कैला देवी चालीसा हिंदी में – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

कैला चालीसा (Kaila Chalisa)

आज हम आपके साथ कैला देवी चालीसा (Kaila Devi Chalisa) का पाठ करेंगे। आपको अवश्य ही श्रीकृष्ण के जन्म की कथा याद होगी। उस समय कैसे श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव यमुना नगरी को पार करके उन्हें नंद बाबा व यशोदा माता के घर छोड़ आते हैं और उनकी पुत्री को अपने साथ ले आते हैं।

जब कंस उस कन्या को देवकी-वासुदेव की कन्या समझ कर मारने लगता है तो वह एक देवी में परिवर्तित हो जाती हैं। उन्हीं देवी को कलियुग में कैला देवी के नाम से पूजा जाता है। कैला माता का मुख्य मंदिर राजस्थान के करौली शहर में स्थित है और इस शहर का नाम भी उन्हीं के नाम पर ही रखा गया है।

कैला माता की चालीसा को कैला चालीसा (Kaila Chalisa) भी कह दिया जाता है। ऐसे में आज हम आपके साथ कैला चालीसा हिंदी में में भी साझा करेंगे ताकि आप उसका भावार्थ जान सकें। अंत में आपके साथ कैला चालीसा के लाभ व महत्व भी साझा किए जाएंगे। आइए सबसे पहले पढ़ते हैं कैला देवी चालीसा हिंदी में।

Kaila Devi Chalisa | कैला देवी चालीसा

॥ दोहा ॥

जय जय कैला मात हे तुम्हे नमाउ माथ।
शरण पडूं में चरण में जोडूं दोनों हाथ॥

आप जानी जान हो मैं माता अंजान।
क्षमा भूल मेरी करो करूँ तेरा गुणगान॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय कैला महारानी, नमो नमो जगदम्ब भवानी।

