आज हम आपके सामने सम्राट अशोक हिस्ट्री हिंदी (Samrat Ashok History In Hindi) में रखेंगे। यह प्रश्न भारतीय इतिहास व हिंदू धर्म में एक बहुत बड़ा प्रश्न है कि आखिर सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म क्यों अपनाया? इसको लेकर हिंदू, बौद्ध व जैन धर्म के विभिन्न ग्रंथों व पुस्तकों में कई प्रकार की कथाएं व प्रमाण दिए गए हैं।
इस घटना का ना केवल हिंदू धर्म में बल्कि बौद्ध व जैन धर्म में भी अलग-अलग उल्लेख मिलता है क्योंकि अशोक के शासन काल में यह तीनों धर्म ही प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए थे। इसके बारे में कई तरह की भ्रांतियां है जो कि आधा सत्य है। हमें जो दिखाया गया, हमने केवल वही मान लिया और पूर्ण सत्य जानने का प्रयास नहीं किया।
ऐसे में आज के इस लेख में हम आपके साथ सम्राट अशोक का सही इतिहास (Samrat Ashoka History In Hindi) रखने जा रहे हैं। साथ ही आपको बताएँगे सम्राट अशोक के गुरु का नाम जिसने उन्हें बौद्ध धर्म अपनाने की ओर अग्रसर किया। आइए जानते हैं सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म को अपनाने के कारण।
Samrat Ashok History In Hindi | सम्राट अशोक हिस्ट्री हिंदी
महाराज अशोक से जुड़ी पुस्तकें केवल भारत में ही नही अपितु श्रीलंका, म्यांमार, नेपाल, भूटान, यूनान, चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान व बांग्लादेश में अलग-अलग समय काल में विभिन्न भाषाओं जैसे कि संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, थाई, चाईनीज, नेपाली इत्यादि में लिखी गई थी।
ज्यादातर लोगों का यह मानना है कि कलिंग के भीषण नरसंहार को देखने के बाद सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन हो गया था और चमत्कारिक रूप से अचानक उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया। उसके बाद उन्होंने जीवनभर किसी भी प्रकार की कोई हिंसा नही की थी व हमेशा अहिंसा के मार्ग पर ही आगे चले।
यह ना केवल आधा अधूरा सत्य है बल्कि बहुत सी भ्रामक बातें इसमें अपने आप गढ़ दी गई हैं। इसलिए आज हम इतिहास के पन्नों को खंगालकर व विभिन्न पुस्तकों के अध्ययन से आपके सामने संपूर्ण सत्य रख रहे हैं। इससे आपको सम्राट अशोक के इतिहास (Ashoka History In Hindi) का सही व संपूर्ण ज्ञान हो सकेगा।
सम्राट अशोक का बौद्ध धर्म के निकट आना
यह तो सब जानते हैं कि सम्राट अशोक ने कलिंग के युद्ध के बाद संपूर्ण रूप से बौद्ध धर्म को अपना लिया था किंतु वे बौद्ध धर्म के प्रभाव में बहुत पहले से ही आ गए थे। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि उनका अचानक से हृदय परिवर्तन नही हुआ था बल्कि वे पिछले कई वर्षों से बौद्ध धर्म से प्रभावित थे।
सम्राट अशोक का जन्म गौतम बुद्ध की मृत्यु के लगभग 200 से 300 वर्षों के पश्चात हुआ था। सम्राट अशोक मौर्य वंश के वंशज थे जिसके संस्थापक भारत के महान राजा चन्द्रगुप्त मौर्य थे। चन्द्रगुप्त मौर्य आचार्य चाणक्य के नेतृत्व में भारत के शीर्ष सिंहासन तक पहुंचे थे। अशोक के पिता का नाम बिन्दुसार व माता का नाम धर्मा था। अशोक के माता-पिता दोनों ही हिंदू धर्म के अनुयायी थे।
हालाँकि सम्राट अशोक की बचपन से ही हिंदू धर्म में रुचि कम थी। दरअसल उनके मन में बचपन से ही कई अनसुलझे प्रश्न थे जिनका हल कोई भी नही कर पाया था। साथ ही वे ब्राह्मणों की कुछ नीतियों के भी विरोधी थे। उन्होंने एक बार अपने दरबार में कई ब्राह्मणों को बुलाया था व उनसे कुछ प्रश्न किए थे लेकिन कोई भी उनकी जिज्ञासा को शांत नही कर पाया था।
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म क्यों अपनाया?
