रामायण: श्रीराम पुत्र लव कुश का जीवन परिचय (Luv Kush Ki Kahani)

Love Kush Ki Kahani

आज हम आपके साथ रामायण के लव कुश की कहानी (Love Kush Ki Kahani) को शुरू से अंत तक सांझा करने वाले हैं। लवकुश भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्रीराम व माता लक्ष्मी की अवतार माता सीता के पुत्र थे। उनका जन्म वाल्मीकि आश्रम में हुआ था तथा शिक्षा भी वहीं से संपन्न हुई थी। माता सीता के भूमि में समाने के पश्चात उन्हें उनके पिता श्रीराम के द्वारा अपना लिया गया व अयोध्या का राजकुमार बनाया गया।

लव और कुश (Luv Kush Ki Kahani) जुड़वा भाई थे जिसमें लव को अपनी माँ सीता के समान गौर वर्ण का तो कुश को अपने पिता श्रीराम के समान काले वर्ण का बताया जाता है। दोनों में कुश बड़े थे। श्रीराम के द्वारा जल समाधि लेने से पहले कुश को अयोध्या का अगला राजा घोषित कर दिया गया था। आज हम आपको लव कुश का जीवन परिचय देंगे।

लव कुश की कहानी (Love Kush Ki Kahani)

जब श्रीराम माता सीता के साथ चौदह वर्षों के वनवास के पश्चात पुनः अयोध्या आ गए तब उसके कुछ दिनों के पश्चात अयोध्या की प्रजा में माता सीता के चरित्र को लेकर दबी आवाज में बाते की जाने लगी। सभी एक वर्ष तक माता सीता के रावण के महल में रहने पर उनकी पवित्रता पर संदेह कर रहे थे।

जब माता सीता को इसका पता चला तो राजधर्म को निभाने व प्रजा को एक उचित संदेश देने के लिए उन्होंने स्वयं वनवास में जाकर रहने का निर्णय लिया। श्रीराम उन्हें छोड़ने को तैयार नहीं थे लेकिन माता सीता उन्हें समझाकर वन में चली गई। वहाँ जाकर माता सीता वाल्मीकि आश्रम में रहने लगी। जब वे वन में गई उस समय वह गर्भवती थी इसलिए कुछ महीनों के पश्चात लव कुश का जन्म (Love Kush Kaun The) हुआ।

लव कुश की कहानी बहुत ही मार्मिक है। वह इसलिए क्योंकि जब उनके पास अपनी माँ सीता का साथ था तब उनके पिता श्रीराम उनसे दूर थे। जिस क्षण से उन्हें अपने पिता श्रीराम का साथ मिला, उसी क्षण से ही वे अपनी माँ सीता से दूर हो गए थे। आइए लव कुश के जीवन में कब क्या कुछ घटित हुआ, उसके बारे में जान लेते हैं।

लव कुश की शिक्षा

लवकुश को अपनी माँ का असली नाम नहीं पता था तथा वे उन्हें वनवती के नाम से ही जानते थे। ना ही उन्हें श्रीराम के अपने पिता होने का ज्ञात था। माता सीता व लव कुश का असली परिचय केवल महर्षि वाल्मीकि ही जानते थे।

जब लवकुश बड़े होने लगे तब महर्षि वाल्मीकि ने उनकी शिक्षा प्रारंभ कर दी। लवकुश अपने गुरु व माता के सानिध्य में रहकर अस्त्र-शस्त्र चलाना सीखते। महर्षि वाल्मीकि ने उन्हें छोटी आयु में ही अस्त्र-शस्त्र विद्या में पारंगत कर दिया तथा समय आने पर उन्हें कई दिव्य अस्त्र भी प्रदान किए।

इसी के साथ उन्होंने दोनों शिष्यों को संगीत विद्या में भी पारंगत किया। उन्होंने अपने द्वारा लिखी गई रामायण लव कुश को छंदबद्ध तरीके से रटा दी थी। अब दोनों बालक अस्त्र-शस्त्र विद्या के साथ-साथ संगीत में भी निपुण हो चुके थे।

लव कुश की लड़ाई

एक दिन जब उनकी माता व गुरु पूजा करने कुछ दिनों के लिए आश्रम से बाहर गए हुए थे तब आश्रम की सुरक्षा का भार उन दोनों पर ही था। उसी समय श्रीराम के अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा वाल्मीकि आश्रम के पास से गुजर रहा था जिसे दोनों ने पकड़ लिया। उन्होंने श्रीराम के उस घोड़े को पकड़कर श्रीराम के राज्य को चुनौती दी। इसके दो मुख्य कारण थे, एक तो वे क्षत्रिय धर्म के कारण ऐसा कर रहे थे व दूसरा वे श्रीराम से माता सीता का त्याग किए जाने का प्रश्न पूछना चाहते थे।

