कामाख्या देवी चालीसा (Kamakhya Devi Chalisa)

Kamakhya Devi Chalisa

कामाख्या देवी चालीसा (Kamakhya Devi Chalisa) – अर्थ, महत्व व लाभ सहित

माँ सती की देह से 51 शक्तिपीठों का निर्माण हुआ था जिनमें से एक प्रमुख शक्तिपीठ असम राज्य के नीलांचल पर्वत पर स्थित कामाख्या देवी का मंदिर है। यहाँ पर माँ सती का योनि भाग गिरा था जिसे हम कामाख्या के नाम से जानते हैं। यह इच्छाओं को पूर्ण करने वाली देवी मानी जाती हैं और एक तरह से सभी 51 शक्तिपीठों में कामाख्या देवी को ही प्रधान शक्तिपीठ माना जाता है। ऐसे में आज के इस लेख में आपको कामाख्या चालीसा (Kamakhya Chalisa) पढ़ने को मिलेगी।

बहुत से लोग मातारानी के इस रूप के बारे में बात करने से हिचकते हैं या लज्जा का अनुभव करते हैं। ऐसे में हम कामाख्या देवी चालीसा को अर्थ सहित (Kamakhya Devi Chalisa) आपके साथ सांझा करेंगे ताकि आप इसका भावार्थ भी समझ सकें। अंत में हम आपके साथ मां कामाख्या चालीसा का महत्व व लाभ (Maa Kamakhya Chalisa) भी सांझा करेंगे। तो आइये सबसे पहले पढ़ते हैं श्री कामाख्या माता की चालीसा।

कामाख्या चालीसा (Kamakhya Chalisa)

॥ दोहा ॥

सुमिरन कामाख्या करुँ, सकल सिद्धि की खानि।
होइ प्रसन्न सत करहु माँ, जो मैं कहौं बखानि॥

