रुद्रनाथ मंदिर (Rudranath Mandir) उत्तराखंड राज्य में स्थित एक केदार है। हर वर्ष लाखों लोग रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा पर जाते हैं और भगवान रूद्र के दर्शन करते हैं। यह मंदिर महादेव के अन्य मंदिरों की तुलना में बहुत ही विचित्र है क्योंकि यहाँ केवल शिव मुख की पूजा की जाती है। इसके पीछे एक रोचक घटना जुड़ी हुई है जिसके बारे में आज आप जानेंगे।
इसी के साथ ही यदि आप रुद्रनाथ ट्रेक (Rudranath Trek) पर जाने का सोच रहे हैं तो आज के इस लेख में आपको रुद्रनाथ मंदिर तक पहुँचने के तीनों मुख्य मार्गों के बारे में जानकारी मिलेगी। जी हां, आप एक रास्ते से नहीं बल्कि तीन अलग-अलग रास्तों से ट्रेक करते हुए रुद्रनाथ मंदिर पहुँच सकते हैं। इसी के साथ ही हम आपको रुद्रनाथ मंदिर की कहानी, इतिहास, भूगोल, संरचना इत्यादि सब बताएँगे।
Rudranath Mandir | रुद्रनाथ मंदिर के बारे में
Rudranath Mandir भगवान शिव को समर्पित एक ऐसा मंदिर है जहाँ केवल उनके मुख की पूजा की जाती है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ केवल शिव के मुख की पूजा की जाती है जबकि बाकि शरीर की पूजा नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में की जाती है। इसके पीछे महाभारत के समय की एक रोचक कथा जुड़ी हुई है।
रुद्रनाथ मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के चमोली जिले के जंगलों व पहाड़ों के बीच में एक गुफा में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव के पंच केदारों में चतुर्थ केदार है। रुद्रनाथ की चढ़ाई सबसे लंबी है लेकिन यह इतनी कठिन नहीं है। बहुत से भक्तगण कल्पेश्वर से रुद्रनाथ ट्रैकिंग (Rudranath Trekking) पर भी जाते हैं ताकि एक साथ दो केदारों के दर्शन हो सके। आज हम आपको रुद्रनाथ मंदिर के बारे में संपूर्ण विवरण देने वाले हैं।
रुद्रनाथ मंदिर का इतिहास
रुद्रनाथ मंदिर का इतिहास पांडवों से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत के समय में पांडवों के द्वारा किया गया था। रुद्रनाथ मंदिर के निर्माण की कथा के अनुसार जब पांडव महाभारत का भीषण युद्ध जीत गए थे तब वे गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव के पास गए लेकिन शिव उनसे बहुत क्रुद्ध थे।
इसलिए शिवजी बैल का अवतार लेकर धरती में समाने लगे लेकिन भीम ने उन्हें देख लिया। भीम ने उस बैल को पीछे से पकड़ लिया। इस कारण बैल का पीछे वाला भाग वहीं रह गया जबकि चार अन्य भाग चार विभिन्न स्थानों पर निकले। इन पाँचों स्थानों पर पांडवों के द्वारा शिवलिंग स्थापित कर शिव मंदिरों का निर्माण किया गया जिन्हें हम पंच केदार कहते हैं।
पंच केदार में रूद्रनाथ है चौथा केदार
रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शिव के बैल रुपी अवतार का मुख प्रकट हुआ था। बैल का जो भाग भीम ने पकड़ लिया था वहां केदारनाथ मंदिर स्थित है। अन्य तीन केदारों में मध्यमहेश्वर (नाभि), तुंगनाथ (भुजाएं) व कल्पेश्वर (जटाएं) आते हैं। रुद्रनाथ मंदिर को पंच केदार में से चतुर्थ केदार के रूप में जाना जाता है।
रुद्रनाथ मंदिर कहां है?