इतिहास के पन्नों और उस समय की राजनीति का आंकलन करने पर भारत के महान सम्राट अशोक के हिंदू धर्म की उपेक्षा करके बौद्ध धर्म की ओर खींचे चले जाने के दो मुख्य कारण सामने आते हैं, जो हैं:
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हिंदू धर्म में शुद्र जाति की उपेक्षा
हिंदू धर्म में मनुष्यों को उनकी जाति के आधार पर चार भागों में वर्गीकृत किया गया है। इसमें ब्राह्मणों का कार्य शिक्षा, क्षत्रियों का रक्षा, वैश्य का व्यापार व शुद्र का खेती व स्वच्छता होता है। इस नियम के अनुसार राजा बनने का अधिकार क्षत्रिय के पास ही होता था। हालाँकि इतिहास ने कुछ अन्य जातियों के राजा भी देखे हैं।
उस समय धनानंद के नेतृत्व में भारत की सीमाएं असुरक्षित थी। ऐसे समय में आचार्य चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य को उसके बचपन से ही भारत का अगला राजा चुन लिया था और उसकी तैयारी शुरू कर दी थी। चन्द्रगुप्त मौर्य शुद्र जाति से था। उसने आचार्य चाणक्य के नेतृत्व में धनानंद को अपदस्थ करके भारत की शीर्ष सत्ता पा ली थी किंतु अपने जीवन के अंतिम क्षणों में उन्होंने भी जैन धर्म को अपना लिया था। उसके बाद उनका बेटा बिन्दुसार राजा बना जिन्होंने अपने संपूर्ण जीवन में हिंदू धर्म का ही पालन किया।
हालाँकि बिन्दुसार के बाद जब उनका पुत्र अशोक राजा बना तब उसकी इच्छाएं बहुत अधिक थी। वह अपने 99 भाइयों का वध करके भारत की शीर्ष सत्ता तक पहुंचा था और राजा बनने के पश्चात भी उसका नरसंहार कम नहीं हुआ था। हिंदू धर्म में अन्य जातियों की उपेक्षा शुद्र जाति को कम सम्मान मिलता था। यही एक मुख्य कारण रहा होगा कि सम्राट अशोक का अपनी जाति को कम सम्मान मिलना खटकता होगा और इसी से संबंधित प्रश्न वे धर्मगुरुओं से करते होंगे।
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बौद्ध भिक्षुओं की प्रभावशाली लोगों पर नज़र
सम्राट अशोक के पैदा होने के 200 से 300 साल पहले ही महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था और उन्होंने ही हिंदू धर्म में से एक अन्य धर्म बनाया जिसका नाम था बौद्ध धर्म। महात्मा बुद्ध के जाने के पश्चात बौद्ध धर्म धीरे-धीरे अपने पैर पसार रहा था लेकिन यह गति बहुत ही धीमी थी।
बौद्ध धर्म को पहचान दिलाने और तेजी से इसका विस्तार करने के लिए बौद्ध भिक्षुओं और धर्मगुरुओं की नज़र मुख्यतया भारत के छोटे-मोटे राजाओं से लेकर बड़े राजा, प्रभावशाली व्यक्तियों इत्यादि पर रहती थी। वे समय-समय पर किसी ना किसी रूप में इन लोगों पर बौद्ध धर्म की छाप छोड़ने और उन्हें प्रभावित करने का प्रयास करते रहते थे।
यदि कोई राजा या प्रभावशाली व्यक्ति उनसे प्रभावित होकर बौद्ध धर्म को अपना लेता था तो ऐसे में उस राज्य की प्रजा या उनके अनुयायियों को बौद्ध धर्म में परिवर्तित करना बहुत ही आसान कार्य होता था। बौद्ध धर्म को फैलाने का यह सबसे आसान उपाय हुआ करता था। इसी उद्देश्य से उन्होंने सम्राट अशोक की हिंदू धर्म से भीतरी घृणा का समय-समय पर लाभ उठाया और उन्हें बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित किया।
सम्राट अशोक के गुरु का नाम
जैसा कि हमने आपको ऊपर बताया कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत के कई राजाओं पर अपनी छाप छोड़ने का प्रयास किया था। उसी क्रम में उन्होंने सम्राट अशोक की छोटी आयु से ही उन पर प्रभाव डालना शुरू कर दिया था। अभी हम वह जानेंगे जब सम्राट अशोक अपनी बाल्यावस्था में पहली बार बौद्ध धर्म के संपर्क में आए थे।
