Mahavidya Tara: तारा देवी की कथा क्या है? जाने माँ तारा का रहस्य

तारा महाविद्या (Tara Mahavidya)

दस महाविद्याओं में तारा महाविद्या (Tara Mahavidya) को द्वितीय विद्या के रूप में जाना जाता है। यह माँ सती के 10 रूपों में से दूसरा रूप थी। माँ तारा का रूप माँ काली के समकक्ष कहा जा सकता है जिस कारण यह काली कुल में आती हैं। माँ का यह रूप भक्तों को आर्थिक क्षेत्र में उन्नति व जीवन में मोक्ष प्रदान कराने वाला है।

माँ तारा रहस्य पूर्ण हैं जिसमें सबसे बड़ा एक रहस्य इन्हें शिवजी की माँ की उपाधि मिलना है। वह इसलिए क्योंकि माँ तारा माता सती का ही एक रूप हैं। माता सती भगवान शिव की पत्नी हैं तो माँ तारा शिवजी की माँ कैसे हो गयी। इसलिए आज हम आपको Mahavidya Tara के बारे में शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं।

Tara Mahavidya | तारा महाविद्या

तारा माता की दो कथाएं प्रचलित हैं। इसमें से एक कथा उनकी उत्पत्ति और महाविद्या बनने को दिखाती है तो दूसरी माँ तारा का रहस्य खोलती है। हालाँकि माँ तारा दिखने में बहुत ही भयानक हैं। इसी कारण इन्हें काली कुल की माता कहा जाता है। बहुत लोग तो माँ तारा को ही काली समझ लेते हैं। ऐसे में आज हम दोनों के बीच के मूलभूत अंतर को भी आपके सामने रखेंगे।

इस लेख में सर्वप्रथम आपको तारा देवी की कथा (Das Mahavidya Tara) पढ़ने को मिलेगी। फिर माँ तारा के रहस्य से पर्दा उठेगा। उसके बाद माँ तारा मंत्र, तारा साधना अनुभव, माँ तारा पूजा विधि, तारा और काली में अंतर इत्यादि बातों की जानकारी मिलेगी।

तारा देवी की कथा (Das Mahavidya Tara)

यह कथा बहुत ही रोचक है जो भगवान शिव व उनकी प्रथम पत्नी माता सती से जुड़ी हुई है। हालाँकि उनकी दूसरी पत्नी माता पार्वती माँ सती का ही पुनर्जन्म मानी जाती हैं। तारा महाविद्या की कहानी के अनुसार, एक बार माता सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया था।

चूँकि राजा दक्ष भगवान शिव से द्वेष भावना रखते थे और अपनी पुत्री सती के द्वारा उनसे विवाह किये जाने के कारण शुब्ध थे, इसलिए उन्होंने उन दोनों को इस यज्ञ में नहीं बुलाया। भगवान शिव इस बारे में जानते थे लेकिन माता सती इस बात से अनभिज्ञ थी।

यज्ञ से पहले जब माता सती ने आकाश मार्ग से सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को उस ओर जाते देखा तो अपने पति से इसका कारण पूछा। भगवान शिव ने माता सती को सब सत्य बता दिया और निमंत्रण ना होने की बात कही। तब माता सती ने भगवान शिव से कहा कि एक पुत्री को अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती है।

माता सती अकेले ही यज्ञ में जाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने अपने पति शिव से अनुमति मांगी किंतु उन्होंने मना कर दिया। माता सती के द्वारा बार-बार आग्रह करने पर भी शिव नहीं माने तो माता सती को क्रोध आ गया और उन्होंने शिव को अपनी महत्ता दिखाने का निर्णय लिया।

तब माता सती ने भगवान शिव को अपने 10 रूपों के दर्शन दिए जिनमें से दूसरी देवी तारा थीं। मातारानी के यही 10 रूप 10 महाविद्या कहलाए जिसमें से एक Tara Mahavidya भी है। अन्य नौ रूपों में क्रमशः काली,षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगीकमला आती हैं।

माँ तारा रहस्य

माँ तारा से एक मार्मिक कथा जुड़ी हुई है जो उनके मातृत्व भाव को दर्शाती है। यह कथा समुंद्र मंथन के समय से जुड़ी हुई है। सतयुग में देव-दानवों के बीच जब समुंद्र मंथन का कार्य चल रहा था तब उसमें से अथाह मात्रा में विष निकला था। तब सृष्टि को उस विष के प्रभाव से बचाने के उद्देश्य से भगवान शिव ने उसे पी लिया था।

उस विष का प्रभाव इतना ज्यादा था कि भगवान शिव की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा। वे मूर्छित होने ही वाले थे कि देवी दुर्गा ने माँ तारा का रूप धरा और भगवान शिव की माँ के रूप में उन्हें स्तनपान करवाया। माँ तारा के द्वारा स्तनपान कराए जाने के कारण भगवान शिव के ऊपर विष का प्रभाव कम हुआ और वे पुनः चेतना अवस्था में आ गए।