॥ चौपाई ॥

जै जै कामाख्या महारानी। दात्री सब सुख सिद्धि भवानी॥

कामरुप है वास तुम्हारो। जहँ ते मन नहिं टरत है टारो॥

ऊँचे गिरि पर करहुँ निवासा। पुरवहु सदा भगत मन आसा।

ऋद्धि-सिद्धि तुरतै मिलि जाई। जो जन ध्यान धरै मन लाई॥

जो देवी का दर्शन चाहे। हृदय बीच याही अवगाहे॥

प्रेम सहित पंडित बुलवावे। शुभ मुहूर्त निश्चित विचारवे॥

अपने गुरु से आज्ञा लेकर। यात्रा विधान करे निश्चय धर।

पूजन गौरि गणेश करावे। नान्दीमुख भी श्राद्ध जिमावे॥

शुक्र को बाँयें व पाछे कर। गुरु अरु शुक्र उचित रहने पर॥

जब सब ग्रह होवें अनुकूला। गुरु पितु मातु आदि सब हूला॥

नौ ब्राह्मण बुलवाय जिमावे। आशीर्वाद जब उनसे पावे॥

सबहिं प्रकार शकुन शुभ होई। यात्रा तबहिं करे सुख होई॥

जो चह सिद्धि करन कछु भाई। मंत्र लेइ देवी कहँ जाई॥

आदर पूर्वक गुरु बुलावे। मंत्र लेन हित दिन ठहरावे॥

शुभ मुहूर्त में दीक्षा लेवे। प्रसन्न होई दक्षिणा देवै॥

ॐ का नमः करे उच्चारण। मातृका न्यास करे सिर धारण॥

षडङ्ग न्यास करे सो भाई। माँ कामाक्षा धर उर लाई॥

देवी मंत्र करे मन सुमिरन। सन्मुख मुद्रा करे प्रदर्शन॥

जिससे होई प्रसन्न भवानी। मन चाहत वर देवे आनी॥

जबहिं भगत दीक्षित होइ जाई। दान देय ऋत्विज कहँ जाई॥

विप्रबंधु भोजन करवावे। विप्र नारि कन्या जिमवावे॥

दीन अनाथ दरिद्र बुलावे। धन की कृपणता नहीं दिखावे॥

एहि विधि समझ कृतारथ होवे। गुरु मंत्र नित जप कर सोवे॥

देवी चरण का बने पुजारी। एहि ते धरम न है कोई भारी॥

सकल ऋद्धि-सिद्धि मिल जावे। जो देवी का ध्यान लगावे॥

तू ही दुर्गा तू ही काली। माँग में सोहे मातु के लाली॥

वाक् सरस्वती विद्या गौरी। मातु के सोहैं सिर पर मौरी॥

क्षुधा, दुरत्यया, निद्रा तृष्णा। तन का रंग है मातु का कृष्णा।

कामधेनु सुभगा और सुन्दरी। मातु अँगुलिया में है मुंदरी॥

कालरात्रि वेदगर्भा धीश्वरि। कंठमाल माता ने ले धरि॥

तृषा सती एक वीरा अक्षरा। देह तजी जानु रही नश्वरा॥

स्वरा महा श्री चण्डी। मातु न जाना जो रहे पाखण्डी॥

महामारी भारती आर्या। शिवजी की ओ रहीं भार्या॥

पद्मा, कमला, लक्ष्मी, शिवा। तेज मातु तन जैसे दिवा॥

उमा, जयी, ब्राह्मी भाषा। पुर हिं भगतन की अभिलाषा॥

रजस्वला जब रुप दिखावे। देवता सकल पर्वतहिं जावें॥

रुप गौरि धरि करहिं निवासा। जब लग होइ न तेज प्रकाशा॥

एहि ते सिद्ध पीठ कहलाई। जउन चहै जन सो होई जाई॥

जो जन यह चालीसा गावे। सब सुख भोग देवि पद पावे॥

होहिं प्रसन्न महेश भवानी। कृपा करहु निज-जन असवानी॥

॥ दोहा ॥

कह गोपाल सुमिर मन, कामाख्या सुख खानि।
जग हित माँ प्रगटत भई, सके न कोऊ खानि॥

कामाख्या चालीसा हिंदी में (Kamakhya Chalisa In Hindi)

॥ दोहा ॥

सुमिरन कामाख्या करुँ, सकल सिद्धि की खानि।
होइ प्रसन्न सत करहु माँ, जो मैं कहौं बखानि॥

मैं कामाख्या माता का ध्यान करता हूँ जो सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। माँ कामाख्या ही सभी सिद्धियों की खान हैं और उनकी कृपा से ही हमें सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं। मैं कामाख्या देवी की महिमा का वर्णन करता हूँ और उसे सुनकर कामाख्या देवी मुझ पर प्रसन्न होकर मेरा उद्धार करें।

॥ चौपाई ॥

जै जै कामाख्या महारानी। दात्री सब सुख सिद्धि भवानी॥

कामरुप है वास तुम्हारो। जहँ ते मन नहिं टरत है टारो॥

ऊँचे गिरि पर करहुँ निवासा। पुरवहु सदा भगत मन आसा।

ऋद्धि-सिद्धि तुरतै मिलि जाई। जो जन ध्यान धरै मन लाई॥

कामाख्या महारानी की जय हो, जय हो। वे ही हमें सभी तरह का सुख व सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। उनके रूप में ही कामदेव का वास है। हमारा मन उन्हीं में ही लगा रहता है।

कामाख्या देवी ऊँचे-ऊँचें पर्वतों पर निवास करती हैं और अपने भक्तों के मन की हरेक इच्छा को पूरा करती हैं। जो कोई भी माँ कामाख्या का ध्यान करता है, उसे तुरंत ही रिद्धि-सिद्धि मिल जाती है।

जो देवी का दर्शन चाहे। हृदय बीच याही अवगाहे॥

प्रेम सहित पंडित बुलवावे। शुभ मुहूर्त निश्चित विचारवे॥

अपने गुरु से आज्ञा लेकर। यात्रा विधान करे निश्चय धर।

पूजन गौरि गणेश करावे। नान्दीमुख भी श्राद्ध जिमावे॥

जिस किसी को भी देवी कामाख्या का दर्शन चाहिए होता है, मातारानी उसके हृदय में ही निवास करती हैं। मातारानी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हमें शुभ मुहूर्त पर अपने घर पर प्रेम सहित पंडित को बुलाना चाहिए। फिर मां कामाख्या के नाम की पूजा करवानी चाहिए।

मां कामाख्या मंदिर जाने के लिए अपने गुरु से आज्ञा लेकर यात्रा शुरू करनी चाहिए। उन्हें खुश करने के लिए हमें अपने घर पर गौरी माता व भगवान गणेश का पूजन करवाना चाहिए और साथ ही श्राद्धों में विधि सहित सभी कार्य करने चाहिए।

