लेपाक्षी मंदिर कहां है? जाने लेपाक्षी मंदिर का रहस्य सहित संपूर्ण जानकारी

Lepakshi Mandir Andhra Pradesh

लेपाक्षी मंदिर आंध्र प्रदेश (Lepakshi Mandir Andhra Pradesh) के अनंतपुर जिले में स्थित है जो बैंगलोर शहर से लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर है। लेपाक्षी मंदिर का रहस्य किसी से छुपा हुआ नहीं है क्योंकि बहुत लोग इसे इसके चमत्कारिक रहस्य के रूप में ही जानते हैं। यहाँ के एक स्तंभ को हवा में झूलते हुए देखा जा सकता है जिसके नीचे से लोग कपड़ा निकालना शुभ मानते हैं।

इसे वीरभद्र मंदिर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि मंदिर का संबंध भगवान शिव के वीरभद्र रूप से है। इसी के साथ ही मंदिर का इतिहास रामायण के श्रीराम-जटायु प्रसंग से भी जुड़ा हुआ है। यह मंदिर अपनी विशेषताओं और अद्भुत नक्काशियों के कारण देश ही नही अपितु विदेशों में भी प्रसिद्ध है।

आज हम आपको लेपाक्षी मंदिर का इतिहास (Lepakshi Temple History In Hindi), रहस्य, कथाएं, सरंचना, विशेषता इत्यादि के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।

Lepakshi Mandir Andhra Pradesh | लेपाक्षी मंदिर आंध्र प्रदेश की जानकारी

भारत देश में एक नहीं हजारों मंदिर हैं। वर्तमान समय में तो करोड़ों मंदिर हैं लेकिन जो मंदिर वैदिक नीति के अनुसार और प्राचीन समय में बनाए गए थे, उनका महत्व ही अलग है। वह इसलिए क्योंकि इनका हमारे देवी-देवताओं और ईश्वरीय रूपों से साक्षात संबंध रहा है। फिर चाहे माता सीता की खोज में भगवान श्रीराम का जटायु को ढूँढना हो, शिवजी के वीरभद्र रूप में यहाँ शिवलिंग का स्थापित होना हो या हनुमान जी का यहाँ आना हो इत्यादि।

इतना ही नहीं, यहाँ के हवा में झूलते स्तंभ का रहस्य तो आज तक कोई नहीं जान पाया है। पहले के समय में राजा-महाराजा के लिए भी लेपाक्षी मंदिर (Lepakshi Mandir) का यह रहस्य किसी आश्चर्य से कम नहीं था। ऐसे में आज हम आपको लेपाक्षी मंदिर के बारे में संपूर्ण परिचय देंगे।

लेपाक्षी मंदिर कहां है?

लेपाक्षी मंदिर आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के एक छोटे से गाँव में है जिसे लेपाक्षी गाँव के नाम से ही जाना जाता है। इसके सबसे पास का शहर हिन्दुपुर है। यह हिन्दुपुर शहर से 15 किलोमीटर पूर्व में तथा बेंगलुरु के 120 किलोमीटर उत्तर में स्थित है।

मंदिर को कुर्म सैला के विशाल पहाड़ों के बीच चट्टान को काटकर ग्रेनाइट के पत्थरों की सहायता से बनाया गया है। यह पहाड़ एक कछुए के आकार में है, इसलिए इन्हें कुर्म सैला/ कुर्मासेलम के नाम से जाना जाता है। संस्कृत भाषा में कछुए को कुर्म कहा जाता है।

ऐसे में यदि आपको लेपाक्षी मंदिर की यात्रा पर जाना है तो यहाँ तक कैसे पहुंचें, यही सबसे बड़ा प्रश्न होता है। तो आइए हम आपकी इस दुविधा का भी अंत कर देते हैं।

लेपाक्षी मंदिर कैसे पहुंचें?

