क्या आपने कभी सोचा है कि हर वर्ष 13 जनवरी के दिन लोहड़ी क्यों मनाई जाती है (Lohri Kyu Manai Jati Hai)? पंजाब सहित इसके समवर्ती राज्यों में लोहड़ी पर्व की अलग ही धूम देखने को मिलती है।इस दिन सभी मोहल्ले वाले एक जगह एकत्रित होकर लोहड़ी को मनाते हैं। जनवरी के महीने में पूरे उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ती है।
इस दौरान सभी मोहल्लेवाले लकड़ियाँ जलाते हैं और उसके चारों ओर घेरा बनाकर बैठ जाते हैं। सबसे पहले इस पवित्र अग्नि की पूजा की जाती है और उसमें गुड़, तिल इत्यादि को अर्पित किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में यह त्यौहार संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध हो चुका है। कई जगहों पर इसके लिए मुख्य आयोजन किये जाते हैं लेकिन क्या आप लोहड़ी माता की कथा (Lohri Story In Hindi) के बारे में जानते हैं!!
दरअसल इसके पीछे एक नही बल्कि तीन-तीन कहानियां जुड़ी हुई हैं जिस कारण इस पर्व का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। ऐसे में आज के इस लेख में आपको तीनों तरह की लोहड़ी की कथा पढ़ने को मिलेगी।
Lohri Kyu Manai Jati Hai | लोहड़ी क्यों मनाई जाती है?
अधिकतर लोग लोहड़ी को सिख धर्म का त्यौहार मानते हैं जबकि यह अर्ध सत्य है। दरअसल इसका संबंध सिख धर्म के साथ-साथ हिन्दू धर्म से भी है। पहले तो इस दिन का संबंध हिन्दू धर्म से ही था लेकिन बाद में यह दिन सिखों के लिए भी महत्वपूर्ण बन गया। इसका कारण गुलामी के समय में पंजाब का एक नवयुवक दुल्ला भट्टी था।
वहीं यदि हम हिन्दू धर्म की बात करें तो उसमें तो आपको लोहड़ी माता की कहानी (Lohri History In Hindi) पढ़नी होगी। दरअसल लोहड़ी माता का संबंध भगवान शिव की प्रथम पत्नी माता सती से है। आइये एक-एक करके तीनों कथाओं के बारे में जान लेते हैं।
Lohri Story In Hindi | शिव-सती से जुड़ी लोहड़ी माता की कथा
माता सती भगवान शिव की प्रथम पत्नी थी। माता पार्वती भी इन्ही का पुनर्जन्म थी। एक बार माता सती के पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था किंतु वे भगवान शिव से नाराज थे। इसी कारण उन्होंने उस यज्ञ में भगवान शिव को नही बुलाया था। माता सती ने इसे अपने पति का अपमान समझा व उन्होंने उस यज्ञ में स्वयं की आहुति दे दी।
जब भगवान शिव को यह पता चला तो वे अत्यधिक क्रोधित हो गए थे और उन्होंने राजा दक्ष का वध कर दिया था। इसके बाद भी उनका क्रोध शांत नही हुआ तो वे माता सती के जले शरीर को लेकर चारों दिशाओं में बेहताशा दौड़ने लगे थे। किसी तरह भगवान विष्णु और सभी देवताओं के द्वारा उन्हें शांत किया गया था। उसके बाद भगवान शिव ने सब मोह-माया को त्याग दिया था और चीर साधना में चले गये थे।
इसलिए माता सती के द्वारा स्वयं को अग्नि में आहुति देने की याद में लोग लोहड़ी का पर्व हर वर्ष मनाते हैं। हजारों वर्षों के पश्चात इन्हीं माता सती का जन्म पर्वत पुत्री माता पार्वती के रूप में हुआ था जिनसे भगवान शिव ने पुनः विवाह किया था।
Lohri History In Hindi | श्रीकृष्ण-लोहिता से जुड़ी लोहड़ी माता की कहानी
भगवान श्रीकृष्ण ने वासुदेव व माता देवकी की आठवीं संतान के रूप में जन्म लिया था जो कि भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे। उनका जन्म दुष्ट कंस का वध करने के लिए हुआ था। वासुदेव ने श्रीकृष्ण के जन्म के पश्चात यमुना नदी को पार करके उन्हें नंदबाबा और माता यशोदा के घर छोड़ दिया था।