सब जग की हो भाग्य विधाता, आदि शक्ति तू सबकी माता।

दोनों बहिना सबसे न्यारी, महिमा अपरम्पार तुम्हारी।

शोभा सदन सकल गुणखानी, वैद पुराणन माँही बखानी।

जय हो मात करौली वाली, शत प्रणाम कालीसिल वाली।

ज्वालाजी में ज्योति तुम्हारी, हिंगलाज में तू महतारी।

तू ही नई सैमरी वाली, तू चामुंडा तू कंकाली।

नगर कोट में तू ही विराजे, विंध्यांचल में तू ही राजै।

धौलागढ़ बेलौन तू माता, वैष्णवदेवी जग विख्याता।

नव दुर्गा तू मात भवानी, चामुंडा मंशा कल्याणी।

जय जय सूये चोले वाली, जय काली कलकत्ते वाली।

तू ही लक्ष्मी तू ही ब्रम्हाणी, पार्वती तू ही इन्द्राणी।

सरस्वती तू विद्या दाता, तू ही है संतोषी माता।

अन्नपुर्णा तू जग पालक, मात पिता तू ही हम बालक।

तू राधा तू सावित्री, तारा मतंग्डिंग गायत्री।

तू ही आदि सुंदरी अम्बा, मात चर्चिका हे जगदम्बा।

एक हाथ में खप्पर राजै, दूजे हाथ त्रिशूल विराजै।

कालीसिल पै दानव मारे, राजा नल के कारज सारे।

शुम्भ निशुम्भ नसावनि हारी, महिषासुर को मारनवारी।

रक्तबीज रण बीच पछारो, शंखासुर तैने संहारो।

ऊँचे नीचे पर्वत वारी, करती माता सिंह सवारी।

ध्वजा तेरी ऊपर फहरावे, तीन लोक में यश फैलावे।

अष्ट प्रहर माँ नौबत बाजै, चाँदी के चौतरा विराजै।

लांगुर घटूअन चलै भवन में, मात राज तेरौ त्रिभुवन में।

घनन-घनन घन घंटा बाजत, ब्रह्मा विष्णु देव सब ध्यावत।

अगनित दीप जले मंदिर में, ज्योति जले तेरी घर-घर में।

चौसठ जोगिन आंगन नाचत, बामन भैरों अस्तुति गावत।

देव दनुज गन्धर्व व किन्नर, भूत पिशाच नाग नारी नर।

सब मिल माता तोय मनावे, रात दिन तेरे गुण गावे।

जो तेरा बोले जयकारा, होय मात उसका निस्तारा।

मना मनौती आकर घर सै, जात लगा जो तोंकू परसै।

ध्वजा नारियल भेंट चढ़ावे, गुंगर लौंग सो ज्योति जलावै।

हलुआ पूरी भोग लगावै, रोली मेहंदी फूल चढ़ावे।

जो लांगुरिया गोद खिलावै, धन बल विद्या बुद्धि पावै।

जो माँ को जागरण करावै, चाँदी को सिर छत्र धरावै।

जीवन भर सारे सुख पावै, यश गौरव दुनिया में छावै।

जो भभूत मस्तक पै लगावे, भूत-प्रेत न वाय सतावै।

जो कैला चालीसा पढ़ता, नित्य नियम से इसे सुमरता।

मन वांछित वह फल को पाता, दुःख दारिद्र नष्ट हो जाता।

गोविन्द शिशु है शरण तुम्हारी, रक्षा कर कैला महतारी।

॥ दोहा ॥

संवत तत्व गुण नभ भुज सुन्दर रविवार।
पौष सुदी दौज शुभ पूर्ण भयो यह कार॥

Kaila Chalisa | कैला चालीसा – अर्थ सहित

॥ दोहा ॥

जय जय कैला मात हे तुम्हे नमाउ माथ।
शरण पडूं में चरण में जोडूं दोनों हाथ॥

आप जानी जान हो मैं माता अंजान।
क्षमा भूल मेरी करो करूँ तेरा गुणगान॥

कैला माता की जय हो। मैं उनके सामने अपना सिर झुकाता हूँ। मैं कैला देवी के सामने अपने दोनों हाथों को जोड़कर उन्हें नमस्कार करता हूँ और उनकी शरण में जाता हूँ। आप तो सर्वज्ञाता हो माता और मैं तो अंजान प्राणी हूँ। मैं आपका ही गुणगान करता हूँ और आप मेरी सभी तरह की भूलों को क्षमा कर दीजिये।

॥ चौपाई ॥

जय जय जय कैला महारानी, नमो नमो जगदम्ब भवानी।

सब जग की हो भाग्य विधाता, आदि शक्ति तू सबकी माता।

दोनों बहिना सबसे न्यारी, महिमा अपरम्पार तुम्हारी।

शोभा सदन सकल गुणखानी, वैद पुराणन माँही बखानी।

कैला महारानी की जय हो, जय हो, जय हो। जगदंब भवानी को नमन है, नमन है। आप इस जगत की भाग्य विधाता तथा आदिशक्ति के रूप में सभी की मातारानी हो। दोनों बहने (कैला देवी व चामुण्डा माता) बहुत ही सुंदर लग रही हैं और आप दोनों की महिमा अपरंपार है। आपकी शोभा का वर्णन तो हम सभी करते हैं और वेदों-पुराणों में भी आपकी महिमा का वर्णन किया गया है।

जय हो मात करौली वाली, शत प्रणाम कालीसिल वाली।

ज्वालाजी में ज्योति तुम्हारी, हिंगलाज में तू महतारी।

तू ही नई सैमरी वाली, तू चामुंडा तू कंकाली।

नगर कोट में तू ही विराजे, विंध्यांचल में तू ही राजै।

करौली वाली माता की जय हो और कालीसिल वाली माता को मेरा शत-शत प्रणाम है। ज्वालाजी में आपके नाम की ही ज्योति जलती है तो वहीं हिंगलाज में आप ही विराजमान हो। आप ही सैमरी, चामुंडा व कंकाली माता हो। नगरकोट में आप ही विराजती हो तो वहीं विंध्यांचल पर्वत पर भी आप ही विद्यमान हो।