यह मंदिर राष्ट्रीय राजमार्ग 7 पर स्थित है जो आंध्र प्रदेश व कर्नाटक राज्य को आपस में जोड़ता है। लेपाक्षी अनंतपुर में एक छोटा सा गाँव है जो पेनुकोंडा (Penukonda) के पास स्थित है। लेपाक्षी मंदिर आंध्र प्रदेश (Lepakshi Mandir Andhra Pradesh) का प्रसिद्ध मंदिर है और हर वर्ष यहाँ लाखों श्रद्धालु पहुँचते हैं। आइए हम आपको इस मंदिर तक पहुँचने के तीनों मार्ग बता देते हैं।

  • हवाईमार्ग

यदि आप हवाई मार्ग से आ रहे हैं तो सबसे नजदीकी हवाई अड्डा बैंगलोर हवाई अड्डा है। यहाँ से मंदिर की दूरी लगभग 90 किलोमीटर की है। ऐसे में आप यहाँ से बस या निजी टैक्सी के माध्यम से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।

  • रेलमार्ग

यदि आप रेलगाड़ी से आ रहे हैं तो आप हिन्दुपुर रेलवे स्टेशन पर उतरें। यहाँ से लेपाक्षी मंदिर 10 से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ से आपको मंदिर जाने के लिए कई बस या टैक्सी मिल जाएगी।

  • सड़क मार्ग

मंदिर बेंगलुरु व हैदराबाद जैसे बड़े शहरों की ओर जाने वाली सड़कों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है जो राजमार्ग 7 से बस कुछ ही दूरी पर स्थित है। इसलिए आप आसानी से सड़क मार्ग के द्वारा यहाँ पहुँच सकते हैं।

लेपाक्षी का अर्थ

रामायण काल में जब भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मणमाता सीता के साथ 14 वर्षों का वनवास काट रहे थे तब वनवास के अंतिम चरण में वे इसी जगह आकर ठहरे थे। उस समय उनकी सुरक्षा में जटायु पक्षी तैनात था। तब दुष्ट रावण ने मारीच की सहायता से माता सीता का अपहरण कर लिया था और उन्हें पुष्पक विमान में बिठाकर लंका ले जाने लगा।

यह घटना जटायु ने देख ली थी। तब जटायु ने आसमान में रावण के साथ भीषण युद्ध किया था लेकिन अंत में रावण की शक्तियों के आगे वह हार गया। रावण ने जटायु का एक पंख अपनी तलवार से काट दिया जिस कारण जटायु राम नाम चिल्लाते हुए इसी जगह पर गिरे थे।

इसके कुछ समय बाद जब भगवान श्रीराम माता सीता की खोज में यहाँ आए तो उन्हें जटायु कराहते हुए मिले। तब श्रीराम जटायु का सिर अपनी गोद में रखकर बार-बार ले पाक्षी-ले पाक्षी बोल रहे थे। यह एक तेलुगु भाषा का शब्द है जिसका हिंदी में अर्थ उठो पक्षी से है।

जटायु ने श्रीराम के सामने संपूर्ण घटना का वृतांत सुना दिया और उनकी गोद में सिर रखे-रखे ही अपनी अंतिम सांसें ली। श्रीराम की आँखों से लगातार आंसू बह रहे थे और अंत में उन्होंने एक पुत्र की भांति जटायु का अंतिम संस्कार कर दिया। तब से इस स्थल का नाम लेपाक्षी और मंदिर का नाम लेपाक्षी मंदिर पड़ गया था।

Lepakshi Temple History In Hindi | लेपाक्षी मंदिर का इतिहास

लेपाक्षी मंदिर का इतिहास अति-प्राचीन है जो सतयुग के समयकाल का है। इसकी कहानियां ईश्वरीय अवतारों के साथ ही महान ऋषियों और संतों से भी जुड़ी हुई है। आइए हम लेपाक्षी मंदिर के इतिहास से जुड़ी हरेक महत्वपूर्ण घटना को आपके सामने रख देते हैं।