Mahavidya Tara के इस कृत्य से उनका महत्व अत्यधिक बढ़ गया था तथा उन्हें भगवान शिव की माँ की उपाधि मिली थी। इस कारण भक्तगण माँ तारा को मातृत्व भाव से देखते हैं और उसी रूप में उनकी साधना करते हैं।

तारा महाविद्या का रूप

माँ काली व माँ तारा के रूप में कई समानताएं हैं लेकिन कुछ चीज़े हैं जो दोनों को अलग रूप प्रदान करती हैं। माँ तारा का वर्ण नीला है जिस कारण इनका एक नाम नील सरस्वती भी है। इनके सिर पर एक मुकुट है जिस पर अर्ध चंद्रमा है और केश खुले व बिखरे हुए हैं।

मुख थोड़ा सा खुला हुआ व आश्चर्यचकित मुद्रा में है। माँ खुले मुख से हँसते हुए भी दिखाई दे रही हैं। गले में भगवान शिव की भांति सर्प लिपटे हुए हैं। माँ के चार हाथ हैं जिनमें से एक में खड्ग, दूसरे में तलवार, तीसरे में कमल का फूल व चौथे में कैंची पकड़ी हुई है।

Tara Mahavidya के कुछ भिन्न रूपों में उनके एक हाथ में तलवार की बजाए कटोरा पकड़े हुए दिखाया गया है। कुछ में उनकी जीभ थोड़ी सी बाहर निकली हुई दिखाई गयी है जिसमें से रक्त बह रहा है तो कुछ में उनके हाथ में राक्षस की खोपड़ी भी पकड़ाई गयी है।

माँ के गले में राक्षसों के कटे हुए सिर की माला है तो नीचे वस्त्र के रूप में बाघ की खाल लपेटे हुए है। माँ का यह रूप भीषण होने के साथ-साथ अपने भक्तों को अभय प्रदान करने वाला है।

महाविद्या काली व तारा में अंतर

दोनों के रूप में बहुत सी समानताएं होने के कारण भक्तगण माँ तारा को माँ काली समझ बैठते हैं। इसलिए आज हम आपको दोनों के रूप में भिन्नता बताएँगे।

  • माँ काली का रंग काला है जबकि माँ तारा का रंग नीला है।
  • माँ काली नग्न अवस्था में हैं जबकि माँ तारा बाघ की खाल लपेटे हुए हैं।
  • माँ काली की जीभ निकली हुई है जबकि माँ तारा का मुख हल्का खुला हुआ है।
  • माँ काली के सिर पर कुछ नहीं है जबकि माँ तारा सिर पर अर्ध चंद्रमा के साथ मुकुट धारण किये हुए है।
  • माँ काली के गले में केवल राक्षस खोपड़ियों की माला है जबकि माँ तारा के गले में सर्प भी है।
  • माँ काली के हाथ में राक्षस की खोपड़ी, खड्ग व कटोरा है जबकि माँ तारा के साथ में खड्ग, तलवार, कैंची व कमल का फूल है।

इस तरह से Mahavidya Tara कई चीज़ों में काली से भिन्न होती है। शुरूआती तौर पर या जिन्हें माँ तारा के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है, वे अवश्य ही उन्हें काली समझ सकते हैं। हालाँकि अब से आपको दोनों के बीच मूलभूत अंतर का ज्ञान हो गया है।

माँ तारा पूजा विधि

माँ तारा की पूजा या साधना मुख्यतया तांत्रिकों द्वारा तंत्र व शक्ति विद्या प्राप्त करने के लिए की जाती है। इनकी साधना का समय मध्यरात्रि काल का होता है। सामान्य भक्तगण माँ तारा की पूजा अन्य माताओं की तरह सामान्य रूप से कर सकते हैं। इसके लिए माँ के किसी भी रूप को सामने रखकर बस मन में तारा देवी के रूप का ध्यान कर माँ तारा के मूल मंत्र का जाप करें।

ऐसा करने से ही देवी तारा अपने भक्तों से प्रसन्न होती हैं और उन्हें आशीर्वाद प्रदान करती हैं। देवी तारा महाविद्या की पूजा मुख्य रूप से गुप्त नवरात्रों में की जाती है। गुप्त नवरात्रों में मातारानी की 10 महाविद्याओं की ही पूजा की जाती है जिसमें दूसरे दिन महाविद्या तारा की पूजा करने का विधान है। इसलिए यदि आप तारा माँ का आशीर्वाद पाना चाहते हैं और उनकी शक्तियां प्राप्त करना चाहते हैं तो गुप्त नवरात्रि के दूसरे दिन उनकी पूजा करें।

