जब श्रीराम अंगद को शांतिदूत बनाकर लंका भेजते हैं तब अंगद रावण संवाद (Angad Ravan Samvad) देखने को मिलता है। भगवान श्रीराम ने युद्ध शुरू होने से पूर्व रावण के दरबार में अंगद को शांतिदूत बनाकर इसलिए भेजा था ताकि उसे एक अंतिम अवसर दिया जा सके और युद्ध को टाला जा सके। चूँकि अंगद शक्तिशाली भी था तथा बुद्धिमान भी, इसलिए उसका शांतिदूत के रूप में चुनाव किया गया था।
जब वह रावण के दरबार में पहुँचा तो रावण के सैनिकों के द्वारा उसका अपमान किया गया। रावण ने भी अंगद को बहलाने की बहुत कोशिश की लेकिन अंगद ने बहुत ही समझदारी से काम लिया। आज हम आपको अंगद के रावण की सभा में जाने व रावण अंगद संवाद (Ravan Angad Samvad) के बारे में विस्तार से बताएँगे।
Angad Ravan Samvad | अंगद रावण संवाद
प्रभु श्रीराम ने महाराज सुग्रीव व अन्य मंत्रियों के परामर्श के आधार पर अंगद को लंका में भेजा। अंगद के ऊपर श्रीराम का शांति संदेश पहुँचाने का बहुत बड़ा दायित्व था। रावण के आदेश पर अंगद को अंदर बुला लिया गया। जब रावण के सामने अंगद को प्रस्तुत किया गया तब उसे आसन भी नहीं दिया गया था। साथ ही सभा में उपस्थित सभी राक्षस उसके वानर रूप की हंसाई कर रहे थे।
अंगद ने अपना अपमान यह कहकर सह लिया कि श्रीराम का शांति संदेश अधिक महत्वपूर्ण है इसलिए वह इसे सुनाकर ही वापस जाएगा। फलस्वरुप अंगद ने अपनी पूँछ को लंबा किया तथा उससे एक बहुत बड़ा आसन बना लिया और उस पर बैठ गया। इसके बाद अंगद ने पूरी सभा में रावण के सामने प्रभु श्रीराम का संदेश पढ़ा।
श्री राम का शांति संदेश
अंगद ने रावण को बताया कि उसके पिता रावण के मित्र हैं इसलिए वह उनकी भलाई का ही संदेश देगा। उसने रावण के कुल व उसके दादा तथा पिता का बखान किया, भगवान शिव के प्रति रावण की भक्ति को सराहा तथा उसकी शक्ति का बखान किया। साथ ही उसने रावण को चेताया कि उसने अपनी शक्तियों का दुरूपयोग भी किया है। उसने अनेक ऋषियों, संतों, राजाओं का अपमान किया है तथा उसी में अँधा होकर उसने जगत-जननी माता सीता का भी हरण किया है।
उसने रावण को चेताया कि जब पापियों के द्वारा पाप अत्यधिक बढ़ जाता है तब दैवीय शक्तियां प्रकट होकर उनका नाश करती है। उसने रावण को चेताया कि यदि वह नहीं रुका तो उसकी बहुत दुर्गति होगी। उसने रावण को उसका हित समझाया तथा प्रभु श्रीराम की शरण में जाने का संदेश दिया। अंगद ने आगे कहा कि प्रभु श्रीराम बहुत महान हैं तथा यदि रावण माता सीता को सम्मानपूर्वक वापस लौटाकर श्रीराम की शरण में चला जाएगा तो वे उसे क्षमा कर देंगे।
उसने श्रीराम की शक्ति का सभी के सामने बखान किया तथा बताया कि उनके बाणों में समस्त पृथ्वी का विनाश करने की शक्ति है। उसने रावण से कहा कि वह इसी समय अपना सिर झुकाकर तथा दांतों में तिनका दबाकर अपने समस्त कुटुंब के साथ श्रीराम की शरण में चला जाए तथा माता सीता को लौटा दे। इससे श्रीराम का हृदय द्रवित हो उठेगा तथा वे उसे क्षमा कर देंगे।
