मां दुर्गा के नौ रूपों के नाम व उनका महत्व

Maa Durga Ke 9 Roop

आज हम मां दुर्गा के नौ रूप (Maa Durga Ke 9 Roop) और उनके महत्व के बारे में जानेंगे। माँ दुर्गा के 9 रूपों की पूजा नवरात्रि के नौ दिनों में की जाती है। वैसे तो मातारानी का हरेक रूप मां दुर्गा का ही रूप माना जाता है लेकिन यह नौ रूप उनके भिन्न गुणों के परिचायक हैं। इन रूपों को उन्होंने भक्तों की इच्छा पूर्ति हेतु लिया है। इसलिए सभी भक्तगण नवरात्रि में नौ दिनों तक मातारानी के इन भिन्न रूपों की पूजा करते हैं।

स्वयं भगवान श्रीराम ने रावण युद्ध से पहले 9 दिनों तक दुर्गा मां के नौ रूप (Man Durga Ke 9 Roop) की पूजा की थी। इसके बाद दसवें दिन उन्होंने रावण का वध कर दिया था। ऐसे में मां दुर्गा के 9 रूप का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है। आइए इन नौ रूपों के बारे में जानकारी ले लेते हैं।

मां दुर्गा के नौ रूप (Maa Durga Ke 9 Roop)

नवरात्रि के पावन पर्व पर हर दिन मातारानी के भिन्न रूप की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि उनके हरेक रूप का अपना विशेष महत्व है। ऐसे में उनके उस रूप की पूजा करने से भक्तजनों को उसी के अनुरूप फल की प्राप्ति होती है। वैसे भक्तजन वर्ष में किसी भी दिन अपनी इच्छानुसार उनके किसी भी रूप की प्रार्थना कर सकते हैं। हालाँकि नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा हो जाने से भक्तों के ऊपर विशेष कृपा बरसती है।

इनमें से कोई रूप शत्रुओं का नाश करता है तो कोई हमारे भय को दूर करता है, कोई रूप हमारा स्वास्थ्य उत्तम बनाता है तो कोई हमारी बुद्धि का विकास करता है। ऐसे में आज हम सबसे पहले आपको मां दुर्गा के नौ रूपों के नाम (Maa Durga Ke 9 Roop With Name) बता देते हैं। आइए जानते हैं।

  1. माता शैलपुत्री
  2. माता ब्रह्मचारिणी
  3. माता चंद्रघंटा
  4. माता कूष्मांडा
  5. माता स्कंदमाता
  6. माता कात्यायनी
  7. माता कालरात्रि
  8. माता महागौरी
  9. माता सिद्धिदात्री

इस तरह से आपने माँ दुर्गा के नौ रूप के नाम जान लिए हैं। अब हम एक-एक करके इन सभी रूपों के बारे में संक्षिप्त परिचय आपको देने जा रहे हैं। चलिए शुरू करते हैं।

#1. शैलपुत्री माता

अपने पूर्व जन्म में माँ शैलपुत्री ने माता सती के नाम से जन्म लिया था जो भगवान महादेव की पत्नी थी। अपने पिता दक्ष के द्वारा शिव का अपमान देखकर उन्होंने अग्नि कुंड में आत्म-दाह कर लिया था। इसके पश्चात वे अगले जन्म में हिमालय पर्वत की पुत्री के रूप में जन्मी थी, इसलिए शैलपुत्री कहलाई। इनका दूसरा नाम माता पार्वती भी है जिनका विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था।

इनका वाहन वृषभ होता है तथा दोनों भुजाओं में त्रिशूल और कमल का पुष्प होता है। माँ श्वेत वस्त्र धारण किए हुए व हल्की मुस्कान लिए हुए रहती हैं। इनकी पूजा करने से मन को स्थिरता मिलती है व एकाग्रता में बढ़ोत्तरी होती है। यदि आपका मन अशांत रहता है या ध्यान लगाने में समस्या रहती है तो आपको शैलपुत्री माता की पूजा करनी चाहिए। इससे आपको अपना मन एकाग्र करने में बहुत सहायता मिलेगी।

#2. ब्रह्मचारिणी माता

नवदुर्गा का द्वितीय रूप माँ ब्रह्मचारिणी होती हैं जो भक्तों को तपस्या तथा वैराग्य का भाव दिखाती हैं। इनके नाम का अर्थ ही हमेशा ब्रह्म में लीन रहने से है जिससे भक्तों के अंदर त्याग, सदाचार व तप की भावना का विकास होता है। मां दुर्गा के नौ रूप (Maa Durga Ke 9 Roop) में इस रूप का विशेष महत्व है क्योंकि मातारानी ब्रह्म अर्थात सत्य का ज्ञान करवाती हैं।

