आर्य समाज स्वामी दयानंद सरस्वती जी के द्वारा बनाया गया था। आर्य समाज का प्रमुख उद्देश्य हिंदू धर्म में फैली विभिन्न प्रकार की भ्रांतियां व कुरीतियां समाप्त कर लोगों को वेदों के सही ज्ञान के बारे में बताना था। स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने उस समय “वेदों की ओर लौटो” का नारा दिया था।
अब लोगों के मन में आर्य समाज को लेकर कई तरह के प्रश्न होते हैं जैसे कि आर्य समाज की स्थापना कब हुई (Arya Samaj Ki Sthapna Kab Hui) या फिर आर्य समाज के 10 नियम (Arya Samaj Ke 10 Niyam) क्या हैं, इत्यादि। ऐसे में आज हम आपके समक्ष आर्य समाज का इतिहास, कार्य, सिद्धांत, नियम इत्यादि सभी की जानकारी रखने जा रहे हैं।
आर्य समाज
आर्य समाज हिंदू धर्म के लोगों की ही एक संस्था या समाज है जहां दयानंद सरस्वती के विचारों से प्रभावित व उन्हें मानने वाले लोग जुड़ते हैं। इन्हें हम दयानंद सरस्वती के अनुयायी कह सकते हैं। हालांकि यह हिंदू धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों के भी हो सकते हैं।
देश के विभिन्न भागों में आर्य समाज की संस्थाएं हैं जिन्हें आर्य समाज का मंदिर भी कहा जा सकता है। यहाँ आर्य समाज के लोग कई तरह की गतिविधियां करते हैं जैसे कि विचारों का आदान-प्रदान, सामाजिक सुधार के कार्य, शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि से संबंधित चीजें। उदाहरण के तौर पर आर्य समाज की संस्थाओं में लोगों को कुश्ती के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए अखाड़े भी होते हैं।
जिस प्रकार अन्य संस्थाएं होती हैं जैसे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद, पतंजलि योगपीठ, आर्ट ऑफ लिविंग इत्यादि, ठीक उसी प्रकार आर्य समाज भी एक संस्था है जिसका कार्य स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों को आगे बढ़ाना, हिंदू धर्म का प्रचार-प्रसार व लोगों को वेदों की ओर आकर्षित करना होता है। आइए आर्य समाज के बारे में अन्य जानकारी एकत्रित कर लेते हैं।
आर्य समाज की स्थापना किसने की?
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी थे। उनका जन्म 12 फरवरी 1824 ईस्वी के मूल नक्षत्र में गुजरात के टंकारा में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम करशनजी लालजी तिवारी व यशोदाबाई था। स्वामी जी के बचपन का नाम मूलशंकर था।
शुरुआत में तो वे वर्षों वर्ष तक यूं ही भटकते रहे। फिर उनकी भेंट अपने गुरु विरजानंद जी महाराज से हुई। उन्होंने ही स्वामी जी का मार्गदर्शन किया। इसके बाद उन्होंने वेदों का अध्ययन किया। इतना ही नहीं, उन्होंने हिंदू धर्म के सभी धर्म ग्रंथों सहित, अन्य धर्मों के ग्रंथ भी पढ़ डाले। इसके बाद ही उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की जो हिंदू धर्म का ही एक अंग है। इसमें वेदों को ही सर्वोच्च स्थान दिया गया है।
आर्य समाज की स्थापना कब हुई?