मुख्य रूप से सम्राट अशोक के गुरु के रूप में दो बौद्ध व्यक्तियों ने उन्हें प्रभावित किया था। इसमें से एक बौद्ध भिक्षु उनका रिश्तेदार था तो दूसरा बौद्ध तीर्थ क्षेत्र में रहने वाला उपासक। आइए सम्राट अशोक के गुरु का नाम (Samrat Ashok Ke Guru Ka Naam) भी इसके जरिए ही जान लेते हैं।
- जब अशोक बाल्यावस्था में थे तब एक बार वे पाटलिपुत्र की गलियों में भ्रमण कर रहे थे। उस समय उनका एक बौद्ध भिक्षु निग्रोधा/ निगोथ से संपर्क हुआ जो वहां की गलियों में भिक्षा मांग रहा था।
- निग्रोधा सम्राट अशोक के सबसे बड़े भाई और राजा बिन्दुसार के सबसे बड़े पुत्र सुसीम का पुत्र था जो बचपन से ही बौद्ध धर्म से प्रभावित हो गया था।
- उसने हिंदू धर्म का त्याग कर बौद्ध भिक्षु बनने का निर्णय लिया था और तभी से ही वह राजपाट छोड़कर भिक्षा मांगने का कार्य करता था।
- अशोक उन्हें नही जानते थे क्योंकि जब निगोथ ने बौद्ध धर्म को अपनाकर अपना घर छोड़ा था तब अशोक शायद पैदा भी नही हुए थे या बहुत छोटे रहे होंगे।
- निग्रोधा का अशोक से पाटलिपुत्र की गलियों में मिलना हुआ। उसने अशोक के सामने प्रत्यक्ष रूप से बौद्ध धर्म का प्रचार किया। इस तरह से सम्राट अशोक की बाल्यावस्था से ही उन पर बौद्ध धर्म का सकारात्मक प्रभाव पड़ गया।
- बहुत लोगों का यह मानना है कि बौद्ध अनुयायियों ने योजनाबद्ध तरीके से निग्रोधा को पहले बौद्ध अनुयायी बनाया। फिर अशोक का भविष्य के राजा बनने की संभावनाओं को ध्यान में रखकर उसके पास निग्रोधा को भेजा।
- उस समय अशोक निग्रोधा के व्यवहार से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उनसे ज्ञान लेने का सोचा। तब निग्रोधा ने उन्हें बौद्ध धर्म के उपदेश दिए जिससे सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के बारे में और जानने को उत्सुक हुए।
- उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक निग्रोधा को बहुत सारा धन व स्वर्ण मुद्राएँ उपहार में दी। इस भेंट के पश्चात अशोक की बौद्ध धर्म को और जानने की इच्छा बढ़ती चली गई।
- सम्राट अशोक की निगोथ से हुई भेंट ने उन पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि अब वे बौद्ध धर्म को जानने के लिए हमेशा उत्सुक रहते। अब अशोक युवावस्था में प्रवेश कर चुके थे।
- उन्होंने बौद्ध धर्म के बारे में और अच्छे से जानने व अपनी जिज्ञासा को शांत करने के उद्देश्य से पाटलिपुत्र में ही स्थित कुक्कुतारम बौद्ध तीर्थ स्थल में नियमित रूप से जाना शुरू कर दिया। वहां पर वे कई बौद्ध भिक्षुओं के संपर्क में आए व उनसे ज्ञान अर्जित किया।
- वहीं पर उनकी भेंट एक बौद्ध भिक्षु मोगाल्लिपुत्ता तिस्सा से हुई जिसने उनके ऊपर आश्चर्यजनक रूप से गहरा प्रभाव डाला।
- तिस्सा ने कुछ ही समय में उनका हृदय परिवर्तन कर दिया जिसके प्रभावस्वरूप युवा अशोक बौद्ध उपासक बन गए।
अभी तो आपने सम्राट अशोक का सही इतिहास (Samrat Ashok History In Hindi) जानना शुरू ही किया है, लेकिन अभी बहुत कुछ जानना बाकी है। इसे जानने के पश्चात आपके मन से यह भ्रांति भी दूर हो जाएगी कि अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाने के पश्चात अहिंसा का दामन थाम लिया था।
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म कब अपनाया?