श्रीराम का अश्वमेघ घोड़ा पकड़े जाने पर दोनों का उनके भाइयों व सेना के साथ भीषण युद्ध हुआ। उन्होंने एक-एक करके श्रीराम के तीनों भाइयों शत्रुघ्न, लक्ष्मणभरत तथा महाराज सुग्रीव को मुर्छित कर दिया तथा वीर हनुमान को बंदी बना लिया। जब स्वयं श्रीराम उनसे युद्ध करने आए तब महर्षि वाल्मीकि ने आकर युद्ध रुकवा दिया तथा दोनों बालकों को अपने राजा से क्षमा मांगने को कहा। तब लव कुश ने श्रीराम से क्षमा मांगी तथा माता सीता का त्याग किए जाने पर प्रश्न किया। श्रीराम ने उन्हें राजधर्म की व्याख्या बताई और वहाँ से चले गए।

लव कुश की सच्चाई

जब माता सीता पूजा करके वापस आश्रम पहुँची तो लवकुश ने उन्हें खुश होकर लक्ष्मण इत्यादि से अपने युद्ध की बात बताई। यह सुनकर माता सीता अत्यंत भयभीत हो गई व विलाप करने लगी। उन्होंने लव कुश को बहुत डांटा तथा अपना असली परिचय उन्हें दिया। माता सीता ने लव कुश को बता दिया कि वे ही सीता हैं जो श्रीराम की पत्नी है तथा वे दोनों उन्हीं श्रीराम के पुत्र हैं।

महर्षि वाल्मीकि ने भी आकर इस बात की पुष्टि की। यह सुनकर दोनों बालक आश्चर्यचकित रह गए थे। इस तरह से लव कुश की कहानी (Love Kush Ki Kahani) सही मायनों में यहीं से शुरू होती है। इसके बाद जो कुछ घटित हुआ, आइए उसके बारे में भी जान लेते हैं।

लव कुश का अयोध्या जाना (Luv Kush Ki Kahani)

तब महर्षि वाल्मीकि ने लव कुश को बताया कि अब वह समय आ गया है जब वे अयोध्या जाकर उनकी लिखी रामायण को लोगों को सुनाए जिससे अयोध्या की प्रजा को अपनी गलती का अहसास हो। उसके बाद दोनों बालक अयोध्या की गलियों में घूम-घूमकर संगीत के माध्यम से रामायण कथा को सुनाते।

धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि इतनी बढ़ गई कि श्रीराम के द्वारा उन्हें अयोध्या के राजमहल में बुलाया गया। वहाँ उन्हीं दोनों बालकों को देखकर श्रीराम बहुत प्रसन्न हुए लेकिन लव कुश ने उन्हें कुछ नहीं बताया। उन्होंने केवल अपने पिता की चरण वंदना की तथा अगले दिन राज दरबार में रामायण कथा सुनाने का कहकर चले गए।

  • लव कुश की रामायण

अगले दिन राज दरबार प्रजा से खचाखच भरा था तथा सभी राज परिवार के सदस्य, गुरुजन, मंत्री, सैनिक वहाँ उपस्थित थे। लव कुश ने श्रीराम के जन्म से लेकर राज्याभिषेक तक की संपूर्ण कथा सुनाई व सभी प्रजावासियों ने बहुत प्रसन्न होकर सुनी भी।

माता सीता के वनवास में जाने के बाद की कथा कोई नहीं जानता था। जब लव कुश ने अयोध्या की प्रजा का माता सीता पर संदेह करना, माता सीता के त्याग व उनके वन में जाने के बाद की कथा सुनाई तो सब अचंभित रह गए थे। श्रीराम राज सिंहासन पर बैठे-बैठे ही भावुक हो उठे थे तथा आश्चर्य से उन्हें देखे जा रहे थे। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि उन दोनों बालकों को माता सीता के वनवास में जाने के बाद का जीवन कैसे पता है।