माँ के दाहिने हाथ में जप माला व बाए हाथ में कमंडल होता है। वे सीधी खड़ी रहती हैं तथा तपस्या पर बल देती हैं। देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से भक्तों में ध्यान एकाग्र करने में सहायता मिलती है तथा आत्म-विश्वास में बढ़ोत्तरी होती है। यदि आपके मन में किसी चीज़ को लेकर भय बना रहता है और आप उस कारण आगे नहीं बढ़ पाते हैं तो वह भय भी दूर होता है। एक तरह से आपका स्वयं पर विश्वास मजबूत बनता है।

#3. चंद्रघंटा माता

नवदुर्गा का तृतीय रूप माँ चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। इनका जन्म ही पापियों का नाश करने तथा भक्तों को अभयदान देने के उद्देश्य से हुआ था। माँ का रूप अतिविनाशकारी है जिनकी 10 भुजाएं हैं। अपनी 10 भुजाओं में माँ ने विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए हैं तथा उनका वाहन शेर है।

माँ चंद्रघंटा की पूजा करने से भक्तों के मन में किसी प्रकार की शंका तथा भय दूर होता है। साथ ही हमारे अंदर वीरता व साहस की बढ़ोत्तरी होती है। आप पहले की तुलना में चीज़ों को सहज तरीके से देख पाते हैं, दूसरों के सामने अपनी बात को मजबूत तरीके से रख पाते हैं और काम को भी प्रभावी ढंग से पूरा करते हैं। माँ चंद्रघंटा के आशीर्वाद से आप यह सब आसानी से कर लेंगे।

#4. कूष्मांडा माता

नवदुर्गा का चतुर्थ रूप माँ कूष्मांडा के नाम से जाना जाता है जिनके द्वारा इस ब्रह्मांड की रचना हुई थी। ये हमेशा ब्रह्मांड के मध्य में स्थित रहती हैं। सूर्य के आभामंडल में रहकर उसके ताप को सहन करने की क्षमता माँ में है। इनकी आठ भुजाएं होने के कारण इन्हें अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है।

माँ का वाहन सिंह होता है तथा ये अपनी भुजाओं में विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों के साथ-साथ कमल का पुष्प, कमंडल, जपमाला व अमृत कलश लिए हुए रहती हैं। माँ की पूजा करने से भक्तों के सभी रोग दूर होते हैं तथा वे मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं। यदि आपको कोई असहनीय बीमारी है तो वह भी धीरे-धीरे ठीक होने लगती है। मानसिक रूप से कोई चिंता सता रही है तो उसका भी समाधान निकलता है।

#5. स्कंद माता

माँ दुर्गा के पंचम रूप को माँ स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है जो माता पार्वती का ही एक रूप है। इन्हें कार्तिकेय/ स्कंद की माता कहा जाता है इसलिए इनका नाम स्कंदमाता है। ये हमेशा अपने एक हाथ से कार्तिकेय के छोटे रूप को गोद में लिए हुए रहती हैं। दुर्गा मां के नौ रूप (Man Durga Ke 9 Roop) में यह एक ऐसा रूप है जो अन्य सभी रूपों से भिन्न दिखाई देता है।

इनकी चार भुजाएं हैं जिनमें दो भुजाओं में कमल पुष्प तथा एक भुजा वर मुद्रा में रहती है। देवी स्कंदमाता की पूजा करने से भक्तों के मन से बुरी प्रवत्तियों का नाश होता है तथा अच्छे विचारों का सृजन होता है। लोग संतान प्राप्ति की इच्छा से भी इनकी पूजा करते हैं। यदि आपके विवाह को समय हो गया है लेकिन संतान प्राप्ति में दुविधा हो रही है तो आपकी यह इच्छा भी स्कंदमाता के आशीर्वाद से पूरी हो जाती है।

#6. कात्यायनी माता

माँ दुर्गा के छठे रूप को माँ कात्यायनी के नाम से जाना जाता है। इनका जन्म एक महत्वपूर्ण उद्देश्य के लिए हुआ था जिन्हें त्रिदेव ने अपनी शक्ति को एकत्रित कर जन्म दिया था। माँ कात्यायनी ने देवताओं की रक्षा करने के उद्देश्य से महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। एक तरह से इन्हें माँ दुर्गा का मुख्य रूप भी कहा जा सकता है जिसने महिषासुर का वध किया था।

इनकी चार भुजाएं हैं जिनमें से दो भुजाएं वर मुद्रा तथा अभय मुद्रा में है तथा बाकि दो भुजाओं में कमल पुष्प तथा खड़ग है। माँ कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों के संकट दूर होते हैं तथा शत्रु का भय नहीं रहता। मातारानी के आशीर्वाद से आपके शत्रुओं का नाश होता है। साथ ही जो कन्याएं सुयोग्य वर की तलाश हैं वे माँ कात्यायनी की पूजा अवश्य करें।