माँ तारा मंत्र | Tara Mahavidya Mantra

ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट्॥

माँ तारा के मंत्र का जाप किसी को दिखाकर या जोर-जोर से नहीं किया जाता है। यह गुप्त रूप से जपा जाने वाला मंत्र होता है। एक तरह से तारा माता की पूजा किसी को दिखाकर नहीं बल्कि अपने घर में गुप्त रूप से की जाती है। ऐसे में इस मंत्र का जाप भी मन ही मन में या धीरे आवाज में किया जाता है।

तारा साधना अनुभव लाभ सहित | Tara Sadhna

माँ तारा का यह रूप अवश्य ही आपको भयंकर व डरावना लग सकता है लेकिन है बिल्कुल इसके विपरीत। माँ तारा अपने भक्तों को इस भौतिक व सांसारिक दुनिया से पार लगाती हैं या तारती हैं जिस कारण इनका नाम तारा पड़ा। हम सभी ईश्वर को तारणहार कहते हैं अर्थात हम सभी का उद्धार करने वाला। वही कार्य मातारानी का यह रूप करता है।

माँ तारा की साधना करने से भक्तों को ना केवल मोक्ष प्राप्त होता है बल्कि आर्थिक क्षेत्र में भी उन्नति देखने को मिलती है। यदि किसी कारणवश आप अपने व्यापार या नौकरी में उन्नति को लेकर संतुष्ट नही हैं तो निश्चय ही आपको Tara Mahavidya की आराधना करनी चाहिए। इससे आर्थिक दृष्टि से प्रगति देखने को मिलेगी।

Mahavidya Tara से संबंधित अन्य जानकारी

  • माँ तारा से संबंधित रुद्रावतार तारकेश्वर महादेव हैं।
  • माँ सती के 51 शक्ति पीठों में से एक शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में है जिसे तारापीठ के नाम से जाना जाता है। यहाँ देवी सती के नयन/ आँखें गिरी थी जिस कारण माँ तारा को नयनतारा के नाम से भी जाना जाता है।
  • माँ तारा का एक और प्रसिद्ध मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में है।
  • माँ तारा के अन्य नाम एकजटा, नील सरस्वती, नयनतारा व उग्रतारा है।
  • त्रेतायुग में भगवान श्रीराम के राजगुरु महर्षि वशिष्ठ थे। उनके द्वारा माँ तारा की पूजा-अर्चना कर सिद्धियाँ प्राप्त की गयी थी। महर्षि वशिष्ठ ने पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में तारापीठ में माँ तारा की साधना की थी और सिद्धियों को अर्जित किया था।
  • देवी तारा की केवल हिंदू धर्म में ही नहीं अपितु बौद्ध धर्म में भी मान्यता है। मुख्यतया तिब्बती बौद्ध लोगों के बीच माँ तारा अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। वहां इन्हें सरंक्षण प्रदान करने वाली व अपने भक्तों का उद्धार करने वाली माता के रूप में पूजा जाता है। कहीं-कहीं महात्मा बुद्ध को भी माँ तारा के रूप में चित्रित किया गया है।

इस तरह से आज आपने तारा महाविद्या (Tara Mahavidya) के बारे में शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी ले ली है। इस बात का सदैव ध्यान रखें कि माँ तारा से मिली शक्तियों का हमेशा सदुपयोग किया जाए, ना कि उससे किसी का नुकसान किया जाये। यदि आप उसका दुरुपयोग करते हैं तो उस समय तो आपका काम बन जाएगा लेकिन बाद में चलकर उसके दुष्परिणाम आपको भी भोगने होंगे।

तारा महाविद्या से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: तारा महाविद्या कौन है?

उत्तर: माता सती के 10 रूपों में से तारा महाविद्या दूसरा रूप है यह रूप माँ काली के जैसा ही भयंकर दिखाई देता है हालाँकि कुछ मामलों में यह उनसे भिन्न होता है

प्रश्न: मां तारा का बीज मंत्र क्या है?

उत्तर: मां तारा का बीज मंत्र “ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट्” है जिसका गुप्त नवरात्रि के दूसरे दिन मुख्य तौर पर जाप किया जाता है

प्रश्न: तारा देवी किसकी है?

उत्तर: तारा देवी हम सभी की हैं। वे माता सती का ही एक रूप हैं जो भक्तों का बेड़ा पार लगा देती हैं।

प्रश्न: मां तारा की साधना कैसे करें?

उत्तर: यदि आप मां तारा की साधना करना चाहते हैं तो आपको गुप्त नवरात्रि के दूसरे दिन माँ तारा के बीज मंत्र सहित उनकी आरती करनी चाहिए

नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘‍♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:

अन्य संबंधित लेख:

लेखक के बारें में: कृष्णा

सनातन धर्म व भारतवर्ष के हर पहलू के बारे में हर माध्यम से जानकारी जुटाकर उसको संपूर्ण व सत्य रूप से आप लोगों तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है। यदि किसी भी विषय में मुझसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटी हो तो कृपया इस लेख के नीचे टिप्पणी कर मुझे अवगत करें।

1 Comment

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.