  • लव कुश का सच बताना

तब लव कुश ने माता सीता की अभी तक की कथा को सुनाकर भरी सभा में स्वयं को श्रीराम का पुत्र (Love Kush Kaun The) बताया। यह सुनकर सभी प्रजाजन में कोलाहल व्याप्त हो गया तथा सभी तरह-तरह की बाते करने लगे। श्रीराम ने प्रजा में कोई भी संदेह ना रहे, इसके लिए माता सीता को स्वयं यह कहने को कहा कि वे दोनों उन्हीं के पुत्र हैं।

श्रीराम का लव कुश को अपनाना

अगले दिन दरबार में लव कुश के साथ उनके गुरु महर्षि वाल्मीकि व माता सीता उपस्थित हुए। महर्षि वाल्मीकि ने बहुत प्रयास किया लेकिन श्रीराम ने माता सीता को ही वचन लेकर यह बोलने को कहा। इसके बाद माता सीता ने सभी प्रजाजन के सामने यह घोषणा की कि यदि लवकुश श्रीराम व माता सीता के ही पुत्र हैं तो यह धरती फट जाए व माता सीता उसमें समा जाए।

यह सुनकर दोनों राजकुमार विलाप करने लगे व माता सीता को उन्हें छोड़कर नहीं जाने को कहा। तब माता सीता ने दोनों बालको को श्रीराम की शरण में जाकर उनकी सेवा करने का आदेश दिया तथा स्वयं धरती में समा गई। माता सीता के धरती में समाने के पश्चात श्रीराम विलाप करने लगे तथा अंत में अपने गुरु के परामर्श पर लव कुश को खुशी-खुशी अपने पुत्र रूप में स्वीकार कर लिया।

लव कुश का राजा बनना

इसके बाद लव कुश अपने पिता के सरंक्षण में ही बड़े हुए तथा उनकी बहुत सेवा की। जब श्रीराम अयोध्या के निकट सरयू नदी में समाधि लेने जाने लगे तब उन्होंने अपना संपूर्ण राज्य लव कुश तथा अपने भाइयों के पुत्रों में बांट दिया। इसमें लव को लवपुरी (वर्तमान लाहौर, पाकिस्तान) तथा कुश को कुशावती (कौशल राज्य) मिला था।

कौशल राज्य में ही अयोध्या नगरी पड़ती थी। चूँकि दोनों भाइयों में कुश बड़े थे, इसलिए नियमानुसार अयोध्या का राज सिंहासन उन्हें मिला था। श्रीराम के जाने के बाद दोनों भाइयों ने अपना-अपना राज्य बहुत ही अच्छे से संभाला था। कुश के बाद उनके पुत्र अतिथि अयोध्या के अगले राजा बने थे।

लव कुश की मृत्यु कैसे हुई?

रामायण भगवान श्रीराम के जीवन पर लिखी गई है। इसके बाद लव कुश का क्या हुआ और उन्होंने किस तरह से शासन व्यवस्था संभाली, इसके बारे में ज्यादा उल्लेख देखने को नहीं मिलता है। ऐसे में दोनों ने अपनी शासन व्यवस्था को अपने पिता के आदर्शों के अनुरूप ही चलाया होगा। चूँकि कुश ही मुख्य राजा थे, ऐसे में उनके नाम का वर्णन ही इतिहास में देखने को मिलता है।

वह इसलिए क्योंकि आगे चलकर कुश की पीढ़ी ने ही अयोध्या का सिंहासन संभाला था। दोनों ने एक समय तक शासन किया होगा और फिर सन्यास आश्रम में चले गए होंगे। उसके पश्चात शांतिपूर्वक दोनों ने ही अपनी देह का त्याग कर दिया होगा। इस तरह से लव कुश की कहानी (Love Kush Ki Kahani) का यहीं अंत हो जाता है।

लव कुश से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: लव कुश के पुत्र का नाम क्या है?

उत्तर: लव कुश में कुश बड़े थे कुश के पुत्र के नाम अतिथि था जो कुश के बाद अयोध्या के अगले राजा बने थे लव के पुत्र का नाम ज्ञात नहीं है

प्रश्न: रामायण में लव कुश की मृत्यु कैसे हुई?

उत्तर: रामायण में लव कुश की मृत्यु के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है ऐसे में उनकी मृत्यु वृद्ध होने पर सामान्य रूप से हो गई होगी

प्रश्न: राम जी के बाद अयोध्या का राजा कौन बना?

उत्तर: राम जी के बाद अयोध्या के राजा उनके पुत्र कुश बने थे श्रीराम के दो पुत्र थे जिनके नाम लव और कुश थे दोनों पुत्रों में कुश बड़े थे जिस कारण उन्हें अयोध्या का अगला राजा नियुक्त किया गया था

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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