धौलागढ़ बेलौन तू माता, वैष्णवदेवी जग विख्याता।

नव दुर्गा तू मात भवानी, चामुंडा मंशा कल्याणी।

जय जय सूये चोले वाली, जय काली कलकत्ते वाली।

तू ही लक्ष्मी तू ही ब्रम्हाणी, पार्वती तू ही इन्द्राणी।

धौलागढ़ में बेलौन माता आप ही हो तो वहीं वैष्णो देवी के रूप में तो संपूर्ण जगत आपको जानता है। आप ही नवदुर्गा का रूप हो और आप ही चामुंडा के रूप में हम सभी का कल्याण करती हो। सुये चोले वाली माता की जय हो, जय हो। कलकत्ते की काली माता की भी जय हो। आप ही लक्ष्मी, ब्रह्माणी, पार्वती व इन्द्राणी हो।

सरस्वती तू विद्या दाता, तू ही है संतोषी माता।

अन्नपुर्णा तू जग पालक, मात पिता तू ही हम बालक।

तू राधा तू सावित्री, तारा मतंग्डिंग गायत्री।

तू ही आदि सुंदरी अम्बा, मात चर्चिका हे जगदम्बा।

आप ही सरस्वती माता के रूप में हमें विद्या प्रदान करती हो तो आप संतोषी माता का भी रूप हो। अन्नपूर्णा के रूप में आप इस जगत का पालन-पोषण करती हो। आप ही हमारे माता-पिता का रूप हो और हम सभी आपके बालक हैं। आप ही राधा, सावित्री, तारा, मातंगी, गायत्री, आदि सुंदरी, अंबा, जगदंबा इत्यादि का रूप हो।

एक हाथ में खप्पर राजै, दूजे हाथ त्रिशूल विराजै।

कालीसिल पै दानव मारे, राजा नल के कारज सारे।

शुम्भ निशुम्भ नसावनि हारी, महिषासुर को मारनवारी।

रक्तबीज रण बीच पछारो, शंखासुर तैने संहारो।

आपके एक हाथ में राक्षसों के कटे सिर हैं तो दूसरे हाथ में त्रिशूल है। आपने ही कालीसिल पर दानवो का वध किया था और राजा नल के सभी काम बना दिए थे। आपने ही शुंभ-निशुंभ, महिषासुर, रक्तबीज, शंखासुर इत्यादि राक्षसों का वध कर दिया था और धरती को पापमुक्त किया था।

ऊँचे नीचे पर्वत वारी, करती माता सिंह सवारी।

ध्वजा तेरी ऊपर फहरावे, तीन लोक में यश फैलावे।

अष्ट प्रहर माँ नौबत बाजै, चाँदी के चौतरा विराजै।

लांगुर घटूअन चलै भवन में, मात राज तेरौ त्रिभुवन में।

आप ऊँचे-नीचे पर्वतों पर वास करती हैं और सिंह की सवारी भी करती हैं। आपकी धर्म ध्वजा हमेशा सबसे ऊपर लहराती है और तीनो लोकों में आपका यश फैला हुआ है। आठों प्रहर में आपका ही डंका बजता है और आप चांदी के चौतरा पर विराजती हैं। सभी लांगुर आपके भवन में जाते हैं और आपका राज तीनों लोकों में है।

