जब भरत श्रीराम की खोज में वन में निकलते हैं तब भरत और निषाद राज का मिलन (Ramayan Bharat Nishad Raj Milan) देखने को मिलता है। यह प्रसंग बहुत ही रोचक है क्योंकि पहले तो निषाद राज को भरत पर संदेह होता है और वे उनसे युद्ध करने के लिए अपनी पूरी सेना तैयार कर लेते हैं।
वहीं जब उन्हें भरत के उद्देश्य का पता चलता है तो वही निषाद राज उन्हें श्रीराम से मिलाने चित्रकूट तक लेकर जाते हैं। भरत और निषाद राज का मिलन (Bharat Aur Nishad Raj Ka Milan) हमें कई तरह की शिक्षा देकर जाता है। आइए उस रोचक प्रसंग के बारे में जान लेते हैं।
Ramayan Bharat Nishad Raj Milan | रामायण भरत निषाद राज मिलन
निषाद राज गुह श्रृंगवेरपुर के आदिवासी राजा थे जो बचपन में महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में भगवान राम व उनके भाइयों के साथ ही पढ़े थे। जब भगवान श्रीराम वनवास पर गए थे तब रास्ते में उनकी अपने मित्र निषादराज से भी भेंट हुई थी। इसके बाद प्रभु गंगा पार करके चित्रकूट के लिए निकल गए थे।
भरत राम के छोटे भाई व माता कैकेयी के पुत्र थे। उनकी माता के द्वारा ही सब षड्यंत्र रचा गया था जिस कारण भगवान श्रीराम को 14 वर्षों का कठोर वनवास मिला था। जब भरत को अपने अयोध्या आगमन के पश्चात सब घटना का पता चला तो वे अपने भाई श्रीराम को लेने के लिए चित्रकूट निकल पड़े। उनके साथ अयोध्या का पूरा राज परिवार, मंत्रीगण, गुरुजन व अयोध्या की प्रजा भी थी।
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निषादराज का भरत पर संदेह
जब भरत अपनी सेना के साथ श्रृंगवेरपुर नगरी की सीमा पर पहुंचे तो श्रृंगवेरपुर के सैनिकों ने यह सूचना जाकर राजा गुह को दी। गुह ने सोचा कि जिसकी माता के कारण षड्यंत्र रचा गया हो उसका पुत्र भी वैसा ही होगा। वैसे भी अब भरत अयोध्या के राजा हैं और वह अपने साथ सेना का एक बड़ा दल लेकर आ रहे थे।
निषादराज के अनुसार भरत ने सेना सहित श्रीराम व लक्ष्मण को वन में ही मारने का निश्चय किया ताकि किसी भी प्रकार के विद्रोह को दबाया जा सके। यह सोचकर निषादराज ने अपनी नगरी में ढोल पिटवा दिया व सभी को अयोध्या की सेना से लड़ने के लिए तैयार होने को कहा।
जब निषादराज सभी को लड़ने के लिए तैयार कर रहे थे उसी समय एक नगरवासी ने पहले भरत से बातचीत करने को कहा ताकि उनके आने का असली उद्देश्य जाना जा सके। उनका यह परामर्श निषादराज को पसंद आया व उन्होंने पहले भरत से बात करने की ठानी।
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भरत और निषाद राज का मिलन
इसके बाद निषादराज ने अपने सैनिकों को झाड़ियों में छुपने को कहा व स्वयं उनसे मिलने (Bharat Aur Nishad Raj Ka Milan) गए। अयोध्या के मंत्री सुमंत जो पहले भगवान श्रीराम को यहाँ तक छोड़ने आए थे वे निषादराज को जानते थे इसलिए उन्होंने उनका परिचय भरत को दिया। भरत को जब यह ज्ञात हुआ कि निषादराज भगवान श्रीराम के मित्र हैं तो वे उनके चरणों में गिर पड़े। अयोध्या नरेश को अपने चरणों में गिरते देखकर निषादराज की आँखें भर आई व उन्हें स्वयं पर पछतावा हुआ।
उसके बाद भरत ने उन्हें अपने यहाँ आने का औचित्य बताया। तब निषादराज ने ही भरत व उनकी सेना को आगे का मार्ग दिखाया था। साथ ही जब श्रीराम यहाँ आए थे तब कैसे अपना जीवन व्यतीत किया था व कहाँ सोए थे वह सब भी बताया। भरत यह सुनकर बहुत भावुक हो गए थे व उन्होंने आगे का मार्ग भगवान श्रीराम के भाँति नंगे पैर पैदल चलने का निर्णय किया था। इसके बाद निषादराज भरत व उनकी पूरी सेना को चित्रकूट तक लेकर गए थे।
इस तरह से रामायण में भरत निषाद राज मिलन (Ramayan Bharat Nishad Raj Milan) बहुत ही रोचक है। वह इसलिए क्योंकि जो निषाद राज आम प्रजावासी के भाँति भरत को शत्रु समझ रहे थे, वही उन्हें चित्रकूट तक लेकर जाते हैं। तो वहीं अयोध्या जैसे शक्तिशाली राज्य के राजा भी निषादों के राजा गुह को ना केवल क्षमा कर देते हैं बल्कि उनका अभिनन्दन भी करते हैं।
भरत निषाद राज मिलन से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: निषाद राज के वंशज कौन है?
उत्तर: निषाद राज प्राचीन क्षत्रिय समुदाय से आते थे। वे जंगल के बीच रहकर जीवनयापन किया करते थे।
प्रश्न: निषाद राज केवट का नाम क्या था?
उत्तर: निषाद राज का नाम तो गुहराज था लेकिन यदि आप उस केवट का नाम जानने का प्रयास कर रहे हैं जिसने श्रीराम को गंगा पार करवाई थी तो उसका उल्लेख रामायण में नहीं मिलता है।
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