शिव चालीसा हिंदी में पढ़ना है? आइए पढ़ें शिव चालीसा इन हिंदी

Shiv Chalisa In Hindi

आज हम आपको संपूर्ण शिव चालीसा इन हिंदी (Shiv Chalisa In Hindi) में देने जा रहे हैं। बहुत भक्तों ने हमसे कहाँ कि उन्हें शिव चालीसा हिंदी में पढ़ना है। ऐसे में हम उनकी इच्छा को देखते हुए संपूर्ण शिव चालीसा का हिंदी में अनुवाद देने जा रहे हैं। यहाँ आपको शिव चालीसा की हरेक चौपाई की हरेक पंक्ति का अलग से अनुवाद पढ़ने को मिलेगा

इतना ही नहीं, आज के इस लेख के माध्यम से हम आपको शिव चालीसा का महत्व और उसे पढ़ने से मिलने वाले लाभ भी बताएँगे। इससे आप शिव चालीसा के भावार्थ (Shiv Chalisa In Hindi Lyrics) को अच्छे से समझ पाएँगे। तो आइए सबसे पहले पढ़ते हैं शिव चालीसा हिंदी में।

Shiv Chalisa In Hindi | शिव चालीसा इन हिंदी

॥ दोहा ॥

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

भगवान गणेश की जय हो। आप पहाड़ों के अधिपति हो, मंगल करने वाले हो, सभी के मूल हो, सभी के प्राणदाता हो। मैं अयोध्यादास आपसे अभय होने का वरदान मांगता हूँ।

॥ चौपाई ॥

जय गिरजापति दीन दयाला, सदा करत सन्तन प्रतिपाला।

आप पर्वतों के स्वामी हो, आप सबसे दयालु हो, आपको जय हो, आप सदैव साधु-संतों की रक्षा करते हो।

भाल चन्द्रमा सोहत नीके, कानन कुण्डल नागफनी के।

आपके पास त्रिशूल है और मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित है, आपने कानो में नागफनी के कुण्डल पहन रखे हैं।

अंग गौर शिर गंग बहाये, मुण्डमाल तन क्षार लगाए।

आपका वर्ण श्वेत है, आपकी जटाओं से माँ गंगा का प्रवाह होता है, आपने गले में राक्षसों के कटे हुए सिर की माला पहन रखी है और शरीर पर चिताओं की भस्म लगाई हुई है।

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे, छवि को देख नाग मन मोहे।

आपने वस्त्रों के रूप में बाघ की खाल को लपेटा हुआ है, आपके रूप को देखकर नागों का मन भी मोहित हो जाता है।

मैना मातु कि हवे दुलारी, बाम अंग सोहत छवि न्यारी।

आपकी अर्धांगिनी माता पार्वती आपके बाएं ओर विराजमान हैं, उनकी छवि भी सबसे अलग व मन को सुख देने वाली है।

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी, करत सदा शत्रुन क्षयकारी।

आपके रूप में आपका शस्त्र त्रिशूल भी शोभा देता है क्योंकि उससे सदैव शत्रुओं का नाश होता है।

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे, सागर मध्य कमल हैं जैसे।

आपके पास में आपकी सवारी नंदी व पुत्र गणेश इस तरह दिखाई पड़ते हैं जैसे कि समुंद्र के मध्य में कमल खिला हो।

कार्तिक श्याम और गणराऊ, या छवि को कहि जात न काऊ।

आपका पुत्र कार्तिक और उनके गण आपके पास इस तरह सुशोभित हैं जिनके रूप को वर्णित नही किया जा सकता है।

देवन जबहीं जाय पुकारा, तबहीं दुःख प्रभु आप निवारा।

जब कभी भी देवताओं ने संकट के समय में आपसे सहायता मांगी है, आपने सदैव उनके संकटों का निवारण किया है।

किया उपद्रव तारक भारी, देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी।

जब तारक जैसे राक्षस ने देवताओं पर अत्यधिक अत्याचार किये तब सभी ने मिलकर आपसे ही सहायता की अपेक्षा की।