यह मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह चमोली जिले के सगर गाँव से 20 किलोमीटर दूर है जहाँ का रास्ता पैदल चलकर पार करना पड़ता है। समुंद्र तट से रुद्रनाथ मंदिर की ऊंचाई 3,600 मीटर (11,811 फीट) है।
मंदिर का मार्ग अल्पाइन व बुरांस के जंगलों और पेड़ों से घिरा हुआ है जहाँ आपको असंख्य पेड़, पुष्प, पशु-पक्षी देखने को मिलेंगे। मंदिर की चढ़ाई में प्राकृतिक झरने व गुफाएं भी देखने को मिलेंगी। इसकी चढ़ाई के मार्ग को उत्तराखंड का बुग्याल क्षेत्र कहते हैं। मंदिर भी एक गुफा के अंदर ही स्थित है जो इसे सबसे अलग रूप प्रदान करती है।
रुद्रनाथ मंदिर की संरचना
इसे रुद्रनाथ मंदिर का रहस्य कहा जाए या कुछ और लेकिन यहाँ पर स्थापित शिवलिंग सभी के लिए किसी रहस्य से कम नही है। प्राचीन कथा के अनुसार यहाँ शिव के बैल रुपी अवतार का मुख प्रकट हुआ था, इसलिए इसे स्वयंभू शिवलिंग के नाम से भी जाना जाता है।
रुद्रनाथ शिवलिंग (Rudranath Shivling) एक मुख की आकृति लिए हुए है जिसकी गर्दन टेढ़ी है। यह शिवलिंग एक प्राकृतिक शिवलिंग है जिसकी गहराई का आज तक पता नही लगाया जा सका है। दूर-दूर से भक्तगण इसी के दर्शन करने और महादेव का आशीर्वाद पाने यहाँ आते हैं।
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पित्रधार
सगर गाँव से रुद्रनाथ की यात्रा शुरू होती है जो कि 20 किलोमीटर लंबी है। इस मार्ग के अंत में पित्रधार (Pitradhar Rudranath) नामक एक पवित्र स्थल आता है जहाँ से मंदिर बस 5 किलोमीटर की उतराई पर स्थित है। इस पित्रधार को पितरों के पिंडदान के लिए पवित्र जगह माना गया है। मान्यता है कि लोग गया की बजाए यहाँ भी अपने पितरों का पिंडदान कर सकते हैं। यहाँ आने वाले लोग पित्रधार में अपने पितरों के नाम के पत्थर रखा करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
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वैतरणी नदी
गरुड़ पुराण के अनुसार, आत्मा अपनी तेरहवीं के दिन वैतरणी नदी को पार करके ही यमलोक पहुँचती है। रुद्रनाथ मंदिर के पास भी जो नदी बहती है, उसे वैतरणी नदी (Vaitarni Rudranath) कहा गया है। इसके अलावा इसे बैतरनी नदी या रुद्रगंगा नाम से भी जाना जाता है। स्थानीय लोग इसे मोक्ष प्राप्ति की नदी भी कहते हैं। वैतरणी नदी में भगवान शिव/ विष्णु की पत्थर से बनी मूर्ति स्थापित है। कई लोग यहाँ भी पिंडदान करते हैं।
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रुद्रनाथ मंदिर के आसपास का दृश्य
मंदिर के आसपास आपको कई अन्य छोटे मंदिर भी देखने को मिलेंगे जो पाँचों पांडवों, माता कुंती व माता द्रौपदी को समर्पित हैं। इसके अलावा मंदिर के आसपास व कुछ दूरी पर छह कुंड स्थित हैं, जिनके नाम हैं:
- नारद कुंड
- सरस्वती कुंड
- तारा कुंड
- सूर्य कुंड
- चंद्र कुंड
- मानस कुंड
इस तरह से Rudranath Trekking पर जाते समय आपको इन सभी के दर्शन होंगे। यह सभी आपकी रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा को और भी आनंददायक बना देंगे।
रुद्रनाथ मंदिर के अन्य नाम
रुद्रनाथ मंदिर को दो अन्य नामों से भी जाना जाता है। हालाँकि इसका रुद्रनाथ नाम ही सबसे प्रसिद्ध है लेकिन आप इसके दो अन्य नाम भी जान लीजिए।