शुक्र को बाँयें व पाछे कर। गुरु अरु शुक्र उचित रहने पर॥

जब सब ग्रह होवें अनुकूला। गुरु पितु मातु आदि सब हूला॥

नौ ब्राह्मण बुलवाय जिमावे। आशीर्वाद जब उनसे पावे॥

सबहिं प्रकार शकुन शुभ होई। यात्रा तबहिं करे सुख होई॥

शुक्र ग्रह की दृष्टि बायीं ओर पीछे होनी चाहिए और गुरु व शुक्र ग्रह हमारी राशि में उचित स्थान पर होने चाहिए। इसके साथ ही जब सभी ग्रहों की दिशा अनुकूल हो तब गुरु, पिता व माता सभी आनंदित रहते हैं।

इसके पश्चात हमें अपने घर पर नौ ब्राह्मण बुलाकर उन्हें भोजन करवाना चाहिए। फिर उनका आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए। जब सब कुछ कुशल मंगल से हो जाए, उसके पश्चात ही हमें कामाख्या मंदिर की यात्रा पर निकलना चाहिए।

जो चह सिद्धि करन कछु भाई। मंत्र लेइ देवी कहँ जाई॥

आदर पूर्वक गुरु बुलावे। मंत्र लेन हित दिन ठहरावे॥

शुभ मुहूर्त में दीक्षा लेवे। प्रसन्न होई दक्षिणा देवै॥

ॐ का नमः करे उच्चारण। मातृका न्यास करे सिर धारण॥

जिस किसी को भी सिद्धि पाने की चाह होती है, वह माँ कामाख्या के दरबार में मंत्र लेने जाता है। इसके लिए उसे आदर सहित गुरु को बुलाना चाहिए और शुभ दिन पर उनसे मंत्र लेना चाहिए। कहने का अर्थ यह हुआ कि माँ कामाख्या मंत्र तंत्रों की देवी हैं और इन्हें हम मातारानी की कृपा से ही प्राप्त कर सकते हैं।

इस मंत्र को धारण करने के लिए किसी शुभ मुहूर्त में ही गुरु से शिक्षा लेनी चाहिए और फिर प्रसन्न मन के साथ उन्हें दक्षिणा देनी चाहिए। हमें ॐ मंत्र का जाप करना चाहिए। इस मंत्र के जाप से ही देवी कामाख्या हमसे प्रसन्न होती हैं।

षडङ्ग न्यास करे सो भाई। माँ कामाक्षा धर उर लाई॥

देवी मंत्र करे मन सुमिरन। सन्मुख मुद्रा करे प्रदर्शन॥

जिससे होई प्रसन्न भवानी। मन चाहत वर देवे आनी॥

जबहिं भगत दीक्षित होइ जाई। दान देय ऋत्विज कहँ जाई॥

जो भी कामाख्या माता का ध्यान करता है, माँ कामाक्षा उसके हृदय में बस जाती हैं। जो भी इस देवी मंत्र का सच्चे मन के साथ जाप करता है, माँ उसे अपने रूप का दर्शन देती हैं और उसका उद्धार कर देती हैं।

जिस किसी से भी माँ भवानी अर्थात कामाख्या देवी प्रसन्न हो जाती हैं, फिर वे उसे मनचाहा वरदान देती हैं। जब भी कोई भक्त मातारानी की कृपा से दीक्षित हो जाता है अर्थात दीक्षा प्राप्त कर लेता है तो वह दान देने के पश्चात ऋत्विज कहलाता है।

विप्रबंधु भोजन करवावे। विप्र नारि कन्या जिमवावे॥

दीन अनाथ दरिद्र बुलावे। धन की कृपणता नहीं दिखावे॥

एहि विधि समझ कृतारथ होवे। गुरु मंत्र नित जप कर सोवे॥

देवी चरण का बने पुजारी। एहि ते धरम न है कोई भारी॥

जो मनुष्य ब्राह्मण बंधुओं को भोजन करवाता है और ब्राह्मण माता व उनकी कन्याओं को भी जिमाता है अर्थात उन्हें भी भोजन ग्रहण करवाता है। इसी के साथ ही वह अपने द्वार पर निर्धन व असहाय लोगों को बुलाकर धन व अन्य वस्तुओं से सहायता करता है।

बस इसी विधि के तहत ही वह स्वयं को कृताथ बना लेता है अर्थात माता कामाख्या की दृष्टि में आ जाता है। इसी के साथ ही यदि वह प्रतिदिन गुरु के द्वारा दिए गए कामाख्या मंत्र को रात को सोने से पहले जपता है और मातारानी के चरणों की सेवा करता है तो इससे बड़ा कोई धर्म ही नहीं है।