तुरत षडानन आप पठायउ, लव निमेष महँ मारि गिरायउ।

देवताओं की विनती पर आपने तुरंत अपने बड़े पुत्र कार्तिक को वहां भेजा और उन्होंने बिना देरी किये उस राक्षस का वध कर दिया।

आप जलंधर असुर संहारा, सुयश तुम्हार विदित संसारा।

प्रभु आप ही ने जलंधर नाम के राक्षस को मारा जिस कारण आपका यश संपूर्ण विश्व में व्याप्त हुआ।

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई, सबहिं कृपा कर लीन बचाई।

त्रिपुरासुर नामक राक्षस से भी आप ही ने युद्ध कर उसे पराजित किया और सभी देवताओं के मान की रक्षा की।

किया तपहिं भागीरथ भारी, पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी।

भागीरथ ने कठोर तपस्या कर माँ गंगा को पृथ्वी पर आने के लिए विवश किया लेकिन माँ गंगा के प्रवाह को अपनी जटाओं में समाहित कर आपने ही भागीरथ की तपस्या को पूर्ण रूप दिया।

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं, सेवक स्तुति करत सदाहीं।

आपके समान दानदाता इस विश्व में कोई नही है, भक्तगण सदैव आपकी स्तुति करते हैं।

वेद नाम महिमा तव गाई, अकथ अनादि भेद नहिं पाई।

समस्त वेद भी आपकी महिमा का वर्णन करते हैं लेकिन आप अनंत हैं, इसलिए आपका भेद कोई भी नही जान पाया है।

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला, जरे सुरासुर भये विहाला।

जब देवता व असुर समुंद्र मंथन कर रहे थे तब उसमे से असीमित मात्रा में विष निकला था जिसके तेज से सभी जलने लगे थे।

कीन्हीं दया तहं करी सहाई, नीलकण्ठ तब नाम कहाई।

तब आपने उन पर दया कर उस विष को ग्रहण किया था और उसी समय से आपका एक नाम नीलकंठ पड़ गया था।

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा, जीत के लंक विभीषण दीन्हा।

लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व श्रीराम ने रामेश्वरम में आपकी ही पूजा की थी और उसके बाद उन्होंने लंका पर विजय प्राप्त कर विभीषण को वहां का राजा घोषित किया था।

सहस कमल में हो रहे धारी, कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।

जब श्रीराम आपकी पूजा कर रहे थे और आपको कमल के पुष्प अर्पित कर रहे थे तब आपने उनकी परीक्षा लेनी चाही।

एक कमल प्रभु राखेउ जोई, कमल नयन पूजन चहं सोई।

आपने उन कमल पुष्पों में से एक कमल पुष्प छुपा दिया, तब श्रीराम ने अपने नेत्र कमल से आपकी पूजा की।

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर, भए प्रसन्न दिए इच्छित वर।

स्वयं में श्रीराम की दृढ़ भक्ति को देखकर आप अत्यधिक प्रसन्न हुए और आपने उन्हें मनचाहा वर दिया।

जय जय जय अनन्त अविनाशी, करत कृपा सब के घटवासी।

हे महादेव! आपकी जय हो, जय हो, जय हो, आपका कोई आदि-अंत नही है, आपका विनाश नही किया जा सकता है, आप सभी के ऊपर अपनी कृपा दृष्टि रखते हो।

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै, भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै।

बुरे विचार सदैव मेरे मन को कष्ट पहुंचाते हैं और इसी भ्रम में रहकर मेरे मन को शांति नही मिल पाती है।

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो, येहि अवसर मोहि आन उबारो।

इस दुःख की स्थिति में मैं आपका ही नाम पुकारता हूँ, आप ही मेरी रक्षा करो और मेरे मन को शांत करो।

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो, संकट से मोहि आन उबारो।

आप अपने त्रिशूल से मेरे शत्रुओं का नाश कर दो और मेरे संकटों को दूर कर मेरे सम्मान की रक्षा करो।