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नीलकंठ महादेव
भगवान शिव का एक अन्य नाम नीलकंठ भी है क्योंकि समुंद्र मंथन के समय निकले 14 रत्नों में से एक हलाहल विष भी था जिसे भगवान शिव ने पिया था। इसके बाद से उनका नाम नीलकंठ महादेव पड़ गया था।
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रुद्रमुख
रुद्रनाथ के साथ-साथ इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को रुद्रमुख के नाम से भी जाना जाता है। इसमें रूद्र भगवान शिव के रोद्र रूप को समर्पित एक नाम है जबकि मुख का अर्थ मुंह होता है।
Rudranath Trek | रुद्रनाथ ट्रेक
रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा मुख्यतया तीन जगहों से शुरू होती है व हर स्थल से मंदिर की यात्रा करने का अपना एक अलग अनुभव है। यह यात्रा सगर गाँव, मंडल गाँव या हेलंग से शुरू होती है। मुख्यतया लोग इसे सगर गाँव से ही शुरू करते हैं। यात्रा में कम से कम 3 से 4 दिन का समय लगता है। इसलिए आप अपने रहने और खाने-पीने का सामान साथ में लेकर चलें क्योंकि ऊपर इसकी व्यवस्था नामात्र के बराबर होती है।
अब हम एक-एक करके Rudranath Mandir पहुँचने के तीनों मार्गों की जानकारी आपके सामने रखने जा रहे हैं। आप अपनी इच्छा अनुसार किसी भी रास्ते से रुद्रनाथ महादेव के दर्शन कर सकते हैं।
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सगर रुद्रनाथ ट्रेक (Sagar To Rudranath Trek)
सगर गाँव-लिती बुग्याल-पनार बुग्याल-पित्रधार-रुद्रनाथ मंदिर
सगर गाँव गोपेश्वर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रुद्रनाथ की यात्रा यहीं से शुरू होती है अर्थात यहाँ से आगे आप वाहन पर नहीं जा सकते हैं। यहाँ से रुद्रनाथ मंदिर की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है जिसको पैदल ही पार करना होता है। रुद्रनाथ मंदिर पहुँचने के लिए यह ट्रेक सबसे छोटा व सुगम है, इसलिए मुख्यतया सभी के द्वारा यही ट्रेक किया जाता है।
इसके लिए आपको सगर गाँव से एक रास्ता मिलेगा जहाँ से यह ट्रेक शुरू होता है। बीच में लिती बुग्याल व पनार बुग्याल आएंगे जहाँ आप खाना-पीना कर सकते हैं या फिर एक दिन यहाँ रुक भी सकते हैं। सगर गाँव से पनार बुग्याल लगभग 12 किलोमीटर है। फिर यहाँ से 3 किलोमीटर की दूरी पर आप पित्रधार पहुँच जाएंगे जहाँ आपको भक्तों के द्वारा चढ़ाए गए पत्थर, घंटियाँ, चुनरियाँ इत्यादि देखने को मिलेंगी।
पित्रधार पर आप अपने पितरों को नमन करें और वहां से आगे बढ़ जाएं। पित्रधार तक तो चढ़ाई करनी पड़ती है लेकिन यहाँ से आगे उतराई शुरू हो जाती है। पित्रधार से रुद्रनाथ मंदिर की दूरी लगभग 5 किलोमीटर की है जिसमें आपको ज्यादातर उतराई करनी होगी। इसके बाद आप धलाब्नी मैदान होते हुए रुद्रनाथ मंदिर पहुँच जाएंगे।
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मंडल रुद्रनाथ ट्रेक (Mandal To Rudranath Trek)
मंडलगाँव-अनुसूया मंदिर-हंसा बुग्याल-नोला पास-रुद्रनाथ मंदिर
यह ट्रेक मुख्यतया उनके द्वारा किया जाता है जिन्हें रुद्रनाथ मंदिर के साथ-साथ माता अनुसूया के मंदिर भी जाना होता है। मंडल गाँव गोपेश्वर से 12 से 14 किलोमीटर की दूरी पर है जहाँ से यह ट्रेक शुरू होता है। अनुसूया माता का मंदिर इस ट्रेक के बीच में पड़ता है जो यहाँ से लगभग 2 किलोमीटर अलग रास्ते पर है।