अब हम जानते हैं कि आखिरकार Arya Samaj Ki Sthapna Kab Hui थी? आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती जी के द्वारा सन 10 अप्रैल 1875 को मुंबई शहर में की गई थी। आइए आर्य समाज का इतिहास जानते हैं ताकि आपको इसकी स्थापना के बारे में सही से पता चल सके।
- स्वामी दयानंद सरस्वती ने छोटी आयु से ही अपना घर छोड़ दिया था तथा सत्य व ज्ञान के प्रकाश में भारत भ्रमण पर निकल पड़े थे। इस दौरान उन्होंने हिंदू धर्म के सभी ग्रंथ व साहित्य पढ़ डाले थे तथा अन्य धर्मों की धार्मिक पुस्तकों का भी अध्ययन कर लिया था।
- भारत भ्रमण करते हुए वे कई महान संतों, ऋषि-मुनियों व लोगों से भी मिले। अंत में उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि सभी धर्मों में हिंदू धर्म श्रेष्ठ है।
- उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू धर्म में भी केवल वेद श्रेष्ठ हैं तथा अन्य सभी धार्मिक कथाएं व ईश्वरीय अवतार मिथ्या है।
- इसके अलावा वे सामाजिक सुधारों में भी सक्रिय थे जैसे कि महिलाओं को शिक्षा, शूद्रों को समान अधिकार, सती प्रथा व बाल विवाह का विरोध, विधवा विवाह का समर्थन इत्यादि। अपने इन्हीं सब विचारों को वे लोगों के सामने रखने लगे और लोगों को प्रभावित करने लगे।
- एक दिन अपने अनुयायियों के द्वारा उन्हें मुंबई बुलाया गया जहां उन्होंने अपने विचार रखे। उनके विचारों से प्रभावित होकर लोगों ने एक नया समाज बनाने को कहा ताकि हिंदुओं के इस्लाम व ईसाई धर्म में हो रहे धर्मांतरण को रोका जा सके। इस प्रकार आर्य समाज की पहली नींव पड़ी।
- उसके कुछ समय के बाद दयानंद सरस्वती गुजरात के राजकोट पहुंचे। वहां भी कुछ लोगों ने उनके समाज से जुड़ने की इच्छा जताई। तब उस समाज का नाम बदल कर आर्य समाज रख दिया गया।
- फिर स्वामी जी के राजकोट से जाने के बाद यह समाज राजनीति में प्रवेश कर गया। इसके बाद स्वामी जी फिर से मुंबई पहुंचे और आर्य समाज के लिए सदस्यता अभियान शुरू किया।
शुरूआती तौर पर 100 सदस्यों ने आर्य समाज की सदस्यता ली जिसमें स्वामी जी भी एक थे। इसी तरह 10 अप्रैल 1875 को आर्य समाज की स्थापना हुई।
आर्य समाज और हिन्दू
चूंकि स्वामी दयानंद सरस्वती ब्राह्मण परिवार से थे लेकिन हिंदू धर्म की कई चीजों को उन्होंने सिरे से नकार दिया था। उदाहरण के तौर पर उन्होंने हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा का विरोध किया व ईश्वर के अवतारों को मानने से मना कर दिया।
एक ओर दयानंद सरस्वती जी ने सभी धर्मों में हिंदू धर्म व वेदों को सर्वोच्च माना व हिंदू धर्म की जीवन पद्धति को सबसे उत्तम बताया। दूसरी ओर, उन्होंने ईश्वर के अवतारों श्रीराम, श्रीकृष्ण इत्यादि को ईश्वर मानने से मना कर दिया और उन्हें इतिहास के केवल महापुरुष बताया।
कहने का तात्पर्य यह हुआ कि उन्होंने हिंदू धर्म में केवल वेदों को ही मान्यता दी तथा अन्य कर्मकांडों, रीति-रिवाज, ईश्वरीय अवतार इत्यादि सभी को अन्धविश्वास बताया। उनके अनुसार हिंदू धर्म का मूल व सार केवल वेद हैं तथा मनुष्य को केवल वेदों के अनुसार ही चलना चाहिए।
आर्य समाज का आदर्श वाक्य
आर्य समाज का आदर्श वाक्य कृण्वन्तो विश्वमार्यम् है जिसका अर्थ है विश्व को आर्य बनाते चलो। स्वामी जी केवल भारत वर्ष में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व को वेदों की महत्ता समझाकर उन्हें हिंदू धर्म का ज्ञान करवाना चाहते थे।
आर्य समाज के ग्रंथ
आर्य समाज (Arya Samaj In Hindi) अपना धार्मिक ग्रंथ वेदों को मानता है तथा उसी का पालन करने को कहता है। हालांकि स्वामी दयानंद सरस्वती के द्वारा ही लिखी गई एक प्रसिद्ध पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश को आर्य समाज का मूल ग्रंथ माना जाता है। सत्यार्थ प्रकाश में स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने विचारों को संगृहीत किया है।