सकल ऋद्धि-सिद्धि मिल जावे। जो देवी का ध्यान लगावे॥

तू ही दुर्गा तू ही काली। माँग में सोहे मातु के लाली॥

वाक् सरस्वती विद्या गौरी। मातु के सोहैं सिर पर मौरी॥

क्षुधा, दुरत्यया, निद्रा तृष्णा। तन का रंग है मातु का कृष्णा।

उस व्यक्ति को सभी प्रकार की रिद्धि व सिद्धि मिल जाती है जो सच्चे मन के साथ कामाख्या माँ का ध्यान लगाता है। हे माँ कामाख्या!! आप ही माँ दुर्गा व माँ काली हैं। आपने अपनी माँग में लाल रंग का सिंदूर भर रखा है।

आप ही सरस्वती रूप में हम सभी को वाणी देती हैं और गौरी रूप में विद्या प्रदान करती हैं। आपने अपने मस्तक पर मुकुट पहन रखा है। आप ही हमें तृप्त करती हो, असंभव को संभव बनाती हो और आलस्य व भूख को मिटाती हो। आपके शरीर का रंग कृष्ण वर्ण है अर्थात सांवला है।

कामधेनु सुभगा और सुन्दरी। मातु अँगुलिया में है मुंदरी॥

कालरात्रि वेदगर्भा धीश्वरि। कंठमाल माता ने ले धरि॥

तृषा सती एक वीरा अक्षरा। देह तजी जानु रही नश्वरा॥

स्वरा महा श्री चण्डी। मातु न जाना जो रहे पाखण्डी॥

आप ही कामधेनु गाय का रूप हो, सौभाग्य का प्रतीक हो और त्रिपुर सुंदरी हो। आपने अपनी उँगलियों में अंगूठियाँ पहन रखी है। आप ही माँ कालरात्रि, वेदमाता व अधीश्वरी हो। आपने अपने गले में मोतियों की माला पहनी हुई है।

आपने ही माता सती के रूप में अपने पिता राजा दक्ष के द्वारा अपने पति शिव का अपमान किये जाने पर यज्ञ के अग्नि कुंड में कूद कर अपनी देह का त्याग करने में तनिक भी देरी नहीं की। आप ही महाचंडी माता का रूप हो और केवल पाखंडी ही आपके इस रूप को नहीं जान पाए हैं।

महामारी भारती आर्या। शिवजी की ओ रहीं भार्या॥

पद्मा, कमला, लक्ष्मी, शिवा। तेज मातु तन जैसे दिवा॥

उमा, जयी, ब्राह्मी भाषा। पुर हिं भगतन की अभिलाषा॥

रजस्वला जब रुप दिखावे। देवता सकल पर्वतहिं जावें॥

आप ही इस भारतवर्ष व आर्य प्रदेश की माता हो। आप ही शिव जी की अर्धांगिनी हो। आप ही पद्मा (सरस्वती), कमला, लक्ष्मी व पार्वती माता हो। आपके शरीर का तेज दिव्य ज्योति के समान है।

आप ही उमा, जया, ब्राह्मी माता का रूप हो। आप अपने भक्तों के मन की हरेक अभिलाषा को पूरा करती हो। जब आप कामाख्या मंदिर में अपना रजस्वला का रूप दिखाती हो तब देवता भी वह प्रदेश छोड़कर पर्वतों पर चले जाते हैं।

रुप गौरि धरि करहिं निवासा। जब लग होइ न तेज प्रकाशा॥

एहि ते सिद्ध पीठ कहलाई। जउन चहै जन सो होई जाई॥

जो जन यह चालीसा गावे। सब सुख भोग देवि पद पावे॥

होहिं प्रसन्न महेश भवानी। कृपा करहु निज-जन असवानी॥

आप ही गौरी माता का रूप धरकर कामाख्या मंदिर में निवास करती हो और उस रूप में अंधकार को समाप्त कर प्रकाश फैलाती हो। कामाख्या मंदिर को सिद्ध पीठ के नाम से भी जाना जाता है जहाँ आप हम सभी को दर्शन देती हो।

जो भी मनुष्य इस कामाख्या चालीसा का पाठ करता है, उसे इस विश्व में सभी प्रकार के सुख, मेवा व देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जिस किसी पर भी कामाख्या देवी प्रसन्न हो जाती हैं, वे उस मनुष्य का उद्धार कर देती हैं।

॥ दोहा ॥

कह गोपाल सुमिर मन, कामाख्या सुख खानि।
जग हित माँ प्रगटत भई, सके न कोऊ खानि॥

गोपाल कामाख्या माता का ध्यान कर बताते हैं कि मातारानी का यह रूप सुखों की खान है। इस जगत के कल्याण के लिए ही माँ ने अपना यह रूप लिया है जिसे कोई भी पार नहीं पा सकता है।