#7. कालरात्रि माता

माँ दुर्गा का सातवाँ रूप माँ कालरात्रि है जो दिखने में बहुत भयानक तथा अंधकार के समान काला है। इनकी उत्पत्ति असुरों का वध करने के उद्देश्य से हुई थी। जब माँ दुर्गा ने शुंभ-निशुंभ राक्षसों का वध कर दिया तब रक्तबीज एक ऐसा राक्षस था जिसका वध होने के पश्चात उसके रक्त की बूंदे भूमि पर गिरते ही उतने ही नए रक्तबीज राक्षस और पैदा हो रहे थे। तब माँ कालरात्रि ने जन्म लेकर उस राक्षस के रक्त की बूंदे भूमि पर गिरने से पहले ही पी ली थी व उसका अंत किया था।

माँ का रूप एक दम भयानक है जिनके गले में विद्युत के समान चमकती माला है। हाथों में माँ खड्ग व वज्र धारण किए हैं तथा अन्य दो भुजाएं वर मुद्रा व अभय मुद्रा में हैं। माँ की पूजा करने से भक्तों का रात्रि भय, अंधकार भय, जल भय व अग्नि भय दूर होता है। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि आपके जीवन को इन चारों से किसी तरह का संकट नहीं होता है और आप दीर्घायु होते हैं।

#8. महागौरी माता

माँ दुर्गा के आठवें रूप को माँ महागौरी के नाम से जाना जाता है जो अत्यंत मनोहर तथा सुख देने वाला है। माँ का रंग श्वेत होता है तथा ये श्वेत वस्त्रों व आभूषणों को धारण किए हुए रहती हैं। इसलिए ही इनका नाम महागौरी पड़ा था। मां दुर्गा के नौ रूप (Maa Durga Ke 9 Roop) में यह एक ऐसा रूप है जिसकी पूजा स्वयं माँ सीता ने श्रीराम को पाने के लिए व माँ राधा ने श्रीकृष्ण को पाने के लिए की थी।

माँ की चार भुजाएं हैं जिनमें त्रिशूल व डमरू है तथा बाकि दो भुजाएं वर मुद्रा व अभय मुद्रा में हैं। माँ की पूजा करने से भक्तों को सुख की प्राप्ति होती है। विवाहित स्त्रियों के सुहाग की रक्षा होती है तो अविवाहित स्त्रियों के लिए विवाह के योग बनते हैं। महागौरी माता के आशीर्वाद से अविवाहित महिलाओं को योग्य वर की प्राप्ति होती है। वहीं पुरुषों का अपनी पत्नी या जीवनसाथी के साथ संबंध मधुर बनता है।

#9. सिद्धिदात्री माता

माँ दुर्गा का अंतिम रूप माँ सिद्धिदात्री अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मनुष्य को सभी आठों सिद्धियाँ प्रदान करके उसका उद्धार करता है। इसके पश्चात मनुष्य के मन में कोई इच्छा नहीं रह जाती तथा उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। एक तरह से देखा जाए तो सिद्धिदात्री का अर्थ ही यह होता है कि जो सिद्धियों की दाता हो।

माँ का स्वरुप भी अत्यंत सुखदायी है तथा वे कमल के पुष्प पर विराजमान रहती हैं। उनकी चार भुजाओं में गदा, चक्र, कमल पुष्प व शंख है। माँ सिद्धिदात्री की पूजा करने से मनुष्य का मन नियंत्रण में रहता है तथा सांसारिक मोह माया से छुटकारा मिलता है। हमारे उद्धार में हमारे मन का बहुत बड़ा योगदान होता है क्योंकि इस पर नियंत्रण पाना बहुत ही कठिन होता है। ऐसे में सिद्धिदात्री माता आपकी यह समस्या दूर करती हैं।

तो यह थे मां दुर्गा के नौ रूप और उनके नाम (Maa Durga Ke 9 Roop With Name) जिनकी पूजा मुख्य रूप से नवरात्र के दिनों में की जाती है। माता का हरेक रूप भक्तों को अलग-अलग शक्ति व ऊर्जा प्रदान करता है जिससे हम सभी का उद्धार होता है। इसलिए नवरात्र के नौ दिन माँ के नौ रूपों की विधिवत पूजा करें।

दुर्गा मां के नौ रूप से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: दुर्गा माता के 9 रूप कौन कौन से हैं?

उत्तर: दुर्गा माता के 9 रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री हैं इनकी पूजा मुख्य रूप से नवरात्रों के दिनों में की जाती है

प्रश्न: दुर्गा के 9 अवतार कौन से हैं?

उत्तर: दुर्गा के 9 अवतार शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री है इन अवतारों की आराधना नवरात्र के नौ दिनों में की जाती है

प्रश्न: नवरात्रि के 9 दिन कौन कौन?

उत्तर: नवरात्रि के 9 दिन क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री माता को समर्पित किए गए हैं।

प्रश्न: दुर्गा मां के 9 रूप कौन कौन से हैं?

उत्तर: दुर्गा मां के 9 रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री माता है इन सभी नौ रूपों की पूजा मुख्य रूप से नवरात्र के दिनों में की जाती है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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