सत्यार्थ प्रकाश में कुल 14 अध्याय हैं। इसमें स्वामी जी ने जीवन जीने की पद्धति, संस्कारों, कर्तव्यों, अन्य धर्मों पर अपने विचार इत्यादि को विस्तृत रूप से लिखा है। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक में यह बताया गया है कि आर्य समाज के लोगों को क्या करना चाहिए।
आर्य समाज के कार्य
स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज की स्थापना कई कारणों से की जिन्हें हम आर्य समाज के सिद्धांत भी कह सकते हैं। एक तरह से आर्य समाज की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य हिंदू धर्म को वैदिक नीति के अनुसार चलाना था जिसका पालन प्राचीन समय में हुआ करता था। आइए उसके बारे में जानते हैं:
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गुरुकुलों की स्थापना
स्वामी दयानंद सरस्वती के समय भारत की भूमि पर अंग्रेजों का शासन था। उस समय भारत में हिंदू धर्म की प्राचीन शिक्षा पद्धति की जड़ें कमजोर पड़ रही थी। अब बच्चे गुरुकुलों की बजाए पश्चिमी सभ्यता वाले स्कूलों में जाते थे व उनका इतिहास पढ़ते थे। इसके विरुद्ध स्वामी जी ने फिर से कई जगहों पर गुरुकुलों की स्थापना की तथा बच्चों को वेद, भारतीय इतिहास व परंपरा का ज्ञान देना शुरू किया।
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हिंदू धर्म की कुप्रथाओं के विरुद्ध
स्वामी जी को समाज सुधारक भी कहा जाता है। अपने समय में उन्होंने समाज में व्याप्त कई बुराइयों व कुरीतियों के विरुद्ध प्रखर आवाज उठाई थी। उस समय उन्होंने सती प्रथा, बाल विवाह, जन्म आधारित जाति व्यवस्था, पर्दा प्रथा इत्यादि का विरोध किया था। साथ ही उन्होंने शूद्रों का उद्धार, महिलाओं की शिक्षा, विधवा विवाह जैसे कई समाज सुधार के कार्य किए। आर्य समाज के द्वारा उन्होंने इन आंदोलनों को आगे बढ़ाया।
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हिंदू धर्म का सही ज्ञान
उनका मुख्य उद्देश्य हिंदुओं को वेदों का सही ज्ञान उपलब्ध करवाना था। चूंकि वेद इत्यादि धार्मिक पुस्तकें संस्कृत भाषा में थी जो आम जन को सहज रूप में समझ नहीं आती थी। इसलिए उन्होंने संपूर्ण वेदों का अध्ययन कर उसे हिंदी भाषा में लिखा। इस तरह स्वामी जी ने सभी वेदों को अपने साहित्य के रूप में आमजन तक पहुँचाने का कार्य किया।
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हिंदुओं का धर्मांतरण रोकना
भारत देश पिछली कई सदियों से विदेशी आक्रांताओं के अधीन था। पहले हमारे देश पर अफगान शासकों, फिर मुगल शासकों व स्वामी जी के समय अंग्रेज सरकार का शासन था। सभी ने हिंदुओं को डरा धमकाकर या लालच देकर अपने-अपने धर्म में परिवर्तन करवाया था। ईसाईयों के द्वारा हिंदुओं को चालाकी से ईसाई धर्म का बनाया जा रहा था। साथ ही हिंदू धर्म में शूद्रों का शोषण भी इसका मूल कारण था।
इसलिए हिंदुओं के अंधाधुंध हो रहे धर्मांतरण व पतन को रोकने के लिए स्वामी जी ने आर्य समाज की स्थापना की ताकि उसके द्वारा वे हिंदुओं को सही ज्ञान दें व उन्हें बाकी धर्मों में जाने से रोक सकें।
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घर वापसी/ शुद्धिकरण
इसके साथ ही जो लोग हिंदू धर्म से इस्लाम या ईसाई धर्म अपना चुके थे, उनका शुद्धिकरण करके फिर से हिंदू धर्म में वापसी के लिए भी आर्य समाज (Arya Samaj In Hindi) ने अभियान छेड़ा। यह कार्यक्रम आज भी आर्य समाज करता है जिसमें दूसरे धर्म में गए हिंदुओं की फिर से घर वापसी करवाई जाती है।
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शाकाहार अपनाना