  • मान्यता है कि इस मंदिर में स्थित स्वयंभू शिवलिंग का निर्माण महर्षि अगस्त्य ने करवाया था। महर्षि अगस्त्य एक समय में महानतम ऋषियों में से एक थे।
  • उसके बाद रामायण काल में भी दो और शिवलिंग का निर्माण करवाया गया जिन्हें यहाँ स्थापित किया गया था।
  • इसमें से एक शिवलिंग की स्थापना भगवान श्रीराम ने जटायु के अंतिम संस्कार के बाद की थी। दुष्ट रावण के द्वारा जटायु के वध के पश्चात उनका अंतिम संस्कार यहीं किया गया था।
  • दूसरा शिवलिंग भक्त हनुमान के द्वारा स्थापित किया गया था। उसके बाद सदियों तक यह मंदिर ऐसे ही रहा और शिवलिंग खुले आसमान के नीचे।
  • 16वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के दौरान दो भाइयों विरुपन्ना व विरन्ना ने इस विशाल मंदिर का निर्माण करवाया।
  • विजयनगर के राजाओं के द्वारा इस मंदिर के निर्माण में पूरी ताकत झोंक दी गई थी।
  • लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि विजयनगर के राजाओं ने कुछ रहस्यमयी शक्तियों की सहायता से भी मंदिर निर्माण करवाया था
  • वह इसलिए क्योंकि मंदिर की निर्माण शैली, सरंचना, स्थापत्य कला तथा नक्काशियां उत्कृष्ट है जो मनुष्य के द्वारा साधारण रूप में नहीं की जा सकती है।

लेपाक्षी मंदिर का निर्माण (Lepakshi Mandir) पूरे होने की तिथि को लेकर विभिन्न मत हैं जैसे कि कोई इसे 1518 ईसवी में बना हुआ मानता है तो कोई इसे 1583 ईसवी में। इसके अलावा भी कई अन्य मत हैं जो कि अलग-अलग तिथि बताते हैं लेकिन कुल मिलाकर मंदिर का निर्माण 1520 ईसवी से लेकर 1585 ईसवी के बीच में पूरा हो गया था।

लेपाक्षी मंदिर की कहानी

अब समय आ गया है लेपाक्षी मंदिर से जुड़ी कहानियों के बारे में जानने का। इस मंदिर से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 4 घटनाएँ जुड़ी हुई हैं, जो कि इस प्रकार हैं:

  • लेपाक्षी मंदिर का वीरभद्र से संबंध

दक्ष प्रजापति के द्वारा भगवान शिव का अपमान करने और फिर माता सती के आत्म-दाह करने की कथा तो सभी ने सुनी होगी लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि माता सती के आत्म-दाह के बाद भगवान शिव का एक रूद्र रूप प्रकट हुआ था जिसका नाम था वीरभद्र। इसी वीरभद्र ने राजा दक्ष का गला काट दिया था और चारों ओर त्राहिमाम मचा दिया था।

उसके कई वर्षों के बाद महर्षि अगस्त्य मुनि ने शिवजी के वीरभद्र रूप को समर्पित एक विशाल शिवलिंग व मंदिर का निर्माण यहाँ करवाया था। इस शिवलिंग के पीछे सात मुहं वाला विशाल नाग भी विराजमान है। यह भारत के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है जिसे एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। इसलिए इस मंदिर को वीरभद्र मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

  • लेपाक्षी मंदिर का श्रीराम व जटायु से संबंध

इस कथा के बारे में हमने आपको ऊपर ही बता दिया है कि कैसे भगवान श्रीराम माता सीता की खोज में जटायु तक पहुंचे और उन्हें तेलुगु भाषा में ले पाक्षी करके उठाया। बस उसी जगह इस मंदिर का निर्माण हुआ और श्रीराम के शब्दों के फलस्वरूप मंदिर का नाम लेपाक्षी पड़ा।

  • लेपाक्षी मंदिर का माता सीता के पैर से संबंध

लेपाक्षी मंदिर (Lepakshi Mandir)
लेपाक्षी मंदिर (Lepakshi Mandir)

मंदिर के अंदर रहस्यमयी रूप से एक विशालकाय पैर की छाप है। प्रचलित मान्यता के अनुसार यह माता सीता के पैर की छाप है। दरअसल जब रावण माता सीता को पुष्पक विमान में बिठाकर लंका ले जा रहा था और जटायु घायल होकर यहाँ गिर गए थे तब माता सीता ने श्रीराम को संदेश देने के लिए अपने पैर की एक छाप यहाँ छोड़ी थी।