इसलिए सैलानी पहले माता अनुसूया के मंदिर होकर आते हैं और फिर रुद्रनाथ मंदिर का ट्रेक शुरू करते हैं। मंडल गाँव से अनुसूया मंदिर का आना-जाना 4 से 5 किलोमीटर है जिसमे 3 से 4 घंटे लगते हैं। उसके बाद आप हंसा बुग्याल, धनपाल मैदान व नोला पास होते हुए रुद्रनाथ मंदिर पहुँचते हैं जिसकी दूरी 23 किलोमीटर है।
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कल्पेश्वर रुद्रनाथ ट्रेक (Kalpeshwar To Rudranath Trek)
हेलंग-उर्गम-कल्पेश्वर मंदिर-दुमक-बंसी नारायण-पनार-रुद्रनाथ मंदिर
इस ट्रेक के बीच में पंच केदार में से एक और केदार कल्पेश्वर महादेव के दर्शन करने को भी मिलेंगे जो उर्गम गाँव के पास पड़ता है। हालाँकि यह ट्रेक मूल रूप से हेलंग से शुरू होता है जिस कारण इसे हेलंग रुद्रनाथ ट्रेक भी कहा जाता है। यह ट्रेक रुद्रनाथ मंदिर ट्रेक का सबसे लंबा ट्रेक है जो कि लगभग 45 किलोमीटर के आसपास है।
हेलंग जोशीमठ के पास है जहाँ से यह ट्रेक शुरू होता है। उसके बाद भक्तगण उर्गम गाँव पहुँचते हैं जहाँ से कल्पेश्वर मंदिर का छोटा सा ट्रेक करके कल्पेश्वर महादेव के दर्शन किए जाते हैं। उसके बाद पल्ला, किमानाकल्गोंत व दुमक होते हुए रुद्रनाथ मंदिर पहुंचा जाता है। इसके बीच में बंसी नारायण का मंदिर भी आता है जहाँ के दर्शन किए जा सकते हैं।
रुद्रनाथ महादेव मंदिर खुलने व बंद होने की तिथि
अन्य केदारों की तरह Rudranath Mandir भी सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण बंद हो जाता है। मंदिर मुख्यतया मई माह में हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक निश्चित तिथि को खोल दिया जाता है। इसके लिए गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर से रुद्रनाथ डोली यात्रा निकाली जाती है। इसके बाद यह मंदिर छह माह तक खुला रहता है और दीपावली के आसपास एक निश्चित तिथि को मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
रुद्रनाथ मंदिर खुलने व बंद होने का समय
मंदिर के कपाट भक्तों के लिए प्रातः काल 6 बजे के पास खुल जाते हैं व संध्या 7 बजे के आसपास बंद हो जाते हैं। सर्दियाँ जब शुरू हो रही होती है तब मंदिर थोड़ा जल्दी बंद किया जा सकता है। ऐसे में यदि आप दोपहर के समय में यहाँ पहुँच जाते हैं तो यह सबसे सही समय होता है।
रुद्रनाथ महादेव की आरती
रुद्रनाथ मंदिर में सुबह की आरती 8 बजे होती है। फिर संध्या में 6:30 बजे के पास आरती की जाती है। इसके कुछ देर बाद मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं।
रुद्रनाथ मंदिर का मौसम
Rudranath Mandir का मौसम वर्षभर ठंडा रहता है। गर्मियों में हल्की ठंड का अहसास होता है जबकि सर्दियों में तो भीषण बर्फबारी के कारण मंदिर जाने के रास्ते तक बंद हो जाते हैं। उस समय मंदिर से महादेव के प्रतीकात्मक स्वरुप को 20 किलोमीटर नीचे गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है। उसके बाद छह माह तक भगवान यहीं निवास करते हैं।
फिर छह माह के बाद मई माह में रुद्रनाथ डोली यात्रा के द्वारा महादेव को पुनः रुद्रनाथ मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है। इस तरह से रुद्रनाथ मंदिर 6 महीने तक भक्तों के लिए खुला रहता है तो वहीं 6 माह के लिए मंदिर के कपाट भीषण बर्फ़बारी के कारण बंद रहते हैं।