स्वामी जी जीव हत्या के विरोधी थे व प्रकृति, जीव-जंतुओं इत्यादि की सुरक्षा करना अपना कर्तव्य समझते थे। गाय माता उनके लिए बहुत पूजनीय जीव थी। गौ हत्या रोकने के लिए उन्होंने गोकरुणानिधि नाम से एक पुस्तक भी लिखी थी जिसमें उन्होंने गौ हत्या को पाप बताया था।
आर्य समाज में शाकाहार अपनाने की प्रेरणा दी जाती थी जो बाद में इसके विभाजन का एक कारण भी बना। शुरुआत में इसका मुख्य गढ़ पंजाब राज्य था जहाँ स्वामी जी की मृत्यु के बाद लोगों ने मांस ना खाने का विरोध किया।
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हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाना
स्वामी जी भारत की हर स्थानीय भाषा का समर्थन करते थे किंतु वे भारत की राष्ट्र भाषा हिंदी को बनते देखना चाहते थे। हालांकि उनकी मातृभाषा गुजराती थी किंतु वे चाहते थे कि विभिन्न राज्यों के लोग आपसी संवाद में अंग्रेजी की बजाए अपने देश की हिंदी भाषा का प्रयोग करें।
इन सबके अलावा भी आर्य समाज की स्थापना के कई कारण थे जिस कारण स्वामी जी ने इसकी नींव रखी। इसका मुख्य उद्देश्य विश्वभर में वेदों का ज्ञान फैलाना व अन्य धर्मों के बारे में अपना मत प्रकट करना था।
Arya Samaj Ke 10 Niyam | आर्य समाज के 10 नियम
स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज के लिए 10 नियम बनाए जिन्हें मानना हर आर्य समाजी के लिए अनिवार्य था। इन्हें हम आर्य समाज के नियम या अधर भी कह सकते हैं। आइए उनके बारे में जान लेते हैं।
- हमें जो भी ज्ञान मिला है, जो भी इसके कारण हैं, जहाँ से भी सब ज्ञान अस्तित्व में आता है, वह सब ईश्वर की देन है।
- इस ब्रह्मांड में केवल ईश्वर ही सबसे शक्तिशाली, सभी जगह विद्यमान, अविभाज्य, अदृश्य, अद्भुत, अलौकिक, पवित्र, दयालु, अनंत, अमर है व उन्होंने ही इस सृष्टि की रचना की है। हमें केवल उसी की उपासना करनी चाहिए, अन्य किसी और को ईश्वर नहीं मानना चाहिए।
- सभी ग्रंथों में वेद सबसे महान हैं व हर आर्य का यह कर्तव्य है कि वह वेदों को पढ़े, उसका आत्म-सात करे व औरों को भी इसके बारे में बताए।
- हमें हमेशा सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए व असत्य का आचरण छोड़ देना चाहिए।
- हमें कोई भी कार्य अपने धर्म के अनुसार ही करना चाहिए। किसी भी कार्य को करने से पहले क्या सही है व क्या गलत, इसके बारे में विचार अवश्य करना चाहिए।
- आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य इस विश्व का पूर्ण रूप से अर्थात शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक रूप से उत्थान करना होना चाहिए।
- हमें सभी व्यक्तिओं के साथ प्रेम, स्नेह, धर्मपूर्वक व उनके पद/ आचरण के अनुसार व्यवहार करना चाहिए।
- हमें अज्ञानता के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाना चाहिए।
- हमें केवल अपने बारे में ही नहीं सोचना चाहिए अपितु सभी के विकास, उत्थान व खुशी के बारे में सोचना चाहिए।
- हमें किसी को अपने नियम मानने के लिए बाध्य नहीं करना चाहिए। विश्व के प्रत्येक प्राणी को अपने बनाए नियम मानने का संपूर्ण अधिकार है।
तो यह थे आर्य समाज के 10 नियम जिनका पालन करना हर आर्य समाजी के लिए पत्थर की लकीर के समान होता है। एक तरह से यदि कोई व्यक्ति आर्य समाज में प्रवेश करता है तो उसे निश्चित तौर पर इन सभी नियमों का पालन करना होता है। इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने आर्य समाज (Arya Samaj In Hindi) के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है।
आर्य समाज से संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न: क्या आर्य समाज हिंदू धर्म से अलग धर्म या संप्रदाय है?