  • लेपाक्षी मंदिर के नृत्य मंडप का शिव-पार्वती से संबंध

वर्षों बाद जब विजयनगर के राजाओं के द्वारा मंदिर का निर्माण करवाया गया तब उन्होंने यहाँ विशाल नृत्य मंडप का भी निर्माण करवाया। उनके अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह इसी जगह पर हुआ था। इसलिए उन्होंने इस विशाल नृत्य मंडप का निर्माण मंदिर के अंदर करवाया था।

इस तरह से यह लेपाक्षी मंदिर आंध्र प्रदेश (Lepakshi Mandir Andhra Pradesh) राज्य का गौरव है जिसका संबंध कई महापुरुषों व देवताओं से रहा है

लेपाक्षी मंदिर का रहस्य

Lepakshi Hanging Pillar
Lepakshi Hanging Pillar

लेपाक्षी मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य यहाँ का हैंगिंग पिलर (झूलता हुआ स्तंभ) है जो धरती से कुछ सेंटीमीटर ऊपर उठा हुआ है। दरअसल मंदिर का नृत्य मंडप 70 स्तंभों पर खड़ा था। जब भारत में मुगल काल के बाद ब्रिटिश राज आया तब 1902 ईसवीं में हैमिल्टन नाम का एक अंग्रेज़ इंजीनियर मंदिर का रहस्य जानने यहाँ आया।

उसने लेपाक्षी मंदिर का रहस्य जानने के लिए इन स्तंभों को तोड़ने या हिलाने का प्रयास किया था। इसके बाद 70 में से एक स्तम्भ धरती से कुछ ऊपर उठ गया लेकिन टूटा नही। मंदिर का ऐसा रहस्य और बनावट देखकर वह स्तब्ध रह गया और वहां से चला गया।

इसके बाद वह स्तम्भ आज भी सभी भक्तों के बीच आकर्षण का केंद्र है। जो कोई भी लेपाक्षी मंदिर दर्शन करने को जाता है वह इस स्तम्भ के नीचे से कोई कपड़ा या कोई अन्य पतली चीज़ निकालने की कोशिश करता है। मान्यता है कि इस स्तम्भ के नीचे से कपड़ा निकालने से भक्तों की इच्छा पूरी होती है।

लेपाक्षी मंदिर की सरंचना

मंदिर का निर्माण विजयनगर शैली में किया गया है जो स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर का हर एक भाग, हर एक कोना अद्भुत नक्काशियों, मूर्तियों, भित्ति-चित्रों से पटा पड़ा है। यहाँ आपको शिवलिंग व नंदी की विशाल मूर्तियाँ देखने को मिलेंगी जो एक ही चट्टान को काटकर बनाई गई हैं।

मंदिर को मुख्यतया तीन भागों में विभाजित किया गया है जिसमें एक मुख्य मंडप, दूसरा अंतराल व तीसरा गर्भगृह है। आइए एक-एक करके मंदिर के हर स्थल व उसकी विशेषता को जानते हैं।

  • नंदी की मूर्ति

जब आप इस मंदिर में प्रवेश करेंगे तब आपको शिवजी की सवारी नंदी की एक विशाल मूर्ति देखने को मिलेगी। यह मूर्ति मंदिर के बाहर मुख्य सड़क के पास स्थित है। मूर्ति को एक ही ग्रेनाइट के पत्थर को तराश कर बनाया गया है जो कि विश्व में नंदी की सबसे विशाल मूर्ति है। मूर्ति की लंबाई 27 फीट व ऊंचाई 15 फीट के आसपास है।

  • मुख्य मंडप

इसे मुख मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में प्रवेश करने के लिए तीन द्वार हैं जिसमें से उत्तरी द्वार का उपयोग मुख्य रूप से किया जाता रहा है। इसके अलावा एक द्वार सीधे सभा मंडप में खुलता है जो कि अंदर का पूर्वी द्वार है।

  • नागलिंग

लेपाक्षी मंदिर का रहस्य
लेपाक्षी मंदिर का रहस्य

यहाँ पर स्थित इस विशालकाय शिवलिंग को देखकर आप चकित रह जाएंगे क्योंकि यह विश्व का सबसे बड़ा नागलिंग है। यह इतना अद्भुत व विशाल है कि दुनिया भर से लोग इसे देखने आते हैं। यह शिवलिंग एक पहाड़ी पर स्थित है जिसे एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। इसे स्वयंभू शिवलिंग के नाम से भी जाना जाता है। शिवलिंग के पीछे सात मुहं वाला विशाल शेषनाग भी विराजमान है जो इसको और ज्यादा अद्भुत रूप देता है।