अशोक अपने पिता महाराज बिन्दुसार की मृत्यु के बाद भारतवर्ष के सम्राट बने और अपने राज्य को और विस्तार देने के उद्देश्य से उन्होंने कई भयंकर युद्ध लड़े। उसी में एक सबसे भीषण युद्ध था कलिंग का युद्ध। इस युद्ध में एक लाख सैनिकों व पशुओं को मौत के घाट उतार दिया गया था व डेढ़ लाख से भी ज्यादा लोगों को बंदी बना लिया गया था।
युद्ध समाप्ति के पश्चात जब सम्राट अशोक युद्ध भूमि में आए तब उन्होंने अपने आसपास व्यापक नरसंहार देखा। चारों ओर केवल मानव शरीर के कटे-फटे अंग, शव पड़े थे और स्त्रियों, सगे-संबंधियों की चीत्कार सुनाई दे रही थी। इस युद्ध के पश्चात कुछ ही दिनों में सम्राट अशोक ने पूर्णतया बौद्ध धर्म को अपना लिया था व हिंदू धर्म का त्याग कर दिया था।
अब इतिहासकार कहते हैं कि कलिंग के युद्ध के पश्चात जब सम्राट अशोक ने मानव जीवन की हुई त्रासदी को देखा तो उन्होंने हिंदू धर्म को त्यागा और बौद्ध धर्म को चुना। ऐसा इसलिए क्योंकि बौद्ध धर्म में उन्होंने शांति का मार्ग देखा और अहिंसा का मार्ग चुना। किंतु उनका यह तर्क सरासर असत्य और मनगढ़ंत सिद्ध होता है क्योंकि अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाने के पश्चात भी अहिंसा का मार्ग नही अपनाया था और जीवनभर केवल हिंसा ही की थी।
हालाँकि उन्होंने युद्ध का जीवनभर के लिए त्याग कर दिया था लेकिन हिंसा का नही। ऐसे में अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर कलिंग के युद्ध के पश्चात ऐसा क्या हुआ कि सम्राट अशोक ने अचानक से हिंदू धर्म को त्याग कर बौद्ध धर्म को अपना लिया था? आइए इसका भी विश्लेषण करते हैं।
बौद्ध धर्म अपनाने से पहले सम्राट अशोक की हिंसक छवि
सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म के अपनाने से पहले अत्यधिक क्रूर छवि वाले व्यक्तित्व वाला माना जाता था जो कि वे थे भी। अशोक के 99 सौतेले भाई थे व एक सगा भाई तीस्ता था। कुल 101 पुत्रों में महाराज बिन्दुसार का सबसे बड़ा पुत्र सुसीम था जिसे सभी भविष्य के राजा के रूप में देखते थे। साथ ही महाराज बिन्दुसार को अशोक उसकी रूखी त्वचा के कारण पसंद नही थे।
किंतु दूसरी ओर, अशोक अपनी दमनकारी नीतियों, चतुराई और शक्ति में अपने भाइयों से अधिक बलवान था। उसमे दया, करुणा, क्षमा की भावना कम थी और हिंसा, क्रोध, युद्ध की भावना अधिक। यही दमनकारी नीतियाँ उसे अपने भाइयों से अधिक शक्तिशाली बनाती थी। महाराज बिन्दुसार के कार्यकाल में तक्षशिला गुरुकुल व कुछ अन्य जगहों पर विद्रोह हो गया था जिसे दबाने में अशोक सफल हुआ जिससे उसकी राजदरबार में महत्ता बढ़ी।
अपने पिता की मृत्यु के बाद सम्राट अशोक ने 4 वर्षों तक भीषण युद्ध किया व अपने सभी 99 सौतेले भाइयों को मौत के घाट उतार दिया केवल अपने सगे भाई तीस्ता को छोड़कर। तत्पश्चात अशोक को भारतवर्ष का सिंहासन मिला।
अशोक इतना क्रूर राजा था कि उसने राजधानी पाटलिपुत्र में एक ऐसा कारावास बनवा रखा था जिसे अशोक का नरक कहा जाता था। उसने कई लोगों की गर्दने कटवा दी थी व अपनी रखैलों को भी जिंदा जलवा दिया था। इसी कारण उसका एक नाम चांडाल अशोक भी पड़ा था। उसकी हिंसक नीतियों व भीषण नरसंहार के कारण धीरे-धीरे भारतवर्ष के कई राज्यों और उसकी राजधानी में ही रोष व्याप्त होने लगा था। प्रजा व सैनिकों में असंतोष की भावना बढ़ रही थी और राजदरबार से भी उन्हें अपदस्थ करने के षड़यंत्र शुरू हो चुके थे।
अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने के मुख्य कारण
अशोक ने बौद्ध धर्म क्यों अपनाया, इसके दो कारण तो हमने आपको ऊपर बता दिए हैं। पहला तो यह कि वे हिंदू धर्म में अपनी शुद्र जाति की उपेक्षा से प्रसन्न नही थे और ब्राह्मणों से उनका रुष्ट होना सामान्य बात थी। साथ ही धर्म से संबंधित कुछ ऐसे प्रश्न थे जिनका उत्तर उन्हें हिंदू धर्म में नही मिल पाया था या फिर वे उन उत्तरों से संतुष्ट नही हुए थे।
दूसरा कारण यह था कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने बचपन से ही सम्राट अशोक पर प्रभाव डालना शुरू कर दिया था। इसी क्रम में उनका बौद्ध धर्म के मठों में जाना और बौद्ध उपासक बनना भी आता है। इसका अर्थ यह हुआ कि कलिंग युद्ध से पहले ही वे बौद्ध धर्म के अनुयायी लगभग बन ही चुके थे, बस इसकी उन्हें सार्वजनिक रूप से घोषणा करनी थी।
अब ऐसा क्या हुआ कि कलिंग के युद्ध के पश्चात ही उन्होंने बौद्ध धर्म को सार्वजनिक और पूर्ण रूप से अपनाने का निर्णय लिया था? आइए अशोक के बौद्ध धर्म को अपनाने के पीछे की असली वजह जानते हैं।
- कलिंग का युद्ध एक बहुत बड़ा युद्ध था जिसमें भीषण नरसंहार हुआ था। इसमें कलिंग और पाटलिपुत्र दोनों की सेनाओं में जान-माल का बहुत भारी नुकसान हुआ था।
- पाटलिपुत्र की प्रजा और सेना पहले से ही सम्राट अशोक से मन ही मन क्रोधित थी लेकिन कलिंग के भीषण युद्ध के पश्चात यह रोष बहुत ज्यादा बढ़ गया था।
- ऐसे में भारत की शीर्ष सत्ता डगमगाने लगी थी और सम्राट अशोक के सिंहासन के विरुद्ध विरोध के स्वर तेज हो रहे थे।
- प्रजा व सैनिक युद्ध से तंग आ चुके थे। राजमहल में उन्हें अपदस्थ करने की योजनाएं जोरों पर चल रही थी। इसलिए अशोक का सत्ता में बने रहना मुश्किल होता जा रहा था।
- ऐसे में राजनीतिक दृष्टि से अनुमान लगाया जा सकता है कि उनके मार्गदर्शकों ने प्रजा और सेना का ध्यान इससे हटाने और सत्ता को स्थिर करने के लिए अशोक को बौद्ध धर्म अपनाने और युद्ध नहीं करने का मार्ग सुझाया।
- अपनी सत्ता को बचाए रखने के साथ-साथ प्रजा और सेना के रोष को समाप्त करने का इससे अच्छा और कोई मार्ग हो ही नही सकता था।
- इसी क्रम में उन्होंने प्रजा का ध्यान भटकाने के उद्देश्य से बौद्ध धर्म को अपनाने की घोषणा कर दी। साथ ही अहिंसा का पाठ पढ़ाकर जीवनभर युद्ध ना करने की प्रतिज्ञा ली क्योंकि एक और भीषण युद्ध उनके राज्य में अराजकता पैदा कर देता और सत्ता उनके हाथ से निकल जाती।
- ऐसे में उन्होंने राजनीतिक सूझ-बुझ का परिचय देते हुए और पहले से ही बौद्ध धर्म से प्रभावित होने के कारण हिंदू धर्म को त्यागा और बौद्ध धर्म को अपनाया।
- सत्ता पर ब्राह्मणों का भी प्रभाव था और वे राजा के बाद दूसरे बड़े पदों पर आसीन थे। ऐसे में उनके प्रभाव को कम करने और सत्ता को स्थिर बनाए रखने के लिए उन्होंने प्रजा व सेना के बीच यह संदेश प्रसारित करवाया कि सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म इसलिए ही अपनाया है ताकि वे भविष्य में कभी युद्ध ना करें।