उत्तर: नहीं, आर्य समाज हिंदू धर्म को ही मानता है किंतु यह हिंदू धर्म में वेदों को ही सर्वोच्च मानता है। यह बाकी कर्मकांडों, अवतारों, पुराणों, कथाओं इत्यादि को आडंबर या अंधविश्वास की श्रेणी में रखता है।
प्रश्न: क्या आर्य समाज ईश्वर को नही मानता है?
उत्तर: नहीं, आर्य समाज ईश्वर में पूर्णतया विश्वास रखता है व उसे सर्वोत्तम मानता है किंतु यह ईश्वर के मूर्त रूप को नहीं मानता। उनके लिए रामायण व महाभारत पूजनीय है तथा वे श्रीराम, श्रीकृष्ण जैसे ईश्वरीय अवतारों को अपना पूर्वज मानते हैं किंतु वे उन्हें भगवान नहीं मानते और उनकी मूर्तिपूजा का विरोध करते हैं।
प्रश्न: क्या आर्य समाज स्वामी दयानंद सरस्वती को भगवान मानता है?
उत्तर: नहीं, वे स्वामी दयानंद सरस्वती जी को आर्य समाज की नींव रखने वाला व अपना मार्गदर्शक मानते हैं। उनके अनुसार भगवान केवल एक ही है जिसकी सभी पूजा करते हैं।
प्रश्न: क्या आर्य समाज का धार्मिक ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश है?
उत्तर: नहीं, आर्य समाज का मुख्य ग्रंथ वेद हैं। सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक वेदों की महत्ता के बारे में बताती है।
प्रश्न: क्या आर्य समाज अन्य धर्मों को नही मानता हैं?
उत्तर: हां, स्वामी दयानंद सरस्वती ने हिंदू धर्म के अलावा बाकी सभी धर्मों को आडंबर व पाखंडी बताया। उन्होंने जैन धर्म को भयानक, बौद्ध धर्म को हास्यास्पद, सिख धर्म को अल्पज्ञानी, ईसाई को नैतिक धर्म के विरुद्ध व इस्लाम को तो मानवता का शत्रु बताया था। सभी धर्मों में उन्होंने इस्लाम को सबसे कट्टर, विश्व व मानवता के लिए घातक बताया था।
प्रश्न: आर्य समाज क्या है?
उत्तर: आर्य समाज हिंदू धर्म से निकला हुआ एक समाज है जो केवल वेदों को ही प्राथमिकता देता है। यह अन्य सभी ग्रंथों व पुराणों को आडम्बर की श्रेणी में रखता है।
प्रश्न: आर्य समाज के प्रमुख उद्देश्य बताइए?
उत्तर: आर्य समाज के प्रमुख उद्देश्य गुरुकुलों की स्थापना, कुरीतियों को दूर कर धर्म का सही ज्ञान देना व धर्मांतरण को रोकना है।
प्रश्न: आर्य समाज का मुख्यालय कहाँ स्थित है?
उत्तर: आर्य समाज का मुख्यालय देश की राजधानी नई दिल्ली में स्थित है।
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