रावण अंगद संवाद (Ravan Angad Samvad)
इसके बाद ही अंगद और रावण के बीच संवाद शुरू हुआ था। इस संवाद में रावण ने अंगद को बहलाने, उस पर क्रोध करने, उसका अपमान करने इत्यादि हरसंभव प्रयास किया लेकिन अंगद ने भी बहुत ही चालाकी से रावण को प्रत्युत्तर दिया। आइए पढ़ें दोनों के बीच संवाद का रोचक प्रसंग।
जब अंगद ने शांति संदेश पढ़ लिया तब रावण ने अपने अहंकारस्वरूप श्रीराम के शांति संदेश को भय का कारण समझा तथा उसने सभी के सामने उनका उपहास उड़ाया। उसने कहा कि जिसकी पत्नी को वह उठा लाया हो तथा इतने महीने तक लंका में बंदी रखा हो, उसका पति बिना किसी प्रतिशोध के वापस लौट जाएगा। रावण के अनुसार सीता को बाहुबल से ही जीतना होगा अन्यथा वह श्रीराम को एक सच्चा क्षत्रिय नहीं समझेगा। साथ ही रावण ने अंगद से पूछा कि उसके पिता उसके मित्र कैसे हुए तथा उसका परिचय माँगा।
-
अंगद ने दिया अपने पिता का परिचय
अंगद ने अपने पिता का नाम बताया तथा उनकी वीरता का बखान किया। साथ ही उसने रावण का यह कहकर उपहास किया कि उसके पिता के द्वारा रावण को युद्ध में हराया गया था जिसमें बाली ने रावण को अपनी काख में दबाकर कई पर्वतों की यात्रा की थी।
-
रावण के द्वारा अंगद को बहलाना
जब रावण ने अंगद का परिचय जाना तो उसने अंगद को बहलाने की कोशिश की। उसने बाली से अपनी मित्रता को याद किया तथा उसकी मृत्यु पर शोक जताया। साथ ही उसने अंगद को यह कहकर क्रोध किया कि क्यों वह अपने पिता के हत्यारे का साथ दे रहा है। उसे तो श्रीराम व सुग्रीव से प्रतिशोध लेना चाहिए था लेकिन आज वह उनका सेवक बनकर घूम रहा है।
उसने अंगद को लालच भी दिया तथा कहा कि यदि वह सुग्रीव इत्यादि के डर से स्वयं को असहाय महसूस कर रहा है तो रावण उसकी सहायता करेगा। उसने अंगद को अपने साथ मिल जाने को कहा तथा उसे पुनः किष्किन्धा का राजा बनाने का लालच दिया। रावण ने अंगद को अपने पुत्र समान बताया तथा श्रीराम की सेना में अपना दूत बनकर रहने को बोला।
-
अंगद का रावण को उत्तर
रावण अंगद संवाद (Ravan Angad Samvad) का यह बहुत ही रोचक पल है क्योंकि इसमें अंगद का प्रत्युत्तर हर किसी के दिल को छू जाता है। बाली पुत्र अंगद ने उसी समय रावण का प्रस्ताव ठुकरा दिया तथा रावण की वीरता का उपहास किया। उसने रावण को बताया कि प्रतिशोध वीरता की निशानी नहीं होता व कायर कभी शत्रु को क्षमा करने का साहस नहीं रखता। उसने कहा कि यदि श्रीराम रावण को क्षमा कर दे तो वह उनकी महानता होगी ना कि कायरता। उसने श्रीराम के द्वारा अनेक राक्षसों का वध करना बताया तथा उन्हें तीनों लोकों का स्वामी बताया।
इसके साथ ही अंगद ने रावण को यह भी बताया कि स्वयं उसके पिता बाली ने मरने से पूर्व उसे श्रीराम की सेवा करने का आदेश दिया था। इसलिए रावण को अंगद पर दया करने की कोई आवश्यकता नहीं। उसने रावण को अपने आप पर दया करने को कहा तथा प्रभु श्रीराम की शरण में जाने को कहा।
