माता सीता का धरती में समाना (Sita Ka Dharti Mein Samana)

सीता माता धरती में क्यों समाई थी

आज हम सीता माता का धरती में समाना (Sita Mata Ka Dharti Mein Samana) और उससे पहले उनके आखिरी संदेश के बारे में जानेंगे। जब अयोध्या की प्रजा ने माता सीता के चरित्र पर प्रश्न उठाया तब भगवान श्रीराम के द्वारा माता सीता को अपनी पवित्रता की शपथ लेने को कहा गया। माता सीता ने स्वयं के लिए उपजे इस अपवाद को हमेशा के लिए समाप्त कर देने के उद्देश्य से धरती माता का आह्वान किया तथा उसमें समा जाने का निर्णय किया।

माता सीता के आह्वान पर धरती दो टुकड़ों में बंट गई तथा माता सीता धरती माँ के साथ उसमें समाने लगी। किंतु जाने से पहले उन्होंने समस्त अयोध्यावासियों तथा अपने पुत्रों से कुछ वचन कहे। आइए जानते हैं माता सीता का धरती में समाना (Sita Ka Dharti Mein Samana) व उससे जुड़े घटनाक्रम के बारे में।

सीता माता का धरती में समाना (Sita Mata Ka Dharti Mein Samana)

माता सीता का अब इस पृथ्वी पर समय समाप्त हो चुका था। साथ ही वे बार-बार अपनी पवित्रता की प्रमाणिकता देते-देते थक चुकी थी। इस कारण उन्होंने इस अपवाद को हमेशा के लिए समाप्त कर देने के उद्देश्य से पुनः धरती की गोद में चले जाने का निर्णय ले लिया था। माता सीता के कहेनुसार धरती फट गई थी और उसमें से धरती माता उन्हें लेने आ चुकी थी।

हालाँकि जाने से पहले माता सीता ने अपने पुत्रों, अयोध्यावासियों व श्रीराम से कुछ वचन कहे थे। आज हम आपको माता सीता के आखिरी शब्दों के बारे में बताने वाले हैं।

लव-कुश को दिया पिता की सेवा का उत्तरदायित्व

अपनी माँ सीता को भूमि में समाते देखकर लव कुश अधीर हो उठे तथा उनसे ना जाने का अनुरोध करने लगे। अपने दोनों पुत्रों को इस तरह रोता देखकर माता सीता ने लव-कुश से कहा कि वह उन दोनों को उनके पिता श्रीराम के हाथों सौंपकर जा रही हैं तथा अब से वे ही उनके देवता हैं। उनकी सेवा करना ही उनका धर्म होगा। उन्होंने जीवनभर अपने पिता की सेवा करने का उत्तरदायित्व लव-कुश को दिया।

अयोध्यावासियों को दिया आशीर्वाद

माता सीता को भूमि में जाते देखकर अयोध्या की प्रजा को अपनी भूल का अनुभव हुआ तथा उन्होंने माता सीता से क्षमा याचना की। माता सीता ने भी उन्हें क्षमा कर दिया तथा उन्हें अपना आशीर्वाद दिया। इसके पश्चात उन्होंने श्रीराम से कहा कि वे अयोध्या की प्रजा की गलतियों के लिए उन्हें दंड न दें तथा उन्हें अपने पुत्र समान ही प्रेम करें। इससे माता सीता का तात्पर्य यह हुआ कि वे माता सीता के चरित्र पर कलंक लगाने तथा उनकी भूमि में जाने का दोष अयोध्या की प्रजा को ना दें तथा ना ही इसके लिए किसी को दंड मिले।

सभी बड़ों को किया प्रणाम

इसके पश्चात माता सीता ने सभा में उपस्थित गुरु वशिष्ठ, विश्वामित्र तथा अन्य गुरु, पूज्य माताएं कौशल्या, कैकई तथा सुमित्रा व अपने पिता जनक को प्रणाम किया तथा उनका आशीर्वाद लिया। सभी ने दुखी हृदय के साथ माता सीता को आशीर्वाद दिया।

श्रीराम को आखिरी प्रणाम

अंत में माता सीता ने श्रीराम को प्रणाम किया तथा कहा कि यदि उनके और भी जन्म हो तो सभी जन्मों में उन्हें पतिदेव के रूप में वही मिलें किंतु किसी और जन्म में कभी ऐसी विकट परिस्थिति वापस ना आए। अंत में उन्होंने श्रीराम के चरणों में अपना अभिवादन किया।

यह सुनकर श्रीराम ने सीता को कहा वह उन्हें ऐसे छोड़कर नहीं जा सकती। इस पर माता सीता ने उनसे कहा कि अब उनका इस धरती पर समय पूरा हो चुका है इसलिए उन्हें जाना पड़ेगा। यह कहकर माता सीता सभी के सामने भूमि में समा गई थी व श्रीराम यह देखकर विलाप करने लगे थे।

सीता माता के धरती में समाने से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: क्या सीता सच में पृथ्वी के अंदर गई थी?

उत्तर: हाँ, माता सीता सच में पृथ्वी के अंदर चली गई थी उन्होंने सभी अयोध्यावासियों के सामने पृथ्वी के अंदर समाधि ले ली थी

प्रश्न: पिछले जन्म में सीता कौन थी?

उत्तर: माता सीता माँ लक्ष्मी का रूप हैं ऐसे में उनके पिछले जन्म या अगले जन्म के बारे में प्रश्न ही नहीं उठता है ईश्वर के जन्म नहीं अपितु अवतार हुआ करते हैं।

प्रश्न: माता सीता की असली मां कौन थी?

उत्तर: माता सीता की असली मां धरती माता थी माता सीता ने उन्हीं की गोद से ही जन्म लिया था और अंत समय में पुनः उन्हीं की ही गोद में समा गई थी

प्रश्न: सीता जी का नेपाल से क्या संबंध है?

उत्तर: नेपाल को सीता माता की जन्मस्थली माना जाता है कहते हैं कि त्रेता युग में राजा जनक की मिथिला नगरी नेपाल में ही थी

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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