घनन-घनन घन घंटा बाजत, ब्रह्मा विष्णु देव सब ध्यावत।

अगनित दीप जले मंदिर में, ज्योति जले तेरी घर-घर में।

चौसठ जोगिन आंगन नाचत, बामन भैरों अस्तुति गावत।

देव दनुज गन्धर्व व किन्नर, भूत पिशाच नाग नारी नर।

सब मिल माता तोय मनावे, रात दिन तेरे गुण गावे।

आपके मंदिर में घनन-घनन करके घंटा बज रहा है तथा भगवान ब्रह्मा, विष्णु व सभी देवता आपका ही ध्यान करते हैं। आपके मंदिर में असंख्य दीपक जल रहे हैं तो आपके नाम की ज्योति हर घर में जल रही है। आपके मंदिर में तो चौसंठ योगिनियाँ नृत्य करती हैं और बावन भैरों आपकी स्तुति गाते हैं। देवता, दनुज, गंधर्व, किन्नर, भूत, पिशाच, नाग, नारी, नर इत्यदि सभी मिलकर आपको मनाते हैं और दिन-रात आपके नाम का गुण गाते हैं।

जो तेरा बोले जयकारा, होय मात उसका निस्तारा।

मना मनौती आकर घर सै, जात लगा जो तोंकू परसै।

ध्वजा नारियल भेंट चढ़ावे, गुंगर लौंग सो ज्योति जलावै।

हलुआ पूरी भोग लगावै, रोली मेहंदी फूल चढ़ावे।

जो कोई भी कैला देवी के नाम का जयकारा लगाता है, उसका उद्धार हो जाता है। हम सभी अपने घर से कोई ना कोई याचना लेकर आपके दरबार में आते हैं और अब आप उसका निस्तारा कर दीजिये। हम सभी आपके मंदिर में ध्वजा, नारियल की भेंट चढ़ाते हैं, आपके नाम की ज्योति जलाते हैं, आपको हलवा-पूड़ी का भोग लगाते हैं और आपके ऊपर रोली, मेहंदी व पुष्प चढ़ाते हैं।

जो लांगुरिया गोद खिलावै, धन बल विद्या बुद्धि पावै।

जो माँ को जागरण करावै, चाँदी को सिर छत्र धरावै।

जीवन भर सारे सुख पावै, यश गौरव दुनिया में छावै।

जो लांगुरिया (नवरात्र में नौ कन्याओं के साथ बैठने वाला एक लड़का) को अपनी गोद में खिलाता है, उसे धन, बल, विद्या व बुद्धि की प्राप्ति होती है। जो कोई भी कैला माता के नाम का जागरण अपने घर में करवाता है, उनके सिर पर चांदी का छत्र रखवाता है, उसे कैला देवी की कृपा से जीवनभर सुख मिलता है तथा उसका यश, गौरव व सम्मान पूरी दुनिया पर छा जाता है।

जो भभूत मस्तक पै लगावे, भूत-प्रेत न वाय सतावै।

जो कैला चालीसा पढ़ता, नित्य नियम से इसे सुमरता।

मन वांछित वह फल को पाता, दुःख दारिद्र नष्ट हो जाता।

गोविन्द शिशु है शरण तुम्हारी, रक्षा कर कैला महतारी।

जो कैला माता के नाम की भभूत अपने माथे पर लगाता है, उसके समीप किसी भी तरह के भूत या प्रेत नहीं आते हैं। जो कोई भी प्रतिदिन विधि अनुसार कैला माता चालीसा (Kaila Mata Chalisa) का पाठ करता है, उसकी हरेक इच्छा कैला माता की कृपा से पूरी हो जाती है तथा साथ ही उसके दुःख व गरीबी समाप्त हो जाती है। गोविंद का यह शिशु आपकी शरण में है और आप ही हमारी रक्षा कीजिये।

॥ दोहा ॥

संवत तत्व गुण नभ भुज सुन्दर रविवार।
पौष सुदी दौज शुभ पूर्ण भयो यह कार॥

जो भक्तगण सच्चे मन के साथ कैला देवी की चालीसा का हर रविवार के दिन पाठ करते हैं, उनके मन का हर भय दूर हो जाता है तथा उन्हें मुक्ति मिल जाती है।