-
रावण ने किया अपनी शक्ति का बखान
यह सुनकर रावण को अत्यधिक क्रोध आ गया तथा उसने अंगद के सामने अपनी शक्ति का बखान किया। उसने कहा कि वह जब अपनी खड्ग उठाता है तो समस्त देवतागण घबरा जाते हैं। उसकी भुजाओं में इतनी शक्ति है कि वे कैलाश पर्वत तक को उठा सकते हैं। उसने अंगद को चुनौती दी कि श्रीराम की सेना में कोई एक योद्धा तो ऐसा हो जिसके साथ उसे युद्ध करने में आनंद आए।
-
अंगद ने किया रावण का अपमान
यह सुनकर अंगद ने कहा कि रावण बिल्कुल सही कह रहा है क्योंकि श्रीराम की सेना में ऐसा कोई नहीं जो रावण से युद्ध करने में शोभा पाएगा। उसने कहा कि रावण एक महापापी, स्त्री लोलुप, कपटी, दुष्कर्मी राजा है जिसने एक पराई स्त्री का उसकी इच्छा के विरुद्ध हरण किया है। इसलिए कोई भी ऐसे नीच के साथ युद्ध नहीं करना चाहेगा।
उसने रावण को याद दिलाया कि किस प्रकार जब वह पाताल लोक में राजा बाली से युद्ध करने गया था तब वहाँ के बच्चों ने उसे घुड़साल में बांधकर बहुत पीटा था। तब राजा बाली ने ही उसे बच्चों के चंगुल से छुड़वाया था। उसने कहा कि एक बार सहस्त्रबाहु ने भी रावण को बंदी बना लिया था तब पुलस्त्य मुनि ने उसे छुड़वाया था। उसने अपने पिता बाली के द्वारा रावण को काख में दबाकर रखने वाली बात भी दोहराई। उसने रावण से पुछा कि वह इनमें से कौनसा रावण है।
-
रावण ने शांति संदेश ठुकराया
यह सुनकर रावण अत्यधिक क्रोधित हो गया तथा अपने द्वारा किए गए वीरतापूर्ण कार्य बताए। रावण ने कहा कि उससे कोई नहीं जीत सकता, समस्त ब्रह्मांड में वह सबसे महान है व श्रीराम तो केवल एक तुच्छ मानव है जो उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उसने स्वयं को श्रीराम से महान बताया तथा उन्हें कायर बताया। यह कहकर रावण ने श्रीराम का शांति संदेश ठुकरा दिया।
रावण के द्वारा शांति संदेश ठुकराते ही मूल रूप से अंगद रावण संवाद (Angad Ravan Samvad) का यहीं अंत हो जाता है। वह इसलिए क्योंकि इसके बाद अंगद के द्वारा भरी सभा में रावण को श्रीराम की चेतावनी पढ़कर सुनाई जाती है। इस चेतावनी को सुनकर रावण अत्यधिक क्रोधित हो जाता है और अंगद को भला बुरा कहता है। आइए जानते हैं तब क्या-क्या होता है।
अंगद के द्वारा रावण को श्रीराम की चेतावनी
यह सुनकर अंगद ने भरी सभा में श्रीराम की चेतावनी रावण को सुनाई। उसने कहा कि रावण के पापों का दंड देने वह लंका के द्वार तक आ चुके हैं तथा उसे भगवान ब्रह्मा के वरदान के कारण जो अभिमान है उसके नष्ट होने का समय अब आ चुका है। यदि रावण अभी भी श्रीराम की शरण में नहीं आया तो वे इस पृथ्वी को राक्षसहीन कर देंगे। श्रीराम रावण का उसके पुत्र, बंधु व मंत्रियों समेत वध करेंगे।
साथ ही उसने सभा में बैठे सभी लोगों से कहा कि अब रावण का अंत आ चुका है। इसलिए अभी भी जिस किसी को श्रीराम की शरण में आना हो वह आ जाए अन्यथा अंत में सभी का विनाश होगा।