जब कंस को इस बारे में पता चला तो उसने कई राक्षसों को श्रीकृष्ण का वध करने नंदगाँव भेजा था। कंस के भेजे गए हर राक्षस का वध छोटे से श्रीकृष्ण रहस्यमय तरीके से कर दिया करते थे। एक दिन कंस ने मकर संक्रांति वाले दिन लोहिता नामक एक राक्षसी को श्रीकृष्ण का वध करने भेजा था।
उस समय भगवान श्रीकृष्ण बहुत छोटे थे जिनका पालन-पोषण नंदबाबा व माता यशोदा कर रहे थे। लोहिता राक्षसी ने नंदबाबा के गाँव पहुँचने के बाद वहां बहुत आंतक मचाया और बच्चों को मार कर खाने लगी। तब भगवान श्रीकृष्ण उस राक्षसी के साथ खेलने लगे और उसे खेल-खेल में ही मार डाला। लोहिता के आंतक से मुक्त होने के पश्चात गांववालों ने खुशी से आपस में मिठाइयाँ बांटी। इस कारण भी लोहड़ी का पर्व मनाने की प्रथा शुरू हुई।
दुल्ला भट्टी से जुड़ी लोहड़ी की कथा
यह कहानी क्रूर मुगल आक्रांता अकबर के समय से जुड़ी हुई है। अपने भारत देश के कई जनपद 12वीं शताब्दी के बाद से ही अफगान व फिर मुगल शासकों के हाथों में चले गये थे। उसके बाद से ही लगातार हिंदू व हिंदू धर्म की अन्य शाखाओं बौद्ध, जैन व सिखों पर अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गए थे जिसमे मुख्यतया महिलाओं का शोषण होता था।
अकबर के शासनकाल में मुगल आक्रांता पंजाब से बड़े पैमाने पर हिंदू व सिख लड़कियों को अरब देशों में बेच दिया करते थे जहाँ उनसे गुलामों के जैसे बर्ताव किया जाता था। उस समय पंजाब में दुल्ला भट्टी नाम का एक डाकू प्रसिद्ध था। वह डाकू होने के साथ-साथ ही मुगलों के अत्याचार के विरुद्ध लड़ता था व उनसे महिलाओं के मान-सम्मान की रक्षा करता था।
उसने मुगलों के चंगुल से बहुत सारी लड़कियों को बिकने से बचाया व उनकी शादियाँ भी करवाई। एक बार सुंदर व मुंदर नाम की दो लड़कियों को उनके चाचा ने मुगलों को बेच दिया था लेकिन जब दुल्ला भट्टी को इसके बारे में पता चला तो उसने ना केवल उन दोनों लड़कियों को उनके चंगुल से मुक्त करवाया बल्कि उनकी शादियाँ भी करवाई।
उसके बाद से दुल्ला भट्टी पंजाब के लोगों में प्रसिद्ध होने लगा और वहां का एक तरह से नायक बन गया। उसका नाम आज भी लोहड़ी के गीतों में लिया जाता है। तभी से दुल्ला भट्टी की याद में भी लोहड़ी का पर्व मनाने की प्रथा शुरू हुई।
निष्कर्ष
तो यह थी लोहड़ी पर्व से जुड़ी 3 मुख्य कहानियां। इस तरह से आपने लोहड़ी क्यों मनाई जाती है (Lohri Kyu Manai Jati Hai), इसके बारे में जान लिया है। वैसे कहानियां चाहे जो भी हो, त्यौहार हमेशा से ही लोगों को प्रतिदिन के दैनिक कार्यक्रमों के अलावा कुछ नया करने की प्रेरणा देते हैं व जीवन की बोरियत में एक नया उल्लास भर देते हैं। इसलिये हमेशा हर त्यौहार का उसकी संस्कृति के अनुसार पूरा आनंद उठाएं।
लोहड़ी मनाने से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: लोहड़ी के पीछे की कहानी क्या है?
उत्तर: लोहड़ी के पीछे एक नहीं बल्कि तीन-तीन कहानियां हैं। यह कहानियां माता सती, भगवान श्रीकृष्ण व दुल्ला भट्टी से जुड़ी हुई हैं जिसके बारे में हमने इस लेख में बताया है।
प्रश्न: लोहड़ी बनाने का क्या कारण है?
उत्तर: लोहड़ी बनाने का कारण धार्मिक भी है तो वहीं यह किसानों से भी जुड़ा हुआ है। इसके पीछे मुख्य तौर पर तीन कथाएं जुड़ी हुई हैं जो इस लेख में पढ़ने को मिलेगी।
प्रश्न: लोहड़ी के पीछे क्या कारण है?
उत्तर: लोहड़ी के पीछे कई तरह के कारण हैं जिनका संबंध भगवान शिव-माता सती, श्रीकृष्ण व दुल्ला भट्टी से है।
प्रश्न: लोहड़ी की उत्पत्ति कहां से हुई?
उत्तर: लोहड़ी की मुख्य तौर पर उत्पत्ति दुल्ला भट्टी के कारण हुई। दुल्ला भट्टी ने अंग्रेजों व मुगलों के समय में देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी थी।
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