  • नृत्य मंडप

नृत्य मंडप का निर्माण विजयनगर के राजाओं के द्वारा भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह स्वरुप करवाया गया था। उनकी मान्यता थी कि भगवान शिव का माता पार्वती से विवाह इसी स्थल पर हुआ था और तब देवताओं ने यहाँ नृत्य किया था। उसी की याद में नृत्य मंडप के चारों ओर विशालकाय और अद्भुत नक्काशीयुक्त 70 स्तम्भ बनवाए गए जो मंदिर को भव्य रूप देते हैं।

इस नृत्य मंडप को देखने पर आप विश्वास नही करेंगे कि यह मंदिर मनुष्यों के द्वारा ही बनाया गया था। नृत्य मंडप को अंतराल या अर्ध मंडप भी कहा जाता है क्योंकि इसका निर्माण आधा अधूरा रह गया था। लेपाक्षी मंदिर (Lepakshi Mandir) के लिए यह मंडप उसकी मुख्य पहचान है।

  • लेपाक्षी मंदिर स्तंभ

इन स्तंभों पर भगवान शिव के 14 अवतारों के भित्तिचित्र बने हुए हैं जो उनके विभिन्न रूपों का चित्रण करते हैं जैसे कि अर्धनारीश्वर, नटराज, हरिहर, गौरीप्रसाद, कल्याणसुंदर इत्यादि। अर्ध मंडप की छत को एशिया महाद्वीप की सबसे बड़ी छत कहा जाता है जो विभिन्न भित्तिचित्रों और आकर्षक नक्काशियों को समेटे हुए है। इसका आकार 23*13 फीट में है।

यहाँ की सबसे मुख्य चीज़ जो देश-विदेश के लोगों को वर्षों से आकर्षित करती आ रही है वो है यहाँ का रहस्यमयी तरीके से झूलता स्तंभ (Lepakshi Hanging Pillar)। इस मंदिर में कुल 70 स्तंभ हैं जिस पर मंदिर का नृत्य मंडप खड़ा है किंतु इन 70 स्तंभों में से एक स्तंभ धरती से कुछ ऊपर उठा हुआ है।

  • गर्भगृह

लेपाक्षी मंदिर के गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर आपको दो मूर्तियाँ देखने को मिलेंगी जो माँ गंगा व यमुना की हैं। मंदिर के अंदर प्रवेश करने पर भगवान वीरभद्र की विशाल मूर्ति देखने को मिलेगी। यह मूर्ति विभिन्न शस्त्रों तथा खोपड़ियों को धारण किए हुए है। गर्भगृह की छत पर मंदिर के निर्माताओं और उनके परिवार के भित्ति चित्र उकेरे गए हैं।

इसी के साथ गर्भगृह में एक गुफा भी है। मान्यता है कि इस गुफा में अगस्त्य मुनि रहा करते थे जिन्होंने इस मंदिर का शुरूआती निर्माण किया था और वीरभद्र की मूर्ति की स्थापना की थी।

  • विशाल पैर की छाप

मंदिर में एक विशालकाय पैर की छाप भी है जिसको लेकर अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित है। कुछ लोग इसे हनुमद चरण तो कुछ इसे माता सीता के चरण कहते हैं। कुछ लोग इसे भगवान श्रीराम या माँ दुर्गा के पदचिन्ह भी मानते हैं लेकिन प्रचलित मान्यता के अनुसार इसे माता सीता के पदचिन्ह ही माना जाता है।

  • दीवारों पर आकर्षक भित्तिचित्र व नक्काशियां

चाहे मंदिर का प्रवेश द्वार हो या नृत्य मंडप के स्तम्भ या गर्भगृह की दीवारें, आपको कोई भी कोना या छत ऐसी नही मिलेगी जो आकर्षक भित्तिचित्र और प्रतिमाओं से भरी हुई ना हो। यहाँ आपको रामायण काल से लेकर महाभारत काल की हर घटनाओं का विस्तृत रूप भित्तिचित्रों के रूप में देखने को मिलेगा।

