा दिया व उसे अपनी काख़ में 6 माह तक दबाकर रखा। अपने इस अपमान से रावण बहुत लज्जित हुआ व उसने बाली (Ramayana Vali) से क्षमा मांग ली व उससे मित्रता कर ली।
#3. बाली व मायावी राक्षस का युद्ध
दुंदुभी के बड़े भाई मायावी राक्षस ने एक बार बाली को युद्ध के लिए ललकारा। तब बाली व उस मायावी राक्षस का महीनों तक एक गुफा में युद्ध हुआ। उस गुफा के बाहर उनका भाई सुग्रीव पहरा दे रहा था। जब उसका भाई बाली कई महीनों तक बाहर नहीं निकला तो अपने भाई को मरा समझकर सुग्रीव गुफा के द्वार को एक विशाल चट्टान से बंद कर चला गया ताकि वह मायावी राक्षस बाहर ना आ सके। किंतु उस युद्ध में बाली विजयी हुआ था। कुछ समय बाद बाली उस गुफा से निकल कर वापस आया व अपने भाई सुग्रीव को राज्य से निकाला दे दिया।
#4. बाली सुग्रीव प्रथम युद्ध
बाली ने अपने भाई सुग्रीव का भरी सभा में अपमान करके निकाल दिया था व उससे उसकी पत्नी रुमा को भी छीन लिया था। सुग्रीव अपने भाई बाली से इसका प्रतिशोध चाहता था इसलिए उसने भगवान श्रीराम की सहायता ली। चूँकि वरदान के कारण बाली से सामने से युद्ध नहीं किया जा सकता था इसलिए श्रीराम ने उसे छुपकर मारने की योजना बनाई।
योजना के अनुसार सुग्रीव ने बाली को ललकारा लेकिन दोनों में शरीर व व्यवहार को लेकर बहुत समानताएं थी जिस कारण भगवान राम प्रथम युद्ध में बाली को नहीं मार सके। उस युद्ध में बाली ने सुग्रीव को बहुत मारा व सुग्रीव किसी तरह अपना जीवन बचाकर वहाँ से भागा था।
#5. बाली सुग्रीव द्वितीय युद्ध व बाली वध
इस बार भगवान राम ने सुग्रीव की पहचान के लिए उसके गले में एक फूलों की माला पहनाई। इस बार के युद्ध में बाली की पहचान करना श्रीराम के लिए आसान था। जब बाली व सुग्रीव का भीषण युद्ध चल रहा था तब भगवान राम ने छुपकर बाण चलाकर उसका वध कर दिया। इस प्रकार बाली का अंत (Bali Ramayan) हो सका।
भगवान राम व बाली का संवाद
जब बाली तीर लगने से घायल हो गया तब भगवान श्रीराम बाकियों के साथ उसके पास आए। बाली अपने सामने भगवान श्रीराम को देखकर अत्यंत क्रोधित हो गया व उस पर छुपकर वार करने का कारण पूछा। तब भगवान श्रीराम ने उसके द्वारा किए गए अधर्म के कार्य बताए जो उसकी हत्या के कारण बने। बाली को अपने किए का पछतावा हुआ व उसने श्रीराम से क्षमा मांगी। साथ ही उसने अपने पुत्र अंगद को भगवान श्रीराम की सेवा करने को कहा। यह कहकर बाली ने अपने प्राण त्याग दिए।
बाली की मृत्यु के बाद सुग्रीव को किष्किंधा राज्य भार सौंपा गया व बाली के पुत्र अंगद को किष्किंधा का राजकुमार बनाया गया। साथ ही भगवान श्रीराम ने अंगद को अपनी सेना व कार्यों में महत्वपूर्ण स्थान दिया। इस तरह से रामायण में बाली की कहानी (Ramayan Bali) का यहीं अंत हो जाता है।
बाली रामायण से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: बाली में कितनी ताकत थी?
उत्तर: बाली को भगवान ब्रह्मा का वरदान था कि वह जिस किसी से भी युद्ध करेगा, तो सामने वाले योद्धा से दुगुनी शक्ति उसके अंदर आ जाएगी।
प्रश्न: बाली की कहानी क्या है?
उत्तर: रामायण में किष्किंधा नगरी व वानरों के राजा बाली की पूरी कहानी को विस्तार से हमने इस लेख में बताया है।
प्रश्न: रामायण में बाली का वध कैसे हुआ?
उत्तर: चूँकि बाली के अंदर सामने वाले योद्धा की शक्ति से दुगुनी शक्ति आ जाती थी। इस कारण श्रीराम को छुपकर बाली का वध करना पड़ा था।
प्रश्न: रावण बाली से क्यों डरता था?
उत्तर: रावण और बाली के युद्ध में बाली ने उसे ना केवल हराया था बल्कि कई महीनों तक उसे बुरी तरह अपमानित भी किया था। इस कारण रावण बाली से बहुत डरता था।
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