मात-पिता भ्राता सब होई, संकट में पूछत नहिं कोई।

माता, पिता, भाई इत्यादि सभी सुख के ही बंधु हैं लेकिन संकट में हमे कोई नही पूछता।

स्वामी एक है आस तुम्हारी, आय हरहु मम संकट भारी।

इसलिए हे महादेव! मुझे केवल आप ही से आशा है कि आप आकर मेरे संकटों का निवारण करेंगे।

धन निर्धन को देत सदाहीं, जो कोई जांचे सो फल पाहीं।

आप सदैव निर्धन व्यक्तियों को धन देकर उनके मान-सम्मान की रक्षा करते हैं, आपसे जिस कामना की आशा की जाती है, आप उसे पूर्ण करते हैं।

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी, क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।

आपकी पूजा किस प्रकार की जाए, इसके बारे में हमे कम ज्ञान है, इसलिए यदि हमसे किसी प्रकार की कोई भूल भी हो जाये तो कृपया करके हमारी भूल को क्षमा कर दें।

शंकर हो संकट के नाशन, मंगल कारण विघ्न विनाशन।

हे भगवान शंकर, आप ही सभी संकटों का नाश करते हो, आप ही सभी का मंगल करते हो, आप ही विघ्नों का नाश करने की क्षमता रखते हो।

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं, नारद शारद शीश नवावैं।

सभी ऋषि-मुनि आपका ही ध्यान करते हैं और नारद व माँ सरस्वती आपके सामने अपना शीश झुकाते हैं।

नमो नमो जय नमः शिवाय, सुर ब्रह्मादिक पार न पाय।

हे भगवान शिव, आपको सदैव हमारा नमन, आपको सभी देवता और भगवान ब्रह्मा भी पार नही पा सकते हैं।

जो यह पाठ करे मन लाई, ता पर होत हैं शम्भु सहाई।

जो भी भक्तगण सच्चे मन से इस शिव चालीसा का पाठ कर लेता है उस पर भगवान शिव की कृपा होती है।

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी, पाठ करे सो पावन हारी।

जो भी भक्तगण शिव जी की चालीसा का पाठ करता है वह सभी प्रकार के ऋणों से मुक्त हो जाता है और उसे शुभ फल की प्राप्ति होती है।

पुत्रहीन इच्छा कर जोई, निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।

यदि किसी मनुष्य को संतान प्राप्ति नही हो रही है तो वह आपकी कृपा से इस दुःख से भी पार पा लेता है।

पंडित त्रयोदशी को लावे, ध्यान पूर्वक होम करावे।

हर माह की त्रयोदशी के दिन अपने घर में पंडित को बुलाकर भगवान शिव जी की चालीसा का पाठ करवाना चाहिए।

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा, ताके तन नहीं रहै कलेशा।

जो भी भक्तगण त्रयोदशी के दिन आपके नाम का व्रत करता है, उसका तन निरोगी रहता है।

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे, शंकर सम्मुख पाठ सुनावे।

भगवान शिव को धूप, दीप व नैवेद्य चढ़ाना चाहिए और उनके समीप बैठकर शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए।

जन्म जन्म के पाप नसावे, अन्त धाम शिवपुर में पावे।

उस व्यक्ति के जन्म-जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे शिव जी के धाम में शरण मिलती है।

कहै अयोध्यादास आस तुम्हारी, जानि सकल दुःख हरहु हमारी।

अयोध्यादास आपके सामने यह विनती करता है कि आप मेरे सभी दुखों का निवारण कर दें।

॥ दोहा ॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

प्रातःकाल भगवान शिवजी की चालीसा का पाठ करना चाहिए। साथ ही भगवान शिव से अपनी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने की याचना करनी चाहिए।

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

माघ मास की छठी तिथि को हेमंत ऋतु में संवत चौसठ में यह शिव चालीसा का लेखन कार्य पूर्ण हुआ।