- इसी कारण उन्होंने जीवनभर युद्ध ना करने की प्रतिज्ञा ली। प्रजा और सेना उनके बार-बार युद्ध करने की नीति से ही मुख्य रूप से परेशान थी। इसलिए बौद्ध धर्म को अपनाकर यदि वे युद्ध नही करते हैं तो प्रजा ने इस निर्णय को सहर्ष स्वीकार कर लिया और ब्राह्मण कुछ नही कर पाए।
- एक और कारण यह भी था कि समय-समय पर बौद्ध उपासकों के द्वारा उनके मन में हिंदू धर्म के प्रति घृणा को बढ़ावा दिया गया और इसके लिए उनका शुद्र जाति से होने का लाभ उठाया गया।
इन्हीं सब कारणों को ध्यान में रखते हुए सम्राट अशोक ने कलिंग के भीषण युद्ध के पश्चात अस्थिर और डगमगा रही भारत की शीर्ष सत्ता को फिर से मजबूत किया और सत्ता अपने हाथ में बनाए रखी। उन्होंने इसके बाद जीवनभर कोई युद्ध नही किया लेकिन हिंसा का त्याग नही किया।
इसका उदाहरण बौद्ध धर्म को अपनाने के पश्चात उनके कार्यों और बनाई गई नीतियों को देखकर मिल जाता है। आइए सम्राट अशोक हिस्ट्री हिंदी (Samrat Ashok History In Hindi) के तहत उसके बारे में भी जान लेते हैं।
Samrat Ashoka History In Hindi | सम्राट अशोक का सही इतिहास
प्रजा व सैनिकों में व्याप्त होते रोष व युद्ध में हो रही जानमाल की हानि के कारण सम्राट अशोक ने भविष्य में कोई भी युद्ध ना करने का निर्णय लिया था। इसी के साथ वे पूरे भारतवर्ष में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में लग गए थे। इसके लिए उन्होंने अपने पुत्र महिंद्रा व पुत्री संघमित्रा को उत्तर व दक्षिण दिशाओं की यात्रा पर भेजा।
बौद्ध धर्म के प्रचार का अनुमान आप इसी से लगा सकते हैं कि अपने कार्यकाल में अशोक ने पूरे भारतवर्ष में 84 हज़ार से भी ज्यादा बौद्ध स्तूपों का निर्माण करवाया था। अब हम आपके सामने सम्राट अशोक के इतिहास (Samrat Ashoka History In Hindi) के कुछ और पन्ने खोलने जा रहे हैं। यह पन्ने उन बनी-बनाई प्रसिद्ध बातों की पोल खोलकर रख देंगे जो कहते हैं कि सम्राट अशोक बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद अहिंसक हो गए थे।
- सम्राट अशोक के कार्यकाल में ही बौद्ध धर्म श्रीलंका, नेपाल, भूटान, म्यांमार, अफगानिस्तान, चीन, तिब्बत इत्यादि देशों में फैलाया गया। इसके लिए उन्होंने अपनी पूरी शक्ति लगा दी थी और हर जगह लोगों को बौद्ध धर्म अपनाने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विवश किया गया था।
- जैसे कि बौद्ध धर्म को अपनाने के कारण उन्होंने जानवरों को खाने व पेड़ों को काटने पर कठोर प्रतिबंध लगा दिया था। जो भी इसका उल्लंघन करते हुए पाया जाता था उसे कठोर दंड दिया जाता था।
- अशोक की सबसे बड़ी गलती यह रही कि उन्होंने लोगों को अहिंसक बनाने के लिए भी हिंसक तरीकों का प्रयोग किया व अन्य धर्म को मानने वालों का पतन शुरू किया।
- उनके काल में लोगों को मांस खाने या पेड़ को काटने पर कठोर सजाएँ दी जाने लगी। इसी के साथ वे ब्राह्मणों व प्रभावशाली व्यक्तियों की आवाज़ को दबाने लगे।
- जैन धर्म के अनुयायियों पर भी अशोक ने अत्यधिक अत्याचार किया। एक प्रमाण के अनुसार उन्होंने बौद्ध धर्म विरोधी 18 हज़ार लोगों को एक बार में ही मौत की सजा सुना दी थी।
- बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने उनके मन में अन्य धर्मों के प्रति इतनी घृणा भर दी थी कि एक बार उन्होंने जैन संतों का कटा सिर लाने पर एक स्वर्ण मुद्रा का ईनाम रख दिया था।