रुद्रनाथ डोली यात्रा
छह माह तक गोपीनाथ मंदिर में रहने के बाद महादेव के प्रतीकात्मक स्वरुप को पुनः रुद्रनाथ मंदिर पहुँचाने के लिए बड़ी धूमधाम के साथ रुद्रनाथ की पालकी में यात्रा निकाली जाती है जिसे रुद्रनाथ डोली यात्रा (Rudranath Doli Yatra) के नाम से जाना जाता है। यह यात्रा गोपीनाथ मंदिर से शुरू होकर सगर गाँव होते हुए रुद्रनाथ मंदिर पहुँचती है।
बीच में जब पित्रधार आता है तब वहां पर पितरों की पूजा करने के लिए यात्रा को रोक दिया जाता है। फिर पितरों की पूजा करने के बाद यात्रा आगे बढ़ती है और रुद्रनाथ मंदिर पहुँचती है। उसके बाद वहां के स्थानीय लोगों के द्वारा वनदेवी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि वनदेवी के द्वारा ही इस पूरे स्थल की रक्षा की जाती है।
रुद्रनाथ शिव मंदिर की सुंदरता
पंच केदारों में रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा को सबसे लंबी व कठिन माना गया है। हालाँकि इसके रास्ते में ही आपको घने जंगल, बुरांश व अल्पाइन के वृक्ष, मोर व विभिन्न पशु-पक्षी, रंग-बिरंगे पुष्प व मखमली घास देखने को मिलेंगी।
जब आप मंदिर पहुँच जाएंगे तब आपको वहां से हिमालय की तीन चोटियां नंदा देवी, त्रिशूल व नंदा घुंटी देखने को मिलेंगी जो इसके दृश्य को ओर भी मनोहर बना देती हैं। मंदिर के आसपास बहने वाले झरने व कुंड भी आकर्षण का मुख्य केंद्र हैं। कई भक्तगण नारद कुंड में स्नान करने के पश्चात ही रुद्रनाथ महादेव के दर्शन करते हैं।
रुद्रनाथ मंदिर के उत्सव
प्रत्येक वर्ष सावन के महीने में Rudranath Mandir में विशाल आयोजन किया जाता है जिसमें मुख्यतया स्थानीय लोग ही भाग लेते हैं। यह ज्यादातर रक्षाबंधन के अवसर पर ही आयोजित किया जाता है जिसे देखने देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं।
रुद्रनाथ मंदिर कैसे पहुंचें?
अभी तक तो हमने आपको Rudranath Trek के बारे में जानकारी दी थी लेकिन अब प्रश्न उठता है कि सगर, मंडल या हेलंग कैसे पहुंचा जाएं। इसलिए अब हम आपको रुद्रनाथ मंदिर पहुँचने के हवाई, रेल व सड़क तीनों मार्गों के बारे में जानकारी देंगे।
- हवाई मार्ग से रुद्रनाथ मंदिर कैसे जाएं: यदि आप हवाई जहाज से रुद्रनाथ मंदिर जाना चाहते हैं तो गोपेश्वर के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का ग्रांट जॉली हवाई अड्डा है। यहाँ से बस या टैक्सी करके गोपेश्वर पहुँचना पड़ेगा।
- रेल मार्ग से रुद्रनाथ मंदिर कैसे जाएं: यदि आप सभी भारतीयों की पसंदीदा रेलगाड़ी से रुद्रनाथ मंदिर जा रहे हैं तो सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश का है। यहाँ से फिर आपको बस या टैक्सी की सहायता से गोपेश्वर पहुंचना पड़ेगा।
- सड़क मार्ग से रुद्रनाथ मंदिर कैसे जाएं: वर्तमान समय में उत्तराखंड राज्य का लगभग हर शहर व कस्बा बसों के द्वारा सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आपको दिल्ली, चंडीगढ़, जयपुर इत्यादि से ऋषिकेश तक की सीधी बस आसानी से मिल जाएगी। फिर वहां से आप आगे के लिए स्थानीय बस या टैक्सी कर सीधे गोपेश्वर तक पहुँच सकते हैं।
रुद्रनाथ में कहां रुकें?