अंगद की चुनौती
प्रभु श्रीराम की चेतावनी सुनकर व अंगद का ऐसा दुस्साहस देखकर रावण अत्यधिक क्रोधित हो उठा। उसने अपने सैनिकों से अंगद का मस्तक काट देने को कहा। इस पर अंगद ने रावण के सैनिकों को उठाकर पटक दिया। उसने रावण तथा सभी लंकावासियों को चुनौती दी कि वह अपना पैर इस धरती पर जमाएगा व रावण के दरबार में कोई भी योद्धा यदि उसका यह पैर उठा देगा तो वह अपनी हार स्वीकार कर लेगा तथा प्रभु श्रीराम अपनी सेना लेकर वापस लौट जाएंगे।
कोई नहीं उठा पाया अंगद का पैर
इसके बाद एक-एक करके रावण के सभी योद्धा आए व अंगद का पैर उठाने का प्रयास किया लेकिन कोई भी सफल नहीं हो पाया। जब रावण के सभी योद्धा व उसका शक्तिशाली पुत्र मेघनाद भी विफल हो गए तब रावण स्वयं अंगद का पैर उठाने आया। यह देखकर अंगद ने अपना पैर हटा दिया तथा उसने कहा कि यह चुनौती केवल उसके योद्धाओं के लिए थी न कि स्वयं उसके लिए। यदि उसे किसी के पैर पड़ने ही हैं तो जाकर प्रभु श्रीराम के पैर पड़े। यह कहकर अंगद रावण के दरबार से चला गया।
अंगद रावण संवाद (Angad Ravan Samvad) के माध्यम से यह देखने को मिलता है कि महाराज सुग्रीव ने श्रीराम को बिल्कुल सही सुझाव दिया था। वैसे तो अंगद की भूमिका अपने पिता बाली के मरने के बाद से शुरू हो जाती है जो रावण वध तक रहती है। लेकिन शांति दूत बनकर जाने वाली उनकी इस भूमिका ने रामायण में एक अलग छाप छोड़ी थी।
अंगद रावण संवाद से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: अंगद ने रावण से क्या क्या कहा?
उत्तर: अंगद ने रावण को श्रीराम का शांति संदेश और चेतवानी पढ़कर सुनाई थी। इसके अलावा उसने अपने पिता का परिचय दिया और रावण के साथ मिलने का प्रस्ताव उसका अपमान कर ठुकरा दिया था।
प्रश्न: अंगद ने रावण का घमंड कैसे तोड़ा?
उत्तर: अंगद ने भरी सभा में कहा कि यदि वहाँ उपस्थित कोई भी राक्षस उसका पैर उठा लेगा तो वह हार मान लेगा। रावण का कोई भी राक्षस अंगद का पैर नहीं उठा पाया था।
प्रश्न: अंगद क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर: अंगद ने भरी सभा में रावण का अहंकार तोड़ा था। साथ ही उसने वहाँ उपस्थित सभी राक्षसों को अपना पैर उठाने की चुनौती दी थी और उसे जीता भी था।
प्रश्न: हनुमान जी के अंगद कौन थे?
उत्तर: हनुमान जी के लिए अंगद उनके राजा के भतीजे और भविष्य के राजा थे।
नोट: यदि आप वैदिक ज्ञान 🔱, धार्मिक कथाएं 🕉️, मंदिर व ऐतिहासिक स्थल 🛕, भारतीय इतिहास, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य 🧠, योग व प्राणायाम 🧘♂️, घरेलू नुस्खे 🥥, धर्म समाचार 📰, शिक्षा व सुविचार 👣, पर्व व उत्सव 🪔, राशिफल 🌌 तथा सनातन धर्म की अन्य धर्म शाखाएं ☸️ (जैन, बौद्ध व सिख) इत्यादि विषयों के बारे में प्रतिदिन कुछ ना कुछ जानना चाहते हैं तो आपको धर्मयात्रा संस्था के विभिन्न सोशल मीडिया खातों से जुड़ना चाहिए। उनके लिंक हैं:
अन्य संबंधित लेख: