प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की कहानी और प्रहलाद को मिली यातनाएं

Bhakt Prahlad Ki Kahani

आज हम आपको हिरण्यकश्यप और प्रहलाद की कहानी (Hiranyakashyap Aur Prahlad Ki Kahani) बताएँगे। प्रहलाद एक दैत्य कुल में जन्मा बालक था जिसके पिता का नाम हिरण्यकश्यप तथा माता का नाम कयाधु था। जब उसके चाचा हिरण्याक्ष का भगवान विष्णु के वराह अवतार ने वध कर दिया था तब उसके पिता भगवान ब्रह्मा की तपस्या करने चले गए थे। उस समय कयाधु गर्भवती थी और प्रहलाद उसके पेट में था।

हिरण्याक्ष का वध हो जाने और हिरण्यकश्यप के भगवान ब्रह्मा की तपस्या में लीन हो जाने पर दैत्य नगरी शासक विहीन हो गयी थी। इसी अवसर का लाभ उठाकर इंद्र व बाकि देवताओं ने दैत्य नगरी पर आक्रमण कर दिया और वहां भी अपना शासन स्थापित कर लिया। उन्होंने कयाधु को बंदी बना लिया था। तब देवताओं के बंदीगृह से देवर्षि नारद मुनि ने कयाधु की रक्षा की थी तथा अपने आश्रम में स्थान दिया था।

अब कयाधु देवर्षि नारद मुनि के आश्रम में ही रहती और प्रतिदिन नारद मुनि के द्वारा हरि वचन और कथाएं सुनती। नारद मुनि के वचनों तथा विष्णु भक्ति से अपनी माँ के गर्भ में पल रहा अजन्मा प्रहलाद भी विष्णु भक्त बन गया था। जब उसका जन्म हुआ तब वह विष्णु की भक्ति में ही लीन रहता। आज हम प्रहलाद की भगवान विष्णु के प्रति भक्ति तथा अपने पिता हिरण्यकश्यप के द्वारा मिली यातनाओं के बारे में जानेंगे। आइए जानते हैं प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की कहानी (Prahlad Aur Hiranyakashyap Ki Kahani)।

हिरण्यकश्यप और प्रहलाद की कहानी

कई वर्षों के पश्चात हिरण्यकश्यप की तपस्या समाप्त हो गयी और भगवान ब्रह्मा से उसे ऐसा वरदान मिला जिससे वह तीनों लोकों में अविजयी हो गया। अब वह अपनी दैत्य नगरी वापस आ चुका था और वहां देवताओं का अधिकार देखकर अत्यंत क्रोधित हो गया था।

उसने अपनी शक्तियों से ना केवल दैत्य नगरी पर अपना अधिकार स्थापित किया अपितु तीनों लोको पर राज कर लिया था। अब वह स्वर्ग, पृथ्वी तथा पाताल लोक का राजा बन चुका था। भगवान ब्रह्मा से मिले वरदान के कारण उसे कोई भी युद्ध में पराजित नही कर सकता था। इस कारण उसने भगवान विष्णु को स्वयं से कम शक्तिशाली माना जो कि उसकी सबसे बड़ी भूल थी। तीनों लोकों में जो भी विष्णु की भक्त करता वह उसे अपने सैनिकों की सहायता से मरवा डालता।

भक्त प्रहलाद की विष्णु भक्ति

हिरण्यकश्यप के दैत्य नगरी वापस लौट आने के पश्चात कयाधु अपने पुत्र प्रहलाद के साथ नारद मुनि के आश्रम से पुनः दैत्य नगरी आ गयी थी। अब यही पर सबसे शक्तिशाली दैत्य हिरण्यकश्यप की अधोगति शुरू हुई क्योंकि उसका स्वयं का पुत्र ही विष्णु भक्त बन चुका था वह भी देवर्षि नारद मुनि के कारण। किंतु इसके लिए उन्हें दोष नही दिया जा सकता था क्योंकि वे तो स्वयं कयाधु और प्रहलाद के प्राण रक्षक (Hiranyakashyap Aur Prahlad Ki Kahani) थे।

हिरण्यकश्यप स्वयं को सर्वशक्तिमान तथा भगवान मानता था लेकिन उसका स्वयं का ही पुत्र प्रहलाद हमेशा विष्णु भक्ति में लीन रहता। प्रहलाद केवल पांच वर्ष का था तभी से उसके अंदर असीमित ज्ञान था। उसने अपने पिता को भगवान मानने से मना कर दिया तथा केवल विष्णु को ही अपना आराध्य माना। अपने पुत्र के द्वारा ही स्वयं को नकारे जाने से हिरण्यकश्यप कुंठित रहता लेकिन प्रहलाद के मन से वह विष्णु भक्ति नही हटवा सका।

वह तीनों लोकों में अपने भय से सभी को विष्णु भक्ति ना करने और स्वयं को भगवान मानने पर विवश कर रहा था लेकिन अपने पुत्र के ही मन में कोई भय ना होने के कारण अपमानित भी हो रहा था। इसके लिए उसने शुरू में बहुत प्रयास किये तथा प्रहलाद को समझाया लेकिन प्रहलाद ही हमेशा उसे आत्म-ज्ञान करवा देता था। जब प्रहलाद की भक्ति के आगे उसकी एक ना चली तो अंत में उसने अपने पुत्र को मरवाने का निश्चय किया।

प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की कहानी (Prahlad Aur Hiranyakashyap Ki Kahani) में अब जानते हैं, भक्त प्रहलाद को मिली असहनीय यातनाएं व भगवान विष्णु के द्वारा उसकी रक्षा करना।

भक्त प्रहलाद को हिरण्यकश्यप के द्वारा मिली यातनाएं

जब हिरण्यकश्यप के द्वारा अपने पुत्र प्रहलाद को समझाने के सब प्रयास विफल हो गए तब उसने अपने सैनिकों को उसे मारने का आदेश दिया। किंतु जैसे ही उसके सैनिक प्रहलाद को मारने का प्रयास करते, वह भगवान विष्णु का नाम जपने लग जाता तथा हर बार उसके प्राण बच जाते। जाने कैसे:

  1. हिरण्यकश्यप ने अपने सैनकों को कहा कि अस्त्र-शस्त्रों की सहायता से प्रहलाद के शरीर के टुकड़े कर दिए जाये। जब सैनिकों ने उसके शरीर में तलवार, त्रिशूल इत्यादि से प्रहार किया तो वे यह देखकर अचंभित रह गए कि शस्त्र उसके शरीर से आर-पार हो गए लेकिन प्रहलाद के शरीर से एक बूँद भी रक्त की नही निकली। शस्त्र उसके शरीर से ऐसे आर-पार हो रहे थे जैसे कि वह उसका शरीर नही अपितु उसकी परछाई हो।
  2. फिर एक बार उसे विषैले सांपों से भरे कारावास में बंद कर दिया गया। चूँकि सर्प के राजा तो स्वयं भगवान विष्णु की शय्या होते हैं, इसलिये उन सर्पों ने प्रहलाद को कुछ नही कहा। अपितु उसके लिए एक शय्या बना दी।
  3. एक बार हिरण्यकश्यप ने बड़े-बड़े हाथियों के सामने अपने पांच वर्ष के पुत्र को फिंकवा दिया ताकि वह उनके पैरों के नीचे कुचल कर मारा जाए लेकिन वे हाथी भी उसका कुछ नही बिगाड़ पाए थे।
  4. प्रहलाद को एक बार भोजन में विष मिलाकर भी दिया गया था लेकिन उसका भी उन पर कोई प्रभाव नही पड़ा था।
  5. एक बार उसे पहाड़ की ऊँची चोटी से नीचे नदी में फेंक दिया गया था लेकिन वहां भी भगवान विष्णु ने उसकी सहायता की व सुरक्षित नदी किनारे पहुँचाया।

इसके अलावा भी हिरण्यकश्यप ने अपने पांच वर्ष के छोटे से पुत्र को मारने की कई बार चेष्टा की जिसमें उसे समुंद्र में जंजीरे बांधकर फिंकवा देना इत्यादि प्रयास सम्मिलित है। प्रहलाद को मारने की मुख्य घटना जो लोग आज भी जानते हैं वह थी होलिका दहन। इसमें हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया था कि वह प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए ताकि वह जलकर मारा जाए।

चूँकि होलिका को भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था कि वह आग में नही जल सकती। इसलिये वह प्रहलाद को लेकर जलती चिता में बैठ गयी। चूँकि इस अग्नि में भी प्रहलाद का कुछ नही हो सका तथा होलिका जलकर खाक हो गयी थी। अंत में भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। इस तरह से हिरण्यकश्यप और प्रहलाद की कहानी (Hiranyakashyap Aur Prahlad Ki Kahani) अहंकार व भक्ति दोनों से भरी हुई है।

प्रहलाद की कहानी से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: हिरण्यकश्यप किसका अवतार था?

उत्तर: हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु के द्वारपाल जय का पहला असुर अवतार था हिरण्यकश्यप का वध स्वयं भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर किया था

प्रश्न: प्रहलाद के गुरु कौन है?

उत्तर: भक्त प्रहलाद के गुरु देवर्षि नारद मुनि थे प्रहलाद ने उन्हीं के आश्रम में ही जन्म लिया था नारद मुनि के द्वारा प्रतिदिन विष्णु भजन करने और उनके मुख से नारायण की कथाओं को सुनकर प्रहलाद भी विष्णु भक्त बन गया था

प्रश्न: हिरण्यकश्यप ने किसकी तपस्या की थी?

उत्तर: हिरण्यकश्यप ने परमपिता भगवान ब्रह्मा की तपस्या की थी अपनी तपस्या के फलस्वरूप ही उसे ब्रह्मा जी से अद्भुत वरदान मिला था जिस कारण वह तीनों लोकों में अविजयी हो गया था

प्रश्न: विष्णु ने हिरण्यकश्यप को कैसे मारा?

उत्तर: भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप को नरसिंह अवतार लेकर मारा था उन्होंने भगवान ब्रह्मा के दिए गए वरदान की काट निकालते हुए उसे मार डाला था

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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