रुद्रनाथ मंदिर के आसपास रुकने की सुविधा उपलब्ध नही है। इसलिए आपको वापस नीचे आना पड़ेगा। आप जब ट्रेक करके ऊपर जा रहे होंगे तो बीच-बीच में आपको कई छोटे होटल, लॉज, कैम्पस इत्यादि की सुविधा दिख जाएगी। इसलिए आपको फिर से वहीं आना पड़ेगा।
हालाँकि यदि आप अपना कैंप व खाना लेकर ट्रेक कर रहे हैं तो मंदिर के आसपास अपना कैंप लगा सकते हैं और मौसम का आनंद उठा सकते हैं। सगर व मंडल गाँव तथा हेलंग में आपको रहने की कई सुविधाएँ मिल जाएँगी। इसके अलावा गोपेश्वर में तो सरकारी विश्राम गृह, बड़े होटल, हॉस्टल, लॉज, कैम्पस इत्यादि सभी प्रकार की सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध हैं।
रुद्रनाथ मंदिर की एंट्री फीस
Rudranath Mandir में जाने के लिए किसी भी प्रकार की कोई एंट्री फीस नही लगती है लेकिन यह क्षेत्र केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य के अंतर्गत आता है। इसलिए यदि आप अपने साथ कोई प्लास्टिक की चीज़ लेकर जा रहे हैं तो आपसे 100 रुपए चार्ज किए जाएंगे जो वापसी में लौटा दिए जाएंगे।
इसके लिए वन विभाग के द्वारा आपके पास जो भी प्लास्टिक की चीज़े हैं उनकी संख्या नोट की जाएगी और एक स्लिप दी जाएगी। वापसी में आपको यह स्लिप और प्लास्टिक दिखाकर अपने 100 रुपए वापस मिल जाएंगे लेकिन यदि आपके पास स्लिप में लिखी संख्या से कम प्लास्टिक मिले तो आपके ऊपर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है।
रुद्रनाथ मंदिर के आसपास के दर्शनीय स्थल
- कल्पेश्वर शिव मंदिर
- तुंगनाथ शिव मंदिर
- माता अनुसूया मंदिर
- गोपीनाथ मंदिर
- लौह त्रिशूल
- नंदीकुंड
- बुग्याल क्षेत्र (कंडिया, हमशा, धनपाल, पंचगंगा, पनार इत्यादि)।
रुद्रनाथ मंदिर ट्रेक के लिए टिप्स
अब यदि आप Rudranath Trekking करने का मन बना चुके हैं तो आपको कुछ बातों का ध्यान रखने की जरुरत है। नीचे हम आपको कुछ टिप्स देने जा रहे हैं जो रुद्रनाथ महादेव की यात्रा को सुगम बनाने का काम करेंगी।
- यहाँ वर्षभर ठंडा मौसम रहता है, इसलिए गर्म कपड़े हमेशा साथ लेकर चलें।
- ट्रैकिंग करने के लिए ट्रैकिंग वाले जूते व एक छड़ी भी साथ में रखेंगे तो पहाड़ों पर चढ़ने में आसानी होगी।
- होटल इत्यादि की बुकिंग पहले ही करवा कर रखें।
- मंदिर के अंदर फोटोग्राफी करना निषेध है।
- नवंबर से लेकर अप्रैल माह तक मंदिर के कपाट बंद रहते हैं।
- बारिश के मौसम में यहाँ जासे बचें।
- यहाँ पर मोबाइल सिग्नल भी बहुत कम ही मिलते हैं।
इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने रुद्रनाथ महादेव मंदिर की यात्रा के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है। अब आप भी अपने परिवारवालों या मित्रों के साथ Rudranath Trek पर जाने का कार्यक्रम बना सकते हैं। यदि आपकी अभी भी कोई शंका रह गई है तो आप नीचे कमेंट करके हमसे पूछ सकते हैं।
रुद्रनाथ मंदिर से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: रुद्रनाथ में किसकी पूजा होती है?
उत्तर: रुद्रनाथ में भगवान शिव के बैल रुपी अवतार के मुख की पूजा की जाती है। यह उत्तराखंड के चमोली गांव में स्थित है।
प्रश्न: रुद्रनाथ के कपाट कब बंद होते हैं?
उत्तर: रुद्रनाथ के कपाट सर्दियों के मौसम में बंद कर दिए जाते हैं। मुख्य तौर पर दीपावली के आसपास मंदिर बंद हो जाता है।
प्रश्न: रुद्रनाथ ट्रेक के लिए कितने दिन चाहिए?
उत्तर: रुद्रनाथ पहुँचने के मुख्य तौर पर तीन रास्ते हैं। ऐसे में आपको सामान्य तौर पर 2 से 4 दिन का समय रुद्रनाथ ट्रेक में लगेगा।
प्रश्न: मुझे रुद्रनाथ कब जाना चाहिए?
उत्तर: रुद्रनाथ मंदिर अप्रैल से नवंबर माह के बीच भक्तों के लिए खुला रहता है। ऐसे में आप इस दौरान कभी भी वहां जा सकते हैं।
प्रश्न: क्या रुद्रनाथ ट्रेक केदारनाथ से कठिन है?
उत्तर: नहीं, रुद्रनाथ ट्रेक केदारनाथ से कठिन नहीं है लेकिन यह लंबा अवश्य है। ऐसे में आपको यहाँ ज्यादा चलना होता है।
प्रश्न: रुद्रनाथ क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर: रुद्रनाथ में भगवान शिव के बैल रुपी अवतार का मुख प्रकट हुआ था। इसी के साथ ही यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता व मनोहर दृश्यों के कारण प्रसिद्ध है।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
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