मां कामाख्या चालीसा (Maa Kamakhya Chalisa) – महत्व

सनातन धर्म में माँ आदिशक्ति को सबसे प्रमुख देवी माना गया है। ऐसे में माँ सती या माँ पार्वती को हम आदिशक्ति का ही रूप मानते हैं क्योंकि वे ही शिव की अर्धांगिनी और शक्ति का स्वरुप हैं। जब माँ सती ने अपने पिता दक्ष के आयोजित यज्ञ के अग्नि कुंड में कूद कर आत्मदाह कर लिया था और भगवान शिव बेसुध होकर उनके अधजले शव को लेकर दशों दिशाओं में घूम रहे थे। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए थे।

माता सती के शरीर से यह टुकड़े भारत भूमि पर जहाँ-जहाँ गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ का निर्माण हो गया। इसमें से मातारानी की योनि जहाँ गिरी, वह ही आज के समय में कामाख्या मंदिर या कामाख्या देवी के नाम से प्रसिद्ध है। कामाख्या माता हमें जीव की उत्पत्ति का मार्ग दिखाती हैं क्योंकि इस विश्व के हरेक जीव का उद्गम माता की योनि से ही होता है। कामाख्या चालीसा के माध्यम से इसी विषय पर ही प्रकाश डाला गया है और यही कामाख्या देवी चालीसा का महत्व होता है।

कामाख्या देवी चालीसा (Kamakhya Devi Chalisa) – लाभ

स्त्री की योनि ऐसा भाग होता है जो जीव की उत्पत्ति का मार्ग होता है। फिर चाहे वह मनुष्य हो या अन्य कोई जीव-जंतु। यदि किसी को जन्म लेना है तो वह अपनी माता की योनि से ही जन्म लेता है। ठीक उसी तरह इस सृष्टि की रचना भी माता ने ही की है और इसी कारण उन्हें शिव की पूरक माना गया है। तभी कहा जाता है कि शिव के बिना शक्ति अधूरी है और शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं। ऐसे में शिव के अर्धनारीश्वर रूप की भी पूजा की जाती है।

यदि आप सच्चे व शुद्ध मन के साथ मां कामाख्या चालीसा को पढ़ते हैं और उनका ध्यान करते हैं तो आपके ऊपर से सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव समाप्त हो जाता है। कामाख्या चालीसा के माध्यम से भूत, प्रेत, पिशाच, तंत्र, मंत्र इत्यादि का प्रभाव तो आपके ऊपर से हटता ही है, इसी के साथ ही आपके शत्रुओं का भी नाश हो जाता है।

माँ कामाख्या देवी के आशीर्वाद से आपके जीवन में आ रही हरेक बाधा, चुनौती, संकट, विपदा, कष्ट, कलेश, आपदा, विपत्ति इत्यादि सभी का नाश हो जाता है। एक तरह से जो भक्तगण सच्चे मन के साथ माँ आदिशक्ति के इस रूप का ध्यान करते हैं और कामाख्या देवी चालीसा का पाठ करते हैं, उनके जीवन से हर नकारात्मक पहलू का अंत हो जाता है और आगे का जीवन सुखमय बनता है।

कामाख्या चालीसा से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: कामाख्या देवी का मूल मंत्र क्या है?

उत्तर: कामाख्या देवी का मूल मंत्र “क्लीं क्लीं कामाख्या क्लीं क्लीं नमः” है जिसे हम कामाख्या देवी का बीज मंत्र भी कह सकते हैं।

प्रश्न: कामाख्या देवी को कैसे प्रसन्न करें?

उत्तर: कामाख्या देवी को प्रसन्न करने के लिए आपको उनका ध्यान कर कामाख्या चालीसा व आरती का पाठ करना चाहिए। इसी के साथ ही आपको एक बार कामाख्या मंदिर भी होकर आना चाहिए।

प्रश्न: कामाख्या का मतलब क्या होता है?

उत्तर: कामाख्या का मतलब माँ दुर्गा या माँ सती से होता है। यदि कामाख्या नाम का भावार्थ जाना जाए तो इसका अर्थ हुआ हमारे मन की इच्छाओं को पूरा करने वाली माता।

प्रश्न: कामाख्या में किसका पूजन होता है?

उत्तर: असम में स्थित कामाख्या देवी का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ माता सती का योनि भाग गिरा था जिस कारण यहाँ उनकी योनि रूप में पूजा की जाती है।

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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