इतना ही नही, यहाँ आपको भगवान विष्णु के सभी अवतारों के चित्र, उस समय का रहन-सहन, वेशभूषा, संस्कृति, सैनिक, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, देवी-देवता, संत, संगीतकार, वाद्य यन्त्र, नृतक मुद्राएँ, अप्सराएँ इत्यादि कई भित्तिचित्र देखने को मिलेंगे जो आपका मन मोह लेंगे।

  • साड़ियों के डिजाईन

लेपाक्षी मंदिर की एक और विशेषता यह है कि यहाँ की दीवारों के भित्तिचित्रों पर ऊपर दी गई चीज़ों के साथ-साथ उस समयकाल के कई प्रकार के साड़ियों के डिजाईन भी दिए गए हैं। इसलिए देश-विदेश से कई विशेषज्ञ व साड़ियों के जानकार इन्हें देखने और इनका विश्लेषण करने यहाँ आते हैं।

  • राम लिंगेश्वर

मुख्य शिवलिंग के अलावा यहाँ एक और शिवलिंग स्थापित है जिसे राम लिंगेश्वर कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने जटायु के अंतिम संस्कार के बाद इस जगह पर एक शिवलिंग की स्थापना की थी। आज हम उसी शिवलिंग को राम लिंगेश्वर के नाम से जानते हैं।

  • हनुमालिंगेश्वर

राम लिंगेश्वर के पास ही एक और शिवलिंग स्थापित है जिसे हनुमालिंगेश्वर के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम के बाद हनुमान ने भी यहाँ एक शिवलिंग की स्थापना की थी।

लेपाक्षी मंदिर जाने का समय

यह मंदिर हर दिन खुला होता है व आप किसी भी दिन यहाँ जा सकते हैं व मंदिर घूम सकते हैं। मंदिर प्रतिदिन प्रातः 6 बजे भक्तों के लिए खुलता है व संध्या 6 बजे बंद हो जाता है। इसलिए यदि आप पूरे मंदिर को अच्छे से देखना चाहते हैं तो सुबह जल्दी पहुँच जाएं।

इस तरह से आज आपने लेपाक्षी मंदिर के बारे में संपूर्ण जानकारी ले ली है इसी के साथ ही यह भी ध्यान रखिए कि लेपाक्षी मंदिर आंध्र प्रदेश (Lepakshi Mandir Andhra Pradesh) का ही नहीं अपितु संपूर्ण देश के लिए किसी गौरव से कम नहीं है।

लेपाक्षी मंदिर से जुड़े प्रश्नोत्तर

प्रश्न: लेपाक्षी मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?

उत्तर: लेपाक्षी मंदिर अपनी अद्भुत सथापत्याकला, हवा में झूलता स्तंभ और दीवारों पर उकेरे गए साड़ियों के डिजाईन के कारण प्रसिद्ध है

प्रश्न: लेपाक्षी शैली क्या है?

उत्तर: आंध्र प्रदेश राज्य में लेपाक्षी मंदिर स्थित है जहाँ की शैली बहुत प्रसिद्ध है यहाँ की दीवारों पर कई तरह के भित्ति चित्र और साड़ियों के डिजाईन उकेरे गए हैं जो सभी के बीच आकर्षण का केंद्र है

प्रश्न: लेपाक्षी के पीछे की कहानी क्या है?

उत्तर: लेपाक्षी के पीछे एक नहीं बल्कि 4 कहानियां है जिनके बारे में हमने आपको इस लेख में बताया है इसमें सबसे प्रमुख कथा श्रीराम व जटायु से जुड़ी हुई है

प्रश्न: लेपाक्षी मंदिर के लटकते स्तंभ के पीछे क्या रहस्य है?

उत्तर: लेपाक्षी मंदिर के लटकते स्तंभ के पीछे का रहस्य आज तक कोई नहीं जान पाया है इसे सभी दैवीय चमत्कार ही कहते हैं

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लेखक के बारें में: कृष्णा

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