कैला चालीसा का महत्व

कैला देवी को एक तरह से श्रीकृष्ण की बहन ही माना जाता है जिनका जन्म यशोदा माता के गर्भ से हुआ था। उस समय श्रीकृष्ण के माता-पिता देवकी व वासुदेव कंस के कारागृह में बंद थे और उनके सात बड़े भाइयों की हत्या कंस पहले ही कर चुका था। ऐसे में भगवान विष्णु के आठवें अवतार तथा देवकी के गर्भ से जन्म लेने वाले आठवें पुत्र श्रीकृष्ण की सहायता करने को स्वयं महामाया ने यशोदा के गर्भ से जन्म लिया था।

जब वासुदेव ने रात के अँधेरे में दोनों शिशुओं की अदला-बदली कर दी तो कंस कैला देवी को देवकी-वासुदेव की संतान समझ कर मारने वाला था किन्तु उसी समय महामाया ने अपना प्रभाव दिखाया। उन्होंने कंस को चेतावनी दी और उसके बाद वहां से चली गयी। महामाया के अनुसार कलियुग में उन्हें कैला देवी के नाम से पूजा जाएगा। ऐसे में कैला देवी चालीसा का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है।

कैला देवी चालीसा के लाभ

यदि आप प्रतिदिन कैला माता का ध्यान कर कैला चालीसा का पाठ करते हैं तो उसके कई लाभ आपको देखने को मिलते हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ तो यही है कि आपके ऊपर इस सांसारिक मोहमाया का कोई प्रभाव नहीं होता है और आप उससे मुक्त हो जाते हैं। एक तरह से हम कई तरह के सांसारिक बंधनों से बंधे होते हैं जो हमें अपना कर्म करने से रोकते हैं। तो इन्हीं बंधनों से हम कैला देवी चालीसा के माध्यम से मुक्त हो सकते हैं।

इसी के साथ ही कलियुग में कैला देवी को प्रमुख देवी माना गया है। उनकी आराधना करने से हमें जल्दी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। यदि कैला माता का कोई भक्त सच्चे मन से उनका ध्यान करता है और कैला माता की चालीसा का पाठ करता है तो उसका उद्धार होना तय है। वह भवसागर को पार कर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है और श्रीहरि के चरणों में स्थान पाता है। 

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने कैला देवी चालीसा हिंदी में अर्थ सहित (Kaila Devi Chalisa) पढ़ ली हैं। साथ ही आपने कैला चालीसा के लाभ और महत्व के बारे में भी जान लिया है। यदि आप हमसे कुछ पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।

कैला देवी चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: कैला देवी कौन सी देवी है?

उत्तर: कैला देवी जी का वर्णन स्कंद पुराण में पढ़ने को मिलता है जिन्हें महामाया का रूप बताया गया है। उन्हें महायोगिनी भी कहा गया है जो माँ आदिशक्ति का ही एक रूप हैं।

प्रश्न: कैला देवी को किसका अवतार माना जाता है?

उत्तर: कैला देवी को माँ आदिशक्ति या महामाया का अवतार माना जाता है जो नंद बाबा व यशोदा माता की पुत्री थी।

प्रश्न: कैला देवी किसकी पुत्री है?

उत्तर: कैला देवी नंद बाबा व यशोदा माता की पुत्री थी जिसे श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव रात के अँधेरे में छुपकर उठा ले गए थे और उनकी जगह श्रीकृष्ण को वहां छोड़ आये थे।

प्रश्न: कैला देवी का मुंह टेढ़ा क्यों है?

उत्तर: इसके पीछे एक किवंदिती जुड़ी हुई है जिसमें बताया गया है कि माँ कैला देवी का भक्त जिस दिशा में गया था, माँ का मुहं भी उसी दिशा में मुड़ गया था।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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