आशा है कि अब आपकी शिव चालीसा हिंदी में पढ़ना है, वाली इच्छा पूरी हो गई होगी। हालाँकि अब हम शिव चालीसा के भावार्थ (Shiv Chalisa In Hindi Lyrics) को समझने के लिए उसका महत्व और लाभ भी पढ़ लेते हैं।

शिव चालीसा का महत्व

भगवान शिव तो भोलेनाथ है। भगवान शिव तो सभी के माने जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि यदि हम किसी भगवान को जल्द से जल्द प्रसन्न करना चाहते हैं तो वे भगवान शिव ही है। साथ ही भगवान शिव द्वारा भक्तों की हरेक इच्छा को पूरा किया जाता है। ऐसे में यदि हम भगवान शिव चालीसा करते हैं तो वे बहुत प्रसन्न होते हैं।

शिव चालीसा के माध्यम से हम भगवान शिव की आराधना भी कर लेते हैं और उन्हें खुश भी कर देते हैं। इतना ही नहीं, शिव जी की चालीसा के माध्यम से हम भगवान शिव के निराकार और निर्गुण रूप को समझ पाते हैं। भगवान शिव की महिमा का वर्णन करने के कारण ही शिव चालीसा का महत्व बढ़ जाता है।

शिव चालीसा पढ़ने के लाभ

यदि आप प्रतिदिन या मुख्यतया सोमवार के दिन शिव चालीसा का पाठ करते हैं तो इससे आपको कई तरह के लाभ देखने को मिलते हैं। भगवान शिव की कृपा से आपका वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है और अपने जीवनसाथी के साथ संबंध मधुर होता है। यदि आप विवाह के लिए उचित जीवनसाथी खोज रहे हैं तो वह भी मिल जाता है।

शिव की चालीसा के पाठ से भक्तों को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। शिव जी की कृपा से आपको मनचाही संतान की प्राप्ति होती है। यदि किसी रोग या संकट से ग्रस्त है तो वह भी दूर होता है। कुल मिलाकर शिव चालीसा का सच्चे मन के साथ पाठ किया जाता है तो उस व्यक्ति का जीवन सरल बनता है। यहीं शिव चालीसा पढ़ने के लाभ होते हैं।

निष्कर्ष

आज के इस लेख के माध्यम से आपने शिव चालीसा इन हिंदी (Shiv Chalisa In Hindi) अर्थ सहित पढ़ ली है। साथ ही आपने शिव चालीसा पढ़ने का लाभ और महत्व भी जान लिया है। आशा है कि आपको हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी पसंद आई होगी। आप अपनी प्रतिक्रिया नीचे कमेंट कर दे सकते हैं।

शिव चालीसा हिंदी से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न: शिव चालीसा क्यों पढ़ा जाता है?

उत्तर: शिव चालीसा के माध्यम से हम भगवान शिव के गुणों, शक्तियों और महत्व को समझ पाते हैं इसी के साथ ही उनकी आराधना भी हो जाती है इस कारण शिव चालीसा को पढ़ा जाता है

प्रश्न: क्या हम रोज शिव चालीसा पढ़ सकते हैं?

उत्तर: जी हां, आप रोजाना शिव चालीसा का पाठ कर सकते हैं प्रतिदिन शिव चालीसा पढ़ने से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं और आप पर अपनी कृपा बरसाते हैं

प्रश्न: शिव चालीसा में क्या लिखा है?

उत्तर: शिव चालीसा में भागन शिव के द्वारा किए गए कर्म, उनकी शक्तियां व गुणों का वर्णन किया गया है इसी के साथ ही शिव भक्ति करने से हमें क्या कुछ लाभ मिलते हैं, उसके बारे में बताया गया है

प्रश्न: क्या बिना स्नान के शिव चालीसा पढ़ सकते हैं?

उत्तर: आपको बिना स्नान किए शिव चालीसा तो क्या बल्कि किसी भी अन्य देवी-देवता की चालीसा या आरती का पाठ नहीं करना चाहिए चालीसा का पाठ हमेशा शुद्ध शरीर व निर्मल मन के साथ किया जाता है

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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