- उनके इस आदेश पर पूरे भारतवर्ष में जैन संतों की व्यापक मार-काट हुई। हर जगह सैनिक और प्रजा के लोग जैन संतों का सरेआम गला काट देते और बदले में एक स्वर्ण मुद्रा का उपहार पाते।
- इससे जैन धर्म के उपासकों में अत्यधिक डर की भावना आ गई। अशोक ने अपना यह आदेश तब वापस लिया जब किसी ने गलती से उनके ही सगे भाई तीस्ता का सिर धड़ से अलग कर दिया था। दरअसल तीस्ता भी एक जैन उपासक थे।
- उनके अत्याचार केवल बौद्ध धर्म तक ही सीमित नही थे अपितु हिंदू धर्म पर भी उन्होंने कई अत्याचार किए। जो भी बौद्ध धर्म के विरुद्ध कुछ भी बोलता या करता, फिर चाहे वह कलाकार हो, मूर्तिकार हो, प्रभावशाली व्यक्ति हो, शिक्षक हो या कोई अन्य, उसे उसके परिवार समेत घर में जलाकर मार डाला जाता था।
इसलिए अंत में एक बार पुनः अपनी बात को दोहराते हुए हम आप सभी के मन से यह शंका या भ्रम दूर करना चाहते हैं कि सम्राट अशोक के हृदय परिवर्तन होने या अहिंसा का मार्ग अपनाने की बात केवल एक मनगढ़ंत है।उनका हिंदू धर्म को त्याग कर बौद्ध धर्म को अपनाना पूर्ण रूप से एक राजनीतिक चाल थी।
निष्कर्ष
आज के इस लेख के माध्यम से आपने सम्राट अशोक हिस्ट्री हिंदी में (Samrat Ashok History In Hindi) पढ़ ली है। इसे पढ़कर आपको अवश्य ही यह पता चल गया होगा कि आखिरकार सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म क्यों अपनाया व उनके गुरु का क्या नाम था, जिसने उन्हें इस मार्ग पर आगे बढ़ाया। आशा है दी गई जानकारी से आपको सम्राट अशोक के सही इतिहास के बारे में जानने और उसे समझने में सहायता मिली होगी।
सम्राट अशोक के इतिहास से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: सम्राट अशोक के पहले कौन सा धर्म था?
उत्तर: सम्राट अशोक का पहले का धर्म हिन्दू था। वे हिन्दू धर्म के शुद्र राजा थे जिनके पिता का नाम बिंदुसार व दादा का नाम महान महाराज चंद्रगुप्त मौर्य था।
प्रश्न: सम्राट अशोक के पूर्वज कौन थे?
उत्तर: सम्राट अशोक के पूर्वज महाराज चंद्रगुप्त व बिंदुसार थे। आचार्य चाणक्य के सानिध्य में चंद्रगुप्त मौर्य भारत के महाराज बने थे। उनके पुत्र का नाम बिंदुसार था तथा बिंदुसार का पुत्र अशोक था।
प्रश्न: सम्राट अशोक कैसे राजा थे?
उत्तर: सम्राट अशोक मौर्य साम्राज्य के तीसरे व प्रमुख राजाओं में से एक थे। हालाँकि उनकी अति हिंसक नीतियों के कारण मौर्य साम्राज्य की नींव बहुत कमजोर पड़ गई थी।
प्रश्न: अशोक का दूसरा नाम क्या था?
उत्तर: अशोक का दूसरा नाम देवानामप्रिय या देवानांप्रिय था। इसी के साथ ही उन्हें अशोक दी ग्रेट के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न: अशोक हिंदू है या बौद्ध?
उत्तर: अशोक जन्म से तो हिन्दू धर्म को मानने वाले थे और उनके पूर्वज भी इसी धर्म से संबंध रखते थे। हालाँकि कलिंग युद्ध के पश्चात उन्होंने आधिकारिक तौर पर बौद्ध धर्म अपना लिया था।
प्रश्न: क्या अशोक गौतम बुद्ध थे?
उत्तर: नहीं, अशोक गौतम बुद्ध नहीं थे। हालाँकि बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में उनका योगदान स्वयं गौतम बुद्ध से भी बहुत अधिक था। बौद्ध धर्म में अशोक का नाम बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है।
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